#ऐसा कोई मूलनिवासी समाज का सामाजिक समूह नही... जो BAMCEF से जुडा नही|
#ऐसा कोई मूलनिवासी समाज का सामाजिक समूह नही... जिसका राष्ट्रीय स्तर का संगठन नही|
#नोट:- मा.वामन मेश्राम साहेब ने मूलनिवासी समाज के प्रत्येक सामाजिक समूह का, महिलाओ का, अल्पसंख्यको का विद्यार्थी, युवा, बेरोजगार, किसान, समस्त व्यवसाय से जुडे हुए इन सबका राष्ट्रीय स्तर का संगठन
बनाकर जिला स्तर से लगाकर राष्ट्रीय स्तर तक कैडरबेस कार्यकर्ताओ एवम नेतृत्व का निर्माण किया है|
#ऐसा कोई राष्ट्रीय स्तर की समस्या, मुद्दा, ब्राह्मणो का सडयंत्र, न्यायपालिका-विधायिका-चुनाव आयोग, मीडिया के द्वारा किये गए सडयंत्र नही... जिसका BAMCEF (वामन मेश्राम साहेब) ने पर्दाफाश
किया नही|
#ऐसा कोई मूलनिवासी समाज का सामाजिक समूह नही... जिसके साथ इतिहास मे ब्राह्मणो के द्वारा की गई धोखेबाजी का BAMCEF ने पर्दाफाश किया न हो|
#ऐसा कोई मूलनिवासी समाज का सामाजिक समूह नही... जिनके संविधान मे मिले अधिकारो को लागू करने के लिए की गई धोखेबाजी का पर्दाफाश मा.वामन
मेश्राम साहेब ने नही किया हो|
#ऐसा कोई मुद्दा, समस्या, महापुरुष, शासक जातियो के द्वारा मूलनिवासी समाज के विरोध मे बनाई गई नीतियो पर... जिन पर मा.वामन मेश्राम साहेब ने पुस्तक न लिखी हो|
#नोट:- समस्त विषयो पर चर्चा करके पर्दाफाश किया गया है उसके वीडियो #Youtube पर उपलब्ध है और
पुस्तके MPTमूलनिवासी पब्लिकेशन ट्रष्ट--पुणे मे व BAMCEF के प्रत्येक State ऑफिस मे उपलब्ध है|
-एच.एन.रेकवाल, राष्ट्रीय अध्यक्ष,
RAEPराष्ट्रीय आदिवासी एकता परिषद, नई दिल्ली.
क्या मुग़ल शासक अकबर ब्राह्मण है? या ब्राह्मण ही "मुग़ल शासक अकबर" है? कॅंनफुजन ही कॅंनफुजन समझमे नही आ रहा कौन है? ब्राह्मण लोग कहते है राम के मंदिर को तोडकर बाबर ने बाबरी मस्जिद बनवाई ऐसा प्रचार किया जाता है| जबकि इसका कोई सबूत उपलब्ध नही है| लेकिन ब्राह्मण लोग ""भविष्य पुराण""
मे लिखते है कि, बाबर का पोता अकबर हमारे शंकराचार्य के गोत्र का पिछले जन्म मे मुकुंद ब्राह्मण है| अब आप लोग जवाब दो कि यदि अकबर मुकुंद ब्राह्मण है, तो उसके पूर्वज भी ब्राह्मण रहे होंगे| फिर एक ब्राह्मण ने राम मंदिर क्यों तोड़ा? क्योंकि वहां पर कोई राम मंदिर नही था|
वहां पर बुद्ध
के स्तूप और चैत्य थे, जिसको भ्रमवंशि धुर्त पाखंडी पंडित पुरोहित ब्राह्मणो ने हिंसा के द्वारा ध्वस्त किया|
- @vilaskharatt
बुद्धिस्ट इंटरनेशनल नेटवर्क
Buddhist International Network
"मनुस्मृति का धिक्कार" नामक किताब महात्मा फुले जी द्वारा 1जनवरी1854 को प्रकाशित किया था| लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने उसे समग्र महात्मा फुले जी के साहित्य मे उसे जोड़कर प्रकाशित नही किया| यह षडयंत्र फड़के, जोशी, मालशे और कीर ने किया| राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत महाराष्ट्र तथा
केंद्र सरकार मनुस्मृति को सरकारी पाठ्यक्रमो मे जोड़कर भारतीय समाज पर थोप रहे है| उस संदर्भ को ध्यान मे रखते हुए यह क्रांतिकारी किताब 22जून2024 को पुणे मे प्रकाशित किया जा रहा है|
इस किताब को फिलहाल मराठी मे प्रकाशित किया जा रहा है| हिंदी भाषा मे थोड़े ही दिनो मे प्रकशित किया
जाएगा| किताब जिन्हे चाहिए वे आज, अभी एडवांस बुकिंग करे,
संपर्क सूत्र:09822990120
इस ग्रंथ मे महात्मा फुले जी कहते है कि:–
"मनुस्मृति के सारे नीति नियम पक्षपाती है, उसके द्वारा ब्राह्मण द्विज वर्ण का दिल, दिमाग तेजपुंज कराने मे उपयुक्त है और इसके विपरित शूद्र और अतिशुद्र हिंदुओ
#चलो_पुणे
महात्मा राष्ट्रपिता जोतिराव फुले लिखित "मनुस्मृति का धिक्कार" ग्रंथ का प्रकाशन (जिसे महात्मा फुले समग्र साहित्य मे महाराष्ट्र सरकार ने जानबूझकर प्रकाशित नही किया था) और राष्ट्रीय शिक्षा नीति मनुस्मृति आधारित है उसके खिलाफ जाहिर परिसंवाद
इत्सिंग ने अपने यात्रा विवरण के आरंभ मे लिखा है कि चीन से भारत और उसके पड़ोसी देशो मे अब तक 56 बौद्ध यात्री आ चुके है| इत्सिंग कोई 400 और ह्वेनसांग 657 बौद्ध ग्रंथो की पांडुलिपि भारत से चीन ले गए थे| विचार कीजिए कि जब दो बौद्ध यात्री 1000 से अधिक बौद्ध पांडुलिपि चीन ले गए थे, तब
56 बौद्ध यात्री कितनी बौद्ध पांडुलिपि चीन ले गए होंगे?
विक्रमशिला, उद्दण्डपुर, तेलहाड़ा को छोड़िए, सिर्फ नालंदा विश्वविद्यालय मे 3 बड़े बड़े पुस्तकालय थे| सबसे बड़ा पुस्तकालय 9 मंजिला था| अंदाज कीजिए कि बौद्ध विश्वविद्यालयो के पास कितनी किताबे रही होंगी?
गुणभद्र, धर्मरुचि,
रत्नमति, बोधिरुचि जैसे अनेक बौद्ध विद्वान चीन गए और बौद्ध ग्रंथो का चीनी भाषा मे अनुवाद किए| अकेले गुणभद्र ने 78 बौद्ध ग्रंथो का चीनी भाषा मे अनुवाद किए| सोचिए कि चीन गए दर्जनो बौद्ध विद्वानो ने कितने बौद्ध ग्रंथो का चीनी भाषा मे अनुवाद किए होंगे?
बौद्ध सभ्यता और कला ने कई राजवंशो तथा राजाओ के इतिहास को गर्त मे डूबने से बचा लिया है|
उदाहरण के लिए, एक था इखाकु राजवंश (इक्ष्वाकु राजवंश)
इखाकु राजवंश का शासन तीसरी-चौथी सदी मे पूरबी कृष्णा नदी की घाटी मे (आंध्रप्रदेश) था|
इनकी राजधानी विजयपुरी मे थी| विजयपुरी को ही आज
नागार्जुनकोंडा कहा जाता है|
यह नागार्जुनकोंडा है, जहाँ से पहली बार चीन के होने का पहला पुरातात्विक सबूत मिलता है|
नागार्जुनकोंडा बौद्ध स्थल है| इखाकु राजाओ ने यहाँ अनेक बौद्ध स्तूप और विहार बनवाए है|
इखाकु राजपरिवार की सभी स्त्रियाँ बौद्ध थी, जिनके नाम के अंत मे " सिरि (श्री) "
मिलता है, जैसे अडविचाट सिरि, कोदबबलि सिरि, हम्म सिरि आदि|
बौद्ध होने की हैसियत से इन स्त्रियो ने अनेक बौद्ध इमारते बनवाई है, जिनके नाम शिलालेखो पर अंकित है|
यदि यह बौद्ध सभ्यता और कला आज जीवित नही होती तो ये सभी राजा-रानी इतिहास के गर्त मे डूब जाते|
इखाकु राजाओ का शासन कोई 100