BAMCEF & Rashtriya Mulnivasi Sangh 39th Joint National Convention
Date:24th to 25th December 2022 (Saturday to Sunday)
Venue:Manyawar Kanshiram Ji Sanskritik Shthal
Pasi Quila Chauraha, Ashiyana Lucknow , UttarPradesh👈
fb.watch/hEetfL73h4/?mi…
BAMCEF & Rashtriya Mulnivasi Sangh
39th Joint National Convention
Date:- 24th to 25th December 2022 (Saturday to Sunday)
Venue :-Manyawar Kanshiram Ji Sanskritik Sthal, Pasi Quila Chauraha, Ashiyana, Lucknow, UttarPradesh
👉Awakening Session No.5👈
Date:-25/12/2022, Sunday,
Time:-06:00pm to 09:00pm
Subject: Intervention in administration i. e. running government in favour of oneself, and in unconstitutional manner is dangerous to democracy – A conspiracy
OR
Conspiracy to deprive Mulnivasi Bahujan society of the right to
education through NEP 2020 – Serious discussion
OR
Nobody can become doctor, engineer, and professor from among the Mulnivasi Bahujan society, and nobody will become graduate post-graduate among SC, ST, OBC and converted religious minorities due to NEP 2020 – A Brahminical
fb.watch/hEbPlbDko1/?mi… BAMCEF & Rashtriya Mulnivasi Sangh
39th Joint National Convention
Date:- 24th to 25th December 2022 (Saturday to Sunday)
Venue :-Manyawar Kanshiram Ji Sanskritik Sthal, Pasi Quila Chauraha, Ashiyana Lucknow , UttarPradesh
👉Awakening Session No.4👈
Date:- 25.12.2022, Sunday,
Time:-03:00pm to 05:30pm
👉Subject : Intervention in judiciary will give rise to a constitutional crisis – A serious deliberation
OR
What gesture does raising a debate over appointment of Justice Chandrachud as Chief Justice make? – A serious debate
OR
A terrific conspiracy of depriving educated youth of representation by creating unemployment among them – A serious analysis
भारत मे स्वच्छता अभियान के जनक, व्यवस्था परिवर्तक, मानवता के प्रेरक, महान राष्ट्रसंत गाडगे बाबा (जन्म;23फरवरी1876-मृत्यु;20दिसंबर1956) के 66वें स्मृति दिन पर उन्हे सादर नमन
तिलक कहे, संसद मे न लिये जाए तेली-तंबोली-कुणभट|
गाडगे महाराज दहाडे, तो फिर करदो हमे भी बामन-भट||
#हमे_बामण_बना_दो : #संत_गाडगे_बाबा भारतमंत्री लॉर्ड मांटेग्यू ने 20अगस्त1917 को ब्रिटिश संसद मे यह घोषणा की कि ब्रिटिश सरकार का उद्देश्य भारत मे उत्तरदायी शासन की स्थापना करने के लिए भारतीय लोगो को और अधिक राजनैतिक अधिकार देने होंगे| इस संबंध मे भारतीयो से विचार विमर्श हेतु एक
आयोग का गठन किया गया जिसका अध्यक्ष लॉर्ड साउथब्रो को बनाया गया| इस आयोग की रिपोर्ट के फलस्वरूप ही भारत सरकार अधिनियम 1919 बना जिसे मांटेग्यु-चेम्सफोर्ड सुधार भी कहा जाता है क्योंकि उस समय लॉर्ड मांटेग्यू भारत सचिव (17/07/1917 - 19/07/1922) तथा लॉर्ड चेम्सफ़ोर्ड भारत के वायसराय
मूलनिवासी संत व सतनाम पंथ के प्रवर्तक गुरु घासीदास जी (जन्म;18दिसंबर1756-मृत्यु;20फरवरी1850) की स्मृति मे निर्मित यह जैतखाम स्तंभ उनकी जन्मस्थली व तपोभूमि ग्राम- गिरौदपुरी, तालुका- कसडोल, जिला- बालौदा बाजार, छत्तीसगढ मे स्थित है| यहाँ
सतनामी समाज का सबसे बडा धार्मिक स्थल है| इसकी ऊंचाई कुतुबमीनार से भी 6 फीट अधिक है और इसका लोकार्पण उनकी 259वीं जन्मजयंती पर 18दिसंबर2015 को हुआ था| भारत सरकार ने 01सितम्बर1987 को उनके सम्मान मे 60पैसे का एक डाक टिकट जारी किया था|
सतनाम पंथ मे सात सिद्धांत प्रचलित है;-
1.)मानव मानव एक,
2.)जीव हत्या पाप,
3.)नशा व मांस भक्षण निषेध,
4.)सदा सच बोलो,
5.)प्रकृति के 5 तत्व (जल, जमीन, हवा, आकाश, अग्नि) ही स्मरण योग्य,
6.)मूर्ति पूजा व्यर्थ,
7.)कर्म की पूजा
घासीदास गुरूजी की 266वीं जयंती पर देश के सभी मूलनिवासी बहुजनो को बहोत बहोत बधाई व उन्हे सादर नमन
साई बाबा ही दूसरे नाना साहब पेशवा है👈
नाना साहब पेशवा की मृत्यु हुई थी इसके एक भी सबूत उपलब्ध नही है और न ही उन्हे सूली या फांसी पर चढाया गया|
उत्तरप्रदेश सरकार ने 1961 मे डॉ.मोतीलाल भार्गव का जो किताब प्रकाशित किया है, दूसरे नाना साहब पेशवा ही साई बाबा है यह बात 19जुलाई1994 को
सह्याद्रि के अंक मे लिखा था कि साई बाबा यह कोई और नही बल्कि दूसरे नाना साहब पेशवा ही है| दीपक तिलक इसके संपादक थे|
डॉ.मोतीलाल भार्गव ने किया संशोधन को पढकर चित्र स्पष्ठ हो गया कि दूसरे नाना साहब ही साई बाबा है|
अच्छा हुआ यह लोग न ही वारकरी परंपरा या संतो की परंपरा मे घुसे और न ही
उन्हे घुसने दिया|
भंडारकर संस्था के वी.एल.मंजुल अब इस साई को नाथ परंपरा मे जोर जबरदस्ती से घुसेड रहे है| इसलिए यह सब लिखना पड रहा है|
- @VilasProf, राष्ट्रीय महासचिव, भारत मुक्ति मोर्चा, नई दिल्ली
बौद्ध धम्म के अंदर बने अलग अलग पंथ वास्तव मे धम्म के विभाजनकारी नही थे, बल्कि यह धम्म का विस्तार था|
वृक्ष बडा बनने के बाद उसे अनेक शाखाएँ पैदा होती है लेकिन वो शाखाएँ पेड से भिन्न नही होती, बल्कि पेड की शाखाओ के साथ पेड अधिक विशाल और समृद्ध दिखाई देता है| उसी तरह, बुद्ध के
महापरिनिर्वाण के बाद धम्म मे जो अलग अलग 18 पंथ बन चुके थे, वह धम्म का विभाजन नही था बल्कि वह धम्म का विस्तार था|
जिस तरह MBBS के बाद कोई डाक्टर उच्चशिक्षा लेकर नेत्ररोग तज्ञ, स्त्रीरोग तज्ञ, बालरोग तज्ञ, जैसे अलग अलग तज्ञ बनते है, उसी तरह धम्म के अंदर उच्चशिक्षित अरहत भिक्खु
अपनी अपनी शाखा के तज्ञ समझे जाते थे| धम्म के विद्वान भिक्खुओ को धम्मधर कहा जाता था, विनयपिटक के विद्वानो को विनयधर, धम्म के विद्वान प्रचारक भिक्खुओ को धम्मकथिक कहा जाता था| इसी तरह संपुर्ण सुत्तो को याद रखनेवाले सुत, सुत्तो को समझानेवाले सुत्तांतिक (सौतांत्रिक), पिटको को याद