हिन्दू धर्म के 90हजार से भी ज्यादा वर्षों के लिखित इतिहास में लगभग 20हजार वर्ष पूर्व नए सिरे से वैदिक धर्म की स्थापना हुई और नए सिरे से सभ्यता का विकास हुआ
प्रारंभ में ब्रह्मा और उनके पुत्रों ने धरती पर विज्ञान, धर्म संस्कृति और सभ्यता का विस्तार किया
विष्णु सत्ता, धर्म और इतिहास के केंद्र में होते थे। देवता और असुरों का काल अनुमानित 20 हजार ईसा पूर्व से लगभग 7 हजार ईसा पूर्व तक चला। फिर धरती के जल में डूब जाने के बाद ययाति और वैवस्वत मनु के काल और कुल की शुरुआत हुई
दुनियाभर की प्राचीन सभ्यताओं से हिन्दू धर्म का कनेक्शन था। संपूर्ण धरती पर हिन्दू वैदिक धर्म ने ही लोगों को सभ्य बनाने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में धार्मिक विचारधारा की नए-नए रूप में स्थापना की थी। आज दुनियाभर की धार्मिक संस्कृति और समाज में हिन्दू धर्म की झलक देखी जा सकती है
चाहे वह यहूदी, यजीदी, रोमा, पारसी, बौद्ध धर्म हो या ईसाई-इस्लाम धर्म हो।
भातीय लोगों ने इस दौर में विश्वभर में विशालकाय मंदिर, भवन और नगरों का निर्माण कार्य किया किया था। हिन्दू धर्म ने अपनी जड़ें यूरोप से लेकर एशिया तक फैला रखी थी, जिसके प्रमाण आज भी मिलते हैं। आज हम आपको
विश्व की ऐसी ही जगहों के बारे में बता रहे हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि यहां कभी हिन्दू धर्म अपने चरम पर हुआ करता था।
हिमालय से निकलकर सिन्धु नदी अरब के समुद्र में गिर जाती है। प्राचीनकाल में इस नदी के आसपास फैली सभ्यता को ही सिन्धु घाटी की सभ्यता कहते हैं। इस नदी के किनारे के दो स्थानों हड़प्पा और मोहनजोदड़ो (पाकिस्तान) में की गई खुदाई में सबसे प्राचीन और पूरी तरह विकसित नगर और सभ्यता के अवशेष
मिले। इसके बाद चन्हूदड़ों, लोथल, रोपड़, कालीबंगा (राजस्थान), सूरकोटदा, आलमगीरपुर (मेरठ), बणावली (हरियाणा), धौलावीरा (गुजरात), अलीमुराद (सिंध प्रांत), कच्छ (गुजरात), रंगपुर (गुजरात), मकरान तट (बलूचिस्तान), गुमला (अफगान-पाक सीमा) आदि जगहों पर खुदाई करके प्राचीनकालीन कई अवशेष इकट्ठे
किए गए। अब इसे सैंधव सभ्यता कहा जाता है।
हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो में असंख्य देवियों की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। ये मूर्तियां मातृदेवी या प्रकृति देवी की हैं। प्राचीनकाल से ही मातृ या प्रकृति की पूजा भारतीय करते रहे हैं और आधुनिक काल में भी कर रहे हैं। यहां हुई खुदाई से पता चला
है कि हिन्दू धर्म की प्राचीनकाल में कैसी स्थिति थी। सिन्धु घाटी की सभ्यता को दुनिया की सबसे रहस्यमयी सभ्यता माना जाता है, क्योंकि इसके पतन के कारणों का अभी तक खुलासा नहीं हुआ है।
चार्ल्स मेसन ने वर्ष 1842 में पहली बार हड़प्पा सभ्यता को खोजा था। इसके बाद दया राम साहनी ने
1921 में हड़प्पा की आधिकारिक खोज की थी तथा इसमें एक अन्य पुरातत्वविद माधो सरूप वत्स ने उनका सहयोग किया था। इस दौरान हड़प्पा से कई ऐसी ही चीजें मिली हैं, जिन्हें हिन्दू धर्म से जोड़ा जा सकता है। पुरोहित की एक मूर्ति, बैल, नंदी, मातृदेवी, बैलगाड़ी और शिवलिंग।
1940 में खुदाई के दौरान पुरातात्विक विभाग के एमएस वत्स को एक शिव लिंग मिला जो लगभग 5000 पुराना है। शिवजी को पशुपतिनाथ भी कहते हैं।
बाली का प्राचीन मंदिर : इंडोनेशिया कभी हिन्दू राष्ट्र हुआ करता था, लेकिन इस्लामिक उत्थान के बाद यह राष्ट्र आज मुस्लिम राष्ट्र है। शोधकर्ताओं का मानना है कि जहां आज इंडोनेशियन इस्लामिक यूनिवर्सिटी है वहां कभी हिन्दू मंदिर हुआ करता था, जिसमें शिव और गणेश की पूजा की जाती थी। यहां से
एक ऐतिहासिक शिवलिंग भी मिला है।
इंडोनेशिया के एक द्वीप है बाली जो हिन्दू बहुल क्षेत्र है। यहां के हिन्दुओं ने अपने धर्म और संस्कृति को नहीं छोड़ा था। बाली में एक इमारत के निर्माण की खुदाई के दौरान मजदूरों को मंदिर के कुछ अंश मिले जिसके बाद यह खबर बाली के ऐतिहासिक संरक्षण विभाग को
दी गई जिसने खुदाई करने पर एक विशाल हिन्दू इमारत को पाया, जो कभी हिन्दू धर्म का केंद्र था। यह विशालकाय मंदिर आज बाली द्वीप की पहचान बन गया है
इंडोनेशिया के द्वीप बाली द्वीप पर हिन्दुओं के कई प्राचीन मंदिर हैं, जहां एक गुफा मंदिर भी है। इस गुफा मंदिर को गोवा गजह गुफा और एलीफेंटा
की गुफा कहा जाता है। 19 अक्टूबर 1995 को इसे विश्व धरोहरों में शामिल किया गया। यह गुफा भगवान शंकर को समर्पित है। यहां 3 शिवलिंग बने हैं। देश-विदेश से पर्यटक इसे देखने आते हैं।
वेटिकन शहर का शिवलिंग : कुछ लोग कहते हैं कि वेटिकन तो वाटिका का बिगड़ा रूप है। वैदिक काल में यह स्थान भी हिन्दू धर्म का केंद्र हुआ करता था। यहां पुरातात्विक खुदाई के दौरान शिवलिंग प्राप्त हुआ है जो रोम के ग्रेगोरियन इट्रस्केन संग्रहालय (Gregorian Etruscan Museum) में रखा गया है।
यह भी कहा जाता है कि वेटिकन सिटी का मूल स्वरूप शिवलिंग के समान ही है। इतिहासकार पी.एन.ओक ने अपने शोध में यह दावा किया है कि धर्म चाहे कोई भी हो उसका उद्भव सनातन धर्म यानि की हिन्दू धर्म में से ही हुआ है।
अपने दावो को आधार देने के लिए पी.एन.ओक ने कई उदाहरण भी पेश किए हैं
जिनमें से रोम का वेटिकन शहर प्रमुख है। ओक का कहना है कि वेटिकन शब्द की उत्पत्ति हिन्दी के ‘वाटिका’ शब्द से हुई है। इतना ही नहीं उनका कहना है कि ईसाई धर्म यानि ‘क्रिश्चैनिटी’ को भी सनातन धर्म की ‘कृष्ण नीति’ और अब्राहम को ‘ब्रह्मा’ से ही लिया गया है। पी.एन.ओक का कहना है कि
इस्लाम और ईसाई, दोनों ही धर्म वैदिक मान्यताओं के विरुपण से जन्में हैं।
वेटिकन शहर की संरचना और शिवलिंग की आकृति में एक गजब की समानता है। इस तस्वीर को देखकर आप समझ सकते हैं कि हिन्दुओं के पवित्र प्रतीक शिवलिंग और वेटिकन शहर के प्रांगण की रचना में अचंभित कर देने वाली समानता है।
शिव के माथे पर तीन रेखाएं (त्रिपुंडर) और एक बिन्दु होती हैं, ये रेखाएं शिवलिंग पर भी समान रूप से अंकित होती हैं। ध्यान से देखने पर आपको समझ आएगा कि जिन तीन रेखाओं और एक बिन्दू का जिक्र यहां कर रहे हैं वह पिआज़ा सेन पिएट्रो के रूप में वेटिकन शहर के डिजाइन में समाहित है।
कंबोडिया का हिन्दू सम्राज्य : विश्व का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर परिसर तथा विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक स्मारक कंबोडिया में स्थित है। यह कंबोडिया के अंकोर में है जिसका पुराना नाम 'यशोधरपुर' था। इसका निर्माण सम्राट सूर्यवर्मन द्वितीय (1112-53ई.) के शासनकाल में हुआ था।
यह विष्णु मन्दिर है जबकि इसके पूर्ववर्ती शासकों ने प्रायः शिवमंदिरों का निर्माण किया था। कंबोडिया में बड़ी संख्या में हिन्दू और बौद्ध मंदिर हैं, जो इस बात की गवाही देते हैं कि कभी यहां भी हिन्दू धर्म अपने चरम पर था।
पौराणिक काल का कंबोजदेश कल का कंपूचिया और आज का कंबोडिया। पहले हिंदू रहा और फिर बौद्ध हो गया। सदियों के काल खंड में 27 राजाओं ने राज किया। कोई हिंदू रहा, कोई बौद्ध। यही वजह है कि पूरे देश में दोनों धर्मों के देवी-देवताओं की मूर्तियाँ बिखरी पड़ी हैं। भगवान बुद्ध तो हर जगह हैं ही
लेकिन शायद ही कोई ऐसी खास जगह हो, जहाँ ब्रह्मा, विष्णु, महेश में से कोई न हो और फिर अंगकोर वाट की बात ही निराली है। ये दुनिया का सबसे बड़ा विष्णु मंदिर है।
विश्व विरासत में शामिल अंगकोर वाट मंदिर-समूह को अंगकोर के राजा सूर्यवर्मन द्वितीय ने बारहवीं सदी में बनवाया था। चौदहवीं
सदी में बौद्ध धर्म का प्रभाव बढ़ने पर शासकों ने इसे बौद्ध स्वरूप दे दिया। बाद की सदियों में यह गुमनामी के अंधेरे में खो गया। एक फ्रांसिसी पुरातत्वविद ने इसे खोज निकाला। आज यह मंदिर जिस रूप में है, उसमें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का बहुत योगदान है। सन् 1986 से 93 तक एएसआई ने यहाँ
संरक्षण का काम किया था। अंगकोर वाट की दीवारें रामायण और महाभारत की कहानियाँ कहती हैं।
यह मंदिर लगभग 1 स्क्वेयर मील क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यहां की दीवारों पर पर छपे चित्र और उकेरी गई मूर्तियां हिन्दू धर्म के गौरवशाली इतिहास की कहानी को बयां करती हैं। सीताहरण, हनुमान का अशोक
वाटिका में प्रवेश, अंगद प्रसंग, राम-रावण युद्ध, महाभारत जैसे अनेक दृश्य बेहद बारीकी से उकेरे गए हैं। अंगकोर वाट के आसपास कई प्राचीन मंदिर और उनके भग्नावशेष मौजूद हैं। इस क्षेत्र को अंगकोर पार्क कहा जाता है। सियाम रीप क्षेत्र अपने आगोश में सवा तीन सौ से ज्यादा मंदिर समेटे हुए है
अफ्रीकी में हिन्दू : भगवान शिव कहां नहीं हैं? कहते हैं कण-कण में हैं शिव, कंकर-कंकर में हैं भगवान शंकर। कैलाश में शिव और काशी में भी शिव और अब अफ्रीका में शिव। साउथ अफ्रीका में भी शिव की मूर्ति का पाया जाना इस बात का सबूत है कि आज से 6 हजार वर्ष पूर्व अफ्रीकी लोग भी
हिंदू धर्म का पालन करते थे।
साउथ अफ्रीका के सुद्वारा नामक एक गुफा में पुरातत्वविदों को महादेव की 6 हजार वर्ष पुरानी शिवलिंग की मूर्ति मिली जिसे कठोर ग्रेनाइट पत्थर से बनाया गया है। इस शिवलिंग को खोजने वाले पुरातत्ववेत्ता हैरान हैं कि यह शिवलिंग यहां अभी तक सुरक्षित कैसे रहा।
हाल ही में दुनिया की सबसे ऊंची शिवशक्ति की प्रतिमा का अनावरण दक्षिण अफ्रीका में किया गया। इस प्रतिमा में भगवान शिव और उनकी शक्ति अर्धांगिनी पार्वती भी हैं। बेनोनी शहर के एकटोनविले में यह प्रतिमा स्थापित की गई। हिन्दुओं के आराध्य शिव की प्रतिमा में आधी आकृति शिव और
आधी आकृति मां शक्ति की है।
10 कलाकारों ने 10 महीने की कड़ी मेहनत के बाद इस प्रतिमा को तैयार किया है। ये कलाकार भारत से आए थे। इस 20 मीटर ऊंची प्रतिमा को बनाने में 90 टन के करीब स्टील का इस्तेमाल हुआ है।
चीन में हिन्दू :चीन के इतिहासकारों के अनुसार चीन के समुद्र से लगे औद्योगिक शहर च्वानजो में और उसके चारों ओर का क्षेत्र कभी हिन्दुओं का तीर्थस्थल था
वहां 1000 वर्ष पूर्व के निर्मित हिन्दू मंदिरों के खंडहर पाए गए हैं। इसका सबूत चीन के समुद्री संग्रहालय में रखी प्राचीन मूर्तियां है
वर्तमान में चीन में कोई हिन्दू मंदिर तो नहीं है, लेकिन 1,000 वर्ष पहले सुंग राजवंश के दौरान दक्षिण चीन के फुच्यान प्रांत में इस तरह के मंदिर थे लेकिन अब सिर्फ खंडहर बचे हैं।
यजीदी हिन्दू है? : इस्लामिक आतंकवाद के चलते यजीदी अब खत्म हो रही मनुष्य की विशिष्ट प्रजाति में शामिल हो चुके हैं। यजीदी धर्म भी विश्व की प्राचीनतम धार्मिक परंपराओं में से एक है। इस कुछ इतिहासकार हिन्दू धर्म का ही एक समाज मानते हैं। यजीदियों की गणना के अनुसार अरब में यह परंपरा
6,763 वर्ष पुरानी है अर्थात ईसा के 4,748 वर्ष पूर्व यहूदियों, ईसाइयों और मुसलमानों से पहले से यह परंपरा चली आ रही है
यजीदी मंदिर की इस तस्वीर से यह सिद्ध हो जाएगा कि ये सभी हिन्दू हैं
शोध से पता चलता है कि यजीदियों का यजीद या ईरानी शहर यज्द से कोई लेना-देना नहीं
उनका संबंध फारसी
भाषा के 'इजीद' से है जिसके मायने फरिश्ता है। इजीदिस के मायने हैं 'देवता के उपासक' और यजीदी भी खुद को यही कहते हैं। यजीदियों की कई मान्यताएं हिन्दू और ईसाइयत से भी मिलती-जुलती हैं। ईसाइयत के आरंभिक दिनों में मयूर पक्षी को अमरत्व का प्रतीक माना जाता था। बाद में इसे हटा दिया गया।
'यजीदी' का शाब्दिक अर्थ 'ईश्वर के पूजक' होता है। ईश्वर को 'यजदान' कहते हैं। यजीदी अपने ईश्वर को 'यजदान' कहते हैं। यजदान से 7 महान आत्माएं निकलती हैं जिनमें मयूर एंजेल है जिसे मलक ताउस कहा जाता है। मयूर एंजेल को दैवीय इच्छाएं पूरा करने वाला माना जाता है। यजीदी ईश्वर को इतना ऊपर
मानते हैं कि उनकी सीधे उपासना नहीं की जाती। उन्हें सृष्टि का रचयिता तो मानते हैं, लेकिन रखवाला नहीं।
रूस में हिन्दू : एक हजार वर्ष पहले रूस ने ईसाई धर्म स्वीकार किया। माना जाता है कि इससे पहले यहां असंगठित रूप से हिन्दू धर्म प्रचलित था और उससे भी पहले संगठित रूप से वैदिक पद्धति के आधार पर हिन्दू धर्म प्रचलित था। वैदिक धर्म का पतन होने के कारण यहां मनमानी पूजा और पुजारियों का
बोलबाला हो गया अर्थात हिन्दू धर्म का पतन हो गया।
यही कारण था कि 10वीं शताब्दी के अंत में रूस की कियेव रियासत के राजा व्लादीमिर चाहते थे कि उनकी रियासत के लोग देवी-देवताओं को मानना छोड़कर किसी एक ही ईश्वर की पूजा करें। इसके बाद रूसी राजा व्लादीमिर ने यह तय कर लिया कि वह और
उसकी कियेव रियासत की जनता ईसाई धर्म को ही अपनाएंगे।
रूस की कियेव रियासत के राजा व्लादीमिर ने जब आर्थोडॉक्स ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया और अपनी जनता से भी इस धर्म को स्वीकार करने के लिए कहा तो उसके बाद भी कई वर्षों तक रूसी जनता अपने प्राचीन देवी और देवताओं की पूजा भी करते रहे थे।
बाद में ईसाई पादरियों के निरंतर प्रयासों के चलते रूस में ईसाई धर्म का व्यापक प्रचार-प्रसार हो सका है और धीरे-धीरे रूस के प्राचीन धर्म को नष्ट कर दिया गया
प्राचीनकाल के रूस में लोग जिन शक्तियों की पूजा करते थे, उन्हें तथाकथित विद्वान लोग अब प्रकृति-पूजा कहकर पुकारते हैं।
सबसे प्रमुख देवता थे- विद्युत देवता या बिजली देवता।
रूस में आज भी पुरातत्ववेताओं को कभी-कभी खुदाई करते हुए प्राचीन रूसी देवी-देवताओं की लकड़ी या पत्थर की बनी मूर्तियां मिल जाती हैं। कुछ मूर्तियों में दुर्गा की तरह अनेक सिर और कई-कई हाथ बने होते हैं। रूस के प्राचीन देवताओं और
हिन्दू देवी-देवताओं के बीच बहुत ज्यादा समानता है। प्राचीनकाल में रूस के मध्यभाग को जम्बूद्वीप का इलावर्त कहा जाता था। यहां देवता और दानव लोग रहते थे।
कुछ वर्ष पूर्व ही रूस में वोल्गा प्रांत के स्ताराया मायना (Staraya Maina) गांव में विष्णु की मूर्ति मिली थी जिसे 7-10वीं ईस्वी
सन् का बताया गया। यह गांव 1700 साल पहले एक प्राचीन और विशाल शहर हुआ करता था। स्ताराया मायना का अर्थ होता है गांवों की मां। उस काल में यहां आज की आबादी से 10 गुना ज्यादा आबादी में लोग रहते थे। माना जाता है कि रूस में वाइकिंग या स्लाव लोगों के आने से पूर्व शायद वहां भारतीय होंगे या
उन पर भारतीयों ने राज किया होगा
2007 को यह विष्णु मूर्ति पाई गई। 7 वर्षों से उत्खनन कर रहे समूह के डॉ. कोजविनका कहना है कि मूर्ति के साथ ही अब तक किए गए उत्खनन में उन्हें प्राचीन सिक्के, पदक, अंगूठियां और शस्त्र भी मिले हैं।
वानर साम्राज्य का रहस्य : वानर का शाब्दिक अर्थ होता है 'वन में रहने वाला नर।' वन में ऐसे भी नर रहते थे जिनको पूछ निकली हुई थी। नए शोधानुसार प्रभु श्रीराम का जन्म 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व अयोध्या में हुआ था। श्रीराम के जन्म के पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था अर्थात आज (फरवरी 2015) से
लगभग 7129 वर्ष पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था शोधकर्ता कहते हैं कि आज से 9 लाख वर्ष पूर्व एक ऐसी विलक्षण वानर जाति भारतवर्ष में विद्यमान थी, जो आज से 15 से 12हजार वर्ष पूर्व लुप्त होने लगी थी
और अंतत: लुप्त हो गई। इस जाति का नाम कपि था हनुमान का जन्म कपि नामक वानर जाति में हुआ था।
दरअसल, आज से 9 लाख वर्ष पूर्व मानवों की एक ऐसी जाति थी, जो मुख और पूंछ से वानर समान नजर आती थी, लेकिन उस जाति की बुद्धिमत्ता और शक्ति मानवों से कहीं ज्यादा थी। अब वह जाति भारत में तो दुर्भाग्यवश विनष्ट हो गई, परंतु बाली द्वीप में अब भी पुच्छधारी जंगली मनुष्यों का अस्तित्व
विद्यमान है जिनकी पूछ प्राय: 6 इंच के लगभग अवशिष्ट रह गई है। ये सभी पुरातत्ववेत्ता अनुसंधायक एकमत से स्वीकार करते हैं कि पुराकालीन बहुत से प्राणियों की नस्ल अब सर्वथा समाप्त हो चुकी है।
भारत के बाहर वानर साम्राज्य कहां? सेंट्रल अमेरिका के मोस्कुइटीए (Mosquitia) में शोधकर्ता चार्ल्स लिन्द्बेर्ग ने एक ऐसी जगह की खोज की है जिसका नाम उन्होंने ला स्यूदाद ब्लैंका (La Ciudad Blanca) दिया है जिसका स्पेनिश में मतलब व्हाइट सिटी (The White City) होता है, जहां के स्थानीय
लोग बंदरों की मूर्तियों की पूजा करते हैं। चार्ल्स का मानना है कि यह वही खो चुकी जगह है जहां कभी हनुमान का साम्राज्य हुआ करता था।
एक अमेरिकन एडवेंचरर ने लिम्बर्ग की खोज के आधार पर गुम हो चुके ‘Lost City Of Monkey God’ की तलाश में निकले। 1940 में उन्हें इसमें सफलता भी मिली पर
उसके बारे में मीडिया को बताने से एक दिन पहले ही एक कार दुर्घटना में उनकी मौत हो गई और यह राज एक राज ही बनकर रह गया।
चिली, पेरू और बोलीविया में हिन्दू धर्म :अमेरिकन महाद्वीप के बोलीविया (वर्तमान में पेरू और चिली) में हिन्दुओं ने प्राचीनकाल में अपनी बस्तियां बनाईं और कृषि का भी विकास किया। यहां के प्राचीन मंदिरों के द्वार पर विरोचन सूर्य द्वार, चन्द्र द्वार, नाग आदि सब कुछ हिन्दू धर्म समान हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका की आधिकारिक सेना ने नेटिव अमेरिकन की एक 45वीं मिलिट्री इन्फैंट्री डिवीजन का चिह्न एक पीले रंग का स्वास्तिक था। नाजियों की घटना के बाद इसे हटाकर उन्होंने गरूड़ का चिह्न अपनाया।
वियतनाम : वियतनाम का इतिहास 2,700 वर्षों से भी अधिक प्राचीन है। वियतनाम का पुराना नाम चम्पा था। चम्पा के लोग और चाम कहलाते थे और उनके राजा शैव थे। दूसरी शताब्दी में स्थापित चंपा भारतीय संस्कृति का प्रमुख केंद्र था। यहां के चम लोगों ने भारतीय धर्म, भाषा, सभ्यता ग्रहण की थी। 1825
में चंपा के महान हिन्दू राज्य का अंत हुआ।
श्री भद्रवर्मन् जिसका नाम चीनी इतिहास में फन-हु-ता (380-413 ई.) मिलता है, चंपा के प्रसिद्ध सम्राटों में से है जिसने अपनी विजयों ओर सांस्कृतिक कार्यों से चंपा का गौरव बढ़ाया। किंतु उसके पुत्र गंगाराज ने सिंहासन का त्याग कर अपने जीवन के
अंतिम दिन भारत में आकर गंगा के तट पर व्यतीत किए। चम्पा संस्कृति के अवशेष वियतनाम में अभी भी मिलते हैं। इनमें से कई शैव मन्दिर हैं।
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तब भी मुखर्जी ने वो देख लिया जो पिछले 100 सालों में एक दर्जन नरसंहार और एक तिहाई भूमि से हिन्दू विलुप्त करा देने के बाद भी राजनैतिक विचारधारा वाले सेक्युलर हिन्दू नहीं देख पा रहे।
इस किताब के छपते ही सुप्तावस्था से कुछ हिन्दू जगे।
अगले साल 1915 में पं मदन मोहन मालवीय जी
के नेतृत्व में हिन्दू महासभा का गठन हुआ।
आर्य समाज ने शुद्धि आंदोलन शुरू किया जो
एक मुस्लिम द्वारा स्वामी श्रद्धानंद की हत्या के साथ समाप्त हो गया।
1925 में हिन्दुओं को संगठित करने के उद्देश्य से संघ बना।
लेकिन ये सारे मिलकर भी वो नहीं रोक पाए जो यूएन मुखर्जी
"सम्राट अशोक" की "जन्म- जयंती" हमारे देश में "नहीं मनाई जाती" ??
बहुत सोचने पर भी, "उत्तर" नहीं मिलता! आप भी, इन "प्रश्नों" पर, "विचार" करें!
जिस -"सम्राट" के नाम के साथ, -"संसार" भर के, "इतिहासकार"- “महान” शब्द लगाते हैं
जिस -"सम्राट" का राज चिन्ह "अशोक चक्र"-" भारतीय", "अपने ध्वज" में लगाते है l
जिस -"सम्राट" का -"राज चिन्ह", "चारमुखी शेर" को, "भारतीय",- "राष्ट्रीय प्रतीक" मानकर,:- " सरकार" चलाते हैं l और "सत्यमेव जयते" को "अपनाया" है l
जिस देश में - "सेना का सबसे बड़ा युद्ध सम्मान",
"सम्राट अशोक" के "नाम" पर, "अशोक चक्र" दिया जाता है l
जिस -"सम्राट" से -"पहले या बाद" में :- "कभी कोई ऐसा राजा या सम्राट नहीं हुआ"...l जिसने : -"अखंड भारत" (आज का नेपाल, बांग्लादेश, पूरा भारत, पाकिस्तान, और अफगानिस्तान) जितने, "बड़े भूभाग" पर:-"एक-छत्र राज" किया हो l
चोलों का इतिहास कितना पुराना?
अशोक के शिलालेखों में इनका नाम दर्ज है, यानी अशोक से भी पहले दक्षिण भारत में चोल थे, अपने धुर प्रतिद्वंद्वी चेरों और पांड्यो के साथ। मेगस्थनीज पाण्ड्य राज्य के बारे में बताता है कि हेराक्लीज(कृष्ण) की पुत्री का यहाँ शासन था
अर्थात मातृ सत्ता यहाँ शुरू से थी। संगमयुग के बाद बीच में बौद्ध और जैन धर्मी कलभ्र शासकों का भी मामूली जिक्र मिलता है उसपे फिर कभी।
अमूमन ये जानिए कि
चोल=तमिल क्षेत्र
चेर=केरल
पाण्ड्य= सुदूर दक्षिण तट कन्याकुमारी/मदुरै का क्षेत्र
पहली सदी ई0 पू0 कलिंग राजा खारवेल के
शिलालेख में 113 साल पुराने तमिल संघ का जिक्र है(यही संगम युग है, अर्थात तब भी ये शक्तिशाली बने रहे इसका महत्वपूर्ण सबूत है ये)।
संगम साहित्य में चोलों की महान शक्ति का जिक्र है, जिसमें चोल राजा करिकाल(190 ई0) जो बाद के आने वाले साम्राज्यवादी चोलों से पहले ही समुद्र का अधिपति बन
वक्फबोर्ड ने चांद की जमीन पर दांवा ठोंका है वक्फबोर्ड ने नासा को दिए नोटिस में कहा कि हम 1400 वर्षो से चांद देखकर त्योहार मना रहे है इसलिए वक्फ एक्ट के मुताबिक चांद की जमीन हमारी हुई
नासा तुरंत अपने सेटेलाइट बटोरकर चांद खाली करें😜
वक्फबोर्ड ने एक नोटिस नील आर्म स्ट्रांग को भी भेजा है जिसमें उनसे जवाब मांगा गया है कि आपने वक्फबोर्ड से बिना पूछे चांद पर पहला कदम क्यों रखा. वक़्फ़ एक्ट मुताबिक आपको 2 साल की सजा हो सकती है अतः तुरंत वक्फ को जुर्माना भरें.
नोटिस के बाद नासा में हड़कंप मचा हुआ है खबरें है कि
वक्फ एक्ट का गहन अध्ययन करने के बाद नासा के वैज्ञानिक बेहोश हो गए उनके मुताबिक नासा ने अरबों डॉलर खर्च कर एक भी सेटेलाइट नही बनाया जो किसी जमीन पर कब्जा कर सके लेकिन वक्फ एक्ट तो अंतरिक्ष की किसी भी जमीन पर कब्जा कर सकता है.
जैसे कश्मीर से भगाया, वैसे ही लेस्टर से ‘हिंदू कुत्तों’ का सफाया करो:9 परिवारों का पलायन,कट्टरपंथियों के आतंक के कारण घरों से हिंदू-प्रतीक गायब
इंग्लैंड के लेस्टर शहर में इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा हिंदुओं और मंदिरों पर हमला करने के बाद से वहाँ डर का माहौल है
इस बात का खुलासा हेनरी जैक्सन रिसर्च फेलो शार्लोट लिटिलवुड (Charlotte Littlewood) ने GB News से बातचीत में किया है। उन्होंने बताया कि लेस्टर में हिंदू परिवार दहशत के साए में जीने को मजबूर हैं
9 हिंदू परिवारों ने पलायन कर लिया है। वहाँ कट्टरपंथी मुस्लिमों के आतंक से वे अपने घरों
के बाहर हिंदू-प्रतीक तक नहीं लगा सकते।
लिटिलवुड ने एंकर को बताया कि लेस्टर में हिंदू डर के साए में जी रहे हैं। उन्हें उनके घरों के बाहर हिंदू-प्रतीक तक नहीं लगाने दिया जा रहा है। डर की वजह से 9 हिंदू परिवारों ने पलायन कर लिया है। लिटिलवुड ने 5.22 मिनट के वीडियो में कहा,