प्रवृत्ति का मार्ग संसार की ओर जाता है। ये रास्ता आरम्भ में तो बड़ा ही सुन्दर और मनमोहक दिखाई देता है परन्तु, आगे चलकर इसमें विपत्तियों के पर्वत, दुखदाई घाटियां, और कंटीले जंगल मिलते हैं जिनमे
फंसकर प्राणी को अत्यंत कष्ट होता है। एक घडी को भी जीवन में चैन नहीं मिल पाता, फिर भी वो अपनी अवस्था से ऊपर उठने की कोशिश नहीं करता।
नई-नई इच्छाएं उसे जकड़ती जाती हैं, धन व वैभव के पीछे मतवाला होकर डोलता है, अपने शरीर के पालन-पोषण और इन्द्रियों के भोग में ही रत रहता है।
स्त्री और संतान के मोह में पड़कर पाप बटोरता और करने न करने सभी काम करता है। उसे ईश्वर का भय नहीं होता। संसार की अच्छी-बुरी घटनाओं को दिन-रात देखता है, परन्तु फिर भी उसकी विवेक की आँखें नहीं खुलती। वो एक ऐसे अंधे की तरह चला जाता है कि जिसको यह मालूम न हो कि मैं कहाँ जा रहा
हूँ और कहाँ पहुंचूंगा।
परिणाम में मुझे सुख मिलेगा या दुःख मिलेगा। ऐसे मूढ़, अविवेकी मनुष्यों को प्रवृत्ति मार्ग का पथिक कहा जाता है। तात्पर्य यह है कि जो लोग ईश्वर से विमुख हों और संसार में पूरे तौर से फंसे हों, उनको प्रवृत्ति मार्ग का मुसाफिर समझना चाहिए।
निवृत्ति मार्ग
(संसार को त्यागने का मार्ग)
ये त्याग और ज्ञान का रास्ता है। इस मार्ग पर चलने वाले गृहस्थी त्याग के, कारोबार बंद करके सबसे अलग हो के, वैराग्य धारण कर लेते हैं ।
वो एकांत सेवी बन के, कठिन तप करके, संसार का मोह त्याग के, आत्मा की ओर बढ़ने की कोशिश करते हैं। आत्मा का साक्षात्कार
करना चाहते हैं।
ये मार्ग बड़ा ही कठिन और दुर्गम है। इसमें चढ़ाई करनी पड़ती है, अनेक खड्डे, घाटियां और नदी नालों को पार करना होता है। अनेक जगहों पर मायावी दैत्यों से संग्राम करना होता है।
आँख कान जिव्हा पर ताला लगाना होता है।
इंद्रियों को विषयों की ओर दौड़ने से रोकना होता है।
मन चारों ओर से खींच के प्रभु के चरणों में चढ़ा देना होता है। ज्ञान और अभिमान का भूत सर से उतार कर दूर फेंकना पड़ता है। शरीर रखते हुए भी मर मिटना होता है।
प्राण मन और इन्द्रियां मृतक के समान कर देना होता है। अनुभवी पुरुषों ने इस मार्ग को अत्यंत दुरूह और दुर्गम वर्णन किया है।
लाखों लंगोटी लगाने वालों में से एक दो ही गुरु कृपा का सहारा लेते हुए इस माया के अथाह समुद्र से पार हो पाते हैं। शेष बीच में ही डूब मरते हैं।
ऐसे लोग न इधर के रहते हैं न उधर के। न माया को भोग पाते हैं न ब्रह्मानंद का रसपान कर सकते हैं।
सन्यासी को भी जीवन जीने के लिए धन चाहिए। रोटी चाहिए, कपडा चाहिए इत्यादि। वो भिक्षा मांग के ही मिलेगा। तो उनको आबादी में जाना पड़ता है, समाज के संसर्ग में आना पड़ता है, स्त्रियों के संसर्ग में आना पड़ता है।
यही संसर्ग इनको पतित कर देता है। सारा समय दूसरों से रोटी के टुकड़े पाने
पाने में ही खर्च हो जाता है। इसलिए निवृत्ति मार्ग में टिक पाना और अपने लक्ष्य को प्राप्त कर पाना अत्यंत कठिन है।
भगवान कृष्ण ने तीसरा रास्ता खोला--
प्रवृत्ति में निवृत्ति और निवृत्ति में प्रवृत्ति का मार्ग
इस विचित्र मार्ग का रास्ता भगवान कृष्ण ने अपने कर कमलों से खोला ।
उस पर चलने का जिज्ञासुओं क उपदेश दिया।
न वो खुद सन्यासी बने और न अपने शिष्य अर्जुन को सन्यासी बनने की शिक्षा दिया।
वो खुद इसी तीसरे मार्ग पर चल कर दुनिया के सामने एक उदहारण पेश कर गए। इस मार्ग में गृहस्थ आश्रम में रहते हुए, सारे व्यव्हार करते हुए खुद को मालिक नहीं समझना होता है।
सब कुछ मालिक का है समझ के उपभोग करना होता है। सब कार्य करें परन्तु उसे प्रभु आज्ञा समझ के करें। न कुछ अच्छा है, न कुछ बुरा, जो हुआ सो प्रभु इच्छा थी। ऐसे भाव बनाने होते हैं। यानि गृहस्थ दिखें बाहर से परन्तु अंदर से विरक्त बने रहें। इसी को प्रवृत्ति में निवृत्ति और निवृत्ति में
प्रवृत्ति कहते हैं। भगवान कृष्ण सारा जीवन भोगी भी रहे और योगी भी रहे।
वो सारे राजपाट, धन सम्पदा के स्वामी रहते हुए भी उसमे अपनत्व का भाव नहीं लाये।
राजा उग्रसेन को उसका स्वामी बनाया। स्त्री संतान और वैभव का भोग करते हुए भी सबसे अलग-थलग रहे।
वो सबके थे परन्तु किसी के नहीं थे।
गृहस्थ आश्रम में रहो, सारे व्यवहार करो, परन्तु उसमे लिप्त मत होओ। अंदर से विरक्त बनो। साधना करके अपने ह्रदय को वैराग के रंग में रंग लो। बाहर से संसारी दिखो परन्तु अंदर से विरक्त बन जाओ । और गुरु में लय होके ईश्वर में लय हो जाओ।
समस्त क्लेश, दुख और आवागमन से हमेशा हमेशा के लिए छुटकारा पा लो।
बच्चों को ऐसे कहानी सुनाएं
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एक गांव में एक किसान रहता था।
उसके पास दो बैल और दो कुत्ते थे।
एक बार उसे किसी काम से गांव से बाहर जाना था किंतु उसकी समस्या यह थी कि खेत जोतने का भी समय हो गया था,
और काम पूरा करने के लिए गांव से बाहर भी जाना जरूरी था।
तब किसान ने उस
समस्या का समाधान निकाला, उसने अपने बैलों और कुत्तों को बुलाकर कहा कि .
मैं कुछ दिनों के लिए गांव से बाहर जा रहा हूं,
मेरे लौटने तक तुम लोग सारे खेत जोतकर रखना ताकि लौटने पर खेतों में बीज बो सकूं। बैलों और कुत्तों ने स्वीकृति में सिर हिलाया।
किसान चला गया और बैलों ने किसान के कहे
अनुसार खेत जोतना शुरू कर दिया, परंतु कुत्ते आवारागर्दी करते हुए सारा-सारा दिन आवारागर्दी करते रहते।
बैलों ने किसान के लौटने से पहले पूरा खेत जोत दिया |
जब कुत्तों ने देखा कि खेतों की जुताई हो गई है और मालिक के लौटने का समय हो गया है
तब कुत्तों ने बैलों से कहा कि तुम दोनों इतने
सुबुद्धि और दुर्बुद्धि
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हमारे जीवन में सद्बुद्धि की क्या आवश्यकता एवं महत्व आइये जानते हैं...
एक बार किसी ने तुलसी दास जी से पूछा- महाराज, सम्पूर्ण रामायण का सार क्या है? क्या कोई चौपाई ऐसी है जिसे हम सम्पूर्ण रामायण का सार कह सकते हैं?
तुलसी दास जी ने कहा,"
हाँ है !"...
जहां सुमति तहाँ सम्पत्ति नाना।
जहां कुमति तहाँ विपती निदाना॥,
भावार्थ:-
जहां सुमति (अच्छी बुद्धि) होती है... वहां हर प्रकार की सम्पत्ति, सुख- सुविधाएं होती हैं और...
जहां कुमति (बुरी बुद्धि) होती है... वहां विपत्ति, दुःख और कष्ट पीछा नहीं छोड़ते...
सुमति थी अयोध्या में...भाई-भाई में प्रेम था, पिता और पुत्र में प्रेम था, राजा-प्रजा में प्रेम था, सास-बहू में प्रेम था और मालिक-सेवक में प्रेम था, तो उजड़ी हुई अयोध्या फिर से बस गई. कुमति थी लंका में... एक भाई ने दूसरे भाई को लात मारकर निकाल दिया. कुमति और अनीति के कारण सोने की
जरूरी हो तो वीर भाव जगाना पड़ेगा
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अच्छा काम हाथ में लेने का अर्थ यह नहीं है कि सफलता मिल ही जाएगी। भले कार्य में भी बाधाएं आती हैं। कुछ मनुष्यों का स्वभाव बन जाता है अच्छे काम में अकारण अड़ंगा लगाने का।
जब ऐसे लोगों से सामना करना पड़े, तब
श्रीराम और समुद्र वाला प्रसंग ध्यान में रखना चाहिए। सुंदरकांड समापन की ओर है। अब समुद्र पूरी तरह समझ गया है कि श्रीराम से बैर लेना ठीक नहीं। उसने अपनी भूल पर क्षमा भी मांगी। तब तुलसीदासजी मानव मनोविज्ञान पर टिप्पणी करते हैं।
श्रीराम कथा के चार वक्ता और चार श्रोता हैं।
शंकरजी ने पार्वतीजी को सुनाई।
याज्ञवल्क्यजी ने भारद्वाजजी को श्रवण कराया।
काकभुशुण्डिजी कह रहे हैं और पक्षीराज गरुडज़ी कथा सुन रहे हैं।
फिर तुलसीदासजी द्वारा हमें श्रीरामकथा देना।
चौपाई आती है -
काटेहिं पइ कदरी फरइ कोटि जतन कोउ सींच।
बिनय न मान खगेस सुनु डाटेहिं पइ नव नीच।।
रावण द्वारा सीता हरण करके श्रीलंका जाते समय पुष्पक विमान का मार्ग क्या था?
उस मार्ग में कौनसा वैज्ञानिक रहस्य छुपा हुआ है?
उस मार्ग के बारे में हज़ारो साल पहले कैसे जानकारी थी?
पढ़िए इन प्रश्नों के उत्तर*
रावण ने माँ सीता जी का अपहरण पंचवटी (नासिक, महाराष्ट्र) से किया और
पुष्पक विमान द्वारा हम्पी (कर्नाटक), लेपक्षी (आँध्रप्रदेश) होते हुए श्रीलंका पहुंचा।
आश्चर्य होता है जब हम आधुनिक तकनीक से देखते हैं कि नासिक, हम्पी, लेपक्षी और श्रीलंका बिलकुल एक सीधी लाइन में हैं.
अर्थात ये पंचवटी से श्रीलंका जाने का सबसे छोटा रास्ता है।
अब आप ये सोचिए उस समय
Google Map नहीं था जो Shortest Way बता देता. फिर कैसे उस समय ये पता किया गया कि सबसे छोटा और सीधा मार्ग कौनसा है?
या अगर भारत विरोधियों के अहम् संतुष्टि के लिए मान भी लें कि चलो रामायण केवल एक महाकाव्य है जो महर्षि वाल्मीकि महाराज जी ने लिखा तो फिर ये बताओ कि उस ज़माने में
साभार...मुस्लिम देशाें में काेई मदर टेरेसा क्यों नहीं बनती ?
क्या सारी सेवा की आवश्यकता भारत को ही है ?
क्या सूडान, लीबिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, इराक, सऊदी अरब और सीरिया में गरीब नहीं हैं ?
टेरेसा ने वहाँ पर "सेवा" क्यों नहीं की ?
वहाँ वेटिकन वाले क्याें नहीं जाते ?
मुस्लिम देशाें में वेटिकन सिटी वालों काे इतना साहस ही नहीं है कि वह
मदर टेरेसा जैसी अपनी कर्मचारी भेज सके।
मुस्लिम देश में सेवा के नाम पर
धर्म परिवर्तन की अनुमति नहीं मिलेगी फिर भी अगर वेटिकन परोक्ष ताैर पर भी अपनी करतूत जारी रखी
ताे फिर मुस्लिम देश वेंटिकन के स्टाफ काे
फांसी पर लटका देगें।
हिन्दू धर्म बहुत उदार है पता नहीं यह उदारता हमारी कमजोरी है या फिर कुछ और।
हमारे अंदर ही ऐसे "सेकुलर प्रगतिशील (कु)बुद्धिजीवी"लोग बिखरे पड़े
है जो हमारी जड़ो में मट्ठा डालते हैं।
👉पूरे देश में सभी रेलवे लाइनों के दोनों ओर बांग्लादेशी जिहादी घुसपैठियों और रोहिंग्याओं ने झुग्गियां बना ली हैं।
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👉हर स्टेशन पर सौ मीटर के अंदर मस्जिद-मजार ज़रूर मिल जाएगी।एक ही झटके में और
एक ही कॉल पर पूरे भारत का रेलवे नेटवर्क जाम कर देने की स्थिति में वे आ चुके हैं!
...
👉सभी स्टेशनों, प्लेटफॉर्म्स, रेलवे लाइनों के आस पास बनी अवैध मजारों में संदिग्ध किस्म के लोग दिन रात मंडराते रहते हैं और रेकी करते रहते हैं...??
👉उनकी गठरियों में क्या सामान बिना टिकट देश भर में फैलाया जा रहा है, कोई चेक नहीं करता।
मज़ारों-मस्जिदों में किस तरह के गोदाम और काम चल रहे हैं, इससे प्रशासन आँखें बंद किये है...
हमारे शहरों में जितने हाईवे निकलते हैं। किसी पर भी बढ़ जाइये, तो हर तीन चार किलोमीटर