⚜️क्या आपको रावण की बेटी सुवर्णमछा/सुवर्णमत्स्या के बारे में पता है?⚜️
दशानन रावण के 7 पुत्र थे। इनमें मेघनाथ और अक्षय कुमार के बारे में ज्यादातर लोग जानते हैं।
इनके अलावा अतिकाय, त्रिशिरा, प्रहस्थ, नरांतक और देवांतक नाम के 5 अन्य पुत्र भी थे। दुनियाभर में वाल्मिकी रामायण के अलावा भी कई रामायण लिखी गई हैं। ऐसी ही दो रामायण में लंका नरेश रावण की एक बेटी का भी जिक्र है।
श्रीराम, रामभक्त हुनमान और रावण वध से जुड़ी कई कहानियां भारत ही नहीं, भारत के बाहर भी सुनी-सुनाई जाती हैं। वाल्मिकी रामायण के अलावा भी कई देशों में अलग-अलग रामायण लिखी गई हैं। ऐसी ही दो रामायण में रावण की बेटी के बारे में लिखा गया है।
यही नहीं, उनमें रावण की बेटी को हनुमानजी से प्रेम होने का उल्लेख भी किया गया है। हालांकि, वाल्मिकी रामायण या तुलसीदासजी कृत रामचरित मानस में रावण की बेटी का जिक्र नहीं मिलता है।
वाल्मिकी रामायण के बाद दक्षिण भारत ही नहीं कई देशों में रामायण को अपने-अपने तरीके से लिखा गया है। इनमें से ज्यादातर रामायण में श्रीराम के साथ ही रावण को भी काफी महत्व दिया गया है।इसीलिए श्रीलंका, इंडोनेशिया,मलेशिया,माली,थाईलैंड और कंबोडिया में रावण को भी पूरी अहमियत दी जाती है।
रावण की बेटी का उल्लेख भी थाईलैंड की रामकियेन रामायण और कंबोडिया की रामकेर रामायण में किया गया है।
💮क्या कहती हैं रामकियेन रामायण, रामकेर रामायण ?
रामकियेन और रामकेर रामायण के मुताबिक, रावण के तीन पत्नियों से 7 बेटे थे।
इनमें पहली पत्नी मंदोदरी से दो बेटे मेघनाद और अक्षय कुमार थे। वहीं, दूसरी पत्नी धन्यमालिनी से अतिकाय और त्रिशिरा नाम के दो बेटे थे। तीसरी पत्नी से प्रहस्थ, नरांतक और देवांतक नाम के तीन बेटे थे।
दोनों रामायण में बताया गया है कि सात बेटों के अलावा रावण की एक बेटी भी थी, जिसका नाम सुवर्णमछा या सुवर्णमत्स्य था। कहा जाता है कि सुवर्णमत्स्य देखने में बहुत सुंदर थी। उसे स्वर्ण जलपरी भी कहा जाता है।
💮थाईलैंड-कंबोडिया में क्यों पूजी जाती है सुनहरी मछली ?
दशानन रावण की बेटी सुवर्णमत्स्य का शरीर सोने की तरह दमकता था। इसीलिए उनको सुवर्णमछा भी कहा जाता है। इसका शाब्दिक अर्थ होता है, सोने की मछली।
इसीलिए थाईलैंड और कंबोडिया में सुनहरी मछली को ठीक उसी तरह से पूजा जाता है, जैसे चीन में ड्रेगन की पूजा होती है। हालांकि, थाईलैंड में कुछ जगहों पर उन्हें ऐतिहासिक थाई पात्र तोसाकांथ की बेटी भी बताया गया है।
रामायण के बाद दसवीं शताब्दी में कंबन ने रामायण महाकाव्य लिखा, जो दक्षिण में बहुत अधिक लोकप्रिय हुआ। हालांकि, ये स्पष्ट है कि दुनियाभर में लिखी गईं सभी रामायण महर्षि वाल्मिकी की रचना से ही प्रेरित रही हैं।
क्योंकि, सभी रामायण में ना राम बदले, ना स्थान और ना ही उनके उद्देश्य में कोई परिवर्तन हुआ।
💮किस घटना से है सुवर्णमत्स्य और नल-नील का संबंध ?
वाल्मिकी रामायण के थाई और कंबोडियाई सस्करणों के मुताबिक, श्रीराम ने लंका पर विजय अभियान के दौरान समुद्र पार करने के लिए नल..
..और नील को सेतु बनाने का काम सौंपा। श्रीराम के आदेश पर जब नल और नील लंका तक समुद्र पर सेतु बना रहे तो रावण ने अपनी बेटी सुवर्णमत्स्य को ही ये योजना नाकाम करने का काम सौंपा था।
पिता की आज्ञा पाकर सुवर्णमछा ने वानरसेना की ओर से समुद्र में फेंके जाने पत्थरों और चट्टानों को गायब करना शुरू कर दिया। उसने इस काम के लिए समुद्र में रहने वाले अपने पूरे दल की मदद ली।
💮 सुवर्णमछा को कैसे हुआ रामभक्त हनुमानजी से प्रेम ?
रामकियेन और रामकेर रामायण में लिखा गया है कि जब वानरसेना की ओर से डाले जाने वाले पत्थर गायब होने लगे तो हनुमानजी ने समुद्र में उतरकर देखा कि आखिर ये चट्टानें जा कहां रही हैं?
उन्होंने देखा कि पानी के अंदर रहने वाले लोग पत्थर और चट्टानें उठाकर कहीं ले जा रहे हैं। उन्होंने उनका पीछा किया तो देखा कि एक मत्स्य कन्या उनको इस कार्य के लिए निर्देश दे रही है। कथा में कहा गया है कि सुवर्णमछा ने जैसे ही हनुमानजी को देखा, उनसे प्रेम हो गया।
हनुमानजी उसके मन की स्थिति भांप लेते हैं और समुद्रतल पर ले जाकर पूछते हैं कि आप कौन हैं देवी ? वह बताती हैं कि मैं रावण की बेटी हूं ? फिर रावण उन्हें समझाते हैं कि रावण क्या गलत कार्य कर रहा है।
हनुमानजी के समझाने पर सुवर्णमछा सभी चट्टानें लौटा देती हैं और रामसेतु के निर्माण का कार्य पूरा हो पाता है।
थाई रामायण रामकियेन के अनुसार महाबली हनुमान जी के आशीर्वाद से स्वर्णमछा को एक पुत्र की प्राप्ति भी हुई थी जिसका नाम मछानु था। हम उस मछानु को मकरध्वज के नाम से जानते हैं।
When Ulugh Khan of Delhi Sultanate invaded Srirangam to loot and destroy the Ranganatha swamy temple, a group of priests just by themselves managed to hide the idol and the treasures for 48 years. This is a thread on their story of devotion and bravery.
1323 CE: Ulugh Khan attacked Srirangam. When the priests heard the news of him approaching, they immediately took the idol of Ranganatha and jewels on a palanquin and left on foot. Back at the temple, the remaining priests closed the sanctum with bricks.
As Ulugh Khan entered Srirangam, thousands of Shri Vaishnavas stood in his way to the temple. An estimated 15000 Vaishnavas laid down their lives protecting their Prabhu.
The Javari Temple in Khajuraho, India, is a temple, which forms part of the Khajuraho Group of Monuments, a UNESCO World Heritage Site. It was built between c. 975 and 1100 CE.
The temple is dedicated to the deity Shiva. The main idol of the temple is broken and headless.
The temple is located in the eastern area of Khajuraho. It is near to and visible from Vamana Temple, and at a distance of about 200 meters (south) from it.
It has well-proportioned architecture, with a sanctum, vestibule, mandapa and portico, but without pradakshinapatha. It has remable Makara Torana (Capricorn Arch), shikhara (top). It has three bands of carved sculptures on the outer wall.
⚜️पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय।⚜️
⚜️ढाई अक्षर प्रेम के पढ़े सो पंडित होय।⚜️
ये दोहा हमने कईबार सुना है।पर
ये ढाई अक्षर क्या हो सकते हैं?आइए देखें व पढ़ें ये अत्यंत रोचक पंक्तियां:-
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ढाई अक्षर के ब्रह्मा
ढाई अक्षर की सृष्टि।
ढाई अक्षर के विष्णु
और ढाई अक्षर की लक्ष्मी।
ढाई अक्षर के कृष्ण
और ढाई अक्षर की कान्ता।(राधा रानी का दूसरा नाम)
ढाई अक्षर की दुर्गा
और ढाई अक्षर की शक्ति।
ढाई अक्षर की श्रद्धा
और ढाई अक्षर की भक्ति।
ढाई अक्षर का त्याग
और ढाई अक्षर का ध्यान।
ढाई अक्षर की तुष्टि
और ढाई अक्षर की इच्छा।
ढाई अक्षर का धर्म
और ढाई अक्षर का कर्म।
ढाई अक्षर का भाग्य
और ढाई अक्षर की व्यथा।
ढाई अक्षर का ग्रन्थ,
और ढाई अक्षर का सन्त।
ढाई अक्षर का शब्द
और ढाई अक्षर का अर्थ।
ढाई अक्षर का सत्य
और ढाई अक्षर की मिथ्या।
ढाई अक्षर की श्रुति
और ढाई अक्षर की ध्वनि।
ढाई अक्षर की अग्नि
और ढाई अक्षर का कुण्ड।
🌺Odissi, also referred to as Orissi in old literature, is a major ancient Indian classical dance that originated in the temples of Odisha.🌺
This dance was accorded the status of a classical dance form by the Govt of India, only bcoz of its..
..importance that has been maintained from ancient times till date.The immortal dance postures sculpted in the Natya Mandap of Sun temple wall ( Konark) around 800 years back , are still being practiced.
The classical dance form called 'Odissi' is very much known all around the world for its sensuous charm.The trademark highlights of Odissi are in its flexibility of the hip and it is presented with three body twists (better known as Tribhanga) .
This ancient cave temple dedicated to Shiva could date back to 8th-9th century CE is located at the base of Hulukadi betta in Doddaballapur, Karnataka.
The temple faces east and has a beautifully carved doorway, navaranga and shivalinga inside the main garbhagriha in a cave. The Shivalinga could be much ancient than the temple. Outside the temple there is a sculpture of Nandi facing the temple.
At the left side of the temple on a boulder there is a Tamil inscription from Hoysala Vishnuvardhana period which records certain grants.