RRR के गाने ‘नाटू नाटू’ को ‘गोल्डन ग्लोब’ मिला है। इसके संगीतकार हैं एम एम कीरवानी जिन्हें हिंदी जगत में एम एम क्रीम के नाम से ही जाना जाता है। क्रीम बेमिसाल संगीतकार हैं पर उनका काम लोगों की नज़रों से दूर रहा है। #GoldenGlobes#NatuNatu#natunatusong#MMKreem#MMKeeravani
असल में हमारे यहां गानों को उनके संगीतकार या गीतकारों से जोड़कर देखने-सुनने की परंपरा ज़्यादा नहीं है। बहरहाल... अपनी निजी राय ये है कि भले ‘नाटू नाटू’ किरवानी का सबसे अच्छा काम नहीं है। तो फिर वो कौन से गाने हैं जिन्हें एम.एम. क्रीम की प्रतिभा के लिए सुना जा सकता है।
मुझे लगता है कि ‘ज़ख़्म’ का गाना ‘गली में आज चाँद निकला’ क्रीम के सर्वश्रेष्ठ गीतों में से एक है। इसे आनंद बख़्शी ने लिखा है। इस गाने के बनने की कहानी फिर कभी। पर इस गाने में है भावनाओं की कोमलता और बेमिसाल संगीत संयोजन। #Zakhm #GaliMeinAajChand
इसके अलावा सुधीर मिश्रा @IAmSudhirMishra की भूली बिसरी फ़िल्म है ‘इस रात की सुबह नहीं’…इसका एक गाना है—‘चुप तुम रहो, चुप हम रहें, ख़ामोशी को ख़ामोशी से बात करने दो’। इसे ख़ुद एम एम क्रीम और चित्रा ने गाया है।
एम.एम.क्रीम के फ़िल्मोग्राफ़ी की एक शानदार फ़िल्म है तनूजा चंद्रा की ‘सुर’ जिसके गाने निदा फ़ाज़ली के हैं। ये पूरा अलबम लाजवाब है। ‘कभी शाम ढले तो मेरे दिल में आ जाना’ किसी सिम्फ़नी से कम नहीं है। वायलिन, कोरस और आलाप का क्या खेल है इस गाने में।
महालक्ष्मी अय्यर की काबिल आवाज़ है इस गाने में। इसी तरह ‘दिल में जागी धड़कन ऐसे’ ब्रेथलेस शैली का गाना है। सुनिधि अपने पूरे शबाब पर हैं इस गाने में। इस अलबम में थीम म्यूजिक भी कमाल का है।
फ़िल्मों के थीम म्यूजिक पर कभी विस्तार से। पर इसे अनिवार्य रूप से सुना जाना चाहिए। यहां भी वायलिन का इंद्रजाल है। इस अलबम में अली के गीत भी शानदार हैं।
एम एम क्रीम की प्रतिभा की ऊँचाई है अमोल पालेकर की फ़िल्म ‘पहेली’। इसका हर एक गाना मुझे पसंद है। चाहे ‘धीरे जलना’ हो या ‘कँगना रे’ या फिर ‘लागा रे जल लागा’ जो किसी लोकगीत से कम नहीं है। ख़ासतौर पर उस गाने में श्रुती सडोलीकर की आवाज़ का खरज।
कठपुतली शैली का गीत ‘फिर रात कटी’ तो अपने साथ बहा ही ले जाता है।
गायक के.के. से एक निजी नाता भी था और उनकी आवाज़ से प्यार भी है। ‘जिस्म’ फ़िल्म में क्रीम ने के.के. से गवाया ‘आवारापन बंजारापन’। बेहतरीन है ये गीत।
इस फ़िल्म में नीलेश मिश्रा @neeleshmisra का लिखा ‘जादू है नशा है’ जैसा कोमल गीत भी है और उन्हीं का लिखा ’चलो तुमको लेकर चलें हम उन फ़िज़ाओं में’। श्रेया घोषाल की आवाज़ की मिठास घुली है इन गानों में।
और फिर ‘क्रिमिनल’ का गीत तो ख़ैर है ही उनकी पहचान। ‘तुम मिले दिल खिले’—जो हम सबका जाना पहचाना है। बात लंबी हो रही है इसलिए बाक़ी गानों की चर्चा फिर कभी।
क्रीम को हिंदी की दहलीज पार करके भी सुना जाना चाहिए।
एम एम किरवानी गोल्डन ग्लोब की बधाई
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दो बरस हुए....कोंकण में कर्ली नदी के किनारे सूर्योदय हो रहा था और मन में गूँज रहा था कुमार गंधर्व का दिव्य-स्वर...
फिर Kalapini Komkali जीजी ने बातों बातों में बताया कि इस नदी का नाम काळी नदी का अपभ्रंश है जो कुमार जी के पारिवारिक नाम का मूल उद्गम है। #KumarGandharva #UdJayega
शायद एक डोर थी जो कर्ली नदी के किनारे कुमार जी के स्वर से मन को आलोकित कर रही थी...हम मध्यप्रदेश में पले-बढ़े सत्तर अस्सी के दशक की पीढ़ी के लोगों को सदा कुमार जी निकट लगते रहे। शहर बदलते रहे-पर लगता रहा कि ये जो हवाएं आ रही हैं-- इनका एक अंश भानु-कुल को छूकर आ रहा होगा।
हमारे आंसूओं और मुस्कानों का साक्षी रहा कुमार जी का स्वर।
कुछ उदास शामें होती थीं, जब पता नहीं था कि जीवन का रास्ता क्या होगा, भविष्य क्या होगा... तब भी कुमार जी की आवाज़ गूंजती थी और सूरज क्षितिज के उस पार डूब जाता था।
रवींद्र जैन ने कहा था कि अगर कभी वो संसार का देख पाये, तो सबसे पहले येसुदास को देखना पसंद करेंगे, क्योंकि वो ईश्वर का स्वर हैं। किसी गायक के लिए इससे बड़ा कोई तमग़ा नहीं हो सकता। इसे रूपक कहूं, विशेषण कहूं....मुझे समझ नहीं आता। #Yesudas
किसी-किसी स्वर में कविता की रसधारा समायी हुई होती है।
जब वो इलैयाराजा की धुन पर गुलज़ार के बोलों को अपने कंठ का स्वर्ण-स्पर्श देते हैं—तो मन के कोमलतम कोनों को स्पर्श कर जाते हैं—‘हल्का-फुल्का शबनमी/ रेशम से भी रेशमी….सुरमई अंखियों में नन्हा-मुन्ना एक सपना दे जा रे.....
हममें से भला कौन होगा जो एक शिशु की नींद ना सोना चाहता हो..आज किसी अंजान व्यक्ति ने सोशल मीडिया पर बड़ी विकलता से कहा, ‘नाहक बड़े हो गए’। उसके शब्दों में अतीत को जीने की विकलता थी, उस माहौल में बने रहने की विकलता—जिसे हम पीछे छोड़ आए। और फिर इस गीत में येसुदास का ‘रा री रा रू
बहुत बड़ी चुनौती होती है किरदार के भीतर चल रहे झंझावत को पर्दे पर उतारना। वो झंझावात तो अदृश्य होता है। वो कौन से औज़ार, कौन से संकेत हों, जो इस तूफान को दृश्य में उभारेंगे।
"बंदिनी" का दृश्य.....कल्याणी के पिता की उसको खोजते हुए मृत्यु हो चुकी है। वो उनके अंतिम दर्शन करके सुन्न लौटी है।
नर्सिंग होम के डॉक्टर ने बीते कुछ समय से उसे हिस्टीरिया की शिकार शिवानी की देखभाल का कठिन और यातना से भरा काम दिया है।
कल्याणी का जीवन दुख की अंधेरी कोठरी है। वो लौटती है तो पाती है कि शिवानी असल में क्रांतिकारी बिकाश बाबू की पत्नी है। वही जो उसे पत्नी मानकर और विवाह का वादा करके जो गए तो लौटे नहीं।
अब कल्याणी चाय बना रही है।
उसके मन में तूफान है। दो बहुत बड़े झटके अभी अभी उसे मिले हैं।