ज्ञात काल (ईसा के 600 वर्ष पूर्व) से जो प्रामाणिक जानकारी मिलता है, वह इस प्रकार है|
ज्ञात काल से लेकर पालवंश तक (दसमी सताब्दी) तक लगभग जितने भी शासक हुए, सभी ने #सम्यक_संस्कृति (बुद्ध की संस्कृति) वाली व्यवस्था का
अनुयाई होने का अभिलेखिये वर्णन किया है|
भगवान बुद्ध के अलावा कुछ और दार्शनिको का मिलना हुआ है, जो इस प्रकार है:- मोखली घोसाल, निगण्ठ नाथ पुत्त, संजय बेलीपुत्त, अजित केसकम्बली, पूरण कस्सप, चारवाक ये सब जो दार्शनिक ज्ञात काल मे थे, उनका मत और संप्रदाय आज कही नही दिखता है| फिर आज
#शैव_सम्प्रदाय का पहला उदय, जिसका दार्शनिक शंकर (आदि शंकर का जन्म 788 ईस्वी) यानी आज वाली व्यवस्था का नौंवी सताब्दी बाद पहला नामकरण :- #शिव_लिंग_सम्प्रदाय
#वैष्णव_सम्प्रदाय का उदय, जिसका दार्शनिक रामानुज (रामानुजाचार्य का जन्म
मुगल काल मे सबो ने मिलकर #वर्णागत_सम्प्रदाय (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र) का नामकरण किया, जिसका लिखित
प्रमाण अंग्रेजी काल का पहली #जनगणना 1872 ईस्वी का है, जो वर्णागत सम्प्रदाय आधारित है|
इसी बीच मूल शंकर तिवारी उर्फ दयानंद सरस्वती द्वारा वेद की प्रमुखता बताते हुए #आर्य_समाज का नामकरण|
इसके काउंटर मे पौराणिक मतो (पुराण) के अनुयायियो द्वारा #सनातनी_समाज का नामकरण|
अंग्रेजी सरकार
के बाद मुस्लिम लीग से मजबूत बनने हेतु मदन मोहन मालवीय द्वारा 1915 ईस्वी मे #हिन्दू_महासभा का नामकरण|
उसके पूर्व हिन्दू नाम एक झंड था|
भ्रमवंशियो का सबसे बडा हथियार हवा की रुख को समझते हुए अपनाई गयी नामकरण होती है| वह अपने बेहतरी के लिए जब जैसा जरूरत समझता है, वैसा नामकरण का रुख
कर लेता है| जैसे नदी की घास| पानी की धार अनुसार घास अपना स्थिति बदल लेता है और पानी जब खत्म हो जाती है तो अकड कर खडा हो जाता है|
इसी को कहते है कि अपना कोई नाम नही है फिर भी झूठा #झंड है|👈
किसी के घमंड को ठेस पहुँचा हो तो फिर ज्ञात काल से लेकर अभी तक किसी एक शासक का #अभिलेख
बताओ, जिसमे उसका हिन्दू शासक होने की पुष्टि होता हो?
#झंड सम्प्रदायवादियो ने अपने आप को मजबूत करने हेतु #अखाडा का निर्माण किया था| विश्व मे जितना भी सम्प्रदाय (फारसी मे मजहब, अंग्रेजी मे रिलीजन, और हिंदी मे सम्प्रदाय) है, उन सभी ने अपने सम्प्रदाय का विस्तारीकरण व मजबूती के लिए, #सैन्य_दस्ता का निर्माण किया था| ऐसे सैन्य दस्ता का
कार्य सिर्फ #मार_काट और ऐशो-आराम की जिंदगी व्यतीत करने तक ही सीमित था| #धार्मिक (शील, समाधि और प्रज्ञा जैसी गुण स्वभाव लक्षण) प्रवृति तो इनके जीवन मे कहीं प्रवेश किया नही था| इन संप्रदायो के सैन्य दस्ता का नाम #अखाडा, (मजहब वालो का #खलीफा, रिलीजन वालो का #पोप) होता था| भारत मे
तुलसीदास रामचरितमानस के बालकाण्ड मे लक्ष्मण की शादी उर्मिला के साथ होना बताते है| उसी मंडप मे जहां राम और सीता की शादी हुई| लेकिन अरण्यकांड मे जब शूर्पणखा राम से शादी की बात करती है तो तुलसीदास राम से ये कहलवाते है कि हे शूर्पणखा, मेरे भाई लक्ष्मण कुमार{अविवाहित} है, मेरे पास नही
उनके पास जाओ| भगवान राम से ये अनीति करवाने की तुलसीदास को क्या आवश्यकता थी? कविता लिखनी थी, संभलकर लिखते| रामकथा तो पहले से मौजूद थी| #तुलसीदास_पोलखोल @Profdilipmandal
ब्राह्मण राम को मर्यादापुरुषोत्तम कहते है?
वही दूसरी तरफ राम से झूँठ बुलवाते है?
क्या ब्राह्मणो का यह सडयंत्र समझने के लिए तैयार है भक्त?
👉रामचरितमानस की आलोचना पर “दूसरे धर्म के ग्रंथ की आलोचना काहे नही करते” के कुछ जबाब: 👇
1- हम तो तुलसीदास को कह रहे है, तुम तुलसी से किस रिश्ते से अपने गान मे दर्द महसूस कर रहे हो?
2- हिंदुओ की 97% आबादी को गाली देती तुलसी कि किताब हिंदुओ का ग्रंथ है ये कैसे तय किया तुमने?
3- ब्राह्मण ग्रंथो को बहुजनो की धार्मिक किताब कहते हो हिम्मत है तो कभी कुरान और बाइबिल को बहुजनो की किताब काहे नही कहते?
4- ब्राह्मण ग्रंथो मे बहुजनो और महिलाओ के खिलाफ ही काहे लिखते हो हिम्मत है तो कभी दूसरे धर्म वालो के खिलाफ अपने धर्म ग्रंथो मे काहे नही लिखे?
5- ब्राह्मण शास्त्रो के आलोचको को ही काहे “दूसरे धर्मो के खिलाफ भी बोलो” कहते हो, हिम्मत है तो कभी कुरान बाइबिल के आलोचको को “ब्राह्मण ग्रंथो की आलोचना” के लिये क्यों नही कहते?
6. बहुजन समाज और महिलाओ को गाली देती ये टट्टी किताबे हिंदुओ का धर्मशास्त्र है ये तुमने अकेले कैसे तय
माफ करा तुकोबा
तुकोबा तुम्हाला संप्रदायात यांनी राहूच दिले नाही
खरे तुकोबा वारकऱ्यांना पाहूच दिले नाही
कीर्तनात सांगून ज्यांनी तुम्हाला वैकुंठाला नेले
त्यांनी किर्तन सोडून कीर्तनाचे धंदे चालू केले
तुमचे नाव चालते यांना पण विचार चालत नाही
तुमच्या बदनामीवर कुठला कीर्तनकार बोलतनाही
वारकरी संप्रदाय यांनी आता धर्माला बांधला आहे
भोळ्या भाविकांचा असाच यांनी खेळ मांडला आहे
तुम्ही असता तर हातून यांच्या वीणा खेचला असता
तुमच्या विद्रोहाने बिचारा वारकरी तर वाचला असता
तुम्ही असता तर वारकऱ्यांची कमाल झाली असती
तुम्हाला बोलण्याची बागेश्र्वराची मजाल झाली नसती
माफ करा तुकोबा भाविक आता लाचार झाले आहे
कारण हजारो मनुवादी कीर्तनकार झाले आहे
अंबा या अंबिका देवी वास्तव मे बुद्धमाता महामाया देवी है|
उदक मतलब पानी| "उदे ग अंबे उदे" मतलब "उदक पानी के साथ हम अंबामाता तुम्हारा उदघोष करते है|"
बुद्धमाता महामाया की मुर्ति मे दो हाथी महामाया के सिर पर पानी डालते हुए भरहुत, सांची, रत्नागिरी बौद्ध स्तुपो के शिल्पो मे दिखाए
गए है| यह सभी शिल्प सम्राट अशोक कालीन प्राचीन शिल्प है| महामाया को ही बाद मे महालक्ष्मी और अंबा माता कहा गया है| छत्तीसगढ मे अंबिकापुर शहर मे अंबिका देवी का मंदिर है, जिसे महामाया का मंदिर भी कहा जाता है|
उदक अर्थात पानी और महामाया का घना संबंध बौद्ध शिल्पो मे पानी के साथ दिखाया
गया है, इसलिए अंबा माता की पुजा मे "उदे ग अंबे उदे" का जयघोष लगाया जाता है| इससे स्पष्ट होता है कि, अंबा माता और बुद्धमाता महामाया एक ही है|
अर्थात, अंबा या अंबिका देवी वास्तव मे बुद्ध की माता महामाया देवी है|