बहुत बड़ी चुनौती होती है किरदार के भीतर चल रहे झंझावत को पर्दे पर उतारना। वो झंझावात तो अदृश्य होता है। वो कौन से औज़ार, कौन से संकेत हों, जो इस तूफान को दृश्य में उभारेंगे।
"बंदिनी" का दृश्य.....कल्याणी के पिता की उसको खोजते हुए मृत्यु हो चुकी है। वो उनके अंतिम दर्शन करके सुन्न लौटी है।
नर्सिंग होम के डॉक्टर ने बीते कुछ समय से उसे हिस्टीरिया की शिकार शिवानी की देखभाल का कठिन और यातना से भरा काम दिया है।
कल्याणी का जीवन दुख की अंधेरी कोठरी है। वो लौटती है तो पाती है कि शिवानी असल में क्रांतिकारी बिकाश बाबू की पत्नी है। वही जो उसे पत्नी मानकर और विवाह का वादा करके जो गए तो लौटे नहीं।
अब कल्याणी चाय बना रही है।
उसके मन में तूफान है। दो बहुत बड़े झटके अभी अभी उसे मिले हैं।
अब यह दृश्य देखिये..
नर्सिंग होम में मरम्मत का काम चल रहा है। वेल्डर की वेल्ड मशीन की रोशनी, किसी मशीन की सीटी जैसी आवाज़, लोहे की ठोंक पीट। रोशनी की कौंध। हथौड़े का पीटा जाना।
और कल्याणी का चाय की प्याली लेते जाते वक्त उसमें जहर मिला देना।
मन में एक पल को कौंधा एक खौफ़नाक विचार और उस रास्ते चल पड़ना। यहीं से कल्याणी "बंदिनी" बन जाती है।
डेढ़ मिनट का ये दृश्य अद्भुत है।
आज बिमल रॉय की याद का दिन।
उन्हें नमन।
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रवींद्र जैन ने कहा था कि अगर कभी वो संसार का देख पाये, तो सबसे पहले येसुदास को देखना पसंद करेंगे, क्योंकि वो ईश्वर का स्वर हैं। किसी गायक के लिए इससे बड़ा कोई तमग़ा नहीं हो सकता। इसे रूपक कहूं, विशेषण कहूं....मुझे समझ नहीं आता। #Yesudas
किसी-किसी स्वर में कविता की रसधारा समायी हुई होती है।
जब वो इलैयाराजा की धुन पर गुलज़ार के बोलों को अपने कंठ का स्वर्ण-स्पर्श देते हैं—तो मन के कोमलतम कोनों को स्पर्श कर जाते हैं—‘हल्का-फुल्का शबनमी/ रेशम से भी रेशमी….सुरमई अंखियों में नन्हा-मुन्ना एक सपना दे जा रे.....
हममें से भला कौन होगा जो एक शिशु की नींद ना सोना चाहता हो..आज किसी अंजान व्यक्ति ने सोशल मीडिया पर बड़ी विकलता से कहा, ‘नाहक बड़े हो गए’। उसके शब्दों में अतीत को जीने की विकलता थी, उस माहौल में बने रहने की विकलता—जिसे हम पीछे छोड़ आए। और फिर इस गीत में येसुदास का ‘रा री रा रू