सामान्यतः जो व्यक्ति ईश्वर, परलोक और कर्म फल के नियम पर विश्वास नहीं करता उसे नास्तिक कहा जाता है। जो लोग निरंकुश होकर सिर्फ भौतिकतावाद और अपना सुख और स्वार्थ साधने में लगे रहते हैं, वास्तव में वही नास्तिक होते हैं। ऐसे लोगों मान्यता एक प्रसिद्ध (1/15)
कहावत से समझी जा सकती है:
“लूटो खाओ मस्ती में, आग लगे बस्ती में।”
ऐसे लोग सभी मर्यादाएं, परंपरा, नियम और लोक लज्जा की परवाह नहीं करते। भले देश और समाज बर्बाद हो जाये। भगवान बुद्ध और महावीर से भी पहले ऐसे ही विचार रखने वाला एक व्यक्ति चार्वाक थे, जिसके लाखों अनुयायी हो (2/15)
गये थे, उसके विचारों को ही चार्वाक दर्शन कहा जाता है।
1. चार्वाक दर्शन:
चार्वाक दर्शन एक भौतिकवादी नास्तिक दर्शन है। यह मात्र प्रत्यक्ष प्रमाण को मानता है तथा पारलौकिक सत्ताओं को यह सिद्धांत स्वीकार नहीं करता है। यह दर्शन वेदबाह्य भी कहा जाता है।
वेदवाह्य दर्शन छ: (3/15)
हैं; चार्वाक, माध्यमिक, योगाचार, सौत्रान्तिक, वैभाषिक, और आर्हत। इन सभी में वेद से असम्मत सिद्धान्तों का प्रतिपादन है।
चार्वाक प्राचीन भारत के एक अनीश्वरवादी और नास्तिक तार्किक थे। ये नास्तिक मत के प्रवर्तक वृहस्पति के शिष्य माने जाते हैं। बृहस्पति और चार्वाक कब हुए इसका (4/15)
कुछ भी पता नहीं है। बृहस्पति को चाणक्य ने अपने अर्थशास्त्र ग्रन्थ में अर्थशास्त्र में भी उल्लेख किया है। “सर्वदर्शनसंग्रह” में चार्वाक का मत दिया हुआ मिलता है।
2. भोगवाद ही नास्तिकता है:
भोगवाद, चरम स्वार्थपरायण मानसिकता और अय्याशी ही नास्तिक होने की निशानी है, चाहे (5/15)
ऐसे व्यक्ति किसी भी धर्म से सम्बंधित हों।चार्वाक की उस समय कही गयी बातें आजकल के लोगों पर सटीक बैठती हैं,चार्वाक ने कहा था।
न स्वर्गो नापवर्गो वा नैवात्मा पार्लौकिकः।
नैव वर्नाश्रमादीनाम क्रियश्चफल्देयिका॥
अर्थ: न कोई स्वर्ग है, न उस् जैसा लोक है और न आत्मा ही पारलौकिक (6/15)
वस्तु है और अपने किये गये सभी भले बुरे कर्मों का भी कोई फल नहीं मिलता अर्थात सभी बेकार हो जाते हैं।
अर्थात: जब तक जियो मौज से जियो और कर्ज लेकर घी पियो मतलब मौज मस्ती करो। कैसी चिंता, शरीर (7/15)
के भस्म हो जाने के बाद फिर वह वापस थोड़े ही आती है।
पीत्वा पीत्वा पुनः पीत्वा यावतपतति भूतले।पुनरुथ्याय वै पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते॥
अर्थ: पियो, पियो खूब शराब पियो, यहाँ तक कि लुढ़क कर जमीन पर गिर जाओ और होश में आकर फिर से पियो क्योंकि फिर से जन्म नहीं होने वाला।
(8/15)
वेद शाश्त्र पुराणानि सामान्य गाणिका इव।मातृयोनि परित्यज विहरेत सर्व योनिषु॥
अर्थ: वेद और सभी शास्त्र और पुराण तो वेश्या की तरह हैं। तुम सिर्फ अपनी माँ को छोड़कर सभी के साथ सहवास कर सकते हो।
3. यूनानी नास्तिक:
भारत की तरह यूनान (Greece) भी एक प्राचीन देश है, और वहां (9/15)
की संस्कृति भी काफी समृद्ध थी। वहां भी नास्तिक लोगों का एक बहुत बड़ा समुदाय था, जिसे एपिक्युरियनिस्म (Epicureanism) कहा जाता है, जिसे ईसा पूर्व 307 में एपिक्युरस (Epicurus) नाम के एक व्यक्ति ने स्थापित किया था। ग्रीक भाषा में ऐसे विचार को एटारेक्सिया (Ataraxia Aταραξία)
(10/15)
भी कहा जाता है। इसका अर्थ उन्माद, मस्ती, मुक्त होता है। इस दर्शन (Philosophy) का उद्देश्य मनुष्य को हर प्रकार के नियमों, मर्यादाओं और सामाजिक कानूनी बंधनों से मुक्त कराना था। ऐसे लोग उन सभी रिश्ते की महिलाओं से सहवास करते थे, जिनसे शारीरिक सम्बन्ध बनाना पाप और अपराध समझा (11/15)
जाता था।
ऐसे लोग जीवन को क्षणभंगुर मानते थे और मानते थे कि जब तक दम में दम है हर प्रकार का सुख भोगते रहो क्योंकि फिर मौका नहीं मिलेगा। जब इन लोगों को स्वादिष्ट भोजन मिल जाता था तो यह लोग इतना खा लेते थे कि इनके पेट में साँस लेने की जगह भी नहीं रहती थी। तब यह लोग उलटी (12/15)
करके पेट खाली कर लेते थे। स्वाद लेने के लिये फिर से खाने लगते थे।
4. असली नास्तिक:
प्राणियों की एक ऐसी प्रजाति भी है जिनमें अनेकों प्राणियों के गुण पाये जाते हैं जैसे गिरगिट की तरह रंग बदलना, लोमड़ी की तरह मक्कारी, कुत्तों की तरह अपने ही लोगों पर भोंकना, अजगर की तरह (13/15)
दूसरों का माल हड़प कर लेना और सांप की तरह धोखे से डस लेना। इसलिए ऐसे प्राणी को मनुष्य समझना बड़ी भारी भूल होगी। ऐसे लोग पाखंड और ढोंग के साक्षात अवतार होते हैं।
दिखावे के लिये ऐसे लोग सभी धर्मों को मानने का नाटक करते हैं, लेकिन वास्तव में इनको धर्म या ईश्वर से कोई मतलब (14/15)
नहीं होता। जो अपने धर्म का नहीं वह दूसरे के धर्म का क्या होगा।अपने स्वार्थ के लिये यह लोग ईश्वर को भी बेच सकते हैं। यह किसी को अपना सगा नहीं मानते हैं।
अतः किसी भी बुद्धिमान व्यक्ति को इन्हें मनुष्य मानने की भूल कभी नहीं करनी चाहिए।
यह महाराजा रणजीत सिंह जी की सेना का ध्वज है। रक्त वर्ण के ध्वज के मध्य में अष्टभुजा जगदम्बा दुर्गा, बायें हनुमान जी और दायें कालभैरव विराज रहे हैं। पठानों की छाती फ़ोड़ कर अक्टूबर 1836 को ख़ैबर के जमरूद के किले पर यही पवित्र ध्वज (1/7)
फहराया गया था।
यह ध्वज कुछ समय पूर्व शायद सिदबी द्वारा लंदन में नीलाम किया गया था। अब किसी के व्यक्तिगत कलेक्शन का हिस्सा है।
ये स्थापित सत्य है, महराजा रणजीत सिह हिन्दू देवी देवताओं मे अगाध श्रद्धा रखते थे, अपनी वसीयत मे उन्होंने कोहिनूर हीरा जगन्नाथ मन्दिर मे चढाने (2/7)
की इच्छा जतायी थी
स्वर्ण मंदिर नाम है... स्वर्ण गुरुद्वारा नहीं... इसी में बहुत कुछ निहित है।
1984 से पहले स्वर्ण मंदिर में भी दुर्गा जी की प्रतिमा रखी थी।
परिक्रमा में अनेकों देवी-देवताओं की प्रतिमाएं थीं। हरि मंदिर तब महंत सम्हालते थे मगर यह 70-80 वर्ष से अधिक पुरानी (3/7)
मनमौजी दुबे को जानते है? बनारस के ब्राह्मण दंपत्ति जिनकी पुत्री मनु उर्फ मणिकर्णिका, जानते हैं आप? जी झांसी की रानी लक्ष्मीबाई यही थीं। इन्हें किसी परिचय की आवश्यकता नहीं.!
लखनऊ की ऊदा देवी को अधिकतर लोग नहीं जानते होंगे। ब्रिटिश फौजी सिकंदर बाग पर कब्जा करने की कोशिश कर (1/11)
रहे थे, लेकिन ऊदा देवी ने अकेले ही इन्हें कई घंटे रोककर रखा। ब्रिटिश जनरल कूपर, जनरल लैम्सजन सहित कई सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। तीन घंटे बाद, उनकी शहादत के उपरांत ही अंग्रेज बाग में प्रवेश कर सके.!
मुंदर, झलकारी देवी लक्ष्मीबाई की सहेलियां थीं, जिन्होंने उन्हीं की (2/11)
तरह युद्ध में प्राणोत्सर्ग किया। महारानी तपस्विनी देवी उर्फ सुनंदा, लक्ष्मीबाई की भतीजी थी। बाल विधवा सुनंदा छापेमार दस्ते के नेतृत्व, सामरिक निरीक्षण जैसी भुमिकाएँ निभाती थीं। वह कभी अंग्रेजों की गिरफ्त में नहीं आईं.!
मांडला की रानी अवंतिकाबाई ने अठारह सौ अट्ठावन को (3/11)
आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की अगुवाई वाली राज्य सरकार द्वारा पादरियों को दिए जा रहे वेतन पर सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने आंध्र प्रदेश सरकार से पूछा है की आप सरकारी खजाने से पादरियों को दिए जा रहे वेतन को कैसे सही ठहरा सकते हैं।
‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ (1/10)
की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य सरकार की ओर से पादरियों को दिए जा रहे वेतन को को लेकर एक जनहित याचिका दायर की गई थी। याचिका में सरकार के इस फैसले को चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने इस संबंध में सरकार से जवाब दाखिल करने के लिए कहा है। हाईकोर्ट ने कहा की धार्मिक गतिविधियों के लिए फंड (2/10)
देना अलग बात है, लेकिन किसी के धार्मिक आस्था के लिए वेतन देना अलग बात है। वहीं सोशल मीडिया पर भी लोगों ने सवाल उठाया कि आखिर कैसे पादरियों को जनता के रुपए से वेतन दिया जा सकता है।
विजयवाडा के विजय कुमार ने पादरियों को वेतन भुगतान करने के संबंध में सरकारी आदेश (जीओ) संख्या (3/10)
सुन्दर स्त्री बाद में शूर्पणखा निकली।
सोने का हिरन बाद में मारीच निकला।
भिक्षा माँगने वाला साधू बाद में रावण निकला।
लंका में तो निशाचार लगातार रूप ही बदलते दिखते थे।
हर जगह भ्रम, हर जगह अविश्वास, हर जगह शंका... बावजूद इसके जब लंका में अशोक वाटिका के नीचे सीता माँ को राम (1/7)
नाम की मुद्रिका मिलती है तो वो उस पर 'विश्वास' कर लेती हैं। वो मानती हैं और स्वीकार करती हैं कि इसे प्रभु श्री राम ने ही भेजा है।
जीवन में कई लोग आपको ठगेंगे, कई आपको निराश करेंगे, कई बार आप भी सम्पूर्ण परिस्थितियों पर संदेह करेंगे... लेकिन इस पूरे माहौल में जब आप रुक (2/7)
कर पुनः किसी व्यक्ति, प्रकृति या अपने ऊपर 'विश्वास' करेंगे तो रामायण के पात्र बन जाएंगे।
राम और माँ सीता केवल आपको 'विश्वास करना' ही तो सिखाते हैं। माँ कठोर हुईं लेकिन माँ से विश्वास नहीं छूटा, परिस्थितियाँ विषम हुईं लेकिन उसके बेहतर होने का विश्वास नहीं छूटा, भाई-भाई (3/7)
विकास दिव्यकीर्ति जी की प्रसिद्धि की भूख और उत्तेजित अज्ञानी हिंदू!
पिछले दो दिन से इस विषय पर पाठकों के विचार जानने की कोशिश कर रहा था... अधिकांश लोग आहत हैं, कुछ लोग समर्थन कर रहे हैं! कुछ आश्चर्य कर रहे हैं कि क्या राम ने ऐसा कहा होगा? राम हों या कृष्ण अनेक लोग इनके (1/20)
जीवन में इनके विरोधी थे, तो लेखन भी वैसा ही हुआ था!
वाल्मीकि अन्य लेखकों से अलग हैं, वे राम के समकालीन हैं, वे राम को दिव्य पुरुष मानते हैं, उस काल और सभ्यता का आदर्श पुरुष मानते हैं। इसके बाद भी सीता को शरण देते हैं। अपनी पुत्री मानते हैं और सीता का पक्ष रखते हैं। (2/20)
सीता के पुत्रों को अपना पहला शिष्य मान कर उन्हें रामायण गाना सिखाते हैं (अंततः ये दोनों भाई राम की सभा में जाकर रामायण गाते हैं) राम हिल जाते हैं !
आज हम दिव्य कीर्ति की बात नहीं करेंगे क्योंकि वे कुछ नया नहीं कह रहे हैं!
वे पहले से कहे गए तथ्य को अपनी सुविधा से ट्विस्ट (3/20)
यदि इन घटनाओं पर थोड़ा नियन्त्रण स्थापित करना है तो वराहदेव की शरण ही इस समय एकमात्र साधन है... बहनों को असुरों के प्रेमजाल रूपी वशीकरण से बचाने हेतु वराह देव के तीखे दाढ़ दन्तों से बने कवच रूपी ताबीज को धारण कराने से वशीकरण कट जाता है।
सुअरों के थूथन से दो दांत निकले (1/6)
होते हैं जिन्हें कुकुर दंत कहा जाता है। तंत्र क्रिया में इन्हीं कुकुरदंतों का इस्तेमाल होता है। यह किसी भी हिन्दू वाल्मीकि कसाई के यहां से प्राप्त किया जा सकता है... अमूमन तंत्रक्रिया से बचाव में स्वाभाविक मृत्यु के बाद प्राप्त किया गया सूअर का दांत ज्यादा कारगर होता है।
(2/6)
शूकर दंत लेकर वराहदेव की साधना की जाती है| वशीकरण करने एवं काटने हेतु शूकर दंत को पहले सिद्ध करना आवश्यक है, जिसकी विधि अत्यंत सरल है। होली दीपावली, दशहरा अथवा ग्रहण काल में अपने दाहिने हाथ में शूकर दंत रखें तथा 108 बार निम्नलिखत मंत्र का जाप करें:-
(3/6)