#Thread
मित्रो आज!! महाशिवरात्रि के शुभावसर पर पढ़े माता पार्वती ओर भूतभावन भोलेनाथ के विवाह की कथा!!!!!!

🙏🔱 हर हर महादेव 🙏🔱
#Mahashivratri2023
#महा_शिवरात्रि ❣️❣️
[1/N] Image
तुलसीदास जी कहते हैं शिव-पार्वती के विवाह की इस कथा को जो स्त्री-पुरुष कहेंगे और गाएँगे, वे कल्याण के कार्यों और विवाहादि मंगलों में सदा सुख पाएँगे।

यह उमा संभु बिबाहु जे नर नारि कहहिं जे गावहीं। कल्यान काज बिबाह मंगल सर्बदा सुखु पावहीं॥

[2/N] Image
सब देवता अपने भाँति-भाँति के वाहन और विमान सजाने लगे, कल्याणप्रद मंगल शकुन होने लगे और अप्सराएँ गाने लगीं॥ सभी अपना अपना श्रृंगार कर रहे हैं लेकिन भगवान शिव का श्रृंगार अब तक किसी ने नही किया है।

[3/N]
सिवहि संभु गन करहिं सिंगारा। जटा मुकुट अहि मौरु सँवारा॥ कुंडल कंकन पहिरे ब्याला। तन बिभूति पट केहरि छाला॥

शिवजी के गण शिवजी का श्रृंगार करने लगे।
जटाओं का मुकुट बनाकर उस पर साँपों का मौर सजाया गया। शिवजी ने साँपों के ही कुंडल और कंकण पहने,

[4/N]
शरीर पर विभूति रमायी और वस्त्र की जगह बाघम्बर लपेट लिया॥
शिवजी के सुंदर मस्तक पर चन्द्रमा, सिर पर गंगाजी, तीन नेत्र, साँपों का जनेऊ, गले में विष और छाती पर नरमुण्डों की माला थी।

भोले नाथ का उबटन किया गया है। लेकिन हल्दी से नहीं, जले हुए मुर्दों की राख से।

[5/N]
क्योंकि भोले नाथ को मुर्दों से भी प्यार है। एक बार भोले बाबा निकल रहे थे किसी की शव यात्रा जा रही थी। लोग कहते हुए जा रहे थे राम नाम सत्य है।

भोले नाथ ने सुना की ये सब राम का नाम लेते हुए जा रहे हैं। ये सभी मेरी पार्टी के लोग हैं। क्योंकि मुझे राम नाम से प्यार है।

[6/N]
लेकिन जैसे ही लोगों ने उस मुर्दे को जलाया तो लोगों ने राम नाम सत्य कहना बंद कर दिया। और सभी वहां से चले गए।

भोले नाथ ने कहा अरे! इन सबने राम नाम सत्य कहना बंद कर दिया इनसे अच्छा तो ये मुर्दा है जिसने राम नाम सुनकर यहाँ राम नाम की समाधी लगा दी। मुझे तो इनकी चिता से और

[7/N]
इनकी भस्म से ही प्रेम है। इसलिए मैं इनकी भस्म को अपने शरीर पर धारण करूँगा।

एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में डमरू सुशोभित है। शिवजी बैल पर चढ़कर चले। बाजे बज रहे हैं। शिवजी को देखकर देवांगनाएँ मुस्कुरा रही हैं (और कहती हैं कि) इस वर के योग्य दुलहिन संसार में नहीं मिलेगी॥
[8/N]
विष्णु और ब्रह्मा आदि देवताओं के समूह अपने-अपने वाहनों (सवारियों) पर चढ़कर बारात में चले। तब विष्णु भगवान ने सब दिक्पालों को बुलाकर हँसकर ऐसा कहा- सब लोग अपने-अपने दल समेत अलग-अलग होकर चलो॥ हे भाई! हम लोगों की यह बारात वर के योग्य नहीं है।

[9/N]
क्या पराए नगर में जाकर हँसी कराओगे? विष्णु भगवान की बात सुनकर देवता मुस्कुराए और वे अपनी-अपनी सेना सहित अलग हो गए॥

महादेवजी (यह देखकर) मन-ही-मन मुस्कुराते हैं कि विष्णु भगवान के व्यंग्य-वचन (दिल्लगी) नहीं छूटते! अपने प्यारे (विष्णु भगवान) के इन अति प्रिय वचनों को सुनकर

[10/N]
शिवजी ने भी भृंगी को भेजकर अपने सब गणों को बुलवा लिया॥ शिवजी की आज्ञा सुनते ही सब चले आए और उन्होंने स्वामी के चरण कमलों में सिर नवाया। तरह-तरह की सवारियों और तरह-तरह के वेष वाले अपने समाज को देखकर शिवजी हँसे॥

शिवजी की बारात कैसी है जरा देखिये- कोई बिना मुख का है,
[11/N]
किसी के बहुत से मुख हैं, कोई बिना हाथ-पैर का है तो किसी के कई हाथ-पैर हैं। किसी के बहुत आँखें हैं तो किसी के एक भी आँख नहीं है। कोई बहुत मोटा-ताजा है, तो कोई बहुत ही दुबला-पतला है॥

कोई बहुत दुबला, कोई बहुत मोटा, कोई पवित्र और कोई अपवित्र वेष धारण किए हुए है।

[12/N]
भयंकर गहने पहने हाथ में कपाल लिए हैं और सब के सब शरीर में ताजा खून लपेटे हुए हैं। गधे, कुत्ते, सूअर और सियार के से उनके मुख हैं। गणों के अनगिनत वेषों को कौन गिने?

बहुत प्रकार के प्रेत, पिशाच और योगिनियों की जमाते हैं। उनका वर्णन करते नहीं बनता।

[13/N]
भूत-प्रेत नाचते और गाते हैं, वे सब बड़े मौजी हैं। देखने में बहुत ही बेढंगे जान पड़ते हैं और बड़े ही विचित्र ढंग से बोलते हैं॥ जैसा दूल्हा है, अब वैसी ही बारात बन गई है।

आप सोचे रहे होंगे की भोले नाथ इन बहुत प्रेत को लेकर क्यों जा रह हैं इसके पीछे भी एक कथा है।
[14/N]
जिस समय भगवान राम का विवाह हो रहा था उस समय सभी विवाह में पधारे थे। सभी देवता, सभी गन्धर्व इत्यादि। भोले नाथ भी विवाह में दर्शन करने के लिए जा रहे थे। तभी भोले बाबा ने देखा की कुछ लोग मार्ग में बैठकर रो रहे हैं। शिव कृपा के धाम हैं और करुणा करने वाले हैं।
[15/N]
भोले नाथ ने उनसे पूछा की तुम क्यों रो रहे हो? आज तो मेरे राम का विवाह हो रहा है। आप रो रहे हो। रामजी के विवाह में नहीं चल रहे?

वो बोले- हमे कौन लेकर जायेगा? हम अमंगल हैं, हम अपशगुन हैं। दुनिया के घर में कोई भी शुभ कार्य हो तो हमे कोई नहीं बुलाता है।

[16/N]
भोलेनाथ का ह्रदय करुणा से भर गया- तुरंत बोल पड़े की कोई बात नहीं राम विवाह में मत जाना तुम, पर मेरे विवाह में तुम्हे पूरी छूट होगी। तुम सारे अमंगल-अपशगुन आ जाना। इसलिए आज सभी मौज मस्ती से शिव विवाह में झूमते हुए जा रहे हैं।

[17/N]
बारात को नगर के निकट आई सुनकर नगर में चहल-पहल मच गई, जिससे उसकी शोभा बढ़ गई।अगवानी करने वाले लोग बनाव-श्रृंगार करके तथा नाना प्रकार की सवारियों को सजाकर आदर सहित बारात को लेने चले॥देवताओं के समाज को देखकर सब मन में प्रसन्न हुए और विष्णु भगवान को देखकर तो बहुत ही सुखी हुए,
[18/N]
किन्तु जब शिवजी के दल को देखने लगे तब तो उनके सब वाहन (सवारियों के हाथी, घोड़े, रथ के बैल आदि) डरकर भाग चले॥

क्या कहें, कोई बात कही नहीं जाती।यह बारात है या यमराज की सेना? दूल्हा पागल है और बैल पर सवार है। साँप, कपाल और राख ही उसके गहने हैं॥ दूल्हे के शरीर पर राख लगी है,
[19/N]
साँप और कपाल के गहने हैं, वह नंगा, जटाधारी और भयंकर है। उसके साथ भयानक मुखवाले भूत, प्रेत, पिशाच, योगिनियाँ और राक्षस हैं, जो बारात को देखकर जीता बचेगा, सचमुच उसके बड़े ही पुण्य हैं और वही पार्वती का विवाह देखेगा। लड़कों ने घर-घर यही बात कही।
[20/N]
शिव का चंद्रशेखर रूप,,,,पार्वती की माता मैना के भीतर अहंकार था। आज भोले नाथ इस अहंकार को नष्ट करना चाहते हैं। इसलिए उन्होंने भगवान विष्णु और ब्रह्माजी से कहा- आप दोनों मेरी आज्ञा से अलग-अलग गिरिराज के द्वार पर पहुँचिये। शिवजी की आज्ञा मानकर भगवान विष्णु

[21/N]
सबसे पहले हिमवान के द्वार पर पधारे हैं।

मैना (पार्वतीजी की माता) ने शुभ आरती सजाई और उनके साथ की स्त्रियाँ उत्तम मंगलगीत गाने लगीं॥ सुंदर हाथों में सोने का थाल शोभित है, इस प्रकार मैना हर्ष के साथ शिवजी का परछन करने चलीं। जब मैना ने विष्णु के अलोकिक रूप को देखा

[22/N]
तो प्रसन्न होकर नारद जी से पूछा है- नारद! क्या ये ही मेरी शिवा के शिव हैं?

नारदजी बोले- नहीं, ये तो भगवान हैं श्री हरि हैं। पार्वती के पति तो और भी अलोकिक हैं। उनकी शोभा का वर्णन नहीं हो सकता है। इस प्रकार एक एक देवता आ रहे हैं, मैना उनका परिचय पूछती हैं और नारद जी
[23/N]
उनको शिव का सेवक बताते हैं।

फिर उसी समय भगवान शिव अपने शिवगणों के साथ पधारे हैं। सभी विचित्र वेश-भूषा धारण किये हुए हैं। कुछ के मुख ही नहीं है और कुछ के मुख ही मुख हैं। उनके बीच में भगवान शिव अपने नाग के साथ पधारे हैं।

अब भोले बाबा से द्वार पर शगुन माँगा गया है।

[24/N]
भोलेबाबा बोले की भैया, शगुन क्या होता है?
किसी ने कहा की आप अपनी कोई प्रिय वस्तु को दान में दीजिये। भोले बाबा ने अपने गले से सर्प उतारा और उस स्त्री के हाथ में रख दिया जो शगुन मांग रही थी। वहीँ मूर्छित हो गई। इसके बाद जब महादेवजी को भयानक वेष में देखा तब तो
[25/N] Image
स्त्रियों के मन में बड़ा भारी भय उत्पन्न हो गया॥ बहुत ही डर के मारे भागकर वे घर में घुस गईं और शिवजी जहाँ जनवासा था, वहाँ चले गए। कुछ डर के मारे कन्या पक्ष(मैना जी) वाले मूर्छित हो गए हैं।

जब मैना जी को होश आया है तो रोते हुए कहा-चाहे कुछ भी हो जाये
[26/N]
मैं इस भेष में अपनी बेटी का विवाह शिव से नहीं कर सकती हूँ। उन्होंने पार्वती से कहा- मैं तुम्हें लेकर पहाड़ से गिर पड़ूँगी, आग में जल जाऊँगी या समुद्र में कूद पड़ूँगी। चाहे घर उजड़ जाए और संसार भर में अपकीर्ति फैल जाए, पर जीते जी मैं इस बावले वर से तुम्हारा विवाह न करूँगी।
[27/N]
नारद जी को भी बहुत सुनाया है। मैंने नारद का क्या बिगाड़ा था, जिन्होंने मेरा बसता हुआ घर उजाड़ दिया और जिन्होंने पार्वती को ऐसा उपदेश दिया कि जिससे उसने बावले वर के लिए तप किया॥ सचमुच उनके न किसी का मोह है,न माया,न उनके धन है, न घर है और न स्त्री ही है, वे सबसे उदासीन हैं।
[28/N]
इसी से वे दूसरे का घर उजाड़ने वाले हैं।उन्हें न किसी की लाज है, न डर है।भला,बाँझ स्त्री प्रसव की पीड़ा को क्या जाने॥

ये सब सुनकर पार्वती अपनी माँ से बोली- हे माता! कलंक मत लो, रोना छोड़ो,यह अवसर विषाद करने का नहीं है।मेरे भाग्य में जो दुःख-सुख लिखा है, उसे मैं जहाँ जाऊँगी
[29/N]
वहीं पाऊँगी! पार्वतीजी के ऐसे विनय भरे कोमल वचन सुनकर सारी स्त्रियाँ सोच करने लगीं और भाँति-भाँति से विधाता को दोष देकर आँखों से आँसू बहाने लगीं।

फिर ऐसा कहकर पार्वती शिव के पास गई हैं। और उन्होंने निवेदन किया है हे भोले नाथ! मुझे सभी रूप और सभी वेश में स्वीकार हो।
[30/N]
लेकिन प्रत्येक माता पिता की इच्छा होती है की उनका दामाद सुंदर हो। तभी वहां विष्णु जी आ जाते हैं। और कहते है- पार्वती जी! आप चिंता मत कीजिये।

आज जो भोले बाबा का रूप बनेगा उसे देखकर सभी दांग रह जायेंगे। आप ये ज़िम्मेदारी मुझ पर छोड़िये।

[31/N]
अब भगवान विष्णु ने भगवान शिव का सुंदर श्रृंगार किया है। और सुंदर वस्त्र पहनाये हैं। करोड़ों कामदेव को लज्जित करने वाला रूप बनाया है भोले बाबा का। भोले बाबा के इस रूप को आज भगवान विष्णु ने चंद्रशेखर नाम दिया है। बोलिए चंद्रशेखर शिव जी की जय!!

[32/N]
इस समाचार को सुनते ही हिमाचल उसी समय नारदजी और सप्त ऋषियों को साथ लेकर अपने घर गए॥तब नारदजी ने पूर्वजन्म की कथा सुनाकर सबको समझाया (और कहा) कि हे मैना!तुम मेरी सच्ची बात सुनो,तुम्हारी यह लड़की साक्षात जगज्जनी भवानी है॥ पहले ये दक्ष के घर जाकर जन्मी थीं,तब इनका सती नाम था,
[33/N]
बहुत सुंदर शरीर पाया था। वहाँ भी सती शंकरजी से ही ब्याही गई थीं।

एक बार मोहवश इन्होने शंकर जी का कहना नहीं माना। और भगवान राम की परीक्षा ली। भगवान शिव ने इनका त्याग कर दिया और इन्होने अपनी देह का त्याग कर दिया। फिर इन्होने आपके घर पार्वती के रूप में जन्म लिया है।

[34/N]
ऐसा जानकर संदेह छोड़ दो, पार्वतीजी तो सदा ही शिवजी की प्रिया (अर्द्धांगिनी) हैं। और आप ये भी चिंता ना करो की भोले बाबा का रूप ऐसा हैऐसा जानकर संदेह छोड़ दो, पार्वतीजी तो सदा ही शिवजी की प्रिया (अर्द्धांगिनी) हैं। आप देखना भोले बाबा के नए रूप को।

[35/N]
जिसे भगवान हरि ने स्वयं अपने हाथो से सजाया है। तब नारद के वचन सुनकर सबका विषाद मिट गया और क्षणभर में यह समाचार सारे नगर में घर-घर फैल गया॥

तब मैना और हिमवान आनंद में मग्न हो गए। और जैसे ही भगवान शिव के दिव्य चंद्रशेखर रूप का दर्शन किया है। मैंने मैया तो देखते ही रह गई।
[36/N]
उन्होंने अपने दामाद की शोभा देखि और आरती उतारकर घर में चली गई।

शिव पार्वती विवाह,,,,,नगर में मंगल गीत गाए जाने लगे और सबने भाँति-भाँति के सुवर्ण के कलश सजाए। जिस घर में स्वयं माता भवानी रहती हों, वहाँ की ज्योनार (भोजन सामग्री) का वर्णन कैसे किया जा सकता है?

[37/N]
हिमाचल ने आदरपूर्वक सब बारातियों, विष्णु, ब्रह्मा और सब जाति के देवताओं को बुलवाया॥ भोजन (करने वालों) की बहुत सी पंगतें बैठीं। चतुर रसोइए परोसने लगे। स्त्रियों की मंडलियाँ देवताओं को भोजन करते जानकर कोमल वाणी से गालियाँ देने लगीं॥ और व्यंग्य भरे वचन सुनाने लगीं।

[38/N]
देवगण विनोद सुनकर बहुत सुख अनुभव करते हैं,इसलिए भोजन करने में बड़ी देर लगा रहे हैं।भोजन कर चुकने पर सबके हाथ-मुँह धुलवाकर पान दिए गए।फिर सब लोग,जो जहाँ ठहरे थे,वहाँ चले गए।

फिर मुनियों ने लौटकर हिमवान्‌ को लगन (लग्न पत्रिका)सुनाई और विवाह का समय देखकर देवताओं कोबुला भेजा॥
[39/N]
वेदिका पर एक अत्यन्त सुंदर दिव्य सिंहासन था। ब्राह्मणों को सिर नवाकर और हृदय में अपने स्वामी श्री रघुनाथजी का स्मरण करके शिवजी उस सिंहासन पर बैठ गए।

फिर मुनीश्वरों ने पार्वतीजी को बुलाया। सखियाँ श्रृंगार करके उन्हें ले आईं। पार्वतीजी को जगदम्बा और शिवजी की पत्नी समझकर

[40/N]
देवताओं ने मन ही मन प्रणाम किया। भवानीजी सुंदरता की सीमा हैं।करोड़ों मुखों से भी उनकी शोभा नहीं कही जा सकती॥

सुंदरता और शोभा की खान माता भवानी मंडप के बीच में,जहाँ शिवजी थे, वहाँ गईं।वे संकोच के मारे पति (शिवजी) के चरणकमलों को देख नहीं सकतीं,परन्तु उनका मन रूपी भौंरा तो
[41/N]
वहीं (रसपान कर रहा) था।

मुनियों की आज्ञा से शिवजी और पार्वतीजी ने गणेशजी का पूजन किया। मन में देवताओं को अनादि समझकर कोई इस बात को सुनकर शंका न करे (कि गणेशजी तो शिव-पार्वती की संतान हैं, अभी विवाह से पूर्व ही वे कहाँ से आ गए?)

[42/N]
पर्वतराज हिमाचल ने हाथ में कुश लेकर तथा कन्या का हाथ पकड़कर उन्हें भवानी (शिवपत्नी) जानकर शिवजी को समर्पण किया॥ जब महेश्वर (शिवजी) ने पार्वती का पाणिग्रहण किया, तब (इन्द्रादि) सब देवता हृदय में बड़े ही हर्षित हुए। श्रेष्ठ मुनिगण वेदमंत्रों का उच्चारण करने लगे और

[43/N]
देवगण शिवजी का जय-जयकार करने लगे॥ अनेकों प्रकार के बाजे बजने लगे। आकाश से नाना प्रकार के फूलों की वर्षा हुई। शिव-पार्वती का विवाह हो गया। सारे ब्राह्माण्ड में आनंद भर गया॥

बहुत प्रकार का दहेज देकर, फिर हाथ जोड़कर हिमाचल ने कहा- हे शंकर! आप पूर्णकाम हैं,
[44/N]
मैं आपको क्या दे सकता हूँ?(इतना कहकर)वे शिवजी के चरणकमल पकड़कर रह गए।तब कृपा के सागर शिवजी ने अपने ससुर का सभीप्रकार से समाधान किया।फिर प्रेम से परिपूर्ण हृदय मैनाजी ने शिवजी के चरणकमल पकड़े(और कहा-नाथ उमा मम प्रान सम गृहकिंकरी करेहु।छमेहु सकल अपराध अबहोइ प्रसन्न बरु देहु॥
[45/N]
हे नाथ! यह उमा मुझे मेरे प्राणों के समान (प्यारी) है। आप इसे अपने घर की टहलनी बनाइएगा और इसके सब अपराधों को क्षमा करते रहिएगा। अब प्रसन्न होकर मुझे यही वर दीजिए॥

शिवजी ने बहुत तरह से अपनी सास को समझाया। फिर माता ने पार्वती को बुला लिया और गोद में बिठाकर यह सुंदर सीख दी-
[46/N]
हे पार्वती! तू सदाशिवजी के चरणों की पूजा करना, नारियों का यही धर्म है। उनके लिए पति ही देवता है और कोई देवता नहीं है। इस प्रकार की बातें कहते-कहते उनकी आँखों में आँसू भर आए और उन्होंने कन्या को छाती से चिपटा लिया॥

पार्वतीजी माता से फिर मिलकर चलीं,
[47/N] Image
सब किसी ने उन्हें योग्य आशीर्वाद दिए। हिमवान् अत्यन्त प्रेम से शिवजी को पहुँचाने के लिए साथ चले। वृषकेतु (शिवजी) ने बहुत तरह से उन्हें संतोष कराकर विदा किया॥

पर्वतराज हिमाचल तुरंत घर आए और उन्होंने सब पर्वतों और सरोवरों को बुलाया। हिमवान ने आदर, दान, विनय और

[48/N]
बहुत सम्मानपूर्वक सबकी विदाई की॥

जब शिवजी कैलास पर्वत पर पहुँचे, तब सब देवता अपने-अपने लोकों को चले गए। (तुलसीदासजी कहते हैं कि) पार्वतीजी और शिवजी जगत के माता-पिता हैं, इसलिए मैं उनके श्रृंगार का वर्णन नहीं करता॥

शिव-पार्वती विविध प्रकार के भोग-विलास करते हुए
[49/N]
अपने गणों सहित कैलास पर रहने लगे।वे नित्य नएविहार करते थे।इस प्रकार बहुत समय बीत गया॥तब छ: मुखवाले पुत्र (स्वामिकार्तिक) का जन्म हुआ,जिन्होंने(बड़े होने पर)युद्ध में तारकासुर को मारा।वेद,शास्त्र और पुराणों में स्वामिकार्तिकके जन्म की कथाप्रसिद्ध है और साराजगत उसे जानता है॥[50/N]
तुलसीदास जी कहते हैं शिव-पार्वती के विवाहकी इस कथा को जो स्त्री-पुरुष कहेंगे और गाएँगे,वे कल्याण के कार्यों और विवाहादि मंगलों में सदा सुख पाएँगे।

यह उमा संभु बिबाहु जे नरनारि कहहिं जे गावहीं।कल्यानकाज बिबाह मंगल सर्बदा सुखु पावहीं॥
[51]
#Mahashivratri2023
🙏🔱हर हर महादेव 🙏🔱 Image

• • •

Missing some Tweet in this thread? You can try to force a refresh
 

Keep Current with 🦁⚔ क्षत्राणी ⚔🦁

🦁⚔ क्षत्राणी ⚔🦁 Profile picture

Stay in touch and get notified when new unrolls are available from this author!

Read all threads

This Thread may be Removed Anytime!

PDF

Twitter may remove this content at anytime! Save it as PDF for later use!

Try unrolling a thread yourself!

how to unroll video
  1. Follow @ThreadReaderApp to mention us!

  2. From a Twitter thread mention us with a keyword "unroll"
@threadreaderapp unroll

Practice here first or read more on our help page!

More from @Kshtranii

Dec 14, 2022
🚩🔯 दुर्गा एक तीन आंखों वाली अंबिका, नारायणी या पार्वती हैं जो मां काली का रूप धारण करती हैं।माँ दुर्गा ब्रह्मांड की अनंत शक्ति का प्रतिनिधित्व करने वाली एक शक्ति अभिव्यक्ति हैं और स्त्री की गतिशीलता और शिव की शक्ति का प्रतीक हैं।🔱🚩
माँ दुर्गा की कहानी मुख्य रूप से स्कंद (1/8)
पुराण में दिखाई देती हैजो मार्कंडेय पुराण का हिस्सा है। कहा जाता है कि दुर्गा ने अपने तीसरे नेत्र से काली को प्रक्षेपित किया था। जब देवी दुर्गा को तीन नेत्रों वाली चित्रित किया जाता है, तो उन्हें त्र्यंबके कहा जाता है। ये भगवान शिव के समान हैं और अज्ञानता को नष्ट करने वाले(2/8)
ज्ञान के प्रतीक हैं प्रतीकात्मक रूप से उसकी बायीं आंख इच्छाका प्रतिनिधित्व करती है - चंद्रमा; सही क्रिया -सूर्य और तीसरी आँख ज्ञान या अग्नि का प्रतिनिधित्व करते हैं।
शक्ति की तीसरी आँख किसी की आंतरिकदृष्टि को संदर्भित करती है। यह उच्च चेतना के आंतरिक क्षेत्रों का द्वार है।इस(3/8)
Read 8 tweets

Did Thread Reader help you today?

Support us! We are indie developers!


This site is made by just two indie developers on a laptop doing marketing, support and development! Read more about the story.

Become a Premium Member ($3/month or $30/year) and get exclusive features!

Become Premium

Don't want to be a Premium member but still want to support us?

Make a small donation by buying us coffee ($5) or help with server cost ($10)

Donate via Paypal

Or Donate anonymously using crypto!

Ethereum

0xfe58350B80634f60Fa6Dc149a72b4DFbc17D341E copy

Bitcoin

3ATGMxNzCUFzxpMCHL5sWSt4DVtS8UqXpi copy

Thank you for your support!

Follow Us on Twitter!

:(