मैं पॉलिटिकल पर्सन नही हूँ। एक साधारण, कस्बे-शहर में रहने वाला साधारण भारतीय। मेरे इर्द गिर्द के एक सोसायटी है, छोटी सी.. और इस सोसायटी से मेरी उम्मीदें है, आकांक्षाये है।
यह कि ये सोसायटी सुरक्षित हो, प्रोग्रेसिव हो, हंसती और मुस्कुराती हुई हो। इसमे अपराध न हो, भेदभाव न हो, तनाव न हो। यह स्थिर नही हो सकती, सो बदलाव धीरे धीरे, सकारात्मक और प्रिडिक्टिबल हों। जिनसे मैं तारतम्य बिठा सकूं, आने वाले 10 साल की योजना बना सकूं।
इसके अपने प्रतिमान हों, यह खुद से डेवलप हो। खाने, पहनने, मिलने, मिलाने, घूमने, चलने, बोलने हंसने की आजादी हो। जो भुगतान करूँ वो सुविधा मिले, जिसका भुगतान मिले वो सेवा प्रेम से दूं। मुझे सम्मान मिले, मैं सम्मान दूं।
जब मेरे शहर की यह छोटी सी सोसायटी, और आसपास और दूर दराज के समाज से मिलती है, तब देश बनता है। भौगोलिक दूरियों के अनुसार, इन समाजों के चिन्ह, परम्परायें और पहचान भले ही अलग अलग हो, मगर किसी भी समाज मे रह रहे हर व्यक्ति की आकांक्षा बस इतनी ही है।
अगर समाजों के ये रंगीन समुच्चय ही देश हैं। तो देश की आकांक्षाओं और समाज की आकांक्षाओं में कोई फर्क कैसे हो सकता है।
मानव सभ्यता की सत्तर हजार साल की कहानी में हम सत्तर सेकेंड के बुलबुले हैं। इतिहास में तमाम तरह की परम्पराओं, चिन्हों, धर्मों, राष्ट्रीयताओं से बनी सोसायटी बनी हैं।
कोई भी स्थायी नही रही , न हो सकती है।
स्थायी तो वो आकांक्षाएं है, जो मेरी है, और जो 2000 साल पहले किसी रोमन या हड़प्पा के नागरिक की थी। मगर एकाएक समाज को अप्राकृतिक रूप से बदलने की कोशिश, सत्ता का टूलकिट है। वह सोसायटी में एकाएक भंवर पैदा करती है, तूफान उठाती है।
धर्म, जाति, एथनिसिटी या किसी तात्कालिक मुद्दे पर समाज का ताना बाना उलट पुलट करती है।
इतिहास उठाकर देखिये। उथल पुथल के दौर में उन समाजों को, कुछ पीढ़ियों को एक दो पीढ़ी दुख, कष्ट, टार्चर, मौत और भयावह अनुभवों से गुजरती है। नतीजा- किसी की सत्ता आ जाती है, कुछ समय टिकती है।
और फिर कोई और, फिर से एक नए किस्म का समाज बनाने के नाम पर उसी प्रक्रिया को दोहराता है। यह अंतहीन है, ये अर्थ हीन है ।
मैं पॉलिटिकल पर्सन नही हूँ। कस्बे-शहर में रहने वाला साधारण भारतीय, इर्द गिर्द के एक सोसायटी है, छोटी सी..मेरी उम्मीद, आकांक्षा.. एक सुरक्षित सोसायटी,
प्रोग्रेसिव,हंसती, मुस्कुराती हुई,अपराध-भेदभाव रहित, तनाव रहित, बदलाव धीरे धीरे, सकारात्मक और प्रिडिक्टिबल पर जब भय, नफरत, शंका, दादागिरी, निर्लज्जता, क्रूरता, अट्टहास, ललकार, चीखपुकार और छाती ठोकनेवाले शोहदों से भरा यह समाज देखता हूँ, वर्तमान और भविष्य का खाका साफ दिखाई देता है।
राहुल और मोदी दो किस्म के समाज के प्रतिनिधि हैं।
इसलिए मोदी समर्थकों को मैं उनके पोलिटीकल चॉइस पर नही, उनकी सामाजिक समझ के अभाव, नैतिक मूल्यहीनता और मनुष्यहीनता की चॉइस पर जज करता हूँ। इनके खिलाफ खड़ा राहुल, मेरी पोलिटीकल चॉइस नही है।
ऐसा कोई पाप मत कीजिये जो आपके बच्चों को आने वाली पीढ़ी को भुगतना पड़े।
नहीं नहीं ये प्रभात प्रवचन नहीं बल्कि हमारे प्रधानमंत्री का सदन मे एक महीने पहले दिया बयान है जो देश विरुद्ध बताते उन्होंने सरकारी कर्मचारियों के लिए कोंग्रेस राज्य सरकारों द्वारा ओल्ड पेंशन स्कीम लागू
करने के बारे मे दिया था।
लेकिन उसके बाद कर्नाटक के सरकारी कर्मचारी अनिश्चित कालीन हड़ताल पर चले गए और कर्नाटक की खुद भाजपा सरकार को OPS लागू करने कमेटी बनानी पड़ी।
इसी तरह 14 मार्च को महाराष्ट्र के सरकारी कर्मचारी अनिश्चित कालीन हड़ताल पर चले गए और 20 मार्च को खुद भाजपा सरकार के
मुख्यमंत्री शिंदे के OPS लागू करने के लिखित समझौते के बाद हड़ताल टूटी।
अब देखना ये है कि केंद्रीय कर्मचारी व अन्य राज्यों के कर्मचारी कब प्रधानमंत्री कथनानुसार देशविरोधी कदम उठाते हड़ताल पर जाते हैं।
एक बार हिम्मत जुटाएं तो सही, देशहित और देशविरोध खुद तय हो जाएगा।
*सलाह🖋️*
किसने दिया , किसने मेरे पास भेजा इसका बहुत मतलब नहीं ...
आप भी इस सलाह का आनंद लीजिये....
आनंद बाबू सचिवालय से सेवानिवृत्त हुए हैं।
वह और उनकी पत्नी राँची के एक फ़लैट में रहते हैं।
उन्होंने दशहरा में शिमला मनाली जाने की योजना बनाई।
बाहर जाने से पहले जयंत बाबू ने सोचा कि अगर उनकी गैरमौजूदगी में कोई चोर घुस गया तो वो घर की सारी अलमारी और पेटी तोड़ कर
क्षतिग्रस्त कर देंगे क्योंकि कोई नकद नहीं मिलेगा।
इसलिए उन्होने घर को बर्बाद होने से बचाने के लिए 1000 रुपये टेबल पर रख दिए।
एक संवाद के साथ जिसमें लिखा था:
*हे अजनबी, मेरे घर में प्रवेश करने के लिए आपने कड़ी मेहनत की इसके लिए मेरी हार्दिक बधाई।*
*लेकिन अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है की हम शुरू से मध्यम वर्गीय परिवार हैं और हमारा परिवार पेंशन के थोड़े से पैसे से चलता है। इसलिए हमारे पास कोई अतिरिक्त नकदी नहीं है।*
मैंने काफी बुजुर्ग
दादा जी से पूछा
कि पहले लोग इतने
बीमार नही होते थे ?
जितने आज हो रहे है ....🤔
तो दादा जी बोले
बेटा पहले हम
हर चीज को कूटते थे👍
जबसे हमने कूटना
छोड़ा है, तबसे ही
हम सब बीमार
होने लग गए है.....
मैंने पूछा :- वो कैसे ?
दादा जी (मुस्कुराते हुए)
जैसे पहले खेत से अनाज को
कूट कर घर लाते थे ...
घर में मिर्च मसाला
कूटते थे .......
कभी कभी बड़ा भाई
छोटे भाई को
कूट देता था .......
और जब छोटा भाई
उसकी शिकायत
माँ से करता था .....
तो माँ.. बड़े भाई को
कूट देती थी ......
पुलिस पीछे पड़ी हो, आदमी को जान की पड़ी हो, पुलिस के दावों के अनुसार जिसके पास करोड़ों की फंडिंग हो...वो आदमी एक पुरानी पड़ चुकी Bike की परवाह करेगा ? Bike तो वैसे भी पुलिस ने जलंधर के पास बरामद की है... तो उस वक्त जब अमृतपाल को भागना था वो बाइक को जुगाड़ रिक्शा के ऊपर लाद कर
क्यों भागेगा... मैं खालिस्तान के खिलाफ हूँ, लगातार खालिस्तान के विचार के खिलाफ लिखता आ रहा हूँ लेकिन ये Fake Narrative साफ नज़र आ रहा है... अमृतपाल ने कोई कसाब की तरहं सैंकड़ों लोगों की हत्या नहीं की... उल्टा कोई एकाध हत्या भी नहीं की... उसने Debate के लिए Challange किया था...
हां अजनाला में जो थाने का घेराव किया गया था और पुलिस वालों को चोटें आईं थीं उनके अनुसार गिरफ्तारी बनती थी और उसे गिरफ्तार करने के बड़े आसान मौके पहले भी थे...
हिंडनबर्ग की नई रिपोर्ट जब आएगी तब की तब देखेंगे लेकिन कल अडानी ग्रुप पर यूके के फाइनेंशियल टाइम्स की यह रिपोर्ट देख लीजिए
दो महीने पहले जो हिंडन बर्ग ने अडानी की जो पोल खोली थी इस रिपोर्ट में दुनियां के जाने माने बिज़नेस अखबार फाइनेशियल टाइम्स ने उस पर मोहर लगा दी है
.......इस रिपोर्ट मे बताया गया है कि भारत के शेयर बाजार में पिछले पांच सालो में जितना भी विदेशी निवेश आया है उसमे से लगभग आधा अडानी ग्रुप में इन्वेस्ट हुआ है वो भी एक तरह की फर्जी कंपनियों से
एफटी के विश्लेषकों ने भारत के एफडीआई रेमिटेंस आंकड़ों का विश्लेषण किया है।
इससे पता चला है कि अडानी से लिंक्ड ऑफशोर कंपनियों ने साल 2017 से 2022 के बीच ग्रुप में कम से कम 2.6 अरब डॉलर का निवेश किया है। यह इस अवधि के दौरान आए कुल 5.7 अरब डॉलर के कुल एफडीआई का 45.4 फीसदी है।
Dynamic foreign policy वाले विदेश मंत्री एस. जयशंकर हमे चीन की बड़ी अर्थव्यवस्था का डर दिखाते है...
... परंतु विश्व गुरु तो Dominica और Antigua-Barbuda जैसे पिद्दी देशों के सामने भी लाचार नजर आता है।
Dominica दिल्ली से छोटा है और Antigua and Barbuda की आबादी है मात्र एक लाख।
मोदी सरकार इन पिद्दी देशों को मेहुल चोकसी, जो PNB को 13000 करोड़ का चूना लगा कर भागा था, को भारत को सौंपने के लिए मनाने में विफल रही है।
मेहुल Antigua and Barbuda का नागरिक है और Dominica में उसके खिलाफ अवैध प्रवेश का मुकदमा चला था।
परंतु Dominica के सरकारी वकील वहाँ के न्यायालय में यह सिद्ध करने में सफल रहे कि मेहुल ने कोई अवैध प्रवेश नहीं किया, और मुकदमा खारिज हो गया।
आज मेहुल के खिलाफ जारी किए गए Interpol के रेड कॉर्नर नोटिस के रद्द होने की खबर भी सुर्खियों में है। Interpol अदालत