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1971
4) लोगों में संवैधानिक नैतिकता
डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने यह जॉन स्टुअर्ट मिल के विधान का भारत के लोगो को इशारा संविधान सभा में 25/11/1949 के दिन क्यो दिया था?
https://twitter.com/PratiharSurendr/status/1647237615874342915@RahulGandhi @laluprasadrjd @mkstalin @Mayawati @yadavakhilesh @jayantrld @yadavtejashwi @SachinPilot @ChiefMihirArmy @maheshindia @LtGovDelhi @ArvindKejriwal @Profdilipmandal @Fight4RightTeam @JANTA_KI_AAWAJ_ @TribalArmy @HemantSorenJMM @WamanCMeshram
1) इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले भारत के राज्यक्षेत्र में प्रवृत्त सभी विधियाँ उस मात्रा तक शून्य होंगी जिस तक वे इस भाग(अनुच्छेद 12 से 35) के उपबंधों से असंगत हैं।
उनके अन्वेषण के लिए और उन कठिनाइयों को दूर करने और उनकी दशा को सुधारने के लिए संघ या किसी राज्य द्वारा जो उपाय किए जाने चाहिएं।



'मैं,अमुक,जो राज्यसभा (या लोकसभा) में स्थान भरने के लिए अभ्यर्थी के रूप में नाम निर्देशित हुआ हूँ ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं विधि द्वारा स्थापित *भारत का संविधान* के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा
अंग्रेजों तथा गांधी द्वारा अपील थी कि आजीवन कारावास की सजा हो।
अनुच्छेद 19


2) खंड (1) की कोई बात ऐसी शिक्षा संस्था को लागू नहीं होगी जिसका प्रशासन राज्य करता है किंतु जो किसी ऐसे विन्यास या न्यास के अधीन स्थापित हुई है जिसके अनुसार उस संस्था में धार्मिक शिक्षा देना आवश्यक है।



सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की स्वतंत्रता का और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान हक होगा।



न्यायालय के पास किसी भी विशेषत: मौलिक अधिकारों के विषय पर स्वतः संज्ञान का विशेषाधिकार भी है।
लंबी चली लड़ाई में डॉ.अंबेडकर ने कई आंदोलन किए।मंदिर प्रवेश के मुद्दे पर उन्होंने 1927-30 के बीच अछूतों के साथ नाशिक के काला राम मंदिर,पूना के पार्वती और अमरावती के अंबादेवी मंदिर में प्रवेश किया,जहां उन्हें हिंसा का भी सामना करना पड़ा।
डॉ.अंबेडकर को वंचितों और स्त्रियों के लिए हर उस स्थिति से लड़ना था जो उनके हालात के लिए जिम्मेदार थी।उन्होंने समय-समय पर ऐसे कई आंदोलन किए,जिन्होंने हिंदू धर्म की जड़ों पर चोट की।
स्त्री अधिकारों के प्रति वे कितने संवेदनशील थे, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस हार के बाद उन्होंने 27.11.1951 को कानूनमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। तब से आज तक इस बिल को कई टुकड़ों में पारित किया गया,
की दिशा में #मील का #पत्थर साबित हो सकता था। यह सिर्फ स्त्री अधिकारों पर आधारित था और यही इस बिल की खासियत थी। इसमें स्त्रियों को अपनी मर्जी से #विवाह और #तलाक,पति से अलग रहने पर गुजारा भत्ता,गोद लेने (बच्ची को भी गोद लिए जाने) और बच्चों के संरक्षण का भी अधिकार दिया गया था।
केवल बदला,बल्कि कहीं ज्यादा #मानवीय हुआ और महिला श्रमिकों के लिए विशेष सुविधाएं लागू की गईं। #कारखानों और #खदानों में काम के घंटे घटाकर फिर से निर्धारित किए गए। स्त्री और पुरुष श्रमिकों के लिए समान वेतन के अधिकार का भी प्रावधान किया गया।