हिंदू इलीट ने क्रिसमस को अपने त्योहार के रूप में अपना लिया है। क्रिसमस अमीर हिंदुओं का सबसे बड़ा पर्व है। इन लोगों के लिए क्रिसमस के सामने होली, दिवाली की कोई हैसियत नहीं है।
क्या आप भी ये होता देख पा रहे हैं?
-आचार्य दिलीप मंडल
ये दिल्ली का एक मॉल है। मालिक हिंदू। लगभग सभी दुकानदार हिंदू। ख़रीदार भी लगभग सभी हिंदू। इन लोगों ने होली या दिवाली के लिए मॉल को कभी ऐसा नहीं सजाया।
क्रिसमस की होली और दिवाली पर सांस्कृतिक जीत हो चुकी है। क्रिसमस अमीरों का देश का सबसे बड़ा पर्व है।
क्रिसमस को अमीर हिंदू अपना सबसे बड़ा त्योहार मान चुके हैं। गरीब कब तक हिंदू त्योहारों को बचाएँगे?
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Thread: क्रिसमस 🎄अमीर हिंदुओं का सबसे बड़ा त्योहार बन चुका है। लेकिन ईसाई बनने वालों के आकड़ों को देखें तो पता चलेगा कि जिस काम के लिए मिशनरियों के लोग बिना शादी-ब्याह किए भारत में आकर मर-खप गए, वो प्रोजेक्ट बुरी तरह असफल हो गया। पढ़िए भारत में क्यों फेल हुआ ईसाई धर्म? ✝️
आजादी से पहले के लगभग ढाई सौ साल में ब्रिटिश शासन के बावजूद ये मिशनरियां भारत में सिर्फ 2.3 प्रतिशत लोगों को ईसाई बना पाई थीं. ये आंकड़ा आजाद भारत की पहली जनगणना यानी 1951 का है. इनके कहने पर लोग ईसाई बने ही नहीं.
तब से लेकर ये आंकड़ा लगभग स्थिर है बल्कि 1971 के बाद से तो भारत में ईसाई आबादी का अनुपात घट रहा है. 2001 और 2011 की जनगणना के बीच ईसाई आबादी का अनुपात 2.34 प्रतिशत से घटकर 2.30 प्रतिशत रह गया.
प्रणय राय ने NDTV का अपना साम्राज्य सरकारी संसाधनों और सत्ता शिखर पर जान पहचान के दम पर खड़ा किया था। प्रभावशाली नेताओं-अफ़सरों के बेटे, बेटियों, दामादों के नौकरी देकर उन्होंने ये तंत्र बनाया। निजी चैनलों की बाढ़ आते ये ये तंत्र टूट गया। उनके चैनल न लोकप्रिय हुए न बिज़नेस कर पाए।
एनडीटीवी का इलीट स्वभाव कभी नहीं टूटा। भारतीय समाज और राजनीति में आए सामाजिक बदलाव से ये दूर रहा। सीताराम केसरी, देवेगौड़ा, लालू प्रसाद, मुलायम सिंह, मायावती इसके लिए कौतुक और मज़ाक़ के पात्र रहे। बीजेपी के सामाजिक बदलाव को भी ये बर्दाश्त नहीं कर पाए।
सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि ये चैनल आख़िर तक सरकारी और ख़ासकर पीएसयू के विज्ञापनों पर चलते रहे। आख़िरी 12 साल से अंबानी के पैसे से चला। तरह तरह की क्रांति की गई। पर क्रांति का खर्चा मुकेश भाई ने उठाया। फिर मुकेश भाई ने चैनल को बेच दिया। इति
सुप्रीम कोर्ट साल में सिर्फ 190 दिन काम करता है। बाक़ी छुट्टी। उन 190 दिनों में भी सुबह 10 बजे आते हैं। 1 बजे लंच। 2 से 4 बैठते हैं। फिर अपने चैंबर में बैठकर पॉलिटिक्स करते हैं। सुप्रीम कोर्ट में 72000 केस पेंडिंग हैं। ज़्यादातर केस में 20 सुनवाई के बाद भी फ़ैसला नहीं लिख पाते।
ऐसा निठल्ला सिस्टम देश तो छोड़िए, दुनिया में शायद ही कहीं मिलेगा।
इतना निठल्लापन आप दिखाएँगे तो लात मारकर नौकरी से निकाल दिए जाएँगे। ये माननीय बने बैठे हैं।
Thread: संभ्रांत सारस्वत ब्राह्मण परिवार की #DeepikaPadukone इतना झूमकर क्यों नाच रही हैं? कहाँ गए संस्कार? हिंदी फ़िल्मों में एक समय लड़की का रोल लड़के करते थे और नाचने वालियों की समाज में कोई इज़्ज़त नहीं होती थी। फिर सब बदल गया और घुँघरू टूट गए। कैसे हुआ ये सब? पढ़िए।
नाचना अब बुरा काम नहीं है। इलीट कहे जाने परिवारों की लड़कियां भी अब नाचने लगी हैं। सिर्फ निजी सेटिंग्स में नहीं, पब्लिक में भी स्टेज पर भी और कैमरे के सामने भी। अगर ड्रेस बॉडी हगिंग हो और अच्छी-खासी स्किन भी दिख रही हो तो कोई आसमान नहीं टूट पड़ता। दीपिका से पूछिए।
लेकिन ज्यादा पुरानी बात नहीं हुई, जब पब्लिक के सामने नाचने का मतलब यह होता था कि जो लड़की इस तरह नाचने को तैयार है, वह पैसा या दबाव पर देह बेचने को भी तैयार हो जाएगी। पहले देवदासियां नाचती थीं, गणिकाएं नाचती थीं, तवायफें और 'बाईजी' नाचती थीं। खास बिरादरी की औरतें नाचती थीं।
बीजेपी ने आज आरोप लगाया है कि कांग्रेस ने 1980-90 में मंडल कमीशन लागू करने का विरोध किया था। मेरे पास इस बात के सैकड़ों सबूत हैं कि उस दौर में कांग्रेस, बीजेपी और सीपीएम तीनों ने मंडल कमीशन का विरोध किया था। इसलिए पुरानी बातों को छेड़ने से बचना चाहिए। वरना मुझे सच बताना पड़ेगा।
बीजेपी ने तब कहा था कि कोर्ट का आदेश आने तक ओबीसी आरक्षण लागू न हो। EWS पर उसकी चाल बदल गई।
कांग्रेस की चाल भी आरक्षण पर बेढंगी थी। विरोध का ही स्वर था।
What type of person should not become a priest? A thread.
- Dr. B.R. Ambedkar (1935) Annihilation of Caste
(1) There should be one and only one standard book of Hindu Religion, acceptable to all Hindus and recognized by all Hindus…
… This of course means that all other books of Hindu religion such as Vedas, Shastras and Puranas, which are treated as sacred and authoritative, must by law cease to be so and the preaching of any doctrine, religious or social contained in these books should be penalized.