2022इतिहास में यह एक ऐसा साल था जिसने पश्चिमी दुनिया के घमंड को तोड़ दिया और जिस ने WWII के बाद सत्तर साल पुरानी दुनिया को बदल दिया।
पिछले तीस साल,1990में सोवियत संघ के टूटने के बाद से पश्चिमी दुनिया(अमेरिका और यूरोप)बहुत घमंडी(arrogant)हो गई थी।उसी घमंड में पश्चिमी
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दुनिया ने ईराक़,अफ़ग़ानिस्तान को तबाह बर्बाद किया, फिर अरब स्प्रिंग कर अरब दुनिया जैसे लिबिया,मिस्र, सीरिया, यमन वग़ैरह को तबाह बर्बाद किया और अलक़ायदा को ख़त्म करने का नाटक कर ISIS एक नया आतंकी संगठन बना दिया।
इसी तीस साल में चाईनीज़ क़ौम ने अपने मूल्क को एक साधारण देश से एक
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आर्थिक एंव शक्तिशाली देश बना कर दुनिया को आश्चर्यचकित कर दिया।
पिछले पंद्रह साल में दुनिया ने 2007-09 की मंदी और कोरोना को झेला।मगर सब से बड़ी चीज़ फ़ौल ऑफ काबुल(2021)ने पश्चिमी देशों के ताक़त को धूल चटा कर आश्चर्यचकित कर दिया।फ़ौल ऑफ काबुल के नतीजा को देख कर 24 फ़रवरी 2022 को
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रूस ने यूक्रेन पर हमला कर पश्चिमी दुनिया के तीस साल के घमंड़ को चकनाचूर कर दिया।
यूक्रेन लड़ाई यूरोप के लिए एक अग्निपरीक्षा है।2022 यूरोप के लिए वैसा ही साल था जैसा तुर्काने उस्मानी (तुर्कियों) के लिए 1923 था।
मगर 2022, चीन व अरब और तुर्काने उस्मानी के लिए राहत थी,
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एक नई रोशनी थी, एक नये युग की शुरूआत है।
#नोट: 2021 का फौल ऑफ काबुल, इस सदी का एक मुअज्ज़ह था, एक करामत है।इस पोस्ट को इक़बाल के शेर के एक मिसरह पर ख़त्म करते हैं,
"بے معجزہ دنیا میں ابھرتی نہیں قومیں"
"बे मुअज्ज़ह दुनिया मे उभरती नही क़ौमे"
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✍️m sheemab zman sir
वर्ल्ड बैंक औरWTOके पूँजीपतियों के इशारे पर तेज़ी से श्रीलंका बनते हम !
कल कृषि मंत्री के यहाँ से विशेष लंच के आयोजन में अवश्य उपस्थित होने का आदेश प्राप्त हुआ .
रियाया को दरबार का हुक्म बजाना लाज़मी होता है बेशक बतौर पत्रकार कीड़े निकालने की आदत हो.
मिलेटस लंच के नामपर बाजरा,
रागी और मोटे अनाज के व्यंजन बने थे, राजस्थान के ख़ानसामे थे और…
आशा की गई कि मीडिया गेंहू,चावल की खेती के बदले मोटे अनाज की खेती और उपयोग की मुहिम में सरकार बहादुर का साथ देंगे.
अचानक से किसानों और खेती को बदलने की मुहिम के पीछे क्या वैज्ञानिक अवधारणा है या हमारी विश्वप्रसिद्ध
कृषि विज्ञान संस्थानों का क्या शोध है ?
इसका जवाब सचिव महोदय भी नहीं दे सके जब आईएमएफ़ का ज़िक्र किया तो बिलबिला कर मुस्कुराने लगे ( उसे भी नौकरी करनी है, दो साल बाद रिटायर भी होना है)
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सल्तनत आफ ओमान..दुबई के किंग शेख राशिद अल मक़दूम की बेटी 'प्रिंसेंस शेख माहरा ' अपनी लक्जीरियस लाइफ स्टाइल के लिए सोशल मीडिया में अक्सर चर्चाओ में रहती है। लेकिन इस बार वो इमरान खान और जैमिमा गोल्ड स्मिथ के बेटे सुलेमान खान से शादी को लेकर चर्चा में है..
खबर है कि शेख माहेरा
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इंस्टाग्राम पर सुलेमान खान को फालो करती है ओर उनसे खासी प्रभावित हैं।
27 वर्षीय शैख माहेरा की नेटवर्थ13अरब मिलियन डालर बताई जाती है।उन्हें मंहगी गाड़ियां मंहगे अरबी घोड़े जैसी चीजों का शोक़ है।उनके पास इन सब का शानदार ओर बड़ा कलैक्शन है।शैख माहेरा पर कोई कानून नहीं लगता उन्हें
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जो ठीक लगता है वो करती है।वो दुनिया में घूमती है ओर जो अच्छा लगता है उसे खरीद लेती है।
दूसरी तरफ सुलेमान खान जो शैख माहेरा से उम्र में लगभग2साल छोटे हैं अपनी मां जैमिमा के साथ इंग्लैंड में रहते हैं।वो बेहद डाउन टू अर्थ पर्सन बताए जाते है।वो दिनचर्या में पब्लिक ट्रांसपोर्ट का
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तुम सब मोदी हो,
ये देश मोदियों का है…
आओ दीपिका में गर्व करें
फ़ेसबूकिए दीपिका की फ़ोटो लगाके गर्व(गर्भ🙈)से फूले नही समा रहे।हरेक चमकती दमकती महत्वपूर्ण चीज़ से रिश्ता खोजने वाली जनता का प्रधानसेवक भी ऐसे ही करें तो आश्चर्य कैसा।वो भी इसी तरह गाता है… मित्रों… मैं बचपन में
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फ़लाना ढिकाना बनना चाहता था…
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वर्ल्ड कप ट्रोफ़ी रखने का बॉक्स LV कम्पनी बनाती है जिसका मालिक दुनिया का सबसे अमीर आदमी है।बॉक्स अन्वेलिंग कौन करेगा ये FIFA नही कम्पनी तय करती है।दीपिका उसकी ब्रांड अंबेसेडर है।भारत LV का बड़ा उभरता बाज़ार है।ये ग्राहक के लिये मॉडल सेट करके
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अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग करने का नज़ारा था।जब पहले दीपिका स्वीकार होगी तो दीपिका के कहने से2000 रुपए का माल लगा लेडीज़ हैंड बैग दौ लाख में ख़रीदना भी स्वीकार होगा।
ये विशुद्ध अर्थशास्त्र व मार्केटिंग की ताक़त है।
जिसे तुम लोग दीपिका की ताक़त समझते हो।
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दरअसल,इन संधियों को हर उस संस्थान से बैर है,जो रिसर्च के माध्यम से ज्ञान के सृजन को बढ़ावा देता हो।
कुछ साल पहले फोर्ड फाउंडेशन के एक रिसर्च वर्क के दौरान मुझे यह बात पता चली और ग्रांट लेने या न लेने के सवाल पर चर्चा के दौरान कुछ संघी चेहरे साफ नजर आए,जिनका मानना था कि अमेरिकी
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संस्था भारत पर कब्जे की साजिश करती है।
राजीव गांधी फाउंडेशन का एफसीआरए रद्द करना केवल विदेशी फंडिंगका ही मामला नहीं है।असलमें यह तार्किक ज्ञान के प्रसारका है।
तार्किक ज्ञानके मामलेमें संघी सदियों पीछे हैं,क्योंकि नफ़रत ने उनके दिमाग की खिड़कियों को खोलने ही नहीं दिया।संधियों को
बखूबी पता है कि जिस दिन किसी की खिड़की खुल जायेगी,उसी दिन वह सनातनी पाखंड को छोड़कर आगे बढ़ जायेगा।यह मूर्खता संघी सनातनी ओढ़कर घूमते हैं
27साल के ऋषि राजपोपट ने राजीव गांधी फाउंडेशन की स्कॉलरशिप से2500साल पहले से चली आ रही संस्कृत व्याकरण की गुत्थी को सुलझा लिया।