#WamanMeshram
*प्रबोधन सत्र 2*
*बामसेफ एवं राष्ट्रीय मूलनिवासी संघ का 39वां सयुक्त राष्ट्रीय अधिवेशन*
*दि. 24 से 25 दिसंबर 2022*
*स्थान:- मान्यवर कांशीराम जी सांस्कृतिक स्थल, लखनऊ, उत्तरप्रदेश🇮🇳*
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"मनुस्मृति का धिक्कार" नामक किताब महात्मा फुले जी द्वारा 1जनवरी1854 को प्रकाशित किया था| लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने उसे समग्र महात्मा फुले जी के साहित्य मे उसे जोड़कर प्रकाशित नही किया| यह षडयंत्र फड़के, जोशी, मालशे और कीर ने किया| राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत महाराष्ट्र तथा
केंद्र सरकार मनुस्मृति को सरकारी पाठ्यक्रमो मे जोड़कर भारतीय समाज पर थोप रहे है| उस संदर्भ को ध्यान मे रखते हुए यह क्रांतिकारी किताब 22जून2024 को पुणे मे प्रकाशित किया जा रहा है|
इस किताब को फिलहाल मराठी मे प्रकाशित किया जा रहा है| हिंदी भाषा मे थोड़े ही दिनो मे प्रकशित किया
जाएगा| किताब जिन्हे चाहिए वे आज, अभी एडवांस बुकिंग करे,
संपर्क सूत्र:09822990120
इस ग्रंथ मे महात्मा फुले जी कहते है कि:–
"मनुस्मृति के सारे नीति नियम पक्षपाती है, उसके द्वारा ब्राह्मण द्विज वर्ण का दिल, दिमाग तेजपुंज कराने मे उपयुक्त है और इसके विपरित शूद्र और अतिशुद्र हिंदुओ
#चलो_पुणे
महात्मा राष्ट्रपिता जोतिराव फुले लिखित "मनुस्मृति का धिक्कार" ग्रंथ का प्रकाशन (जिसे महात्मा फुले समग्र साहित्य मे महाराष्ट्र सरकार ने जानबूझकर प्रकाशित नही किया था) और राष्ट्रीय शिक्षा नीति मनुस्मृति आधारित है उसके खिलाफ जाहिर परिसंवाद
इत्सिंग ने अपने यात्रा विवरण के आरंभ मे लिखा है कि चीन से भारत और उसके पड़ोसी देशो मे अब तक 56 बौद्ध यात्री आ चुके है| इत्सिंग कोई 400 और ह्वेनसांग 657 बौद्ध ग्रंथो की पांडुलिपि भारत से चीन ले गए थे| विचार कीजिए कि जब दो बौद्ध यात्री 1000 से अधिक बौद्ध पांडुलिपि चीन ले गए थे, तब
56 बौद्ध यात्री कितनी बौद्ध पांडुलिपि चीन ले गए होंगे?
विक्रमशिला, उद्दण्डपुर, तेलहाड़ा को छोड़िए, सिर्फ नालंदा विश्वविद्यालय मे 3 बड़े बड़े पुस्तकालय थे| सबसे बड़ा पुस्तकालय 9 मंजिला था| अंदाज कीजिए कि बौद्ध विश्वविद्यालयो के पास कितनी किताबे रही होंगी?
गुणभद्र, धर्मरुचि,
रत्नमति, बोधिरुचि जैसे अनेक बौद्ध विद्वान चीन गए और बौद्ध ग्रंथो का चीनी भाषा मे अनुवाद किए| अकेले गुणभद्र ने 78 बौद्ध ग्रंथो का चीनी भाषा मे अनुवाद किए| सोचिए कि चीन गए दर्जनो बौद्ध विद्वानो ने कितने बौद्ध ग्रंथो का चीनी भाषा मे अनुवाद किए होंगे?
बौद्ध सभ्यता और कला ने कई राजवंशो तथा राजाओ के इतिहास को गर्त मे डूबने से बचा लिया है|
उदाहरण के लिए, एक था इखाकु राजवंश (इक्ष्वाकु राजवंश)
इखाकु राजवंश का शासन तीसरी-चौथी सदी मे पूरबी कृष्णा नदी की घाटी मे (आंध्रप्रदेश) था|
इनकी राजधानी विजयपुरी मे थी| विजयपुरी को ही आज
नागार्जुनकोंडा कहा जाता है|
यह नागार्जुनकोंडा है, जहाँ से पहली बार चीन के होने का पहला पुरातात्विक सबूत मिलता है|
नागार्जुनकोंडा बौद्ध स्थल है| इखाकु राजाओ ने यहाँ अनेक बौद्ध स्तूप और विहार बनवाए है|
इखाकु राजपरिवार की सभी स्त्रियाँ बौद्ध थी, जिनके नाम के अंत मे " सिरि (श्री) "
मिलता है, जैसे अडविचाट सिरि, कोदबबलि सिरि, हम्म सिरि आदि|
बौद्ध होने की हैसियत से इन स्त्रियो ने अनेक बौद्ध इमारते बनवाई है, जिनके नाम शिलालेखो पर अंकित है|
यदि यह बौद्ध सभ्यता और कला आज जीवित नही होती तो ये सभी राजा-रानी इतिहास के गर्त मे डूब जाते|
इखाकु राजाओ का शासन कोई 100
जर कोठे पडलि दुष्काळ|
सत्वर पाठवी अन्नधान्य लागू न देई वेळ||
प्रतिपालक राजमाता स्वजवळ|
लवकीका नसे उपमा||
यदीकही पर भी प्राकृतिकआपदा आने से किसानो का नुकसान होता है तो तत्कालप्रभाव से उन्हे अनाज पहुचाने की व्यवस्था की जाती थी|ऐसी प्रजा प्रतिपालक राजमाता अहिल्याबाईहोलकर की नीति थी|
राजमाता, लोकमाता अहिल्यामाई होलकर जी के 299वें जन्मजयंती के अवसर पर देश के सभी मूलनिवासी बहुजनो को बहोत बहोत बधाई|
#जॉइन_BAMCEF_भारतमुक्तिमोर्चा_बहुजनक्रांतिमोर्चा
#RMMS_राष्ट्रीयमूलनिवासीमहिलासंघ
#RAEP_राष्ट्रीयआदिवासीएकतापरिषद
#RPVM_राष्ट्रीयपिछडावर्गमोर्चा