और इसी के साथ आज सड़क पार सत्ता का केंद्र बदल गया.आर्मी चीफ़ की बैटन जनरल बाजवा ने हफ़ीज़ मुनीर को सौंप दी.
दूसरी अहम तैनाती शाहिर शमशाद मिर्ज़ा की हुई.
लेकिन कुछ और भी हुआ जिसे नज़रंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए.
उधर की तहरीकें तालिबान ने युद्ध विराम समझौता ख़त्म करने के साथ ही
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देश भर में ख़ुदकुश एवम् अन्य प्रकार के हमले करने की घोषणा कर दी.
डूरंडलाइन के आसपास सेना से मुठभेड़ें चालू है जिसमें कई सैनिकों के गंभीर रूप से घायल होने की पुष्टि तो की जा चुकी है शायद कुछ अधिक नुक़सान भी हुआ हो.
सिविल सरकार को इमरान ख़ान ने नई चुनौती दी है जिसके कारण लगभग सभी
राजनीतिक दल फ़से हुए महसूस कर रहे है
उप विदेशमन्त्री रब्बानी ख़ैर साहिबा काबुल गई लेकिन उनकी क़वायद बेकार गई॥
इधर अपने यहाँ राहुल गांधी की #भारत_जोड़ो_यात्रा और एंटी इंकमबेंसीके साथ साथ महंगाई,बेरोज़गारी,बिगड़ती अर्थव्यवस्थासे हुई जागरूक जनता के विरोध के डर से दो जमा दोकी नींदे
ख़राब है,चकला मीडिया भी उम्मीद के अनुसार माहौल नहीं बना पा रहा है
डानी डार्लिंग के क़र्ज़ों और हक़ीक़त विदेशी मीडिया ने बतानी शुरू कर दी है,डूबते बैंकों ने भी नियमानुसार क़र्ज़ वापसीके प्रेम पत्र भेजने शुरू कर दिए है.
इन सभी समस्याओंका क्या हल संभव है?
जब पहले चुनाव हार रहे थे
तो पुल वामा हो गया था और तब यही हफ़ीज़ मुनीर आई एसIका चीफ था.
शमशाद मिर्ज़ा विदेश मामलों में काफ़ी दख़ल रखता है और कथित रूप से अमरीक बहादुर की प्रॉक्सी के लिए हाज़िर रहता है.
सीमित युद्ध या सरहदों पर तनाव ज़रूरी है क्योंकि इनके लिए देश नहीं,चुनाव ज़रूरी है !
5 @parmodpahwaInd
भारत आज से एक साल के लिए जी20का मुखिया बना है।आपदाको भी अवसर मानने वाले देश के प्रधानमंत्री की ओर से इस मौके पर एक लेख आया है।साथमें फुल पेज का विज्ञापन भी।
यह लेख लिखना और विज्ञापन देना शायद एक मजबूरी थी,क्योंकि एक पृथ्वी,एक परिवार,एक भविष्य की थीम बाली में ही जाहिर हो चुकी थी।
बीते हफ्तोंमें सूत्रोंके हवालेसे गाहे बगाहे यह जाहिर हो ही गया कि इस एक सालमें भारत का छिपा हुआ एजेंडा उस एक परिवार से है,जिसे अदाणी और अंबानी सेठ कहते हैं।
दोनों का भविष्य इस पृथ्वी पर सुरक्षित और सबसे ऊपर रखने का एजेंडा बीते8साल में जब बखूबी सहेजा गया हो तो जी20कैसे अछूता रहे?
अखबारमें विज्ञापन छपे और इस प्रचार को चिढ़ाने वाली रपट भी छपे,यह कारनामा टाइम्स ऑफ इंडिया ही करसकता है।
उसकी रिपोर्ट है कि भारत का असल एजेंडा क्लाइमेट फाइनेंस है।स्टार्टअप और डिजास्टर रिस्क को कम करने के एजेंडे को भी इसी से जुड़ा मान लें तो डिजिटल पेमेंट और ई सेवाओं का एजेंडा भी
★★ AIIMS,दिल्ली का सर्वर हैक कर 200 करोड़ की फ़िरौती मांगने वाली कहानी में "झोल" लगता है..भारत की "टेक्नोलॉजीकल कैपेबिलिटी" इतनी कमज़ोर नहीं है कि भारत सरकार की वेबसाइट को 7 दिन तक हैक कर रखा जा सके..नामुमकिन है..
◆ अगर भारत सरकार फ़िरौती देती है तो ये एक "प्रयोग" जैसा होगा..
कल को कोई भी सरकारी वेबसाइट हैक कर पैसे मांगेगा और सरकार फ़िरौती देगी? एकबार फ़िरौती दे दी तो आगे का रास्ता खुल जाएगा..
◆ ऐसा ही एक "प्रयोग" अटल के वक़्त हो चुका है..कंधार में केवल आतंकी नही छोड़े थे बल्कि फ़िरौती भी दी गई थी, ऐसा बताया गया था..
◆ अटल ने कितनी फ़िरौती दी थी
इसका कोई आधिकारिक रकम किसी को नही पता है..दिया 1000 और निकाला 1 लाख : ऐसा भी तो हो सकता है!! सब भावना में डूबे हुए थे तो रकम कौन पूछता है?
ज़रा कमीने दिमाग से सोचिए..शायद आप भी मेरे जैसा ही सोचने लगे.. #कृष्णनअय्यर
राहुल मुझसे नही मिले
मैं नाराज हूँ।
जी,
आपकी नाराजगी वाजिब है,पर किसी भी प्रकार की उम्मीद और नाउम्मीदी के बीच जरा एक बार सोचिए कि
कुल यात्रा अवधि150दिन और3500 किलोमीटर की है।
मतलब औसतन23किलोमीटर का सफर निर्विघ्न रहे तो रोज चलकर तय करना है।
आप
महत्वपूर्ण है,
अतिः महत्वपूर्ण है।
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पर
समय प्रबंधन के आंकड़े समझिए कि
गर आपको महत्वपूर्ण मानकर वो आपके साथ फोटो खिंचवाने रुकते है तो न्यूनतम1 सेकंड का समय तो लगेगा न ?
तो चलना छोड़कर रुक जाए और इस रफ्तार से महत्वपूर्ण लोगों के साथ फोटो खिंचवाए तो एक मिनिट के 60 और एक घंटे में 3600 लोगो के साथ अर्थात पैदल यात्रा
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छोड़ रोज 12 घंटे केवल आप जैसे महत्वपूर्ण लोगों के साथ 1 सेकंड में एक कि रफ्तार से फ़ोटो ही खिंचवाते रहे तो रोजाना 12 घंटे में केवल 43000 लोगो के साथ अर्थात 150 दिन में केवल 65 लाख लोगों के साथ फोटो खिंचवाई जा सकती है।
वैसे इस 1 सेकंड में एक सेल्फी को गर प्रेक्टिकली 10 सेकंड में
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हम वेस्टर्न यूपी में पले बड़े हुए है जहां छोटी छोटी बात पर ही शरीर का एक अंग फट जाता/जाती है.
स्कूल टाइम में तो चवन्नी की इमरती पर भी फट जाती थी और हम शरीर के सबसे भारी बाल उखाड़ने की चुनौती दे देते थे.
#भारत_जोड़ो_यात्रा के सम्बंध में सर्वाधिक चर्चा का विषय सुरक्षा बताया जा
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रहा है और ग़ैर कांग्रेस शासित प्रदेशों में प्रशासन सुरक्षा के नाम पर भयभीत करना चाहता है.
निस्संदेह भारत का कोई भी नागरिक देश की सम्पत्ति है और राहुल जैसा नेता तो विश्व की बहुमूल्य अमानत है.
राहुल फिर भी भयभीत क्यों नहीं होता?
क्योंकि अंतरराष्ट्रीय शक्तियों को राहुल में भारत
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का उज्ज्वल भविष्य और विकास दिखता है तथा दरिद्र भारत किसी के लिए भी उपयोगी नही होगा इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए.
आंतरिक शत्रु एक तो ख़ुद कायर है, दूसरा व्यापक जन समर्थन से घबराये हुए है और कभी भी मुसोलिनी नही बनना चाहेंगे.वैसे भी5 किमी दूर से ही जो मुख्यमंत्री को पुकारता हो
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