‘बापू, यह हैं आचार्य चतुरसेन, महान इतिहासकार और लेखक,’
जमनालाल बजाज ने महात्मा गांधी से चतुरसेन का परिचय कराते हुए आगे कहा, ‘आपने कहा था ना नवजीवन के लिए संपादक चाहिए, यह सबसे योग्य पात्र हैं, इन्हें दे दीजिए यह कार्यभार।’
‘नमस्ते बापू’ आचार्य चतुरसेन ने गांधी जी का अभिवादन किया
‘नमस्ते शब्द में वेदों की बू आती है, यह ठीक नहीं है।’ गांधी जी बोले।
‘जी,’ आचार्य चतुरसेन आगे बोले, ‘तो फिर राम—राम बापू।’
‘देखे राम—राम बोलना हिन्दू—मुस्लिम एकता के लिए सही नहीं है।’ गांधी जी ने फिर कहा।
‘वंदेमातरम बापू।’ आचार्य जी ने पुन: अभिवादन किया।
‘नहीं वंदेमातरम् भी सही नहीं है, इसमें बुतपरस्ती की बू आती है। हमें आजादी चाहिए तो ऐसी भाषा का प्रयोग करना होगा, जिससे मुस्लिमों को ठेस न पहुंचे।’
‘जय बापू।’
‘हूं,’ गांधी जी फिर आगे बोले, ‘हम तुम्हें नवजीवन का संपादक बनाते हैं, एक हजार वेतन मिलेगा। सबकुछ तुम्हें ही करना होगा। मेरे नाम से लेख लिखने होंगे, न्यूज छापनी होंगी, मेरे भाषण लिखकर देने होंगे।
और हां संपादक में मेरा नाम जाएगा, तुम किसी से यह नहीं कहोगे कि यह सब तुम करते हो।’
‘बापू मैं सबकुछ करने को तैयार हूं, लेकिन संपादक में मेरा नाम जाना चाहिए, आपका नहीं।’
‘नहीं यह नहीं हो सकता।’ गांधी जी ने विरोध किया।
‘तो फिर यह आचार्य चतुरसेन भी ऐसे स्वार्थी और तुष्टिकरण करने वाले को जीवन में कभी बापू नहीं कहेगा और तुम्हारे दर्शन आज के बाद नहीं करेगा।’
कहकर आचार्य चतुरसेन चले गए।
आचार्य चतुरसेन ने जीवन में फिर कभी गांधी के दर्शन नहीं किए।
आचार्य चतुरसेन की आत्मकथा का एक अंश
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आयुर्वेदिक औषधियों में विराजती हैं नव दुर्गे🙏
आयुर्वेद में कुछ औषधियों को माँ दुर्गा का प्रतिरूप बताया गया है।ये नौ औषधियाँ माँ दुर्गा और शक्ति का स्वरूप होने के कारण दुर्गाकवच के नाम से भी जानी जाती हैं।
एक कवच की भांति इन औषधियों में व्यक्ति को विभिन्न रोगों से बचाकर रखने की
शक्ति होती है। आइये देखें नौदुर्गा औषधि कवच क्या हैं।
माँ शैलपुत्री : हरड़
नवदुर्गा का प्रथम रूप माँ शैलपुत्री का है जो पर्वत राज हिमालय की पुत्री होने के कारण दिया गया है। औषधि रूप में माँ दुर्गा हरड़ या हरीतकी के रूप में विराजमान हैं। अनेक रोगों में काम आने वाली हरड़,
आयुर्वेद की प्रमुख औषध मूल रूप से यह सात प्रकार की होती है। एक अच्छे रोगनाशक के रूप में इसे,कंजंक्टिवाइटिस गैस संबंधी परेशानी और पुराने बुखार, साइनस, एनीमिया और हिस्टीरिया आदि में प्रयोग किया जाता है ।
Swami Chinmayanandaji a renowned saint, was met by a a sick ular minded journalist, who generally bent upon showing Hinduism in poor light, vis a vis other religions, asked a question to Swamiji:
Q: Who is the founder of Islam?
A: Prophet Mohammad.
Q: Who is the founder of Christianity?
A: Jesus Christ.
Q: Who is the founder of Hinduism?
Thinking that Swamiji has been trapped in a ticklish situation with no answer,
the lady journalist enthusuastically proceeded further:
Yes. There is no
founder and hence, Hinduism is not a religion or Dharma at all.
Ans: Then, Swamiji said: You are right.
Hinduism is not a religion.
It is a Science.
She did not understand that.
Now it was turn of Swamiji to put some questions to journalist lady.
मज़ार पे चढ़ावे के पाखंड को उजागर करते हुए तुलसीदास जी ने ५०० साल पहले एक प्रश्न, हिन्दू-समाज से पूछा था, जो कि आज तक अनुत्तरित है, उन्होंने पूछा था कि बहराइच में, सैय्यद सालार मसूद की मजार पर जाने से किस अंधे को आँख मिली ? किस बाँझ को
पुत्र हुआ ? और किस कोढ़ी का शरीर सुन्दर हो गया ? उसको मेरे सामने लाओ
बहराइच में हिन्दूओं ने अपना सबसे मुख्य पूजा स्थल" गाजी बाबा की मजार को बना रखा है
मूर्ख हिंदू लाखों रूपये, हर वर्ष इस पीर पर चढाते है।जबकि इतिहास का जानकर हर व्यक्ति जनता है, कि महमूद गजनवी के उत्तरी भारत को १७ बार लूटने व बर्बाद करने के
संख्याओं को शब्दों के रूप में अभिव्यक्त करने की एक प्राचीन भारतीय पद्धति है जिसमें ऐसे साधारण शब्दों का प्रयोग किया जाता है जो किसी निश्चित संख्या से संबन्धित हों।
यहाँ 'भूत' का अर्थ है - 'सृष्टि का कोई जड़ या चेतन, अचर या चर पदार्थ या प्राणी'।
भूतसंख्या, कटपयादि-संख्या से अलग होती है यह पद्धति प्राचीन काल से ही भारतीय खगोलशास्त्रियों एवं गणितज्ञों में प्रचलित थी।
उदाहरण के लिये संख्या २ के लिये 'नयन' का उपयोग भूतसंख्या का एक छोटा सा उदाहरण है। नयन,नेत्रे (आँख) २ से सम्बन्धित है
इसी प्रकार 'पृथ्वी, भू’ शब्द का उपयोग १ (एक) के लिये किया जाता है
परंतु कुछ शब्दों के लिए दो संख्याएं सम्भावित है। जैसे रस – लोक में 6 रस ( भोजन वाले ) होते हैं । साहित्यशास्त्र में 9 रस ( अभिनय वाले ) बताए गए हैं
ऐसे स्तिथि मे से जो सामान्य और ज्यादा प्प्रचलित है,उसे लेते हैं
सेंधा नमक ➖ भारत से कैसे गायब कर दिया गया ? जो शरीर के लिए Best Alkalizer है
आप सोचते होंगे की आख़िर ये सेंधा नमक बनता कैसे है ? तो पहले जानिए कि नमक मुख्य कितने प्रकार के होते हैं। एक होता है समुद्री नमक, दूसरा होता है सेंधा नमक (rock salt)
सेंधा नमक बनता नहीं है पहले से ही बना बनाया है, ये प्रकर्ति का बनाया हुआ प्राकृतिक नमक है। पूरे उत्तर भारतीय उपमहाद्वीप में खनिज पत्थर के नमक को ‘सेंधा नमक’ या ‘सैन्धव नमक’, लाहोरी नमक अलग-अलग नाम से जाना जाता है ।
जिसका मतलब है ‘सिंध या सिन्धु के इलाक़े से आया हुआ’।
वहाँ नमक के बड़े बड़े पहाड़ है सुरंगे है। वहाँ से ये नमक आता है। मोटे मोटे टुकड़ो मे होता है, यह ह्रदय के लिये उत्तम, और पाचन (digestion) मे मदद रूप, त्रिदोष शामक, और ठंडी तासीर वाला, पचने मे हल्का होता है। इससे पाचक रस बढ़्ते हैं।
As per Modern Science the speed of light is 186,000 miles/second
Now read it carefully & get to know the Power of Vedic Science👇
Speed of light was known to Indians in Vedic period and was determined accurately in Rig Ved thousands #LongThread
of years ago.
It was further elaborated by Sayana ( An influential commentator on the Vedas) in the 14th century AD in his commentaries on Rig Ved.
Many years after that, The velocity of Light was calculated by ‘Maxwell’ in the 19th century.
In Rig-Ved,there is a hymn which
is incredibly close to the information about the speed of light
तथा च स्मर्यते योजनानां सहस्त्रं द्वे द्वे शते द्वे च योजने एकेन निमिषार्धेन क्रममाण नमोऽस्तुते।। -सायण ऋग्वेद भाष्य (१.५ ० .४)
अर्थ- आधे निमेष में 2202 योजन का मार्गक्रमण करने वाले प्रकाश तुम्हें नमस्कार है ।