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एक दिन घुमा दूंगा घड़ी की सुई को एंटी-क्लॉकवाइज़ और जाऊंगा वक़्त में वापस और जमीन से उठाकर वो सभी घी-चुपड़ी रोटियां फिर से चाय में डुबाकर खाऊंगा, जिन्हें मैंने माँ से आँख बचाकर फेंक दिया था!
एक दिन जाऊँगा जनवरी की सुबह में वापस जहां मैं अपनी बैटिंग करके भाग गया था
और कराऊंगा बचे हुए ओवर उस दोस्त को, जो ट्यूशन बंक करके खेलने आया था!
एक दिन चुपके से घुस जाऊँगा मम्मी-पापा वाले कमरे में, और पापा के पर्स में चोरी वाले दस रुपये वापस रखकर देखूंगा कि उसमे क़र्ज़ की कितनी नोटें थी जब मेरे कहने पर उन्होंने मेरे दो-दो ट्यूशन की फीस दी थी!
अपना नया मकान तोडकर उठाऊंगा वो लाल वाली ईंटें और बनाऊंगा वो पुराना घर जिसका आँगन कच्चा था और हर कमरे में पर्दे थे दरवाज़े नहीं।उस आंगन को खोदूंगा और निकाल दूंगा उन सभी चीटियों को जिन्हें मैंने खेल-खेल में राम नाम सत्य गाते हुए मिटटी में दबा दिया!उस चिड़िया का घोंसला भी रख दूंगा
अपने नीम पर जिसे मैंने खुद को अर्जुन समझते हुए ईंटा मारकर गिरा दिया था!उन फूटे अण्डों को तो नहीं रख सकता क्यूंकि उसे तो चीटियाँ तभी चट कर गई थीं!
जाऊँगा,दादी के लहसुन-मिर्चे वाले हाथों को सूंघकर डायरी में नोट कर लूँगा,दुनिया को लाकर दिखाऊंगा, स्वाद का भी एक केमिकल स्ट्रक्चर होता
बाबा की छड़ी की लम्बाई और उनकी गोद की गहराई नापकर एक थ्योरम बनाकर सिद्ध करूंगा कि भय और प्रेम एक दूसरे के पूरक हैं!
जाऊँगा वापस स्कूल में और पूछूंगा अपने टीचर से कि सर्दी की धूप में देखने पर जो आँख के अंदर रेशा उड़ता है क्या वही किताब वाला अमीबा है?
और ये पूछूंगा कि एक से बीस तक के पहाड़े रटना जीवन की सफलता के समानुपाती क्यों है? पूछूंगा की सीनरी में हमेशा पहाड़ भूरे ही क्यों हैं, और हरे और सफ़ेद बनाने पर मेरे नम्बर क्यों काट लिए गए?
और थोडा बढ़कर जाऊँगा असेम्बली में जहाँ मैं और मेरे तीन दोस्त सजा में मुर्गा बने हैं
पर फिर भी टांगो के नीचे से देखने पर आसमान हमारे पैरों तले है! उस आसमान के साथ एक सेल्फी लूँगा और टैग कर दूंगा वक़्त को उसमें, उसे उसकी औकात दिखाने को!
किसी दिन घड़ी का काँटा पकड़ कर बहुत जोर से छलांग लगाऊंगा पीछे की ओर और कलामंडी खाकर गिरूंगा अपने गाँव की उस नहर में जिसमे
मैं कूदने की हिम्मत नहीं कर पाया था और नंगे नहाते हर लौंडो का झुंड मुझ पर हँस रहा था। और वहीँ किनारे बैठे ‘पगले-बाबा’ से सुनूंगा तालाब वाले बुढ़वा-भूत की बाकी की कहानी जिसे आधा सुनकर मैं रात भर सो नहीं पाया था!
और फिर जाऊँगा... एक पतली सी गली में जहाँ एक कच्ची उम्र की लड़की
हाथ में मेरा दिया गुलाब आज भी लेकर खड़ी है इस अफ़सोस में कि उसे मुझसे कभी नहीं मिलना चाहिए था। उस लड़की के पास जाकर उससे वो फूल वापस लेकर नाली में फेंक दूंगा और उसके कानों से खींच के निकाल लूँगा अपनी आवाजों के तार, और आंखों से काँछ लूंगा अपनी सारी परछाइयां और आज़ाद कर दूंगा
उसे उसके उस कल से जिसे मैं अपना आज नहीं दे सका!
अगर मैं जा सका तो...
पर अभी मुझे वापस जाना है आगे के वक़्त में, क्यूंकि मैं आया हूँ वहाँ से पीछे लौटकर !
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किराने की एक दुकान में एक ग्राहक आया और दुकानदार से बोला - भइया, मुझे 10 किलो बादाम दे दीजिए।
दुकानदार 10 किलो तौलने लगा।
तभी एक कीमती कार उसकी दुकान के सामने रुकी और उससे उतर कर एक सूटेड बूटेड आदमी दुकान पर आया,और बोला - भाई 1 किलो बादाम तौल दीजिये।
दुकानदार ने पहले ग्राहक को 10 किलो बादाम दी,,फिर दूसरे ग्राहक को 1 किलो दी..।
जब 10 किलो वाला ग्राहक चला गया तब कार सवार ग्राहक ने कौतूहलवश दुकानदार से पूछा - ये जो ग्राहक अभी गये है यह कोई बड़े आदमी है या इनके घर में कोई कार्यक्रम है क्योंकि ये 10 किलो लेकर गए हैं।
दुकानदार ने मुस्कुराते हुए कहा - अरे नहीं भइया, ये एक सरकारी विभाग में चपरासी हैं लेकिन पिछले साल जब से इन्होंने एक विधवा से शादी की है जिसका पति लाखों रुपये उसके लिए छोड़ गया था, तब से उसी के पैसे को खर्च कर रहे हैं.. ये महाशय 10 किलो हर माह ले जाते हैं। "
#अघोरी_बाबा_बनारस_वाले
एक मध्यमवर्गीय किसान का बेटा होने का २ फायदा होता है पहला फायदा तो यह कि आपको एक मुट्ठी चावल की कीमत पता होती है और दूसरा फायदा यह कि आप बिना शादी किए महज १६_१७ साल में जिम्मेदारियों से बंद कर परिवार के लिए बाप बन जाते हैं मेरा मतलब मुखिया बन जाते हैं,
लेकिन ये कैसे निश्चित कर सकते हैं कि हमारी जरूरत है क्या है,और क्या नहीं, लेकिन हम यह निश्चित जरूर कर सकते हैं कि हमारी परिवार की जरूरत है क्या है?
एक किसान का बेटा घर से हजारों किलोमीटर दूर रह तो सकता है लेकिन अपने खेत से कभी दूर नहीं रहता रोड पर चलती हुई गायों में वह
अपनी गैया को महसूस कर लेता है हाईवे किनारे फसलों को देखकर अपने खेतों को याद कर लेता है बड़े-बड़े बार और रेस्टोरेंट में बैठकर वो दारू पी कर फिर बर्गर खाते समय वह माई को याद करके मुस्कुरा तो लेता है , लेकिन पनीर टिक्का और भेज बिरयानी खाते समय उसे दाल भात चोखा चटनी ही याद आती है
स्वतंत्रतापूर्व की बात है। वाराणसी के एक साधक थे, सुदर्शन जी। माता दुर्गा के परम भक्त।
ब्रह्ममुहूर्त का समय था, वे गंगा जी के जल में कमर तक खड़े जाप कर रहे थे। तभी उधर से एक बाहुबली का बजरा आ निकला। उस आदमी ने विनोद में इनसे पूछा कि, "महाराज, गंगा जी के तल में क्या होगा ?"
महाराज ने आव देखा न ताव, कह दिया,गंगा जी में? खरगोश होगा,और क्या!
कहाँ तो वह बाहुबली महाराज जी को श्रद्धावश कुछ दक्षिणा देने की सोच रहा था,कहाँ यह उलटबाँसी सुन कर वो तिनक गया।
महाजाल डालो तीन बार,वो गरजा,"।अगर खरगोश निकले तो महाराज का घर भर दो।न निकले तो इस ऐंठ का इनको फल
चुकाना होगा।" एक दो लोगों ने सुदर्शन जी को इशारा किया कि माफी माँग लें।
सुदर्शन जी माफी माँगने वाली मिट्टी के बने नहीं थे। वो अपने वक्तव्य से टस से मस न हुये।
जाल पड़ा। कुछ न निकला। दूसरी बार पड़ा। कुछ न निकला। सुदर्शन जी के माथे पर शिकन तक न आई।
"अभी तीसरी बार बाकी है, भाई",
एंटी रोमियो स्क्वाड की कार्रवाई के बाद गांव की एक प्रेमिका का अपने प्रेमी को लिखा दिल को छू लेने वाला ख़त--
डियर कालीचरन उर्फ "कल्लू" जी,
अब कहें त कहें का? बस इतना समझिये कि आपकी कल पिटइया के कारन हुई दुर्दशा देख के हमरा करेजा सूख गया है। जब से घर आये हैं मन करता है कि
अपने को मुक्का मार मार के परान दे दें। का कहें ऐ डार्लिंग, जब एंटी रोमियो वाला सिपाही जी आपका बोखार झार रहा था तो हमको अइसा बुझा रहा था कि लाठी आपके पीठ पर नहीं बल्कि हमारे दिल पर गिर रहा है। मन करता था कि सिपाही का मूड़ी मड़ोर के चूल्ही में झोंक दें, लेकिन का करें मजबूर थे।
पता नहीं मुंहफुकउना कउन कॉलेज में रोमियो लोग को थूरने का कोर्स किया था?
अच्छा छोड़िये ई सब। जहां जहां ज्यादा दुखा रहा है वहां ठीक से हरदी-चूना छाप लीजियेगा। अउर कमर में तनी कडुआ तेल में लहसुन पका के मलवा लीजियेगा, अउर ज्यादा चिंता मत करियेगा, काहे कि-
"गाय कौन जे खाये ना?
एक पर्वत श्रृंखला के ऊपर एक रनवे बनाया गया था.....
एक विमान यात्रियों से भरा खड़ा था और..... 👍
पायलट अभी तक नहीं आया था..... 😃
अचानक यात्रियों ने हाथों में सफेद छड़ी लिए दो लोगों को आंखों पर काला चश्मा लगाए अंदर आते देखा.....
जो कॉकपिट में चले गए.. 👍
यात्री आपस में कहने लगे कि दोनों पायलट अंधे हैं !
स्पीकर पर आवाज़ आई.....
मैं पायलट सुरेश जहाज़ का कप्तान बोल रहा हूं..... मेरे साथ कप्तान रमेश मेरे सह-पायलट हैं....
ये सच है कि हम दोनों अंधे हैं लेकिन.......
जहाज़ के उन्नत उपकरण और हमारे व्यापक अनुभव को देखते हुए
चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है.... 👍
हम आसानी से जहाज़ उड़ा सकते हैं,हमने अनगिनत बार जहाज़ उड़ाया है.... 👍
यात्रियों की चिंता थोड़ी कम हुई लेकिन फिर भी सहमें हुए थे ..... 😃
खैर, इंजन स्टार्ट हुआ..... विमान रनवे पर दौड़ने लगा....
दोनों तरफ खाई थी..... 😎
नोट- बैंकर मित्र अन्यथा न लें।🙏🙏
एक बार एक महिला अपना पसंदीदा रूमाल बैंक में कैश
काउन्टर पर भूल जाती है।
कैशियर यह सोचकर रूमाल अपने पास रख लेता है कि जिसका भी होगा वो आकर ले जायेगा,लेकिन गलती से अपने आदत के मुताबिक कैशियर द्वारा उस रुमाल पर 2 - 4 stamps लग जाता है।
कुछ समय पश्चात वह महिला आकर अपना रूमाल
मांगती है तो कैशियर उसे उसका रूमाल वापस दे देता है।
जैसे ही वह महिला अपने रुमाल पर बैंक का stamps देखती है तो गुस्से में तमतमाते हुए कैशियर को बोलती है.." ये आपने क्या बेवकूफी किया, मेरा कीमती रूमाल खराब कर दिया,दिमाग नाम की चीज़ है भी कि
नहीं आपके पास "।
कैशियर को भी उस महिला की बातों को सुनकर क्रोध आ गया औऱ फ़िर उसने जबाब दिया." आपको किसने
कहा था यहां रूमाल छोडकर जाने के लिए, हम नौकर नहीं हैं आपके.सरकार हमें बैंक का काम करने के लिए तनख्वाह देती है नकि आपके रूमाल की रखवाली करने के लिए, चलिए फुटीए यहाँ से जल्दी "