🔸युद्ध के बाद अगले एक साल तक #महाराणा_प्रताप ने #हल्दीघाटी के आस-पास के गांवों के भूमि के पट्टों को #ताम्रपत्र जारी किए थे जिससे यह साबित होता है कि किसी भी आक्रान्ता का महाराण प्रताप के किसी भी विशाल भू-भाग पर कोई नियंत्रण नहीं हुआ था।
🔸इन ताम्रपत्रों पर #एकलिंगनाथ जी के दीवान महाराणा प्रताप के हस्ताक्षर थे.
उस समय भूमि पट्टे जारी करने का अधिकार केवल Particular Area के राजा के पास ही होता था.
🔸युद्ध के परिणाम से खिन्न अकबर ने मानसिंह और आसफ खाँ की 6 माह के लिये इयोड़ी बंद कर दी थी अर्थात् उनको दरबार में
सम्मिलित होने से वंचित कर दिया था।
🔸हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून,1576 को महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बीच हुआ था।
यह युद्ध पहाड़ी दर्रे से लेकर बनास नदी के तट तक चला था।
युद्ध में महाराणा प्रताप की जीत हुई थी। यह युद्ध 4 घंटे तक ही चला था मगर इसमें दोनों ओर से सैंकडों सैनिक
मारे गए थे।
इस युद्ध में महाराणा प्रताप की ओर से लड़ रहे कई नरेशों की भी वीरगति प्राप्त हुई थी, जिनमें झाला मान, ग्वालियर नरेश राम शाह तंवर भी शामिल थे।
➡इस युद्ध में महाराणा प्रताप का प्रसिद्ध घोड़ा #चेतक भी बुरी तरह से घायल हो गया था और वह वीरगति को प्राप्त हो गया।
🔸युद्ध के पहले चरण में महाराणा प्रताप की जीत हो गई थी। राणा के आरंभिक प्रहार इतने भयानक थे कि मुगल सेना के पाँव उखड गए और वे भाग खड़े हुए।मुगलो के सैनिक पहाड़ी दर्रो से भागकर बनास नदी के तट पर जमा हो गए।लेकिन युद्ध यही समाप्त नहीं हुआ , यहाँ तो युद्ध का केवल एक पड़ाव पार हुआ था।
इसके बाद फिर युद्ध शुरू हुआ।
इस बार मुगल सेना महाराणा प्रताप पर भारी पड़ रही थी क्योकि उनकी संख्या बहुत अधिक थी।
साथ ही उनके पास अस्त्र शस्त्र भी अधिक थे।
इस युद्ध में महाराणा प्रताप की ओर से जहाँ बीस हजार सैनिक लड़ रहे थे तो वही मुगलों की ओर से पचास हजार सैनिक लड़ रहे थे।
इस युद्ध में मेवाड़ की ओर से तोप का प्रयोग नहीं किया गया था जबकि मुगलो के पास ऊँटगाड़ीयों के ऊपर तोप रखकर चलाये जा रहे थे।
🔸माना जाता है, चार घंटे तक चले इस युद्ध में दोनों के 5000 के आसपास सैनिक मारे गए थे।
🔴हल्दीघाटी युद्ध की कुछ मुख्य बातें :-
▪हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून, 1576 को मेवाड़ के राणा (राजा) महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बीच हुआ था।
▪यह युद्ध पहाड़ी दर्रे से लेकर बनास नदी के तट तक चला था।
▪इस युद्ध में अकबर की सेना का नेतृत्व आमेर के राजा मानसिंह कर रहे थे।
▪इस युद्ध में महाराणा प्रताप की
अकबर की ओर से लड़ रहे मानसिंह से सीधी टक्कर हुई।
▪इस युद्ध में सेनाओ की बड़ी असमानता थी , मुगलों की तुलना में प्रताप के पास बहुत कम सैनिक थे।
▪इस युद्ध में मुगल सेना की ओर से अकबर नहीं लड़ा था , युद्ध में मेवाड़ की ओर से जहाँ 20,000 सैनिक लड़ रहे थे तो वही मुगलो की ओर से
50,000 सैनिक लड़ रहे थे।माना जाता है कि मात्र चार घंटे तक चले इस युद्ध में दोनों ओर के 5000 सैनिक मारे गए थे।
▪इस युद्ध में स्वामिभक्त घोड़ा चेतक भी वीरगति को प्राप्त हो गया था।
वृहद्रथ वंश➡वृहद्रथ का पुत्र जरासंध एक शक्तिशाली राजा था।
➡जरासंध की पुत्रियों अस्ति और प्राप्ति का विवाह कंस के साथ हुआ था।जरासंध के मरणोपरांत मगध का शासन -- जरासंध के पुत्र सहदेव को भगवान श्रीकृष्ण ने कार्यभार सौंपा।
विसर्जन (Electric Discharge) के द्वारा उत्पन्न होता है। तड़ित द्वारा अत्यधिक विद्युत-आवेशन होता है। यह दो आवेशित बादलों के बीच होता है। तड़ित चालक एक मोटी तांबे की पट्टी होती है जिसके सिरे पर कई नुकीले
सिंधु सभ्यता महाभारत काल में मौजूद थी। महाभारत में इस जगह को सिन्धु देश कहते थे। इस सिन्धु देश का राजा जयद्रथ था। जयद्रथ महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से लड़ा था।
(1/27)
जयद्रथ सेे पूर्व सिंधु देश के राजा थे वृद्धक्षत्र, उनका ही पुत्र था जयद्रथ।वृद्धक्षत्र को यह पुत्र कठिन तप करने के बाद हुआ था।जयद्रथ का जब जन्म हुआ तब उस समय यह भविष्यवाणी हुई कि,'यह राजकुमार यशस्वी होगा,पर एक श्रेष्ठ क्षत्रिय के हाथों सिर काटे जाने से इसकी मृत्यु होगी।'
(2/27)
यह बात सुनकर वृद्धक्षत्र काफी दुःखी हो गए । उन्होंने तत्काल श्राप दिया,'जो भी मेरे पुत्र का वध करेगा तो सिर्फ सिर काटने पर ही मृत्यु होगी और जैसे ही जयद्रथ का सिर धरती पर गिरेगा उस व्यक्ति के सिर के उसी क्षण सौ टुकड़े हो जाएंगे,जिस व्यक्ति के हाथ से सिर धरती पर गिरेगा।'
(3/27)
जब रावण ने देखा कि हमारी पराजय निश्चित है तो उसने 1000 राक्षसों को पाताल से बुलाकर रणभूमि में भेजने का आदेश दिया।ये ऐसे थे जिनको काल भी नहीं खा सकता था क्योंकि पातालवासियों की जान उनमें होती ही नहीं है ।
विभीषण के गुप्तचरों से
समाचार मिलने पर श्री राम को चिन्ता हुई कि हम लोग इनसे कब तक लड़ेंगे ? सीता का उद्धार और विभीषण का राज तिलक कैसे होगा ? क्योंकि युद्ध की समाप्ति असंभव है।
श्रीराम कि इस स्थिति से वानरवाहिनी के साथ कपिराज सुग्रीव भी विचलित हो गए कि अब क्या होगा ? हम अनंत काल तक युद्ध तो
कर सकते हैं पर विजयश्री का वरण नहीं ! पूर्वोक्त दोनों कार्य असंभव हैं।
अंजनानंदन हनुमान जी आकर वानर वाहिनी के साथ श्रीराम को चिंतित देखकर बोले–'प्रभु ! क्या बात है ?'
श्रीराम के संकेत से विभीषण जी ने सारी बात बतलाई।अब विजय असंभव है।
पवन पुत्र ने कहा–