#चश्मदीद_गवाह
शाम का वक्त था बाजार मे बहुत भीड़ भाड़ थी👉सैकड़ो लोग बाजार में आ-जा रहे थे। सामान्यतः राजनेताओं के लिये ऐसा दृश्य सुहाना होता है। नेता भीड़ का भूखा होता है। भीड़ देखी नही की उसके कदमों में गज़ब की तीव्रता आ जाती है। वाणी से सब कुछ फूट निकलने को तैयार हो जाता है।
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ऐसी भीड़ और वक्त देखकर👉एक नेता जी भी का मन मचल उठा और उन्होंने अपने साथ की मंडली को संबोधित करना शुरु कर दिया।इतने मे भीड़ से एक आदमी निकला,नेता जी को देखता हुआ "उल्लू का पट्ठा" बोलता हुआ भीड़ में गुम हो गया। नेता जी को यह बात बुरी लग गई।नेता जी की मंडली ने आदमी की शिनाख्त कर ली
और फिर नेता जी ने उस पर मानहानि का मुकदमा ठोक दिया।
इत्तिफाक की बात है मुल्ला नसीरुद्दीन उस वक्त वहां मौजूद था।मुल्ला नसीरुद्दीन नेता जी से मिला और बोला आपने उस व्यक्ति के "उल्लू का पट्ठा" बोलने पर मुकदमा कर दिया है, लेकिन महाशय आपके पास उस घटना का कोई चश्मदीद गवाह है?नेता जी
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ने अपनी मंडलीकी तरफ इशारा करते हुए कहा कि इतने सारे चश्मदीद गवाह है।मुल्ला बोला आप इतने बड़े नेता है आपको पता होना चाहिए,चश्मदीद गवाह तटस्थ होना चाहिए।एक ही तारीखमे आपका मानहानि का मुकदमा ख़ारिज हो जाएगा।विपक्षी वकील आसानी से यह सिद्ध कर देगा कि यह चश्मदीद गवाह आपका ही समर्थक है।
यह सुनकर नेता जी के माथे पर बल पड़ गए। नेता जी को परेशान देखकर मुल्ला बोला महाशय आपको घबराने की आवश्यकता नही है,आपने काफी वक्त हमारे क्षेत्रके विनाश में लगाया है,इसलिए हम क्षेत्र के लोगों का भी फर्ज बनता है कि आपकी बेईज्ज़ती मे आपके साथ खड़े हो।मै उस वक्त वहां मौजूद था और मै आपके
पक्ष में गवाही दूँगा।नेता जी ने मुल्ला के विनाश को विकास समझा और मुल्ला को धन्यवाद देते हुए उसको अपने मानहानि के मुकदमे का चश्मदीद गवाह बना लिया।
केस की पहली तारीख मे ही वह व्यक्ति बोला👉वहां बहुत लोग थे,मैने उल्लू का पट्ठा बोला,लेकिन वो संबोधन इनको नही था। अब बारी मुल्ला की थी।
मजिस्ट्रेट ने मुल्ला से पूँछा👉वहां भीड़ मे सैकड़ो लोग थे, तुम दावे से कैसे कह सकते हो कि इस व्यक्ति ने नेता जी को ही "उल्लू का पट्ठा" बोला? मुल्ला बोला👉 यह सच है उस वक़्त बहुत भीड़ थीं और बहुत सारे लोग आ जा रहे थे, लेकिन माई बाप उस वक्त वहां "उल्लू का पट्ठे" सिर्फ यही थे..🙏
भारत आज से एक साल के लिए जी20का मुखिया बना है।आपदाको भी अवसर मानने वाले देश के प्रधानमंत्री की ओर से इस मौके पर एक लेख आया है।साथमें फुल पेज का विज्ञापन भी।
यह लेख लिखना और विज्ञापन देना शायद एक मजबूरी थी,क्योंकि एक पृथ्वी,एक परिवार,एक भविष्य की थीम बाली में ही जाहिर हो चुकी थी।
बीते हफ्तोंमें सूत्रोंके हवालेसे गाहे बगाहे यह जाहिर हो ही गया कि इस एक सालमें भारत का छिपा हुआ एजेंडा उस एक परिवार से है,जिसे अदाणी और अंबानी सेठ कहते हैं।
दोनों का भविष्य इस पृथ्वी पर सुरक्षित और सबसे ऊपर रखने का एजेंडा बीते8साल में जब बखूबी सहेजा गया हो तो जी20कैसे अछूता रहे?
अखबारमें विज्ञापन छपे और इस प्रचार को चिढ़ाने वाली रपट भी छपे,यह कारनामा टाइम्स ऑफ इंडिया ही करसकता है।
उसकी रिपोर्ट है कि भारत का असल एजेंडा क्लाइमेट फाइनेंस है।स्टार्टअप और डिजास्टर रिस्क को कम करने के एजेंडे को भी इसी से जुड़ा मान लें तो डिजिटल पेमेंट और ई सेवाओं का एजेंडा भी
★★ AIIMS,दिल्ली का सर्वर हैक कर 200 करोड़ की फ़िरौती मांगने वाली कहानी में "झोल" लगता है..भारत की "टेक्नोलॉजीकल कैपेबिलिटी" इतनी कमज़ोर नहीं है कि भारत सरकार की वेबसाइट को 7 दिन तक हैक कर रखा जा सके..नामुमकिन है..
◆ अगर भारत सरकार फ़िरौती देती है तो ये एक "प्रयोग" जैसा होगा..
कल को कोई भी सरकारी वेबसाइट हैक कर पैसे मांगेगा और सरकार फ़िरौती देगी? एकबार फ़िरौती दे दी तो आगे का रास्ता खुल जाएगा..
◆ ऐसा ही एक "प्रयोग" अटल के वक़्त हो चुका है..कंधार में केवल आतंकी नही छोड़े थे बल्कि फ़िरौती भी दी गई थी, ऐसा बताया गया था..
◆ अटल ने कितनी फ़िरौती दी थी
इसका कोई आधिकारिक रकम किसी को नही पता है..दिया 1000 और निकाला 1 लाख : ऐसा भी तो हो सकता है!! सब भावना में डूबे हुए थे तो रकम कौन पूछता है?
ज़रा कमीने दिमाग से सोचिए..शायद आप भी मेरे जैसा ही सोचने लगे.. #कृष्णनअय्यर
और इसी के साथ आज सड़क पार सत्ता का केंद्र बदल गया.आर्मी चीफ़ की बैटन जनरल बाजवा ने हफ़ीज़ मुनीर को सौंप दी.
दूसरी अहम तैनाती शाहिर शमशाद मिर्ज़ा की हुई.
लेकिन कुछ और भी हुआ जिसे नज़रंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए.
उधर की तहरीकें तालिबान ने युद्ध विराम समझौता ख़त्म करने के साथ ही
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देश भर में ख़ुदकुश एवम् अन्य प्रकार के हमले करने की घोषणा कर दी.
डूरंडलाइन के आसपास सेना से मुठभेड़ें चालू है जिसमें कई सैनिकों के गंभीर रूप से घायल होने की पुष्टि तो की जा चुकी है शायद कुछ अधिक नुक़सान भी हुआ हो.
सिविल सरकार को इमरान ख़ान ने नई चुनौती दी है जिसके कारण लगभग सभी
राजनीतिक दल फ़से हुए महसूस कर रहे है
उप विदेशमन्त्री रब्बानी ख़ैर साहिबा काबुल गई लेकिन उनकी क़वायद बेकार गई॥
इधर अपने यहाँ राहुल गांधी की #भारत_जोड़ो_यात्रा और एंटी इंकमबेंसीके साथ साथ महंगाई,बेरोज़गारी,बिगड़ती अर्थव्यवस्थासे हुई जागरूक जनता के विरोध के डर से दो जमा दोकी नींदे
राहुल मुझसे नही मिले
मैं नाराज हूँ।
जी,
आपकी नाराजगी वाजिब है,पर किसी भी प्रकार की उम्मीद और नाउम्मीदी के बीच जरा एक बार सोचिए कि
कुल यात्रा अवधि150दिन और3500 किलोमीटर की है।
मतलब औसतन23किलोमीटर का सफर निर्विघ्न रहे तो रोज चलकर तय करना है।
आप
महत्वपूर्ण है,
अतिः महत्वपूर्ण है।
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पर
समय प्रबंधन के आंकड़े समझिए कि
गर आपको महत्वपूर्ण मानकर वो आपके साथ फोटो खिंचवाने रुकते है तो न्यूनतम1 सेकंड का समय तो लगेगा न ?
तो चलना छोड़कर रुक जाए और इस रफ्तार से महत्वपूर्ण लोगों के साथ फोटो खिंचवाए तो एक मिनिट के 60 और एक घंटे में 3600 लोगो के साथ अर्थात पैदल यात्रा
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छोड़ रोज 12 घंटे केवल आप जैसे महत्वपूर्ण लोगों के साथ 1 सेकंड में एक कि रफ्तार से फ़ोटो ही खिंचवाते रहे तो रोजाना 12 घंटे में केवल 43000 लोगो के साथ अर्थात 150 दिन में केवल 65 लाख लोगों के साथ फोटो खिंचवाई जा सकती है।
वैसे इस 1 सेकंड में एक सेल्फी को गर प्रेक्टिकली 10 सेकंड में
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