#ड्राई_चिकन_लेग_पीस बनाने की विधि।
#सामग्री_लेग_पीस - 8
#प्याज - 6
#टमाटर -4
#हरी मिर्च - 3
#लहसुन - 16
#अदरख- एक पीस
#धनिया, हल्दी , नमक, लाल मिर्च, काली मिर्च, लौंग , बड़ी इलायची
#कायनात मसाला
#सरसों का तेल और घी।

सबसे पहले लेग पीस धोकर रख लें।
प्याज, अदरक और लहसुन मिक्सी मे एक साथ बारीक पीसें। टमाटर हरी मिर्च अलग से पीसें। धनिया , हल्दी , लाल मिर्च भिगोकर रख दें।

प्रेशर कुकर मे तीन बड़े चम्मच तेल डालें। तेल गर्म होने पर प्याज लहसुन पेस्ट डालें। पेस्ट के भूरा होने पर उसमे धनिया और अन्य मसाले
डालें। मसाले की खुशबू आने पर टमाटर पेस्ट डालें। इसे भूने। पेस्ट एकसार होने पर इसमे लेग पीस डालें अब इसमे घी डालकर करछी से भूने। जब चिकन की महक वातावरण मे छा जाये तो इसमे #कायनात मसाला डालकर ढक्कन लगा दें।

धीमी आंच पर पांच से सात मिनट पकाएं।

दस मिनट बाद ढक्कन खोलें।
अब ड्राई चिकन बीयर के साथ खाएं।

व्हिस्की के साथ भी खा सकते हैं।
#मानतेहैं

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Nov 23
कल इटली के तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी की मौत के बाद हुई दुर्गति देख रहा था, लोगों का गुस्सा इतना था कि मरने के बाद भी उसके शव को गोलियों से भूना गया। फिर एक महिला ने सार्वजनिक रूप से उसके मुंह पर मूत्र विसर्जित किया।इतना ही नहीं,उसके शव को आम जनता देख सके, इसलिए 6फीट ऊपर उल्टा लटका
दिया।कहने का अर्थ है,तानाशाह की कोई लोकप्रियता नहीं होती,होता है डर जिसे वह अपने मायाजाल से बुनता है,जिसके झांसे में कई कुबुद्धि आ जाते हैं,और वह अजेय प्रतीत होता है,लेकिन जब जनता की नजरों से वह मायाजाल हटता है,तो वह क्रूरता की सभी सीमाओं को तोड़ देती है,मुसोलिनी का ऐसा हश्र
देख कर ही हिटलर ने अपने मातहतों को निर्देश दिया था कि, मरने के बाद मेरा शव किसी भी सूरत में जनता के हाथ नहीं लगना चाहिए,और खुद को गोली मार कर इस दुनिया से विदा हो गया।आप सोच रहे होंगे , मैं यह क्यों लिख रहा हूं,यह सब इतिहास के पन्नों में पहले से दर्ज है।
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Nov 23
मनुष्य होने का दावा करते हो, धर्म की ठेकेदारी के नाम पर हिंदू, मुसलमान, सिख, ईशाई धर्म की खेती करते हो, अपनी अपनी फसल को सबसे उन्नतशील बताते नहीं थकते, उन्नत सिद्ध करने के लिये एक दूसरे की गरदन काटने मे ही तुमको थोड़ी भी शर्म नहीं आती, मंदिर, मस्जिद, चर्च ,
गुरूद्वारा मे बैठकर कंठी माला, त्रिुंपुंड लगाकर, दाढ़ी बढ़ाकर, गले मे क्रास पहनकर, पगड़ी पहनकर, हाथ मे कटार लेकर ईश्वर, अल्ला, ईसामसीह, गुरू गोविंद साहब के नाम पर मनुष्यता की खेती करनेे का ढोंग करते हो, सत्ता के लिये सर्व धर्म समभाव का नाटक करते हो ।
धर्म के नाम पर एकदूसरे का खून बहाने मे थोडी़ भी हिचक नही, फिर भी मनुष्य होने का दावा करते हो। न्याय करने के नाम पर कोर्ट कचहरी खोलकर बैठे हो। न्याय का ढोंग करते हो। बेजुबानों , वंचितो, मजलूमों के प्रति तेरा न्याय , न्यायालय, जज सब अंधे बन जाते हैं,
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Nov 22
नेहरू जो गयासुद्दीन गाजी का पोता नहीं था।

प्राइमरी का याद है, फीस तीन पैसे मासिक थी। जेबखर्च पाँच पैसे रोजाना मिलते थे। क्लास में तीसेक बच्चे थे। यानी मैं अपने जेबखर्च से पूरी क्लास की फीस भरकर भी कुछ बचा सकता था। पांच मास्टरों का वेतन भी दो हजार से अधिक रहा होगा,
एक चपरासी (जिसे महाराज कहते थे) स्कूल बिल्डिंग वगैरा मिलाकर हर महीने खर्च चारेक हजार, आमदनी साढ़े चार रुपया। टैक्स पेयर अल्पसंख्यक थे, शायद इसीलिये चिल्लाते भी नहीं थे।

इतना ही नहीं बस स्टैंड से लगा पांच बीघे में लेबर वेलफेयर सेंटर भी था। जिसमें मजदूरों के लिए डिस्पेंसरी,
प्राइमरी स्कूल, सिलाई कढ़ाई केंद्र, पार्क, लाइब्रेरी भी थी जहाँ से हम मजदूर के बेटे न होते हुए भी पढ़ने के लिए मुफ़्त अमर चित्रकथा और बाल पॉकेट बुक्स ले आते थे। ये सारा मुफ़्त था, घाटे का सौदा। नेहरू की समाजवादोन्मुख सोच का घाटा। ऐसी घाटे वाली और भी बहुत संस्थाएं रही होंगी जिनका
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Nov 22
भेड़ें सवाल नहीं करतीं!
भेड़ें सवाल नहीं करतीं, वो चली जाती हैं झुंड में एक के पीछे एक चिपकी हुई एक दूसरे से, यहां वहां भी नहीं देखती।
भेड़ों का होता है एक गड़रिया और वह निर्देशित करता है एक टेना, टेने की भेड़ों की पीठ पर होते हैं कुछ निशान जो अलग करते हैं उन्हें
दूसरे टेने या झुंड की भेड़ों से।
गड़रिया का होता है एक कुत्ता जो उनकी देखभाल करता है और झुंड से अलग हो रही भेड़ को भौंक कर डरा कर अंदर कर देता है झुंड में और चलता है अपनी मस्ती में।
गड़रिये की होती है एक निश्चित आवाज की सीटी या होंटों को गोल किए बनाई एक आवाज जो भेड़ें समझती हैं। एक आवाज और डंडे से हांक दी जाती हैं भेड़ें।
किसी विशाल चारागाह पर रहती हैं वह एक दड़बे के भीतर जिसकी रखवाली करता है एक कुत्ता। दड़बा खोलते ही वह चरने लग जाती हैं हरी हरी घांस।
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Nov 22
मूली खाने का तरीका
बंधुओं
यदि आप गैस और बदबू के कारण मूली नही खाते हैं, तो ये पोस्ट अवश्य पढ़ें. आपको मूली खाने कॅया तरीका आना चाहिए
एक बात जान लीजिए की मूली असल में एसिड का काम करती है, जो आंतों की सिकुडन में जमा-फंसा मल बाहर निकाल फेंकता है और इसीलिए गैस-बदबू देता है.
लेकिन कुछ समय बाद जब पूरी सफाई हो जाती है, तो आगे फिर गैस-बदबू भी खत्म हो जाती है. इस समय आपको मूली के साथ गुड़ भी लेना चाहिए.
अक्सर लोगों की शिकायत रहती है कि मूली खाने में टेस्टी तो लगती है लेकिन इसे खाने के बाद पूरा दिन खराब हो जाता है...
क्योंकि पेट में लगातार बनती गैस हर समय असहज करती रहती है। अगर आपको पता होगा कि मूली खाने का सही तरीका क्या है तो आपको टेस्ट भी मिलेगा और सेहत भी। साथ ही आप शर्मिंदगी से भी बचे रहेंगे।
आजकल स्टोर की गई सब्जियां हर सीजन में मार्केट में उपलब्ध रहती हैं।
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Nov 21
भारत के राजनीतिक भविष्य का चित्र स्पष्ट है।देश दो राहे पर पुनः लाकर खड़ा कर दिया गया है।
आजादी के बाद का भारत हमारे स्वतंत्रता बलिदानियो ने उस देश की नीव रखी जो आजादी के पहले नही था।
अंग्रेजो ने फूट डालो (धर्म भाषा जाति और क्षेत्र ) और राज्य करो।
शायद विश्व का पहला देश भारत ही था कि देश के लोगो से ही सेना बना कर उसी सेना से हमे गुलाम बनाया फिर मनमाना लूट ।
इतिहास कभी नही बदलती लाख सत्तामद मे कोई प्रयास कर ले।
क्या आप को आश्चर्य नही लगता है कि हिंदु महासभा ने पहले हिंदु राज्य की मांग की फिर मुस्लिमलीग के नेता जिन्ना ने,
जब कि दोनो कई राज्य मे कांग्रेस के विरुद्ध सरकार बनाये हुये थे।
क्या यह सच नही की आजादी की अंतिम लड़ाई "करो या मरो" के समय भी दोनो जिसमे सावरकर मुख्य थे इस आंदोलन को कुचलने के लिए भारतीय लोगो को अंग्रेजी सेना मे भर्ती नही करा रहे थे ?(लेख लम्बा न हो , इसलिए मुख्य बाते )
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