तुलसीदास रामचरितमानस के बालकाण्ड मे लक्ष्मण की शादी उर्मिला के साथ होना बताते है| उसी मंडप मे जहां राम और सीता की शादी हुई| लेकिन अरण्यकांड मे जब शूर्पणखा राम से शादी की बात करती है तो तुलसीदास राम से ये कहलवाते है कि हे शूर्पणखा, मेरे भाई लक्ष्मण कुमार{अविवाहित} है, मेरे पास नही
उनके पास जाओ| भगवान राम से ये अनीति करवाने की तुलसीदास को क्या आवश्यकता थी? कविता लिखनी थी, संभलकर लिखते| रामकथा तो पहले से मौजूद थी| #तुलसीदास_पोलखोल @Profdilipmandal
ब्राह्मण राम को मर्यादापुरुषोत्तम कहते है?
वही दूसरी तरफ राम से झूँठ बुलवाते है?
क्या ब्राह्मणो का यह सडयंत्र समझने के लिए तैयार है भक्त?
👉आंबेडकर नाम से इतनी एलर्जी ब्राह्मणो को क्यों थी?
1958 को ही मराठवाडा यूनिवर्सिटी को आंबेडकर नाम देने का प्रस्ताव दिया गया था| ऐसी जानकारी अब मिल रही है| बॉम्बे सरकार द्वारा 9 सदस्यो की एक कमिटी बनाई गई थी| जिसके चेयरमैन जस्टिस एस.एन.पालनिटकर थे| और सन्मानिय सदस्यो मे मिलिंद
कॉलेज के प्रिंसिपल एम.बी.चिटणीस थे और नागपुर के वी.बी.कोलते भी थे|
कमिटी ने सरकार को जो नाम सजेस्ट किये थे वे इस तरह थे - मराठवाडा, औरंगाबाद, पैठण, प्रतिष्ठान, दौलताबाद, देवगिरी, अजंता, शालिवाहन, शिवाजी, आंबेडकर इत्यादी|
ऑथरिटी सरकार के पास थी सजेशन देने का काम समिति ने किया|
भौगोलिक दृष्टि से वह प्रांत मराठवाडा था| निजाम से मराठवाडा 17सितंबर1948 को आजाद हुआ था| इसलिए मराठवाडा इस भावना को देखते हुए 10 साल बीत चुके थे इसलिए मराठवाडा वाला मुदा गौण माना जाना चाहिए था|
देवगिरी मे बौद्ध गुफा थी जो मौर्य काल की मानी जाती है| इसलिए देवगिरी, अजंता, शालिवाहन,
ब्राह्मण लोग विदेशी है|👈
जानेमाने इतिहासकार प्रो.दामोदर धर्मानंद कोसंबी इनके "Culture and civilization of ancient India" नामक किताब का मराठी संस्करण पढने को मिला| दामोदर कोसंबी ने खुले तौर पर यह बात स्वीकार की है कि ब्राह्मण विदेशी लोग है, वे घोडो की सवारी करते थे लेकिन वे लोग
अत्यंत असभ्य लोग थे| साथ ही वे लोग जंगली लोग थे| इसके विरुद्ध सिंधु जन पनि अत्यंत विकसित जमात थी, पनि या वर्तमान बहुजन समाज ही भारत का मूलनिवासी समाज है| प्राचीन पुरातात्विक साधन बहुजनो के विकास और सभ्यता को सिद्ध करते है और ब्राह्मण जंगली, असभ्य थे यही सिद्ध करते है| ब्राह्मण
गोमांस भक्षी थे इसलिए पनि लोगो के साथ ब्राह्मणो ने गाय को लेकर संघर्ष किया| पनि कृषक तथा व्यापारी जमात थी| पनि लोगो के पास सभ्यता, भाषा और संस्कार थे क्योंकि वह कृषक समाज था| ब्राह्मणो ने पनियो के ही प्रसिद्ध देवताओ को स्वीकार किया है और उनका ब्राम्हणीकरण किया है| हवा, पानी, सूरज
RSS ने किराए के बंजारा लोगो को आगे कर बामसेफ का विरोध करने के काम पर लगाया है| ब्राम्हण लोग इन लोगो को आगे कर सेवालाल महाराज का भी ब्राम्हणीकरण कर रहे है| धरमसिंह राठोड जी को सवाल है कि आरएसएस जिन्हे अपना महापुरुष मानते है वे स्वामी दयानंद सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश मे पृष्ठ 80
पर हिन्दू यह मुगलो द्वारा दी हुई गाली बताई है| इसलिए हिन्दू का अर्थ उन्होने यह बताया है - दुष्ट, नीच, कपटी, छली और गुलाम बताया है| इस तरह से आरएसएस के बहकावे मे आकर वे लोग सेवलाल महाराज के स्वाभिमानी आंदोलन को भी खत्म करना चाहते है| दूसरा षड्यंत्र यह है कि वे लोग 11करोड घुमन्तु
जनजातियो से बंजारा को तोडना चाहते है|आरएसएस यह विदेशी ब्राम्हणो का संगठन है| आरएसएस को सबसे ज्यादा डर बामसेफ संगठन से हो रहा है|
मोहन भागवत डरा हुआ है यह बात तो सप्रमाण सिध्द हुई|
*रामचरितमानस का भौगोलिक क्षेत्र यूपी के दसेक जिले यानी अवध है| उसके बाहर हर किसी को बताना पडता है कि जो लिखा है, उसका मतलब क्या है|*
*1920 के दशक मे नागरी प्रचारिणी सभा, बनारस और गीता प्रेस, गोरखपुर ने सस्ते मूल्य की किताबे छापकर उसे उत्तर भारत के बाकी हिस्सो मे पहुँचाया|*
*हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान के प्रोजेक्ट का ये हिस्सा था|*
*1960 का दशक आने तक रामचंद्र शुक्ल, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, विश्वनाथ त्रिपाठी और नामवर सिंह आदि के उद्यम से रामचरितमानस के अंश स्कूल और कॉलेज के सिलेबल मे आ गए|*
*ये प्रगतिशील लोग थे और तुलसीदास को प्रगतिशील बता रहे
थे| फिर रही सही कसर 1980 के दशक के अंत मे दूरदर्शन पर रामायण सीरियल से हो गई|*
*ध्यान रहे👈👉ये कांग्रेस का दौर था नेहरूवादी सेक्युलरिज्म चल रहा था| बीजेपी सीन मे आई भी नही थी| RSS की औकात नही थी कि तुलसी या किसी को भी सिलेबल मे लाकर करोडो बच्चो को कंठस्थ याद करा दे| नामवर सिंह
तुलसीदास ने राम के मुँह से अपनी जाति की बड़ाई करवाई है, उन्हे भूदेव अर्थात् धरती का भगवान कहा है ताकि पब्लिक मान ले|
आप समझ रहे है न? ये पेज पूरा पढ़िए| वर्चस्ववाद को धर्म के माध्यम से कैसे स्थापित किया गया, ये आप समझ पाएँगे|
“सापत ताड़त परुष कहंता। बिप्र पूज्य अस गावहिं संता॥
शाप देता हुआ, मारता हुआ और कठोर वचन कहता हुआ भी ब्राह्मण पूजनीय है, ऐसा संत कहते है| शील और गुण से हीन भी ब्राह्मण पूजनीय है| और गुण गणो से युक्त और ज्ञान मे निपुण भी शूद्र पूजनीय नही है|1|- अरण्यकांड,
#तुलसीदास_पोलखोल
रामचरितमानस तुलसीदास ने 15वीं सदी मे लिखी है और राम कब पैदा हुए? रामचरितमानस यह कवितावली है| जिसे राम पर आधारित कहानी के रूप मे वर्णन किया गया है| इस कथा/कहानी को बाबाओ एवम कथा वाचको ने भोले भाले लोगो को धर्म एवम आस्था मे फंसाने एवम उनके खून-पसीने की कमाई को
जब OBC पिछडो के लिए कोई बोलने वाले नही थे तो बाबासाहब डॉ.आंबेडकर ने मुकनायक नाम से अखबार निकाला था| इस अखबार के 103 साल होने के अवसर पर यूट्यूब चैनल--आर्टिकल-19 के डायरेक्टर एवं संपादक मा.नवीन कुमार ने जो मूलनिवासी समाज को सचेत करने के लिए कही है उस पर हर
बुद्धिजीवी को चिंतन करके जागने की जरूरत है और अपनी सामाजिक जिम्मेदारी का निर्वहन करना चाहिए|
उन्होने इस अवसर पर ऐसे लोगो से भी दूर रहने की सलाह दी है जो नाम तो मूलनिवासी महापुरुषो का लेते है लेकिन दुश्मनो के साथ खडे होते है, दुश्मनो को मजबूत बनाने के लिए समाज को गुमराह करते है