दुनिया की सबसे बड़ी प्रयोगशाला सर्न (स्विट्ज़रलैंड) जो ब्रह्मांड की उत्पत्ति के रहस्य खोजने के प्रयासों में लगी थी, एक बार कट्टर चर्चों के निशाने पर आ गयी। कारण था कि उसने अपनी लैब परिसर में भगवान शिव के नृत्य स्वरूप "नटराज" को स्थापित किया था।
विवाद आगे बढ़ा तो (1/5)
वैज्ञानिकों को आगे आकर कारण बताना पड़ा, उन्होंने कहा कि हाल- फिलहाल विज्ञान ने एक खोज की है जिसे "कॉस्मिक डांस" कहा गया है, यानी ब्रह्मांड में कोई भी कण स्थिर नहीं है, बल्कि हर क्षण नृत्य अवस्था में है, यही बात हज़ारों वर्ष पहले हिन्दू संस्कृति नटराज के माध्यम से कहती है, (2/5)
विश्व में एकमात्र हिन्दू धर्मग्रंथ हैं जो सृष्टि के बनने बिगड़ने के बारे में बात करते हैं, इसलिए हमने नटराज को लगाया।
महान वैज्ञानिक कार्ल सर्गन ने तो यहां तक कहा "जहां विज्ञान अब जाकर अलग-अलग समयचक्र की बात स्वीकार करने लगा है,हिन्दू शास्त्रों में हज़ारों वर्षों से कहा (3/5)
गया है कि ब्रह्मा का एक दिन 8.4 अरब वर्षों का होता है, जो धर्म कॉस्मोलॉजी पर इतनी गहन बातें करता हो, तो एक कॉस्मोलॉजी लैब होने के नाते सर्न को नटराज स्थापित करने में कोई हर्ज नहीं है"। ऐसी कितने ही उद्धरण हैं जो हिन्दू शास्त्रों को आधुनिक विज्ञान से आगे साबित करते हैं। (4/5)
पश्चिमी सीमा पर अचानक युद्ध के बादल बरसने लगे, शाम के छ: बजे पाकिस्तान की फ्रंटियर फोर्स रेजीमेंट की एक कंपनी ने पाकिस्तान के भूतपूर्व जनरल, राहिल शरीफ के बडे भाई, मेजर शब्बीर शरीफ की अगुआई में फाजिल्का सेक्टर पर हमला बोल दिया, और समूना रिज, तथा (1/14)
बेरीवाला पुल पर कब्जा कर लिया...
1971 के भारत-पाक युद्ध की सबसे लंबी और खूनी लडाई यहीं पर लड़ी गई थी। यहाँ भारत की तीन बटालियनें तैनात थी...
१. 3 आसाम रेजीमेंट
२. 15 राजपूत रेजीमेंट
३. 4 जाट रेजीमेंट
पाकिस्तान ने पूरी ताकत झोंक दी थी, फाजिल्का पर कब्जा करने के प्रयास (2/14)
में। पहली ही झड़प में ही बेरीवाला पुल, गुरमुख खेडा और समूना रिज से आसाम रेजीमेंट को पीछे धकेल दिया और कब्जा कर लिया था। भारतीय सेना के एक के बाद एक हमले के बावजूद पाकिस्तानी सेना को पीछे नही धकेला जा सका।
फाजिल्का पर कब्जा करने के प्रयास मे तीन दिसम्बर 1971 से 17 दिसम्बर (3/14)
ब्रज का शाब्दिक अर्थ होता है, चरागाह। वह सपाट समतल भूमि जहाँ गायें चरती हों ब्रज कहलाता है। कहा जाता है कि महाराज नंद के पास, मने उनके राज्य में 4 लाख गायें थीं और जिस विशाल भूभाग में वो चरती थीं उसे ब्रज भूमि कहा जाता था।
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कुछ लोग इसे बृज भी बोल देते हैं जो कि वस्तुतः अशुद्ध उच्चारण है। सच ये है कि हिंदी भोजपुरी अवधी मैथिली ब्रज इत्यादि भाषाओं में किसी में भी बृज या ब्रिज जैसा कोई शब्द ही नही है। इसका प्रमाण आपको 100 साल पुराने हिंदी भाषा के वृहद नालंदा शब्दकोश में मिलता है।
इस शब्दकोश (2/10)
में बृज जैसा कोई शब्द नही है। इसलिये बृजेश, बृजबाला, बृजभूमि जैसे शब्द अशुद्ध हैं। शुद्ध वर्तनी और उच्चारण ब्रजेश, ब्रजबाला या ब्रजभूमि है।
ब्रज भूमि की जो मूल नस्ल थी गाय की, वही गाय आपको कामधेनु की फोटो में दिखाई देती है। मूलतः सफेद या हल्के भूरे रंग की, गोल शरीर, (3/10)
गुजरात के नतीजे देखकर मुझे वेब सीरीज मिर्जापुर का वो सीन याद आ गया जब कालीन बाबू अपनी पुत्रवधू को नौकर के साथ संबंध बनाते देखते हैं फिर घर में पंचायत होती है तो यह कहा जाता है ठीक है लड़का नपुंसक है तो तुम पराए मर्द के साथ संबंध मत बनाओ अपने ससुर से ही संबंध बनाओ ताकि घर (1/6)
की बात घर में रहे!
ठीक वही बात काँग्रेस ने गुजरात में किया!
काँग्रेस अब पूर्ण रूप से नपुंसकता को प्राप्त हो चुकी है फिर उसने यह सोचा कि कोई पराया मौज करें उससे अच्छा है कि अपना ही छोटा रिचार्ज केजरुद्दीन मौज करे और उसने गुजरात में आम आदमी पार्टी की एंट्री करवा दी।
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सभी बड़े नेता गुजरात चुनाव से दूर रहे वह भी तब जब पिछले चुनाव में काँग्रेस ने बीजेपी को बहुत तगड़ी टक्कर दी थी और यह बात किसी भी राजनीतिक पार्टी को हजम नहीं हुआ कि पिछली बार इतनी तगड़ी टक्कर देने के बाद भी इस बार काँग्रेस अचानक नपुंसक क्यो हो गई।
हम सभी ने कई बार रामायण, महाभारत एवं अन्य पौराणिक कहानियों में योद्धाओं की पदवी के विषय में पढ़ा है। सबसे आम शब्द जो इन पुस्तकों में आता है वह है "महारथी" और ये शब्द इतना आम बना दिया गया है कि किसी भी प्रसिद्ध योद्धा के लिए हम महारथी (1/22)
शब्द का प्रयोग कर लेते हैं, जबकि सत्य ये है कि महारथी एक बहुत बड़ी श्रेणी होती थी और कुछ चुनिंदा योद्धा हीं महारथी के स्तर तक पहुँच पाते थे। क्या आपको पता है कि इन श्रेणिओं को पाने के लिए भी कुछ योग्यता जरुरी होती थी? आज हम पौराणिक काल के योद्धाओं के स्तर के बारे में (2/22)
जानेंगे। यहाँ हम किसी साधारण सैनिक नहीं बल्कि उच्च कोटि के योद्धाओं की बात करेंगे।
यहाँ मैं विशेष रूप से अनुरोध करना चाहूँगा कि इसे बिना किसी पूर्वाग्रह के पढ़ें। अर्थात् केवल इसी कारण कि हमें कोई योद्धा सर्वाधिक पसंद है, हम उसे ऊपर की श्रेणी में नहीं डाल सकते। ये भी (3/22)
इस वर्ष 4 अक्टूबर को Chip War पुस्तक रिलीज़ हुई और उसी दिन यह पुस्तक मेरे पास थी।
अमेरिका की टफ्ट्स यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय इतिहास के प्रोफेसर क्रिस मिलर ने पुस्तक में एक्सप्लेन किया कि उद्यम एवं फैक्ट्री कैसे ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी सहित कुछ (1/9)
अन्य कंपनियों द्वारा चिप्स की आपूर्ति पर पूर्णतया निर्भर हो गए, जो चीन के भू-राजनीतिक अस्थिर क्षेत्र में स्थित है। अब कंप्यूटर चिप्स की नींव पर सैन्य, आर्थिक और भू-राजनीतिक शक्ति का निर्माण किया जाता है। वस्तुतः सब कुछ, मिसाइल से लेकर माइक्रोवेव, स्मार्टफोन से लेकर (2/9)
शेयर बाजार तक, चिप्स पर चलता है।
चूंकि लेखक एक इतिहासकार है, पुस्तक की भाषा सरल है, पठनीय है। मिलर ने इसे एक थ्रिलर के रूप में लिखा है जिसके कारण Chip War अत्यधिक रुचिकर बन जाती है। जटिल तकनीकी के विकास को उत्कृष्ट रूप में प्रस्तुत किया गया है।
दिल्ली विधानसभा (2015) के विजय के बाद अरविंद केजरीवाल पहले ही तीन साल में फेल हो गया था।
उसके तब के चरमपंथी समर्थक का जोश तो पहले 1 साल में ही ठंडा हो गया था तब इसके समर्थक बोलते थे कि मोदी जी भी कुछ नही कर पाए जबकि ये रामराज्य लाने का दावा किया था।
जबतक केजरीवाल पूर्ण (1/15)
बहुमत यानी 95% सीट जीत कर सरकार बनाया... पुरा दिल्ली में चरमपंथी उन्मादी युवाओं का हुजूम दिखता था केजरीवाल में तब उनको विष्णुअवतार दिखता था।
मैं तब सोशल मीडिया में एक्टिव नही था लेकिन बोलता था की असम के चुनाव में यानी 1985 के प्रफुल कुमार महंत जो असम आंदोलन से पैदा हुआ (2/15)
था वो शपथ लेने कॉलेज हॉस्टल से सीधे राजभवन गया था उससे भी कुछ बदलाब नही हो पाया...
दिल्ली में कांग्रेस सरकार ने जीना हराम कर रखा था। भाजपा वहां रूटीन राजनीति कर रही थी क्योंकि केंद्रीय भाजपा ही गुटबाजी की शिकार थी तो पार्टी रूग्ण अवस्था में आ गई तो दिल्ली की समस्या से (3/15)