#झंड सम्प्रदायवादियो ने अपने आप को मजबूत करने हेतु #अखाडा का निर्माण किया था| विश्व मे जितना भी सम्प्रदाय (फारसी मे मजहब, अंग्रेजी मे रिलीजन, और हिंदी मे सम्प्रदाय) है, उन सभी ने अपने सम्प्रदाय का विस्तारीकरण व मजबूती के लिए, #सैन्य_दस्ता का निर्माण किया था| ऐसे सैन्य दस्ता का
कार्य सिर्फ #मार_काट और ऐशो-आराम की जिंदगी व्यतीत करने तक ही सीमित था| #धार्मिक (शील, समाधि और प्रज्ञा जैसी गुण स्वभाव लक्षण) प्रवृति तो इनके जीवन मे कहीं प्रवेश किया नही था| इन संप्रदायो के सैन्य दस्ता का नाम #अखाडा, (मजहब वालो का #खलीफा, रिलीजन वालो का #पोप) होता था| भारत मे
विस्तार करने हेतु #निर्वाणी_अखाडा (लगभग #चौदहवी सताब्दी) का निर्माण किया| जिसका पहला कार्य लुटेरा #दसनामी_अखाडा से अपना बचाव करना और दूसरा कार्य अपने मत दर्शन विष्टाद्वैत मत का फैलाव हेतु बौद्ध मठ पर कब्जा करना| अब #बौद्ध मठो पर #दसनामी_अखाडा के साथ #निर्वाणी_अखाडा का भी आक्रमण
होने लगा| #बौद्ध मठो पर कब्जा करते समय निर्वाणी अखाडा और दसनामी अखाडा दोनो का आपसी टकराव भी होता था| कारण एक कहता था कि यह बौद्ध विहार मेरे हिस्से मे आए तो दूसरा कहता था कि नही यह बौद्ध मठ मेरे हिस्से मे आएगा| आज बद्रीनाथ, केदारनाथ, पसुपतिनाथ, जगरनाथ, सारनाथ, सोमनाथ, द्वारिकानाथ
जैसा बौद्ध मठ इन्ही दोनो संप्रदायो के कब्जे मे है| यह टकराव आज तक बरकरार है| आज भी कुम्भ मेला लगता है तो इन दोनो सम्प्रदायवादियो की टकराहट, शाही स्नान हेतु, पहले मैं स्नान करूगां तो पहले मैं स्नान करूगां से शुरू होते हुए दर्शन और सिद्धांत की छीछा लेदर तक पहुँच जाती है| जिस
सम्प्रदाय का जन्म (शैव और वैष्णव) ही मार-काट, हत्या पर हुआ है, उसका वर्तमान एकीकृत सम्प्रदाय (हिन्दू) मार-काट से अक्षुता कैसे रह सकता है| आज भी वर्तमान सम्प्रदाय का सैन्य दस्ता बजरंग दल और दुर्गा वाहिनी है, जहां द्वेष, हत्या की शिक्षा दी जाती है| यानी #जैसा_गुरु_वैसा_चेला इसी को
गजानन भास्कर मेहंदले और ब.मो.पुरंदरे का एक ही उद्देश्य है और वह है छत्रपति शिवाजी महाराज को ब्राह्मण अनुकूल दिखाना और मराठाओ का ब्राह्मणीकरण करना|*
*जो शाहू महाराज थे उनकी बराबरी कोई नही कर सकता| शाहू महाराज ब्राह्मणो के सामने कभी झुके नही| शाहू महाराज ने दादू कोंडदेव और रामदास
को गुरु नही माना और मेहंदले-पुरंदरे जैसे लोग रामदास, दादू कोंडदेव को जोर जबरदस्ती से शिवाजी महाराज के गुरु के तौर पर थोपना चाहते है और कुछ लोग उनकी झांसे मे आना चाहते है| पिछली बार संभाजी महाराज ने RSS के धर्मवीर शब्द का समर्थन किया था और अब मेहंदले को जाकर मिलना क्या RSS के
इशारे पर है? भाजपा द्वारा राज्यसभा या लोकसभा की सीट हासिल करने के लिए तो नही है? शाहू छत्रपति महाराज ने खुले आम यह बात कही थी कि, "रामदास या दादोजी कोंडदेव यह छत्रपति शिवाजी महाराज के गुरु थे यह गप ब्राह्मणो की है| उस बाबत इतिहास मे कही पर भी ठोस सबूत नही मिलते" (संदर्भ:- भटमान्य
👉आंबेडकर नाम से इतनी एलर्जी ब्राह्मणो को क्यों थी?
1958 को ही मराठवाडा यूनिवर्सिटी को आंबेडकर नाम देने का प्रस्ताव दिया गया था| ऐसी जानकारी अब मिल रही है| बॉम्बे सरकार द्वारा 9 सदस्यो की एक कमिटी बनाई गई थी| जिसके चेयरमैन जस्टिस एस.एन.पालनिटकर थे| और सन्मानिय सदस्यो मे मिलिंद
कॉलेज के प्रिंसिपल एम.बी.चिटणीस थे और नागपुर के वी.बी.कोलते भी थे|
कमिटी ने सरकार को जो नाम सजेस्ट किये थे वे इस तरह थे - मराठवाडा, औरंगाबाद, पैठण, प्रतिष्ठान, दौलताबाद, देवगिरी, अजंता, शालिवाहन, शिवाजी, आंबेडकर इत्यादी|
ऑथरिटी सरकार के पास थी सजेशन देने का काम समिति ने किया|
भौगोलिक दृष्टि से वह प्रांत मराठवाडा था| निजाम से मराठवाडा 17सितंबर1948 को आजाद हुआ था| इसलिए मराठवाडा इस भावना को देखते हुए 10 साल बीत चुके थे इसलिए मराठवाडा वाला मुदा गौण माना जाना चाहिए था|
देवगिरी मे बौद्ध गुफा थी जो मौर्य काल की मानी जाती है| इसलिए देवगिरी, अजंता, शालिवाहन,
ब्राह्मण लोग विदेशी है|👈
जानेमाने इतिहासकार प्रो.दामोदर धर्मानंद कोसंबी इनके "Culture and civilization of ancient India" नामक किताब का मराठी संस्करण पढने को मिला| दामोदर कोसंबी ने खुले तौर पर यह बात स्वीकार की है कि ब्राह्मण विदेशी लोग है, वे घोडो की सवारी करते थे लेकिन वे लोग
अत्यंत असभ्य लोग थे| साथ ही वे लोग जंगली लोग थे| इसके विरुद्ध सिंधु जन पनि अत्यंत विकसित जमात थी, पनि या वर्तमान बहुजन समाज ही भारत का मूलनिवासी समाज है| प्राचीन पुरातात्विक साधन बहुजनो के विकास और सभ्यता को सिद्ध करते है और ब्राह्मण जंगली, असभ्य थे यही सिद्ध करते है| ब्राह्मण
गोमांस भक्षी थे इसलिए पनि लोगो के साथ ब्राह्मणो ने गाय को लेकर संघर्ष किया| पनि कृषक तथा व्यापारी जमात थी| पनि लोगो के पास सभ्यता, भाषा और संस्कार थे क्योंकि वह कृषक समाज था| ब्राह्मणो ने पनियो के ही प्रसिद्ध देवताओ को स्वीकार किया है और उनका ब्राम्हणीकरण किया है| हवा, पानी, सूरज
RSS ने किराए के बंजारा लोगो को आगे कर बामसेफ का विरोध करने के काम पर लगाया है| ब्राम्हण लोग इन लोगो को आगे कर सेवालाल महाराज का भी ब्राम्हणीकरण कर रहे है| धरमसिंह राठोड जी को सवाल है कि आरएसएस जिन्हे अपना महापुरुष मानते है वे स्वामी दयानंद सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश मे पृष्ठ 80
पर हिन्दू यह मुगलो द्वारा दी हुई गाली बताई है| इसलिए हिन्दू का अर्थ उन्होने यह बताया है - दुष्ट, नीच, कपटी, छली और गुलाम बताया है| इस तरह से आरएसएस के बहकावे मे आकर वे लोग सेवलाल महाराज के स्वाभिमानी आंदोलन को भी खत्म करना चाहते है| दूसरा षड्यंत्र यह है कि वे लोग 11करोड घुमन्तु
जनजातियो से बंजारा को तोडना चाहते है|आरएसएस यह विदेशी ब्राम्हणो का संगठन है| आरएसएस को सबसे ज्यादा डर बामसेफ संगठन से हो रहा है|
मोहन भागवत डरा हुआ है यह बात तो सप्रमाण सिध्द हुई|
*रामचरितमानस का भौगोलिक क्षेत्र यूपी के दसेक जिले यानी अवध है| उसके बाहर हर किसी को बताना पडता है कि जो लिखा है, उसका मतलब क्या है|*
*1920 के दशक मे नागरी प्रचारिणी सभा, बनारस और गीता प्रेस, गोरखपुर ने सस्ते मूल्य की किताबे छापकर उसे उत्तर भारत के बाकी हिस्सो मे पहुँचाया|*
*हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान के प्रोजेक्ट का ये हिस्सा था|*
*1960 का दशक आने तक रामचंद्र शुक्ल, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, विश्वनाथ त्रिपाठी और नामवर सिंह आदि के उद्यम से रामचरितमानस के अंश स्कूल और कॉलेज के सिलेबल मे आ गए|*
*ये प्रगतिशील लोग थे और तुलसीदास को प्रगतिशील बता रहे
थे| फिर रही सही कसर 1980 के दशक के अंत मे दूरदर्शन पर रामायण सीरियल से हो गई|*
*ध्यान रहे👈👉ये कांग्रेस का दौर था नेहरूवादी सेक्युलरिज्म चल रहा था| बीजेपी सीन मे आई भी नही थी| RSS की औकात नही थी कि तुलसी या किसी को भी सिलेबल मे लाकर करोडो बच्चो को कंठस्थ याद करा दे| नामवर सिंह
तुलसीदास ने राम के मुँह से अपनी जाति की बड़ाई करवाई है, उन्हे भूदेव अर्थात् धरती का भगवान कहा है ताकि पब्लिक मान ले|
आप समझ रहे है न? ये पेज पूरा पढ़िए| वर्चस्ववाद को धर्म के माध्यम से कैसे स्थापित किया गया, ये आप समझ पाएँगे|
“सापत ताड़त परुष कहंता। बिप्र पूज्य अस गावहिं संता॥
शाप देता हुआ, मारता हुआ और कठोर वचन कहता हुआ भी ब्राह्मण पूजनीय है, ऐसा संत कहते है| शील और गुण से हीन भी ब्राह्मण पूजनीय है| और गुण गणो से युक्त और ज्ञान मे निपुण भी शूद्र पूजनीय नही है|1|- अरण्यकांड,
#तुलसीदास_पोलखोल
रामचरितमानस तुलसीदास ने 15वीं सदी मे लिखी है और राम कब पैदा हुए? रामचरितमानस यह कवितावली है| जिसे राम पर आधारित कहानी के रूप मे वर्णन किया गया है| इस कथा/कहानी को बाबाओ एवम कथा वाचको ने भोले भाले लोगो को धर्म एवम आस्था मे फंसाने एवम उनके खून-पसीने की कमाई को