इंसान चाहे कितना भी बड़ा शातिर ठग हो वो इतना बड़ा कांड करने की जुर्रत नहीं कर सकता क्यूंकि सरकार के किसी भी मंत्रालय में कौन कौन अधिकारी है उनका नाम लिस्ट सब वेबसाइट पर रहता है, PMO का भी वेबसाइट अपडेट रहता है. अतः यह कहना मूर्खता होगी कि किरण भाई पटेल आए औऱ कश्मीर सरकार ने उनका
विजिटिंग कार्ड देख कर उन्हें Z सुरक्षा गाडी होटल प्रोटोकॉल सब दे डाला होगा.
यदि पुलिस अधीक्षक अपने स्तर पर एक कांस्टेबल भी सिक्योरिटी में बतौर गनर देता है तो उसके भी कागज तैयार होते है औऱ कई जगह mark होता है वो कागज,, यहां तो Z सुरक्षा दे दी गई औऱ अमित शाह जी के गृह मंत्रालय को
महीनों तक खबर न लगे असम्भव है नामुमकिन है.
किरण भाई पटेल को शर्तिया जेम्स बांड या किसी अन्य सरकारी एजेंसी ने यहां किसी खास एजेंडे के तहत प्लांट किया होगा,, पिछले 5-7 सालों में मेरी जानकारी अनुसार हरेक मुख्यमंत्री ऑफिस में निजी स्टॉफ व राजनीतिक नियुक्तियां बतौर एडवाइजर निदेशक
इत्यादि designation के साथ की जा रही है, यही स्थिति पीएमओ व अन्य कई मंत्रालय में देखी जा सकती है.
किरण भाई पटेल को किसी खास मकसद से वहां प्लांट किया गया होगा, औऱ अब काम निकलने के बाद या भांडा फूटने के बाद उसको बलि का बकरा बना दिया होगा.
Note..
मैने आज twitter पर किरण पटेल की कई videos देखें, उनमें बंदे का बॉडी लैंग्वेज गजब कॉन्फिडेंस वाला नजर आया,, यदि गलती से भी हम बिना टिकट ट्रैन में घुस जाए तो अंदर बैठते हुए भी घबराहट होती है, बिना टिकट यात्री हर समय डरा सहमा TT से नजरें चुराए रहता है..
लेकिन यहां पटेल साहब का कॉन्फिडेंस लेवल वाकई उच्च स्तर का था..मेरी अपनी राय मुताबिक इस बेचारे बंदे को अब बलि का बकरा एजेंसीज ने बना डाला है..वैलेंटाइन डे तक इसने कश्मीर में सेलिब्रेट किया है इसके साथ जो इसकी बीवी/गर्लफ्रेंड जो भी होगी उसके चेहरे पर भी सब कुछ सामान्य नजर आ रहा था
इस कहानी के पीछे का सत्य आना बहुत जरुरी है
#नवनीत_चतुर्वेदी
नोट हम पंडी जी की लिखावट के फैन, रस टोस्ट समोसा सब हैं, कभी कभी तो लगता है गुरु बनाया जाए कल कोशिश करेंगे
पंडी जी @janataparty_org के अध्यक्ष हैं मेरा @PMOIndia और @AmitShah सरकार समेत होम मिनिस्ट्री आईडी ढेर कंफ्यूज
ससुरा होम मिनिस्ट्री का कोई आईडी ही नहीं है
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जर्मनी में लोकतंत्र था, विश्वयुद्ध और मंदी के बाद हालात सुधर रहे थे। लेकिन अब भी बेरोजगारी थी, गरीबी थी, दिक्कतें थीं।
इन सबका जादुई समाधान एक आदमी के पास था- एडोल्फ़ हिटलर !! चमत्कारी नेता...
तो चुनाव सर पर थे और नाजियों के पास पैसे की कमी थी। पिछले चुनाव में ठीक ठाक सीटें आयी थी, लेकिन नाजी सत्ता से दूर थे। पार्टी के श्रीमान ॐ हरमन गोयरिंग, रैछस्टेग के स्पीकर थे, मने लोकसभाध्यक्ष थे।
बर्लिन के पॉश इलाके में उनका सरकारी पैलेस था। उसी जगह एक पार्टी हुई।
जर्मनी के 25 बड़े उद्योगपति चाय पीने आये। तमाम पार्टी नेताओं से मिले। शैम्पेन पी, और फिर 90 मिनट तक हिटलर जी का भाषण सुना।
हिटलर जी बोले- मितरों, जर्मनी खतरे में है। हमको जर्मनी को बचाना है। वो हम बचा लेंगे, तुम बस रोकड़ा गिनो। थोक के भाव मे हमारी जेब भरो।
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बिखरे बालो, असभ्य पहनावे और बौचट हरकतों से लबरेज , अपने ख्यालों में खोया एक युवक बस में सफर कर रहा था । बस कंडक्टर लोंगो का टिकट चेक करते हुए उस नौजवान के पास आया और टिकट पूछा । उस नौजवान ने पहने हुए कपड़े के सारे खीसे को टटोल लिया लेकिन उसे टिकट नही मिला ।
कंडक्टर मुस्कुराया - हमे याद है ,आपने टिकट लिया है । कह कर कंडक्टर आगे बढ़ गया । थोड़ी देर में सब का टिकट चेक कर ,जब कंडक्टर वापस आया तो देखा , वह नौजवान सीट के नीचे , अपने पॉकेट में हाथ डाले टिकट तलाश रहा है । कंडक्टर ने उसे आस्वस्त किया - कोई बात नही , आपने टिकट लिया है ,आप
अपनी यात्रा जारी रखिये ।
- लेकिन टिकट जरूरी है
- अब क्यों जरूरी है ?
- हमे कहाँ जाना है , उस पर लिखा है ।
बचपन से लेकर तालीम तक यह शख्स जहीन नही समझा गया लेकिन एक दिन सापेक्ष का सिद्धांत देकर समूचे भौतिक विज्ञान को ही उलट दिया । इसका नाम आज तक जिंदा है - अल्बर्ट आइंस्टाइन ।
1960 की एक शाम वो ब्यूनसआयर्स, अर्जेंटीना के एक औद्योगिक उपशहर से अपने घर लौट रहा था। कुछ लोगो ने रिकार्डो को पकड़ लिया, कार में भरा। फिर प्लेन में डालकर अफ्रीका ले गए।
वहां से इजराइल, सघन पूछताछ की गयी।
रिकार्डो शुरू में ना नुकुर करता रहा। मगर जल्द ही टूट गया। दुनिया को खबर लगी- दस लाख यहूदियों का हत्यारा..
एडोल्फ आइकमन पकड़ा गया।
हिटलर ने आत्महत्या कर ली। उसके कुछ साथी सरेंडर कर गए, कुछ भाग गए। "फाइनल सॉल्यूशन" का इंचार्ज, डैथ डायरेक्टर एडोल्फ आइकमन भगोड़ों
में से था। पहले इटली गया, फिर ग्रीस और फिर फर्जी कागज बनाकर अर्जेटीना।
20 साल पहचान छुपाकर, नाम बदलकर, सात समंदर पार भाग जाने वाले आइकमन ने, एक बार शेखी बघारते हुए हिटलर से कहा था- मैं खुशी से कूदते हुए अपनी कब्र तक जाऊंगा, क्योकि मैंने अपनी पितृभूमि को, एक मिलियन
देश इन दिनों उद्दंड, जबरिया और पूरी तौर पर संविधान विरोधी सिरफुटौव्वल में उलझा दिया गया है। धतरम सरकार का भी हो सकता है। संसार के लोकतांत्रिक इतिहास में कभी नहीं हुआ, और हो भी नहीं सकता, कि विधायिका के
एक सदस्य को विधायिका में ही बोलने नहीं दिया जाए। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने पिछले दिनों इंग्लैंड में अपने भाषण में जो कुछ कहा, उसे सुने समझे बिना फतवा जारी किया जाए कि वे भारत के लोकतंत्र के खिलाफ कुछ भी कैसे कह सकते हैं। अव्वल तो उन्होंने खिलाफ कहा नहीं।
यदि कह भी देते तो सफाई, स्पष्टीकरण और जवाब देने का उनका संवैधानिक अधिकार सुरक्षित है। वह अधिकार कोई नहीं छीन सकता। न सरकार, न संसद, न सुप्रीम कोर्ट, न अदालत और न खुद संविधान। राजनीतिक हेकड़ी को संसदीय परंपराओं की खाल ओढ़ाकर तिलिस्म के रूप में पेश करने की दादागिरी चल
Gulzar with his dentist डॉक्टर 'पथिक'
Gulzar: डॉक्टर साब , दो दिनों से लेफ्ट साइड का मोलर बहुत दर्द कर रहा हैं, रात भर नींद नहीं आई है।
Dentist: hmmm महसूस तो होता ही होगा कुछ दर्द । धड़कन के आगोश में लिपटी, उस सहमे हुए यूकेलिप्टस के पत्तों की दो बूंद यूं ही दांत पर डाल देते।
Gulzar: docter वो छोड़ दीजिए, दर्द बहुत हो रहा हैं , जरा कुछ कीजिए।
Dentist : दांतो तले रूई के ख्वाब में रात की स्याही सी वो दवा, दांतों के साथ बातें करके किसी पुराने नुस्खे की तरह आपको कंबल सी ठंडाई देती है।
Gulzar: डाक्टर आप समझते क्यों नहीं है कि अन्दर कितना दर्द हो रहा हैं ? कृपा करके कुछ कीजिए।
Dentist: (looking into his open mouth carefully) हां कुछ अटके हुए अल्फाज हैं दो दांतों के बीच, बहुत पुराने कहावतों की तरह गूंजती ,काली कम्बल सी समेटी, बुझी रात की गवाही दे रही हैं।