"जहाँ मजदूर वर्ग का सवाल है उसके विरुद्ध सारे पूंजीपति एकजुट होकर फ्रीमेजन जैसी जुंडली की तरह हैं. पर जहाँ वो आपसी प्रतिद्वंद्वी के रूप में हैं, वो एक दूसरे से कोई मुरव्वत नहीं रखते.
एक वर्ग के तौर पर सामूहिक स्वार्थ सिद्धि के साथ ही उनके आपसी द्वंद्वों को सुलटाने हेतु उनकी प्रबंध समिति सरकार, संसद और कोर्ट जैसी राज्य संस्थायें एक हद तक तटस्थ पंच भूमिका निभाती हैं जिसे बुर्जुआ जनतंत्र में कानून का शासन कहा जाता है.
किंतु जब पूंजीपति वर्ग सामूहिक स्वार्थ की पूर्ति अर्थात मजदूर वर्ग के शोषण को गहन करने के लिए फासिज्म का रूख अख्तियार करता है तो खुद ही इस बुर्जुआ कानून के शासन को भी धता बताता है. पर इसके नतीजे में सत्ता पाने वाले सशक्त 'महामानव' को स्वयं पूंजीपति वर्ग के आपसी द्वंद्वों में
तटस्थ पंच भूमिका निभाने की जरूरत से मुक्ति मिल जाती है. यूँ तो क्रोनीइज्म पूंजीवाद में हमेशा ही रहता है पर फासिस्ट शासन में यह अपना पूरा रंग दिखाता है. पूंजीपतियों की आपसी होड का फैसला भी खाप पंचायत की तरह सत्ता के डंडे से होने लगता है.
किस पूंजीपति पर रेड डालेगी, किस के शेयर कुर्क होंगे, किसे पूंजी की सप्लाई बंद कर दी जायेगी, यह इससे तय होगा कि होड़ में कौन सा पक्ष सत्ता तंत्र के करीब है, जैसे माफिया काउंसिल तय करे कि किस इलाके में तस्करी, नशे, वेश्यावृत्ति, लूट का कारोबार कौन सा गिरोह चलायेगा."
यह स्थिति अब सामने आ ही रही है. इसलिए कुछ पूंजीपतियों की शिकायतें सुनने को मिलती रहेंगी, कुछ बर्बाद भी होंगे, खुदकुशी करने को मजबूर भी होंगे. लेकिन सब गिले शिकवे के बावजूद पूंजीपति वर्ग का सामूहिक स्वार्थ फासीवाद ही है, एक वर्ग के तौर पर वे उस रास्ते से पीछे नहीं हट सकते.
अत: ये पूंजीपति भी अब किसी विपक्षी दल के जरिये अपने हित में दबाव बनाने के बजाय सत्ताधारी दल में लॉबीइंग का सहारा लेना बेहतर समझेंगे. सभी दलों से BJP की ओर बढती बाढ के पीछे का रहस्य भी यही है.
ये सब 'महामानव' के साथ करीबी में सुरक्षा ढूँढेंगे. आखिर ये सब दल/नेता बुर्जुआ वर्ग के किसी हिस्से का ही प्रतिनिधित्व करते हैं.
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*देश के प्रधान सेवक (मोदी ) से मालिक (जनता ) के सवाल*
*********************************** 1- सिर्फ 87 ( रिज़र्व बैंक के अनुसार ) डिफाल्टरों के 85 हजार करोड़ रुपये डकारने के बाद भी इन सब पर कुर्की ,जब्ती रुपये वसूलने की कार्यवाही क्यों नहीं की ?
2- आर एस एस के एजेंट अन्ना हजारे के लोकपाल बिल को लागू क्यों नहीं किया ?
3-ईमानदारी की डीगे हाँकने वाली आपकी पार्टी ने कर्नाटक के रेडडी की बेटी की 500 करोड़ की शादी, अरुण जेटली वित्त मंत्री की बेटी 55 करोड़ की शादी,
नितिन गडकरी की बेटी की शादी 50 करोड़ की रकम कहाँ से आई और भुगतान कैसे किया गया ? इनकी जांच क्यों नहीं हुई ?
4- विदेश घूम कर आपने विदेशी पी एम, राष्ट्रपति से खूब दोस्ती कर ली करोड़ों रुपये
अडानी को कौन बचा रहा है ?
यह एक बड़ा सवाल है जिसका जवाब सभी खोज रहे है यूरोपिय और अमेरिकी उद्योगपति/वित्तीय संस्थान तो अडानी के लिए थंब डाउन कर चुके हैं चीनियों की तो खुद की हालत खराब है !.... भारत वाले निजी रिटेल इन्वेस्टर्स को तो अडानी की हकीकत मालूम ही है इसलिए उन्होंने
उसका FPO ही सब्सक्राइब नही किया !......तो फिर कौन है जिसके दर पर जाकर अडानी माथा टेक रहे हैं
अडानी दुनिया के सबसे धनी परिवार के यानी यूएई के शाही परिवार की शरण में है
पिछले एक डेढ़ हफ्ते गौतम अडानी, ग्रुप सीएफओ जुगेशिंदर सिंह समेत उनकी पूरी टीम अबू धाबी में है फंड जुटाने के
लिए अडानी की अडानी एंटरप्राइजेज या समूह की अन्य कंपनी में कैपिटल इंफ्यूजन के लिए अबू धाबी की इंटरनेशनल हॉल्डिंग कॉप्स IHC के साथ बात चल रही है।मदद के बदले में दुबई के शेख मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट के अलावा अडानी के देश भर फैले हुए पोर्ट में और सीमेंट बिजनेस में हिस्सेदारी मांग
एक बार एक राजा के दरबार में एक संगीतकार गाना सुनाने लगा।
राजा ने बहुत ख़ुश होकर एलान किया कि इसे इसके वज़न के बराबर चांदी दिया जाए।
संगीतकार बहुत ख़ुश हुआ और उसने अच्छी सुरीले आवाज़ में फ़िर गीत सुनाया।
राजा और ख़ुश हुआ औऱ उसने कहा कि इसको सोना से तौला जाए।
संगीतकार ने और अच्छी आवाज़ में गाना शुरू किया।
राजा फ़िर ख़ुश हुआ और उसने कहा इसे दस गांवों की ज़मीन भी दे दी जाए।
उसके बाद वो संगीतकार अपने घर गया औऱ उसने अपनी पत्नी को पूरा किस्सा सुनाया।
उसका पूरा परिवार बहुत खुश हुआ।
कुछ दिन गुज़रे ,फ़िर कुछ महीने भी गुजर गए लेकिन राजा ने जो चीज़ें देने का वादा किया था,उसे कुछ भी नहीं मिला।बहुत इंतज़ार करने के बाद मायूस होकर वह राजा से मिलने उसके दरबार में हाज़िर हुआ और कहा..
“हुज़ूर ,आपने सोने, चांदी, हीरे मोती, ज़मीन जायदाद को लेकर जो वादे मुझसे किए थे ,
तेजोमहालय के खोजक !!!!
महान राष्ट्रवादी इतिहास कार- पी एन ओक। वामपंथियों द्वारा कब्जाए गए इतिहास लेखन क्षेत्र के अकेले दक्षिणपंथी योद्धा पी.एन. ओक हैं।
इनकी लिखी मनोरंजक पुस्तकें व्हाट्सप यूनिवर्सिटी का प्रमुख रेफरेंस पॉइंट हैं। आगामी 2 मार्च को उनकीं 105 वीं जयंती थी,
याद दिला रहा हूं, ताकि कृतघ्न हिन्दू, उन्हें थैंक्यू कहना भूल न जाये।
इंदौर में 2 मार्च 1917 को इंदौर रियासत में जन्मे ओक साहब के पास एमए, एलएलबी की डिग्री थी। एक इंटरव्यू में ओक साहब बताते हैं कि इसके बाद इन्होंने ब्रिटिश आर्मी जॉइन कर ली। जापानियों द्वारा पकड़े गए।
जहां दूसरे प्रिजनर्स ऑफ वार के साथ आजाद हिंद फौज जॉइन कर ली।
वहां तोप तलवार बन्दूक नही। शॉर्टहैंड में, कलम चलाते और डिक्टेशन लेते थे। क्योकि ओक साहब के यू ट्यूब पर उपलब्ध इंटरव्यू अनुसार, वे जेके भोंसले नामक अफसर के प्राइवेट सेक्रेटरी थे।
ये कथा, द्वापर की नही है।
द्वारका का विस्तार हो चुका था। अखण्ड द्वारका समझ लीजिए, जिसकी पताका कश्मीर से कन्याकुमारी तक फहराती थी। चहुं ओर शांति थी, खुलापन था, मौजमस्ती और आजादी थी।
तो द्वारकाधीश के भक्तो को मजाक सूझा।
एक युवक के पेट मे लोकपाल बांधकर सप्तर्षियों के पास पहुचें-पूछा, अन्ना, बताओ इसके पेट से लड़का होगा या लड़की ???
अन्ना भन्ना गए। उनकी आंख में स्कैनर था। बोले- इसके पेट एक जोकपाल होगा, और तुम सबके सत्यानाश का कारण बनेगा,
भर्र भों.. उड़ती पुडती रगड़ती की कुंडी छू...ऐसा मंत्र बोलकर शाप दे दिया।
अब तो भक्त घबराए, चाणक्य के पास पहुचें। उन्होंने सलाह दी- पेट का मूसल घिस दो, समुद्दर में बहा दो। मामला खत्म।
तो भक्तों ने डिजिटल समुद्र के किनारे मूसल घिसा, और चूरा "अंतर्जाल" में बहा दिया।