यह नारा न सिर्फ जातीय विद्वेष बल्कि इस देश में ब्राह्मणवाद की चरम सीमा को दिखा रहा हैं.
किसी का बाप बनना या किसी को नाजायज मानना अपने आप में महिला विरोधी नारा हैं!
अनुच्छेद 19(2) का उल्लंघन है।
~ "अनुच्छेद 19 - वाक्-स्वातंत्र्य आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण" -भाग III – मूलभूत अधिकार
[(2) खंड (1) के उपखंड (क) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर
[भारत की प्रभुता और अखंडता]****, राज्य की सुरक्षा,विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों,
लोक व्यवस्था,शिष्टाचार या सदाचार के हितों में अथवा न्यायालय-अवमान,मानहानि या अपराध-उद्दीपन के संबंध में युक्तियुक्त निर्बंधन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बंधन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य
को निवारित नहीं करेगी ।]***
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यदि भारत देश में *लोकतंत्र* को जीवित रखना है।
तो हम, भारत के लोगों के बीच *भारत का संविधान, अनुच्छेद - 19* का राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार प्रसार करना बेहद जरूरी है।
सर, मैडम
अनुच्छेद 19
(1) सभी नागरिकों को--
(क) वाक्-स्वातंत्र्य और अभिव्यक्ति-स्वातंत्र्य का,
(ख) शांतिपूर्वक और निरायुध सम्मेलन का,
(ग) संगम या संघ बनाने का,
(घ) भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण का,
(ङ) भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग में निवास करने और बस जाने का, [और]*
(छ) कोई वृत्ति,उपजीविका, वयापार या कारोबार करने का अधिकार होगा।
*भारत का संविधान,अनुच्छेद - 28 : कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतंत्रता, भाग - III, मूलभूत अधिकार;*
1) राज्य-निधि से पूर्णतः पोषित किसी शिक्षा संस्था में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी।
2) खंड (1) की कोई बात ऐसी शिक्षा संस्था को लागू नहीं होगी जिसका प्रशासन राज्य करता है किंतु जो किसी ऐसे विन्यास या न्यास के अधीन स्थापित हुई है जिसके अनुसार उस संस्था में धार्मिक शिक्षा देना आवश्यक है।
3) राज्य से मान्यता प्राप्त या राज्य-निधि से सहायता पाने वाली शिक्षा संस्था
को लागू नहीं होगी जिसका प्रशासन राज्य करता है किंतु जो किसी ऐसे विन्यास या न्यास के अधीन स्थापित हुई है जिसके अनुसार उस संस्था में धार्मिक शिक्षा देना आवश्यक है।
3) राज्य से मान्यता प्राप्त या राज्य-निधि से सहायता पाने वाली शिक्षा संस्था में उपस्थित होने वाले किसी व्यक्ति को ऐसी
*भारत का संविधान,अनुच्छेद - 25 : अंतःकरण की और धर्म की अबाध रूप से मानने,आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता, भाग - III, मूलभूत अधिकार;* 1) लोक व्यवस्था,सदाचार और स्वास्नय तथा इस भाग के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए,
सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की स्वतंत्रता का और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान हक होगा।
2) इस अनुच्छेद की कोई बात किसी ऐसी विद्यमान विधि के प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या राज्य को कोई ऐसी विधि बनाने से निवारित नहीं करेगी जो--
क) धार्मिक आचरण से संबद्ध किसी आर्थिक, वित्तीय, राजनैतिक या अन्य लौकिक क्रियाकलाप का विनियमन या निर्बन्धन करती है;
ख) सामाजिक कल्याण और सुधार के लिए या सार्वजनिक प्रकार की हिंदुओं की धार्मिक संस्थाओं को हिंदुओं के सभी वर्गों और अनुभागों के लिए खोलने का उपबंध करती है।
ग्रिस का इतिहासकार ग्रोट के अनुसार संवैधानिक नैतिकता मतलब संवैधानिक सिद्धांतो के प्रति सर्वोत्तम सन्मान रखकर कानून(भारत का संविधान) के निश्चित दायरे में रहकर
काम करनेवाले नागरिक,सरकार के आदेशो का पालन करते हुए,उनको खुद की राय और कार्य को स्वतंत्रता से अभीव्यक्त करना चाहिए और जनता
से संबंधित लिए हुए निर्णय से संबंधित सत्ताधारीयों पर संयमीत टिप्पणी करना चाहिए,ये करते हुए अलग अलग दलो में सत्तास्पर्धा होना स्वाभाविक है,फिर भी संविधानिक सिद्धांतो के प्रति सन्मान हमारा इतना ही विरोधी दलो के मन में है ऐसा भरोसा
भारत का संविधान का अनुच्छेद 25 में सभी वर्गों के भारत के नागरिकों को उनके धर्म का पालन एवं प्रचार प्रसार की स्वतंत्रता दी गई है और विषय को मौलिक अधिकारों में रख न्यायालय को संरक्षक बनाया गया है।
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न्यायालय के पास किसी भी विशेषत: मौलिक अधिकारों के विषय पर स्वतः संज्ञान का विशेषाधिकार भी है।
पर प्रशासन के सुस्त आचरण पर न्यायालय द्वारा संज्ञान न लेना दुर्भाग्यपूर्ण है।
न्यायालय को चाहिए कि अनुच्छेद 25 पर व्याख्या जारी करें।ताकि ब्राह्मणवादियों द्वारा दुष्प्रचार पर रोक लगे।
सीख जैन बौद्ध धर्म के मानने वालो के बीच ब्राह्मणवादियों द्वारा पत्रकारिता की आड़ में अधिक वातावरण अशांत करने का षड्यंत्र रचा जा रहा है।
पंजाब,मध्यप्रदेश,उत्तर प्रदेश,जम्मू कश्मीर,हिमाचल प्रदेशराजस्थान हरियाणा जैसे राज्यों में अधिक आतंक है।