जब हाथरस में गैंगरेप का आरोप लगा था, तभी से हमें पता था कि लड़की मरते समय भी वामपंथियों के प्रभाव में झूठ बोल रही है। फॉरेंसिक रिपोर्ट भी आ गई थी, कोई रेप नहीं था।
फिर मीडिया के दबाव में आ कर प्रशासन को जबरन ‘गैंगरेप’ को आरंभ बिंदु मान कर कार्रवाई करनी पड़ी। सत्य सामने है।
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ठाकुर पुत्र का ठाकुर पिता खेत में धान काट रहे थे। रोते हुए कह रहे थे कि हम काहे के ठाकुर, बेटा जेल में है और हम रोजी चलाने के लिए खेत में काम कर रहे हैं।
यही हालत हर सवर्ण की है। हर ठाकुर घोड़े पर तलवार लिए नहीं घूम रहा। मीडिया सवर्णों को क्रूर, निर्दयी दिखाना चाहती है।
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क्या मीडिया संदीप समेत बाकी चार युवकों को उनके ढाई वर्ष लौटाएगी? क्या उन्हें बलात्कारी कह कर चिल्लाने वाली मीडिया उन्हें मानसिक प्रताड़ना से मुक्त कर पाएगी?
हमें इस भेदभाव को ले कर स्वर उठाना चाहिए। आप उस माता-पिता के बारे मे सोचिए दिनके बच्चे को बलात्कारी बता दिया गया। #Hathras
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जब मैं मंत्रियों को बिल गेट्स की बड़ाई करता या उसकी बातों में स्वीकार्यता ढूँढता देखता हूँ तो दुख होता है। बिल गेट्स ने उड़ीसा के आदिवासी समाज की सैकड़ों लड़कियों पर वैक्सीन ट्रायल करवाए जिससे वो या तो बाँझ हो गईं, या मर गईं।
इससे चिपकना दुर्भाग्यपूर्ण है।
गेट्स सोरोस का ही प्रतिरूप है। अजेंडा वही है। महामारियों में पैसे कमाने वाले लोग हैं ये। सहायता के नाम पर भारत की जनसंख्या पर अवैध शोध करना चाहते हैं। मंत्रियों से निकटता इसमें सहायक होगी। हम गिनी पिग नहीं हैं। नेताओं को समझना चाहिए कि गोरी चमड़ी के चक्कर में वो कहाँ जा रहे हैं।
भागवत जी ने जो बोला उस पर जो भी स्पष्टीकरण आ रहे हैं, वो किसी भी तरह से तार्किक नहीं लग रहे। 'पंडित' का अर्थ अगर हम 'विद्वान' भी मानें, तब भी प्रश्न यह आता है कि क्या विद्वानों ने जातियाँ बनाईं? जातियाँ उतनी ही सनातन हैं, जितना हमारा धर्म। हाँ, वर्तमान में इसमें विकृति आई है।
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विकृति लाने वाले कौन थे? शास्त्रज्ञ विद्वान या फिर अंग्रेज, जिनकी 'रेस थ्योरी' की नौटंकी आज तक चल रही है। क्या किसी भी ग्रंथ में मुगल और अंग्रेजी शासन से पहले कथित जातियों को ले कर भेदभाव का उल्लेख है? तो ये 'विद्वान' कौन थे? जातिवाद पर चर्चा करते हुए उनका ही नाम ले लेते!
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यदि जातिवाद मिटाने की बात करनी है, तो आप ब्राह्मणों को अनंतकाल तक गरिया कर कैसे मिटा लेंगे? जातिवाद है, और जिनके पूर्वजों ने तब से आज तक इसे किसी रूप में ढोया है, उसका अपराध आज की पीढ़ी पर, वह भी सामूहिक रूप में क्यों? क्या जातिवाद के लिए आरक्षण दोषी नहीं?
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