मेलघाट के छोटे छोटे गाँव मे बजरंग दल का शाखा बनाई गई है और उसके बोर्ड लगाए गए है| इसी तरह की एक बजरंग दल शाखा का बोर्ड नीचे दिया गया है| आदिवासी इलाको मे ब्राम्हणवाद का प्रचार कर मासूम आदिवासियो को मिसगाईड किया जा रहा है| स्कूल, कॉलेज, उच्च शिक्षा, आधुनिक सुविधा की बजाए धर्मांधता
बढाने का काम आदिवासी इलाको मे जारी है| आदिवासी समुदाय को उनकी महत्वपूर्ण वन संपदा से विस्थापन कर उनका पतन किया जा रहा है|
इसे रोकने के लिए "RAEPराष्ट्रीय आदिवासी एकता परिषद" के हमारे क्रांतिकारी मित्र तथा कार्यकर्ता राम धिगर जी और उनके साथियो के साथ हम हर गांव मे बामसेफ और
RAEPराष्ट्रीय आदिवासी एकता परिषद के युनिट गठित कर उनके बोर्ड हर गांव मे लगा रहे है| बहुत जल्द मेलघाट मे क्रांतिकारी परिवर्तन होगा|
बोधिवृक्ष को बुद्ध का मानकर सम्राट अशोक ने बोधिवृक्ष पुजा का उत्सव शुरू कर दिया था| सम्राट अशोक बोधिवृक्ष की पुजा कैसे करते थे इसका वर्णन हमे कलिंगबोधि जातक कथा मे मिलता है|
सम्राट अशोक ने बोधिवृक्ष को सुगंधित द्रव्य से नहलाया था, उसपर फुल बरसाए
थे, दिप जलाए थे, उसपर पुष्पमालाएं चढाई गयी थी, झंडे लगाए गए थे, पाणी से भरे घडे (पुन्नघट) बोधिवृक्ष पर लगाए गए थे, बोधिवृक्ष के सभोवार कठडा और कु़ंपन बनाकर उसे सुरक्षित किया गया था, बोधिवृक्ष के चारो बाजू मे धम्मस्तंभ खड़े किए थे, बोधिवृक्ष पर सुवर्णमुद्राओ की वर्षा की गई थी,
सम्राट के साथ सभी ने बोधिवृक्ष की प्रदक्षिणा की थी, प्रदक्षिणा के दरमियान तालियां बजाते हुए लोग मनोभाव से बोधिवृक्ष की प्रशंसा कर रहे थे और साधु साधु गुणगुणा रहे थे|
सांची के स्तुप मे इस तरह की बोधिवृक्ष पुजा का शिल्पांकन किया गया है| बोधिवृक्ष का परिसर तो हरदिन साफ कर साफसुथरा
आज जितने भी जातिवादी लेखक है, वैसे सभी लेखकवृन्द सम्राट अशोक द्वारा लिखित बृहद चतुर्थ अभिलेख को कोट करते हुए लिखते है कि सम्राट अशोक ने अपने लेख मे #ब्राह्मण और #श्रमण का उल्लेख किया है| इसलिए, उस समय ब्राह्मण नाम की जाति वर्ण स्थापित था|
अब यहां आपलोग उस अभिलेख की छायाप्रति देखे
जो पोस्ट मे संलग्न है, अंडरलाइन किया हुआ शब्द #बम्हणसमणानं है|
अब इस बम्हणसमणानं शब्द को वर्तमान लेखकगण दो भागो मे तोडकर बताते है कि यहां बम्हण और समणानं दो संज्ञा नाम लिखा है, जबकि ऐसा नही है|
इसी अभिलेख को पुनः देखे, लाल रंग से अंडरलाइन किया हुआ शब्द के नीचे हरा रंग वाले
अंडरलाइन को देखे, उसमे #पुत_च_पोता_च_पपोता लिखा हुआ है|
एक अभिलेख, एक भाषा, एक लेखक, फिर दो प्रकार का अर्थ और लेखन कैसे सम्भव है? एक अर्थ का उपयोग करे👈 एक जगह दो शब्दो के बीच मे अंतराल बनाने हेतु #च का प्रयोग किया गया है तो फिर बम्हणसमणानं के बीच मे भी च का प्रयोग होना चाहिए था|
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क्या मूलनिवासी समाज के लोगो को जानकारी है इन ब्राह्मणो के सडयंत्रो का पर्दाफाश करने के लिए BAMCEF विगत 45 वर्षों से यानी 1978 से बिना रुके और बिना थके हारे निरंतर काम कर रहा है |
BAMCEF ने ही ब्राह्मणो के द्वारा मूलनिवासी समाज को धर्म शास्त्रो के माध्यम
से वर्णव्यवस्था एवम जाति व्यवस्था का निर्माण करके सदियो से मानवीय अधिकारो से वंचित करने एवम पाखण्ड एवम अन्धविश्वास थोप कर मूलनिवासी समाज के खून पसीने की कमाई को हडपने के धंधो को एक्सपोज किया है, तथा Sc, St, Obc & Minority को अपने दोस्त और दुश्मन की पहचान करवाने के लिए जगाया तथा
राष्ट्रव्यापी संगठित शक्ति का निर्माण कर दिया है | उसी की बदौलत ब्राह्मणो के अन्दर दहशत का निर्माण हुआ है |
फिर भी ब्राह्मण मूलनिवासी समाज के आमलोगो को डराने के लिए परसुराम के वंशज होकर हथियार उठाने की धमकियां दे रहे है | और अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए तमाम तरह के सडयंत्र कर
हां, मैं नोनिया हूं| धरती का पहला आदमी जिसने सबसे पहले यह जाना कि नमक क्या होता है और मैं यही तक सीमित नही रहा| मैंने नमक बनाने की कला का आविष्कार किया| मैं श्रमजीवी रहा हूं| मैंने श्रम किया और पूरी दुनिया को एक ऐसे स्वाद से भर दिया, जिसके बगैर वह किसी
दूसरे स्वाद की कल्पना भी नही कर सकता|
शायद ही आज की पिढी को मेरा महत्व पता हो| मैं मानव सभ्यता के विकास के क्रम मे उनमे शामिल हूं, जिन्होने इस धरती को इंसानो के लायक बनाया| मैं हर जगह था| मैं मेसोपोटामिया मे था और मैं सिंधु नदी सभ्यता के दौर मे भी मौजूद ही था| वह मैं ही था जिसके
बनाए नमक की लालच ने वेस्ट युरेशियनो (आर्यों) को भारत की ओर रूख करने को बाध्य किया| हालांकि मेरे पास इस संबंध मे कोई तथ्य नही है क्योंकि मेरा इतिहास ही नही लिखा गया| लेकिन मैं इतना तो कह सकता हूं कि नाना प्रकार के जानवरो का कच्चा-पक्का बेस्वाद मांस खानेवालो के मुंह मे जब नमक लगा
OBC के विरोध मे इस प्रकार के फैसले इसलिए आते हे, क्युकी OBC वर्ग के कुछ परसेंट OBC को छोडकर देश का 52% OBC संविधान को नही पढता, OBC के लिए जो मंडल कमीशन की सिफारिशे है उसकी जानकारी तक नही है, हमारे दादा परदादा पुरखे अंगूठा छाप थे क्युकी उस समय ब्राह्मणो द्वारा लिखा हुआ कानून
"मनुस्मृति" के रूप मे लागू था | जैसे ही तथाकथित आजाद भारत के अंदर 26जनवरी1950 को भारतीय संविधान लागू हुआ तो आज हम लिखे पढे हुए और महामानव बाबासाहेब डॉ.भीमराव अंबेडकर ने जैसे कहा था की शिक्षित बने संगठित रहे और संघर्ष करे, हम OBC को 3743 जातियो मे ब्राह्मणो द्वारा बांटा हुआ है
हमे सामाजिक शिक्षा लेके संगठित होना होगा | जाति का गर्व छोडकर पूरे OBC समुदाय पर गर्व महसूस करना होगा ओर जो लोकतंत्र के चार पिलर है विधायिका,कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया यहां पर बैठे ब्राह्मणवादी लोग OBC को धर्म के नाम पर गुमराह करते है, इस बात को मान. चौधरी विकास पटेल जो
तथागत बुद्ध बनने से पहले राजकुमार सिद्धत्थ गोतम एक सामान्य राजपुत्र थे| अन्य राजपुत्रो की तरह उनका जीवन भी सामान्य था| लेकिन, ज्ञानप्राप्ति के बाद उनका जीवन पुर्णतः बदल गया और लोग उन्हे "तथागत बुद्ध" कहने लगे| तथागत मतलब तथ्य (सत्य) की खोज करनेवाले
(आगत)| बुद्ध मतलब सर्वाधिक ज्ञानी अर्थात प्रज्ञावान व्यक्ति|
तिपिटक की रचना करनेवाले बौद्ध थेर महाथेरो ने बुद्ध के ज्ञानप्राप्ति के बाद के जीवन का विस्तृत वर्णन किया है, लेकिन ज्ञानप्राप्ति के पहले का जीवन नही बताया है| केवल यह बताया गया है कि, बुद्ध को बचपन मे उनके पिता
शुद्धोदन ने उन्हे महलो मे बंदिस्त रखा था और एक दिन वो अपने सारथी चुन्न के साथ कपिलवस्तु का दौरा करते है, उन्हे रास्ते मे चार दृश्य दिखते है और उन्हे देखकर वो गृहत्याग कर बुद्ध बनते है|
यह कहानी पुर्णतः बनावटी लगती है और केवल बुद्ध का महिमामंडन करने के उद्देश्य से लिखी गई है| इस