भारत में भी कुछ लोग हैं जो खालिस्तान की बात करते हैं, आस्ट्रेलिया और यूरोपियन देशों में तो इसको लेकर referendum भी होते रहते हैं। इन देशों में कई संगठन भी हैं जो खालिस्तान के समर्थक हैं
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जितने भी ये खालिस्तान संगठन हैं उनमें एक बात बिल्कुल एक जैसी दिखेंगी कि ये संगठन खालिस्तान की कल्पना में पाकिस्तान वाला पंजाब नहीं जोड़ते। बल्कि ये तो ज़रूरी हिस्सा हैं क्योंकि वहां तो महाराजा रणजीत सिंह (सिख साम्राज्य) की राजधानी रह चुकी हैं
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पाकिस्तान का पूरा पंजाब सिख साम्राज्य का हिस्सा था।
शुरुआत में जब खालिस्तान की मांग उठी थीं तो इसका आधार हीं सिख साम्राज्य बताया जाता था, लेकिन अब पाकिस्तान वाला पंजाब नहीं जोड़ा जाता। अब सवाल ये हीं बनता हैं कि क्यों नहीं जोड़ा जाता पाकिस्तान वाला पंजाब?
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मेरा खुद का ये मानना हैं कि ज्यादातर खालिस्तान समर्थक संगठनों को फंडिंग पाकिस्तान से हीं मिलती हैं, पाकिस्तान क्यों चाहेगा कि पाकिस्तान टूटे और इसलिए भारत वाले पंजाब को हीं निशाना बनाया जाता हैं, कभी-कभी हिमाचल और हरियाणा भी जोड़ लिया जाता हैं।
हिमाचल और हरियाणा को भी इसलिए जोड़ा जाता हैं क्योंकि ये विभाजित पंजाब (1947 के बाद का पंजाब) का हिस्सा थें।
खालिस्तान की मांग मेरी नज़र में बिल्कुल बकवास है। ये एक षड्यंत्र हैं क्योंकि खालिस्तान के जितने भी नक्शे ज़ारी किए जाते हैं उसमें पाकिस्तान वाले पंजाब का एक जिला तक नहीं आता, बल्कि सबकुछ तो वहीं हैं। ननकाना साहिब, करतारपुर साहिब और यहां तक कि सिख साम्राज्य की राजधानी भी वहीं हैं।
नेहरू साहब का ये कदम तारीफ़ के काबिल हैं कि उन्होंने केन्द्र की लीडरशिप चुनने के लिए डायरेक्टर वोटिंग और सार्वभौम व्यस्क मताधिकार का समर्थन किया और इस प्रक्रिया को आगे जारी रखा, हालांकि शुरुआत में डायरेक्टर वोटिंग को लेकर उनके मन में भी काफ़ी शंकाएं थीं
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लेकिन पहले आम चुनावों के बाद ये शंकाएं दूर होती गई। उस समय बहुत से देशों में देश की लीडरशिप चुनने के लिए डायरेक्टर चुनाव नहीं होते थें, बल्कि इनडायरेक्ट चुनाव (जैसे आज राज्यसभा के नेताओं को चुना जाता हैं) होते थें
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वोट देने के अधिकार की बात करें तो 20वीं सदी के शुरुआती दशकों में भी यूरोप में सबके पास वोट देने का अधिकार नहीं था, वहां पर सदियों से वोट का आधार सम्पत्ति और टैक्स देने पर आधारित था।
अम्बेडकर भी सार्वभौम वयस्क मताधिकार के समर्थक थें
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बहुत हीं अजीब और भयानक घटना थीं ये, जब यूगांडा के तानाशाह नेता ने यूगांडा से 90 दिन के भीतर एशियन लोगों (ज्यादातर भारतीय थें) को देश छोड़कर जाने को कहा था। वहां के ज्यादातर आम लोगों ने भी इस फैसले का समर्थन किया था, इस घटना को #Asianexpulsion (1972) के नाम से जाना जाता हैं
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इस घटना के बाद यूगांडा में भयानक आर्थिक संकट आ गया था। आर्थिक ढांचा हीं ढह गया था क्योंकि जो बड़े-बड़े धंधे और कारखाने थें, जो भारतीय छोड़कर गए थें, वो वहां के आम लोगों को चलाने हीं नहीं आएं। वो इस काबिल थें हीं नहीं कि ढंग से बड़े-बड़े धंधों-कारखानों को चलाया जा सकें
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यूगांडा की सत्ता बदलने के बाद वहां के नेताओं ने भारतीय को वापस बुलाने की भी कोशिश की थीं।
ट्विटर पर कुछ लिबरल लोग और कुछ लिबरल पत्रकार बोल रहें हैं कि CBI का ग़लत इस्तेमाल हों रहा हैं, राजनीतिक नेताओं को दबाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा रहा हैं। मैं बिल्कुल सहमत हूं इस बात से, लेकिन संस्थाओं का ग़लत इस्तेमाल 2014 के बाद से हीं शुरू नहीं हुआ हैं
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बल्कि लाल बहादुर शास्त्री जी के बाद जब इन्दिरा गांधी पहली बार प्रधानमंत्री बनी थीं, तभी से इस संस्था का ग़लत इस्तेमाल किया जा रहा हैं। इस संस्था का निमार्ण शास्त्री जी के समय हीं हुआ था, जब वो देश के गृहमंत्री थें।
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शास्त्री जी के जाने के बाद के दौर से हीं इस संस्था को विपक्षी नेताओं, राजनीतिक आलोचकों के शोषण के लिए और विपक्षी नेताओं को चुप कराने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा हैं, ये बात आपको कांग्रेसी नेता और कांग्रेसी ‘इतिहासकार’ नहीं बताएंगे।
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भारत में धर्म को लेकर इतनी दिक्कत और धर्म का बोलबाला इसलिए हैं क्योंकि आज़ादी के बाद से हीं यहां की सरकार ने धर्म का प्रचार किया हैं और धर्म के ग़लत प्रभाव को नहीं समझा और इसलिए भारत में इतना धार्मिक आन्धापन हैं।
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नास्तिकता या तर्कवाद का कोई नामोनिशान तक नहीं दिखता भारतीय समाज में। भारतीय भौतिकवादी दर्शन (चार्वाक दर्शन) सिर्फ किताबों तक सीमित हैं। चीन में लगभग 70% जनता नास्तिक-तर्कवादी हैं, क्योंकि PRC (चीन) की स्थापना से हीं वहां के नेताओं ने नास्तिकता
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वैज्ञानिक दृष्टिकोण और भौतिकवाद को बढ़ावा दिया हैं। गिरजाघर और पूजास्थल वहां भी हैं, लेकिन वहां की सरकार को पता हैं कि धर्म इन्सान के लिए हैं ना कि इन्सान धर्म के लिए हैं।
भारत में नास्तिकों की संख्या 1% भी नहीं है और यहां पर धर्म की आजादी है, लेकिन फ्रांस में 40% तक नास्तिकता हैं, मतलब 40% लोग नास्तिक हैं और वहां भी धर्म की आजादी है लेकिन धर्म और राज्य अलग-अलग है, इसकी वजह से फ्रांस शिक्षा, स्वास्थ्य आदि स्तर पर काफी आगे हैं+
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ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि फ्रांस में क्रान्ति (फ़्रान्सीसी क्रान्ति) हुईं है और एक अच्छा खासा सोशल चेंज आया हैं और राजनीतिक बदलाव भी आया हैं वहां के समाज में और वहां के लोगों ने इस बदलाव को अपनाया भी है लेकिन भारत में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ+
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भारत को आजादी जरूर मिली और राजनीतिक परिवर्तन भी आया लेकिन कोई क्रान्ति या सामाजिक बदलाव पुरे भारत में नहीं आया. तमिलनाडु में जरूर कुछ हुआ था पेरियार जैसे समाज सुधारकों की वजह से जिसका असर तमिलनाडु में आज भी दिखता है, लेकिन ये बदलाव पर्याप्त नहीं है+
@AmrullahSaleh2 जो अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति थें, उन्होंने अफगानिस्तान के राष्ट्रपति होने का दावा किया हैं और बोला हैं कि अफगानिस्तान के संविधान के अनुसार राष्ट्रपति के ना होने पर उपराष्ट्रपति हीं देश का राष्ट्रपति माना जाएगा++
इस वक्त @AmrullahSaleh2 अपने जन्मस्थान पजंशीर में हैं जहां तालिबान के विरुद्ध में युद्ध जारी हैं, @AmrullahSaleh2 Northern alliance के समर्थन से तालिबान से मुकाबला करने की योजना बना रहें हैं+++
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northern alliance ने तालिबान के शासनकाल में भी (1996 से 2001 तक) तालिबान के विरुद्ध में युद्ध छेड़ा था और उतरी अफगानिस्तान में पकड़ बनाकर रखीं थीं। उस समय northern alliance का साथ भारत, रूस, तजाकिस्तान, ईरान, अमेरिका आदि देशों ने भी दिया था+