"भारत मुक्ति मोर्चा" का यह कैलेंडर अपने घर मे लगाना कोई साधारण बात नही है, इसका बहुत बडा मौलिक महत्व है| इंसान को प्रात: उठते ही कैलेंडर याद आता है, जिसमे वो Working day देखता है, पर्व उत्सव को देखता है, छुट्टी देखता है, फिर अपनी दिनचर्या की शुरुआत करता है| यह दिनचर्या वैसी ही
बीतती है, जैसा कैलेंडर बताता है| कैलेंडर से ही सांस्कृतिक, मानसिक गुलामी की शुरुआत, गैरबराबरी को प्रस्थापित करने वाले संबोधनो, प्रतीको से होती है| ब्राह्मणवादी विचारो से व्यक्ति अपनी योग्यता खो देता है, वह स्वयं पर विश्वास करने की बजाय काल्पनिक, प्रस्थापित मिथको पर विश्वास करके
एक अनिश्चित भविष्य के साथ घर से निकलता है| संस्कृति के नाम पर हमारा पूरा मानव संसाधन खप जाता है, समय, श्रम, पैसा, बुद्धि एवं हुनर खत्म हो रहा है| इस Professional Cultural Event के नाम पर हमारे सारे संसाधनो को हम ही से छीन कर शासक वर्ग 'बामन' अपनी गैरबराबरी असामाजिक व्यवस्था की
सत्ता को मजबूत करता है| इस खेल मे सबसे बडा अचंभा यह है कि गुलाम ही अपनी गुलामी मजबूत करता है| मानसिक गुलामी आगे चलकर आर्थिक गुलामी मे और आर्थिक गुलामी शारीरिक गुलामी मे तब्दील हो जाती है| इसलिए आइए, अपने दिन की शुरूआत तार्किक, बौद्धिक, वैज्ञानिक और सही इतिहास से शुरू करे, अपने
#मुझे_पढे_लिखे_लोगो_ने_धोखा_दिया
बाबासाहेब डॉ.आंबेडकर ने भारत के वायसराय लार्ड लिनलिथगो (जन्म;18/04/1936~मृत्यु;01/10/1943) से संपर्क कर 03 लाख रुपये की व्यवस्था करवाकर 16 विद्यार्थियो को उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेजा था ताकि वे पढ-लिख कर समाज की उन्नति मे
सहयोग करेंगे परन्तु दु:खद यह हुआ कि मा. बी.डी.खोब्रागडे जी को छोडकर बाकी सभी लोगो ने बाबासाहेब की भावनाओ से खिलवाड किया, गद्दारी कर समाज को धोखा दिया| शायद इसी बात से दु:खी होकर बाबासाहेब ने उत्तरप्रदेश के आगरा के रामलीला मैदान मे 18मार्च1956 को अपने सम्बोधन मे कहा था कि हमको
हमारे ही पढे लिखे लोगो ने धोखा दिया|
(1)कोलाटा
(2)रणदेव सिंह चौधरी रे
(3)पी.के.कायल
(4)एम.ए.कांबले
(5)एस.बी.गायकवाड
(6)एम.आर.बोडले
(7)एन.जी.उके
(8)एम.एन.वानखेडे
(9)डी.एस.जेजुरीकर
(10)टी.बी.आवले
(11)एल.आर.बेहरा
(12)यशवंत चिंतामण गायकवाड
(13)सिद्धार्थ मुल्हरी डीखले
(14)ए.आर.कायल
#जय_भीम_के_जनक_हरदास_लक्ष्मणराव_नगराले_जन्मजयंती
''जय भीम'' अभिवादन के जनक व व्यवस्था परिवर्तक बाबू हरदास लक्ष्मणराव नगराले जी को आज उनकी जन्मजयंती 06जनवरी पर सादर मानवंदन|
बाबू हरदास का जन्म महार परिवार मे नागपुर स्थित कामठी मे 06जनवरी1904 मे हुआ था जिस मोहल्ले मे उनका जन्म हुआ
था, वह आज उन्ही के नाम हरदास नगर के नाम से जाना जाता है| सामाजिक कार्यों की शुरुआत उन्होने महज 17साल की उम्र से ही शुरू कर दी थी| 1922 मे महाराष्ट्र के मूलनिवासी संत चोखामेला के नाम पर उन्होने एक छात्रावास शुरू किया| 1924 मे उन्होने एक प्रिंटिंग प्रेस खरीदी थी और सामाजिक जागृति
के लिये “मंडई महात्म्य” नामक किताब लिखी थी, साथ ही “चोखामेला विशेषांक” भी निकाला था| बाबासाहेब के आंदोलनो मे उन्होने बढ- चढकर हिस्सा लिया| 1930 के नासिक कालाराम मंदिर सत्याग्रह तथा 1932 मे पूना पैक्ट के दौरान उन्होने बाबासाहेब के साथ महत्वपूर्ण भूमिका निभाई| मूलनिवासी बहुजन समाज
सम्राट अशोक के जन्मदिन "पुष्य पुर्णिमा/पौष पुर्णिमा" के पावन अवसर पर सभी को हार्दिक शुभकामनाएं|
सम्राट अशोक के जन्म के बारे मे अनेक संभ्रम है| सम्राट अशोक के समय कोई विकसित कैलेंडर न होने के कारण उनके जन्म की तिथि या तारिख ढुंढने मे काफी दिक्कत होती है| विकसित कैलेंडर न होने के
कारण अशोक अपने धम्मकार्यों को अपने राज्याभिषेक की तिथि से जोडकर बताते है| इसलिए अशोक के अभिलेखो मे हम देखते है कि, उन्होने अपने राज्याभिषेक के तेरहवे साल धम्म अभिलेख लिखने शुरू कर दिए थे| (Asoka, Mukherjee, p.25) विकसित कैलेंडर का निर्माण दुनिया मे पहली बार बुद्धवंशी शक (शाक्य)
शासको ने इसा पुर्व पहली सदी मे यवनजातक के आधार पर बनाया था, जिसे शक संवत कहा जाता है| उसके सभी दिन और महिने बुद्ध के जीवन से जुडे हुए है| (Yavanajataka of Sphujidhvaja, Vol.2, p.175)
सम्राट अशोक दुनिया के पहले सम्राट है जिन्होने अपना जन्मदिन धुमधाम से मनाना शुरू कर दिया था|
"आदम की पहाड़ी (Adam's Peak)" वास्तव मे "बुद्ध की पहाड़ी" है और "आदम" वास्तव मे "आदिमुनि बुद्ध" ही है|
सभी धर्मों मे यह मान्यता है कि, मनुष्यो के प्रथम पुरुष आदम थे और उन्होने आकाश से धरती पर उतरते समय सबसे पहले अपने पैर श्रीलंका की पहाड़ी पर रखे थे, इसलिए उस पहाड़ी को "आदम की
पहाड़ी" (Adam's Peak) कहा जाता है|
आदम की पहाड़ी वास्तव मे बुद्ध की पहाड़ी है| उस पहाड़ी पर प्राचीन बुद्धपद बनाए गए थे, इसलिए उसे समन बुद्ध की पहाड़ी कहा जाता था| बुद्ध को प्राचीन श्रीलंका मे "समन बुद्ध" कहा जाता था| समन बुद्ध के कारण उस पहाड़ी को "समनतम और समनोजी" कहा जाता था और
आजकल उसे "समन्तकुटम और समनतले" कहा जाता है| इन सभी शब्दो का अर्थ होता है, "समन बुद्ध की पहाड़ी"|
दक्षिण भारत का अत्यंत प्रसिद्ध बौद्ध महाकाव्य "मनिमेखलाई" मे भी आदम की पहाड़ी को बुद्धपदो की पहाड़ी कहा गया है, क्योंकि उस पहाड़ी पर बुद्ध के पद थे| (Manimekhalai, p. 97-98) प्राचीन
#कोरेगांव_भीमा#विजय_दिन
भारत मुक्ति मोर्चा बहुजन क्रांति मोर्चा एवं छत्रपति क्रांति सेना द्वारा आयोजित भीमा कोरेगांव मे 205वें #विजय_दिन के अवसर पर अभिवादन सभा सफलता पूर्वक संपन्न हुई|
#कोरेगांव_भीमा#विजय_दिन
भारत मुक्ति मोर्चा बहुजन क्रांति मोर्चा एवं छत्रपति क्रांति सेना द्वारा आयोजित भीमा कोरेगांव मे 205वें #विजय_दिन के अवसर पर अभिवादन सभा सफलता पूर्वक संपन्न हुई|
#कोरेगांव_भीमा#विजय_दिन
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भिमा कोरेगांव का विजयस्तंभ सभी बहुजनो के लिए बेहद गौरव का प्रतीक है| यह शिलास्तंभ सम्राट अशोक के शिलास्तंभ की याद दिलाता है| सम्राट अशोक ने भी अपने धम्मविजयी अभियान के प्रतीक के तौर पर संपुर्ण जम्बूद्वीप मे विजयस्तंभ बनवाएं थे|
भिमा कोरेगांव
विजयस्तंभ महत्वपूर्ण विरासत होने के कारण उसका विकास निचे दिए गए प्लैन की तरह होना चाहिए| लेकिन, ब्राम्हणवादी शासको ने अभी तक भिमा कोरेगांव विजयस्तंभ और उसके परिसर का विकास नही किया है| कुछ स्वार्थी लोगो ने वहाँ की जमीन पर नाजायज कब्जा कर लिया है| कोरेगांव जाने के लिए नगर और पुना
से वन वे है, जिसके कारण बड़ी भीड़ मे गाडीयो का लंबा जाम होता है| कोरेगांव को जानेवाला बडा़ महामार्ग, बायपास रास्ता, विजयस्तंभ के सभोवार सर्किट बनाकर उसमे विहार व अन्य इमारते बननी चाहिए|
- @dr_chatse