अडानी के काले कारोबार को लेकर इंडियन एक्सप्रेस का चौंकाने वाला खुलासा
मॉरीशस की शेल कंपनी इलारा कैपिटल अडानी डिफेंस फर्म में को-ओनर है।
इलारा वही कंपनी है जिसका नाम हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में प्रमुखता से आया था।
अडानी डिफेंस फर्म Alpha Design Technologies Private Limited (ADTPL) में इलारा को-ओनर है और इसमें 9000 करोड़ का निवेश है।
हिंडनबर्ग रिसर्च ने खुलासा किया था कि इलारा नाम की कंपनी ने अडानी ग्रुप में 24,766 करोड़ निवेश किया है जो उसकी कुल पूंजी का 99% है।
जाहिर है कि यह एक फर्जी कंपनी है जिसके जरिए अडानी ग्रुप में कालाधन का कारोबार होता है। #अडानी_डिफेंस_इसरो और #डीआरडीओ के साथ काम करती है। इसका मतलब कि भारत का सुरक्षा क्षेत्र कालेधन माफियाओं के हवाले किया जा चुका है।
सरकार संसद में चर्चा नहीं कर रही है और न ही जेपीसी जांच की मांग मान रही है। अडानी का मामला कोई साधारण घोटाला नहीं है। यह एक विशाल देश की संप्रभुता को एक व्यापारी के हाथ गिरवी रख देने का अंतरराष्ट्रीय रैकेट है। यह #भयंकर_किस्म का #देशद्रोह है।
कोई एजेंसी इसकी जांच नहीं कर सकती क्योंकि सब की सब एजेंसियां सरकार की जेब में हैं और सरकार अडानी की जेब मे है।
Krishna Kant
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बिखरे बालो, असभ्य पहनावे और बौचट हरकतों से लबरेज , अपने ख्यालों में खोया एक युवक बस में सफर कर रहा था । बस कंडक्टर लोंगो का टिकट चेक करते हुए उस नौजवान के पास आया और टिकट पूछा । उस नौजवान ने पहने हुए कपड़े के सारे खीसे को टटोल लिया लेकिन उसे टिकट नही मिला ।
कंडक्टर मुस्कुराया - हमे याद है ,आपने टिकट लिया है । कह कर कंडक्टर आगे बढ़ गया । थोड़ी देर में सब का टिकट चेक कर ,जब कंडक्टर वापस आया तो देखा , वह नौजवान सीट के नीचे , अपने पॉकेट में हाथ डाले टिकट तलाश रहा है । कंडक्टर ने उसे आस्वस्त किया - कोई बात नही , आपने टिकट लिया है ,आप
अपनी यात्रा जारी रखिये ।
- लेकिन टिकट जरूरी है
- अब क्यों जरूरी है ?
- हमे कहाँ जाना है , उस पर लिखा है ।
बचपन से लेकर तालीम तक यह शख्स जहीन नही समझा गया लेकिन एक दिन सापेक्ष का सिद्धांत देकर समूचे भौतिक विज्ञान को ही उलट दिया । इसका नाम आज तक जिंदा है - अल्बर्ट आइंस्टाइन ।
1960 की एक शाम वो ब्यूनसआयर्स, अर्जेंटीना के एक औद्योगिक उपशहर से अपने घर लौट रहा था। कुछ लोगो ने रिकार्डो को पकड़ लिया, कार में भरा। फिर प्लेन में डालकर अफ्रीका ले गए।
वहां से इजराइल, सघन पूछताछ की गयी।
रिकार्डो शुरू में ना नुकुर करता रहा। मगर जल्द ही टूट गया। दुनिया को खबर लगी- दस लाख यहूदियों का हत्यारा..
एडोल्फ आइकमन पकड़ा गया।
हिटलर ने आत्महत्या कर ली। उसके कुछ साथी सरेंडर कर गए, कुछ भाग गए। "फाइनल सॉल्यूशन" का इंचार्ज, डैथ डायरेक्टर एडोल्फ आइकमन भगोड़ों
में से था। पहले इटली गया, फिर ग्रीस और फिर फर्जी कागज बनाकर अर्जेटीना।
20 साल पहचान छुपाकर, नाम बदलकर, सात समंदर पार भाग जाने वाले आइकमन ने, एक बार शेखी बघारते हुए हिटलर से कहा था- मैं खुशी से कूदते हुए अपनी कब्र तक जाऊंगा, क्योकि मैंने अपनी पितृभूमि को, एक मिलियन
देश इन दिनों उद्दंड, जबरिया और पूरी तौर पर संविधान विरोधी सिरफुटौव्वल में उलझा दिया गया है। धतरम सरकार का भी हो सकता है। संसार के लोकतांत्रिक इतिहास में कभी नहीं हुआ, और हो भी नहीं सकता, कि विधायिका के
एक सदस्य को विधायिका में ही बोलने नहीं दिया जाए। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने पिछले दिनों इंग्लैंड में अपने भाषण में जो कुछ कहा, उसे सुने समझे बिना फतवा जारी किया जाए कि वे भारत के लोकतंत्र के खिलाफ कुछ भी कैसे कह सकते हैं। अव्वल तो उन्होंने खिलाफ कहा नहीं।
यदि कह भी देते तो सफाई, स्पष्टीकरण और जवाब देने का उनका संवैधानिक अधिकार सुरक्षित है। वह अधिकार कोई नहीं छीन सकता। न सरकार, न संसद, न सुप्रीम कोर्ट, न अदालत और न खुद संविधान। राजनीतिक हेकड़ी को संसदीय परंपराओं की खाल ओढ़ाकर तिलिस्म के रूप में पेश करने की दादागिरी चल
Gulzar with his dentist डॉक्टर 'पथिक'
Gulzar: डॉक्टर साब , दो दिनों से लेफ्ट साइड का मोलर बहुत दर्द कर रहा हैं, रात भर नींद नहीं आई है।
Dentist: hmmm महसूस तो होता ही होगा कुछ दर्द । धड़कन के आगोश में लिपटी, उस सहमे हुए यूकेलिप्टस के पत्तों की दो बूंद यूं ही दांत पर डाल देते।
Gulzar: docter वो छोड़ दीजिए, दर्द बहुत हो रहा हैं , जरा कुछ कीजिए।
Dentist : दांतो तले रूई के ख्वाब में रात की स्याही सी वो दवा, दांतों के साथ बातें करके किसी पुराने नुस्खे की तरह आपको कंबल सी ठंडाई देती है।
Gulzar: डाक्टर आप समझते क्यों नहीं है कि अन्दर कितना दर्द हो रहा हैं ? कृपा करके कुछ कीजिए।
Dentist: (looking into his open mouth carefully) हां कुछ अटके हुए अल्फाज हैं दो दांतों के बीच, बहुत पुराने कहावतों की तरह गूंजती ,काली कम्बल सी समेटी, बुझी रात की गवाही दे रही हैं।
एक गांव मे अंधे पति-पत्नी रहते थे । इनके यहाँ एक सुन्दर बेटा पैदा हुआ। पर वो अंधा नही था।
एक बार पत्नी रोटी बना रही थी। उस समय बिल्ली रसोई में घुस कर बनाई रोटियां खा गई।
बिल्ली की रसोईं मे आने की रोज की आदत बन
गई इस कारण दोनों को कई दिनों तक भूखा सोना पड़ा।
एक दिन किसी प्रकार से मालूम पड़ा कि रोटियाँ बिल्ली खा जाती है।
अब पत्नी जब रोटी बनाती उस समय पति दरवाजे के पास बाँस का फटका लेकर जमीन पर पटकता।
इससे बिल्ली का आना बंद हो गया।
जब लङका बङा हुआ और उसकी शादी हुई।
बहू जब पहली बार रोटी बना रही थी तो उसका पति बाँस का फटका लेकर बैठ गया औऱ फट फट करने लगा।
कई दिन बीत जाने के बाद पत्नी ने उससे पूछा कि तुम रोज रसोई के दरवाजे पर बैठ कर बाँस का फटका क्यों पीटते हो?
पति ने जवाब दिया कि
ये हमारे घर की परम्परा (रिवाज) है इसलिए मैं ऐसा कर रहा हूँ।