We all know that there are total of 51 Shakti-Peethas, but do you know?
⚜️Not all the Shakti-Peethas are located in India.⚜️
Here are the 12 Shakti-Peethas that are outside India.
🌺1. Hingalaj Shakti-Peeth, Pakistan
Brahmarandhra of Sati fell in Baluchistan province of..
..Pakistan, which is 125 km away from the northeast of Karachi, Pakistan. This temple is located in a small natural Cave, where she is worshiped in a small round piece of stone smeared with sindoor (vermilion).
🌺2. Shivaharkaray Shakti-Peeth, Pakistan
Here the incarnation of Adhya Shakti, who killed Mahishasur, is worshiped. It’s located near Karachi of Pakistan. The eyes of Goddess Sati fell here. The Goddess is worshiped as "Mahisha-Mardhini".
🌺3. Sugandha Shakti-Peeth, Bangladesh
Shakti Devi Sugandha,also considered as Ekjata,is situated in Shikarpur,which is 20km north from Barisal in Bangladesh.The nose of Sati had fallen & here she is in the form of “Sunanda Devi Tara or Ekjata and Tryambak”appears as Bhairav.
🌺4. Guhyeshwari Shakti-Peeth, Nepal
This temple of Shakti is located near Pashupatinath Mandir in Kathmandu,Nepal. It is about 1 km east of Pashupatinath temple. Here, the knees of Sati had fallen, she is in the form of Devi Mahashira & Kapali appears as Bhairav.
🌺5. Dakshayani Shakti-Peeth, Tibet (China)
This Shakti Peeth is in the form of a stone slab near Kailash Mountain, Mansarovar, in Tibet. Here, the right hand of Sati had fallen, she is in the form of Devi Dakshayani (who destroyed Daksha Yajna), and Amar appears as Bhairav.
🌺6. Gandaki Chandi Shakti-Peeth, Nepal
This Shakti Peeth is in Muktinath, in Nepal, near the bank of river Gandaki. Here, the right cheek of Sati had fallen, she is in the form of Devi Gandaki-Chandi, and Chakrapani appears as Bhairav.
🌺7. Bhawani Shakti-Peeth, Bangladesh
This Shakti Peeth is famous as Sitakunda Chandranath; this Peetha is on the top of Chandra-Nath Hills in Chittagong, Bangladesh. Here,the right arm of Sati had fallen,she is in the form of Devi Bhawani & Chandrashekar appears as Bhairav.
🌺8. Jayanti Shakti-Peeth, Bangladesh
The left thigh of Sati fell in Kalajore, Bourbhag village, Near Jaintia-pur, Sylhet District, in Bangladesh. She is worshiped in the form of Jayanti Shakti, and Kramadeeshwar.
🌺9. Shravani Shakti-Peeth, Bangladesh
This Shakti Peeth is in Kumari Kunda, Chittagong District, in Bangladesh. Here, the spine of Sati had fallen; she is in the form of Devi Sravani and Nimish as Bhairav.
🌺10. Mahalakshami Shakti-Peeth, Bangladesh
On Sri-Shail of Jaunpur Village, 3 km northeast of Sylhet town in Bangladesh, the neck of Sati had fallen. Here she is in the form of Goddess Maha-Lakshmi, and Shambaraanand appears as Bhairav.
🌺11. Aparna Shakti-Peeth, Bangladesh
This Shakti Peeth is in Bhavani-Pur village of Sherpur, Bagura district in Bangladesh. Here, the Left Anklet of Sati had fallen, she is in the form of Devi Aparna, and Vaaman appears as Bhairav.
🌺12. Yogeshwari Shakti-Peeth, Bangladesh
This Shakti Peeth is dedicated to Kali and is located in Khulna of Bangladesh. Here, the feet and Hands of Sati had fallen, she is in the form of Devi Yogeshwari Shakti, and Chanda appears as Bhairav.
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🌺In Valmiki Ramayana, Sugreeva gives specific directions to his Vaanar Sena for the search operation of Mata Sita.🌺
💮This thread is about what places and people were described by Sugreeva while he gives the specific instructions.💮
A Thread 🧵
1. Sugreeva orders Vanara leader Vinata to go towards east direction and search for Sita Devi.
2. He is allowed to take 100000 Vanaras with him in this search.
3. The reference point for directions specified by Sugreeva is not Kishkinda, but center of Vindhya mountains, which is near Nagpur today.
4. Sugriva asks Vinata to first search towards North-East where rivers like Ganga, Yamuna, Sarayu, Kaushiki (koshi), Shona (shon), Mahii, Kalamahi, Sindhu and Saraswati begin their journey.
5. He also asks him to search in kingdoms of Brahma-maala, Videha, Maalva, Kaashi, Kosala, Maagadha, Pundra, Anga. These kingdoms are from present Himalayas till north-east where Brahmaputra river flows.
🌺।।भगवान विष्णु के षष्ठं अवतार : भगवान परशुराम की कथा।।🌺
त्रेतायुग में भगवान विष्णु ने परशुराम जी के रूप में अवतार लिया था और उन्होंने अधर्मी शक्तियों का नाश करके पृथ्वी पर धर्म की स्थापना की थी ।
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🌺।।परशुराम जी के जन्म की कथा।।🌺
कालांतर में एक महान ऋषि भृगु हुए हैं, जिन्होंने महान ज्योतिष ग्रंथ "भृगुसंहिता" की रचना की थी। उनके पुत्र का नाम ऋचीक था। ऋचीक हर समय तपस्या में लीन रहते थे। महर्षि ऋचीक का विवाह महाराज गाधि की पुत्री सत्यवती से हुआ था। एक बार पुत्र प्राप्ति की इच्छा से उन्होंने यज्ञ किया और उस पवित्र यज्ञ से दो खीर के पात्र प्रकट किए। उन्होंने अपनी पत्नी सत्यवती को खीर के पात्र दिए और कहा,"एक पात्र वे स्वयं ग्रहण कर लें, और दूसरा अपनी मां को खिला दे।" यह कहकर ऋषि ऋचीक तपस्या के लिए चले गए ।
अपनी मां के कहने में आकर सत्यवती ने वह दोनों खीर के पात्र बदल दिए, अर्थात अपना पात्र मां को खिला दिया और मां का पात्र स्वयं ग्रहण कर लिया । जब ऋषि को इस बात का ज्ञान हुआ तो वह सत्यवती पर अत्यंत क्रोधित हुए ।
ऋषि बोले, "मैंने अपनी तपस्या के बल पर तुम्हारे खीर के पात्र में सहनशीलता, धीरज और परमात्मा को प्राप्त करने वाले गुण भरे थे और तुम्हारी माता के पात्र में संपूर्ण ऐश्वर्य, बल, पराक्रम और क्षत्रियोंचित् व्यवहार करने वाले गुणों का समावेश किया था ।"
🌺।।भगवान विष्णु का प्रथम अवतार: मत्स्य अवतार की कथा।।🌺
श्रीमद्भागवत महापुराण में राजा परीक्षित ने श्री शुकदेव से ईश्वर, जगत और आत्मा के विषय में अनेक प्रश्न किए हैं जिसका श्री शुकदेव ने अपनी दिव्य वाणी से उत्तर देकर उनकी मन की जिज्ञासा को शांत किया ।
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🌺।।परीक्षित का शुकदेव से मत्स्य अवतार की कथा सुनाने का आग्रह करना।।🌺
ईश्वर की कृपा से राजा परीक्षित के मन में प्रभु के मत्स्य अवतार की कथा सुनने की इच्छा जागृत हुई । उन्होंने श्री शुकदेव जी से प्रश्न किया, "प्रभु मैं आपके श्री मुख से श्रीहरि की अनेक दिव्य कथाओं का श्रवण कर चुका हूं और अब मैं आपसे श्रीहरि के दिव्य मत्स्य अवतार की कथा सुनने की इच्छा रखता हूं ।"
श्री शुकदेव बोले, "प्रभु के प्रथम मत्स्य अवतार की कथा अत्यंत दिव्य है जो वक्ता और श्रोता दोनों के मन को पवित्र कर देती है । अतः परीक्षित इस दिव्य कथा को एकाग्रचित्त होकर सुनो ।"
💮प्रभु के मत्स्य अवतार की कथा श्रीमद्भागवत के आठवें स्कंध के 24वें अध्याय में वर्णित है ।💮
🌺।।महर्षि दधीचि का इन्द्र को दिया गया अपनी हड्डियों का महादान,महाशक्तिशाली देवास्त्र वज्रास्त्र का निर्माण और वृत्रासुर का वध।।🌺
श्रीमद्भागवत और शिव महापुराण में महान ऋषि दधीचि की कथा आती है,जिन्होंने मानवता के कल्याण के लिए अपना शरीर इंद्रदेव को दान कर दिया था।
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महर्षि दधीचि ने समस्त देवताओं को दुर्धर असुर वृत्रासुर के भय से मुक्त किया था ।
इस कथा का श्रीमदभागवत के छठे स्कंध के तीसरे अध्याय में वर्णन आता है ।
आइए जानते हैं ये अद्भुत कथा;
🌺।।गुरु बृहस्पति का इंद्र को त्यागना।।🌺
एक बार देव गुरु बृहस्पति, इंद्र से मिलने के लिए उनकी राज्यसभा में गए । उस समय इंद्र और अन्य देवगण गंधर्वों के गान और अप्सराओं के नृत्य में इतना डूबे हुए थे कि उन्होंने गुरु बृहस्पति की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया । उस समय किसी भी देवता ने ना तो उन्हें प्रणाम किया और ना ही उन्हें उचित आसन दिया ।
🌺।।श्रीमद्भागवत महापुराण से महाराजा अंबरीश की कथा, ऋषि दुर्वासा का उन्हें शाप और एकादशी व्रत का महत्व।।🌺
महाराजा अंबरीष जिनका नाम सुनते ही मन में पवित्रता का भाव जागृत हो जाता है। यह भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों में से एक थे।
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शुकदेव जी परीक्षित राजा को ये कथा कह रहे हैं;
महाराजा अंबरीष की सहनशीलता और तपस्या के प्रभाव से दुर्वासा जैसे महाक्रोधी ऋषि भी उनके समक्ष नतमस्तक हो गए थे।महान ग्रंथ श्रीमद्भागवत के नवम स्कंध के चतुर्थ अध्याय में राजा अंबरीष की दिव्य कथा का वर्णन है ।
🌺।।राजा अंबरीष की वंशावली।।🌺
आर्यव्रत सदैव से ही महान राजाओं की भूमि रहा है। समय-समय पर अनेक राजाओं ने भगवान की भक्ति कर देवत्व को प्राप्त किया है। प्राचीन काल में इक्ष्वाकु वंश में नाभाग नाम के बहुत ही धर्मात्मा राजा हुए। वह हर समय अपनी प्रजा की सेवा के लिए तत्पर रहते थे। वह राजा नभग के पुत्र थे और वैवस्वत मनु के पौत्र थे। वह हर समय धर्म के कार्य में लगे रहते थे।