आरआरआर मुवी के गाने को ऑस्कर पुरस्कार मिला | भारतीय होने के नाते गौरव की बात है | नहीं तो पहले गरीबी दिखाकर /बेचकर ही पुरस्कार मिला करता था |
पहले दक्षिण की मुवीज,खासकर अतिशय एक्शन सींस देखकर सोचती थी कुछ ज़्यादा नहीं हो गया?मतलब कुछ भी?
पर अब सोचती हूँ इसमें बुरा क्या है ? भारतीय धर्म,संस्कृति को नीचा दिखानेवाले,क्लब,दारू,पार्टी और अश्लील शब्द बोलनेवाले,गलत नैरेटिव सेट करनेवाले रीढ़हीन कहानियों और चरित्रों को देखकर अगर युवा भटकता है मतलब उसका पक्का असर होता है |
तो आरआरआर जैसी मुवीज देखकर मन में वीर रस भर जाये तो इसमें दिक्कत क्या है भला?
सच बताइए अंत में जब विस्फोट से भरा बिल्डिंग ढहता है तो क्या आपलोगों को अच्छा नहीं लगता? ऐसा नहीं लगता कि दुश्मनों का अहंकार का क़िला
चकनाचूर हो गया है ? जोश नहीं चढ़ जाता?
जंगली जानवरों को वश में करना,ज़हरीले साँपों का ज़हर उतारना,मुश्किल बीमारियों का जड़ी-बूटियों से इलाज करना,खास तरह की आवाज़ों से कुछ खास इशारे करना,ज़हर लगे तीर से अचूक निशाना साधना ये सब बातें हमारे लिये अविश्वसनीय हो सकता है जैसा कि फ़िल्म में दिखाया गया है |
पर ये सब पुराने,ज़बरदस्त,कारगर और अचूक नुस्खे आज भी जंगली जनजातियों में हैं |यहाँ के नागाओं को ही देख लीजिए |
वे RRRके भीम की तरह ही सरल,सच्चे दिलवाले हैं | वे पैदाइशी शिकारी, तैराक शक्तिशाली योद्धा होते हैं |दोस्त बने तो जान दे देंगे |धोखा दिया तो सर धड़ से अलग कर फेंक दें।
हमने ही कितनी हैरतंगेज घटनायें सुनी हैं इसकी कोई गिनती नहीं |
सिनेमा समाज का दर्पण नहीं बल्कि समाज पर अपने हिसाब से असर कर सकनेवाली,नैरेटिव सेट कर सकनेवाली टूल है |
राजामौली जैसे लोग इस तरह की टूल्स से जब अपने धर्म,संस्कृति,समाज,देश के लिये,
अपने हक़ के लिये लड़नेवाले नायकों को वीर के रूप में दिखायेंगे और वो भी पूरे भारतीय मिर्च,मसाले के साथ ( चाहे अतिशय एक्शन सींस के साथ ही सही ) तो नयी पीढ़ी में कूल डूड बनने का क्रायटेरिया भी धीरे-धीरे बदलने लगेगा।
ग्रुप फोटो देखिए, देखकर आपको लगेगा यह सही मायने में है भारत ।अमेरिका में भी बिना अंगप्रदर्शन किया और न ही 5 किलो का मेकअप पोते भी आप सुंदर और बहुत सुंदर लग सकते हो ।फिल्म तो है ही भारतीय संसकृति पर आधारित, लेकिन कलाकार भी अपनी संस्कृति को नहीं भूले।
यही है असली भारत ।👌👍👍 #RRR
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#कैकेयी नहीं बल्कि ये रूपवती राजकुमारी थी रामायण की मुख्य खलनायिका..?
सीताराम की कथा में सबसे महत्वपूर्ण प्रसंग वनवास से लेकर रावण वध तक का है. और, सीता राम के वनवास का कारण प्रत्यक्ष रूप में कैकेयी दिखती हैं, तो अप्रत्यक्ष रूप से कैकेयी के कान भरने वाली मंथरा है.
लेकिन इस $मंथरा की क्या कहानी है? आपके लिए यह जानना दिलचस्प होगा कि सच में #मंथरा क्या दासी थी या कोई राजकुमारी..
आम तौर पर सह पात्र समझी जाने वाली कुबड़ी #मंथरा (Manthara) को कुछ कथा वाचक रामकथा की मुख्य खलनायिका तक करार देते हैं ।
क्योंकि उसी की वजह से सीता और राम (Ram & Sita) को वनवास भोगना पड़ा. लेकिन, कैकेयी (Kaikeyi) की दासी मंथरा के बारे में आप कितना जानते हैं? वह कबसे कैकेयी की दासी थी? उससे पहले की कथा क्या थी? क्या वह हमेशा से कुरूप थी?
जो बेटी घर से भाग कर शादी नही,अपनी हवस के लिए परिवार को त्याग देती,वो बेटी इस पिता की कहानी को पढ़े।
घर से भागी हुई बेटियों का पिता इस दुनिया का सबसे अधिक टूटा हुआ व्यक्ति होता है, पहले तो वो महीनों तक घर से निकलता ही नही और फिर जब निकलता है तो हमेशा सिर झुका कर चलता है,
आस पास के मुस्कुराते चेहरों को देख उसे लगता है जैसे लोग उसी को देख कर हँस रहे हों, जीवन भर किसी से तेज स्वर में बात नहीं करता, डरता है कहीं कोई उसकी भागी हुई बेटी का नाम न ले ले, जीवन भर डरा रहता है, अंतिम सांस तक घुट घुट के जीता है, और अंदर ही अंदर रोता रहता है।
जानते हैं भारतीय समाज अपनी बेटियों को लेकर इतना संवेदन शील क्यों है,
भारतीय इतिहास में हर्षवर्धन के बाद तक अर्थात सातवीं आठवीं शताब्दी तक बसन्तोत्सव मनाए जाने के प्रमाण मौजूद हैं, बसन्तोत्सव बसन्त के दिनों में एक महीने का उत्सव था
भारत के बारे में दस ऐसी जानकारी जिन्हें पढ़कर आपका सीना गर्व से चौड़ा हो जायेगा (1) जब साइंस नाम भी नहीं था तब भारत में नवग्रहों की पूजा होती थी। (2) जब पश्चिम के लोग कपडे पहनना नहीं जानते थे, तब भारत रेशम के कपडों का व्यापार करता था।
(3) जब कहीं भ्रमण करने का कोई साधन स्कूटर मोटर साईकल, जहाज वगैरह नहीं थे। तब भारत के पास बडे बडे वायु विमान हुआ करते थे।(इसका उदाहरण आज भी अफगानिस्तान में निकला महाभारत कालीन विमान है जिसके पास जाते ही वहाँ के सैनिक गायब हो जाते हैं। जिसे देखकर आज का विज्ञान भी हैरान है)
4) जब डाक्टर्स नहीं थे। तब सहज में स्वस्थ होने की बहुत सी औषधियों का ज्ञाता था, भारत देश सौर ऊर्जा की शक्ति का ज्ञाता था भारत देश। चरक और धनवंतरी जैसे महान आयुर्वेद के आचार्य थे भारत देश में।
अस्सी नब्बे के दसक में विदेशों में भारत और भारतीयों की पहचान बस टैक्सी ड्राइवर, कुली, संपेरों और मदारियों के देश की ही थी.
उसकी एक बड़ी वजह थी - फ़िल्में. सिटी ऑफ़ जॉय जैसी फ़िल्में बनती थीं जिसमें भूखे नंगे भिखारी दिखाये जाते थे.
फ़िल्म के आरम्भ और अंत में कैप्शन होता था कुछ डालर दान दे दो तो भारत में किसी को महीने भर का ख़ाना मिल जाएगा. जेम्स बॉण्ड की मूवी थी ऑटोपसी. शूटिंग भारत में हुई थी. लेकिन भारतीय या तो नौकर की भूमिका में थे या साँप बंदर खाने वाले. यहाँ तक कि हीरोइन भी विदेशी रखी थी.
फ़िल्में समाज का आईना होती हैं,फ़िल्मो ही समाज के बारे में राय बनाती हैं.हॉलीवुड फ़िल्में देख एक आमधारणा है कि अमेरिका में तो बस गौरी लड़कियाँ तैयार खड़ी रहती हैं चुम्मी देने के लिए.हक़ीक़त में गौरी लड़की के नाज, नख़रे झेल पाना आम देशी के बस का नहीं.पर फ़िल्मों ने छवि बना दी.
आखिर कोई तो बात होगी राहुल गांधी में? जो देश विदेश की वामपंथी लॉबी, दुनियाभर में फैले अर्बन नक्सल्स, बीबीसी, कैंब्रिज और अमेरिकी अखबार उनके मुरीद हो रहे हैं? जेएनयू, जामिया, जादवपुर, अलीगढ़ और हैदराबाद उस्मानिया विश्व विद्यालयों के छात्र, देसी विदेशी टूल किट्स, कांग्रेस पार्टी
और देश का एक सामाजिक हिस्सा, सब राहुल के मुरीद कैसे हो गए, चाहे वे चीन हो या पाकिस्तान? कुछ तो होगा, पर आखिर ऐसा क्या है राहुल में!
राहुल ने एक हिस्से पर पकड़ तो बनाई है। इसके बावजूद वे विपक्ष द्वारा सामूहिक रूप से प्रोजैक्ट नहीं हो पा रहे। जब भी मोदी के विकल्प की बात आती है,
तमाम विरोधी पार्टियां होंठ सिल लेती हैं। ममता, अखिलेश, केसीआर, केजरीवाल, नीतीश, शरद पवार आदि नेताओं ने एक बार भी नहीं कहा कि राहुल हमारे नेता होंगे। मजेदार बात यह कि राहुल की उम्मीदवारी से चेन्नई में स्टालिन के जन्मदिन मंच पर खड़गे भी इंकार कर आए।
एक घंटे में 60 मिनट और एक मिनट में 60 सेकंड ही क्यों होते हैं ?
ये तो आप जानते हैं कि एक घंटे में 60 मिनट होती है और एक मिनट में 60 सेकेंड्स होती है। लेकिन,कभी आपने सोचा है कि आखिर इसकी शुरुआत कैसे हुई होगी और सबसे पहले 60 के आधार पर गणना किसने की होगी।ये जानना काफी दिलचस्प है
कि आखिर सबसे पहले 60 वाले इस कंसेप्ट की किस तरह शुरुआत हुई और सबसे पहले इसकी शुरुआत किसने की थी। इसके बाद आप समझ पाएंगे कि समय में एक घंटे में 60 मिनट और 60 सेकेंड्स का कंसेप्ट किस तरह से शुरू हुआ।
डीडब्ल्यू हिंदी की एक रिपोर्ट के अनुसार, बेबीलोन के लोगों द्वारा विकसित की गई
यह एक प्राचीन प्रणाली पर आधारित होता है, जो मेसोपोटामिया की सभ्यता में रहते थे। रिपोर्ट के अनुसार, उन लोगों ने बाएं हाथ के अंगूठे से चार अगुंलियों के 12 हिस्सों को गिना था, जिसे एक पवित्र अंक माना था। इसके बाद उन्होंने रात और दिन को इस 12 के आधार पर बांट दिया। हालांकि,