कुछ जीवन अभिशप्त होते हैं। विडंबनाओं के घने जाल में उलझे। सौंदर्य का प्रतिमान मानी जाने वाली अभिनेत्रियों के जीवन पर कई बार कोई काली छाया घिर आती है। उसके बाद उनके जीवन में उजाला अगर आता भी है तो बहुत क्षीण होकर आता है। #MeenaKumari
मीना कुमारी की जिंदगी दर्द की एक अनकही दास्तां है। परदे पर भी उन्हें दर्द भरी कहानियों में क़ैद करने की कोशिश की गई, हालांकि मीना आपा ने जब कॉमेडी फिल्में की तो कमाल किया। मीना के जीवन और ज़ेहन की खरोंचें शायरी में उतरीं। #Khayyam
1970 के आसपास संगीतकार खैयाम ने उनकी आवाज़ में उनके अशआर रिकॉर्ड किए। ये एक नज़ीर है शायरी के एक बेहतरीन रिकॉर्ड को सलीके से तैयार करने की। ऑडियो पोस्ट किया है सुनिएगा।
ज़रा टाइमलाइन देखिए, मीना उस वक्त स्टूडियो में रिकॉर्ड कर रही होंगी जब समय के स्केल पर उनके हिस्से का दायरा बस दो बरस का ही बाक़ी था। उन्होंने अपनी आवाज़ में दर्द उड़ेल दिया। वैसे ही जैसे वो हमेशा करती थीं।
मीना एक उदास बयार थी। आई और गई।
उदासी की गूंज आज भी सुनाई देती है।
चाँद तन्हा है आसमाँ तन्हा
दिल मिला है कहाँ कहाँ तन्हा।।
बुझ गई आस छुप गया तारा
थरथराता रहा धुआँ तन्हा।।
ज़िंदगी क्या इसी को कहते हैं
जिस्म तन्हा है और जाँ तन्हा।।
हम-सफ़र कोई गर मिले भी कहीं
दोनों चलते रहे यहाँ तन्हा।।
जलती-बुझती सी रौशनी के परे
सिमटा सिमटा सा इक मकाँ तन्हा।।
राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा।।
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आज @mumbaiheritage पर राजाबाई टावर के निर्माण की इस तस्वीर ने कितनी पुरानी यादों को जगा दिया। इस तस्वीर में बनते हुए राजाबाई टावर के पीछे अरब सागर नज़र आ रहा है। यानी राजाबाई टावर के पीछे का काला घोड़ा वाला इलाक़ा संभवत: तब नहीं था। आईये कुछ दिलचस्प तथ्यों पर ध्यान दें।
हम आमतौर पर इस बात पर ध्यान नहीं देते कि राजाबाई टावर गेटवे ऑफ इंडिया से भी पुरानी इमारत है। राजाबाई टावर का निर्माण नवंबर 1878 में पूरा हो गया था। जबकि गेट-वे ऑफ इंडिया का निर्माण 4 दिसंबर 1924 को पूरा हुआ था। पर इससे भी पुरानी है यहां की एक और इमारत।
1870 में इस इलाक़े में बनकर तैयार हुआ था चर्चगेट स्टेशन जो सेंट थॉमस कथीड्रल के पास था। ये भी बता दें कि ये चर्च 1718 में बनकर तैयार हो गया था। यानी राजा बाई टावर इससे साठ साल बाद बना। और चर्चगेट स्टेशन राजाबाई टावर के आठ बरस बाद बना। ये रही इसकी तस्वीर।
आज गीतकार आनंद बख़्शी की पुण्यतिथि है।
उनके कई कई ऐसे गाने हैं जो हमारे होठों पर सजते हैं। ज़िंदगी की राहों में हमारे साथी बन जाते हैं। बख़्शी साहब का कमाल ये है कि एक तरफ़ जहां वो ‘सफल होगी तेरी आराधना’ और ‘बड़े अच्छे लगते हैं ये धरती’ लिखते हैं @RakBakX
तो दूसरी तरफ़ वो ‘तेरा नाम लिया तुझे याद किया’ और ‘मेरे जीवन साथी प्यार किए जा’ भी। वो ‘चोली के पीछे’ भी लिखते हैं तो ‘चिट्ठी आई है’ और ‘चिट्ठी ना कोई संदेस कहां तुम चले गये’ लिखकर हज़ारों हज़ार आंखों को नम भी कर जाते हैं। बख़्शी साहब का एक गीत मुझे बड़ा प्रिय रहा है।
तलत अज़ीज़ साहब एक फ़िल्म बना रहे थे ‘धुन’। जिसके लिए बख़्शी साहब ने लिखा—‘मैं आत्मा तू परमात्मा’। मूल रूप से इसे तलत अज़ीज और मेहदी हसन ने गाया है। यहां मैं जो गीत लेकर आया हूं—इसे गाया है ख़ुद आनंद बख़्शी ने।
अस्सी का दशक बड़ा प्यारा था। भोपाल शहर था और टीन-एज। 1984 का वो दौर रहा होगा। 1983 में क्रिकेट विश्व विजेता बनी थी भारतीय टीम। उसके बाद एक बदहवासी थी। दीवानगी थी क्रिकेट को लेकर।
उधार में मिली क्रिकेट मैग्ज़ीन पढ़कर ख़ुद को फ़न्ने खां समझना। खिलाड़ियों के पोस्टर हासिल करने के ख़्वाब देखना। उन्हीं दिनों आई थी इस तरह की फ़्लिप बुक।
तब तो ये भी नहीं पता था कि इसे फ़्लिप बुक कहते हैं। किसी एक लड़के के पास थी—और वो दिखा-दिखा कर चिढ़ाता था।
ये सबको हासिल नहीं होती थी। ठीक से याद नहीं किसने, पर गावस्कर के शॉट वाली ये बुक किसी दिलदार दोस्त ने दे दी थी। थोड़े दिन थी अपने पास। तब लगता था कि दुनिया की दौलत अपने पास है।
दो बरस हुए....कोंकण में कर्ली नदी के किनारे सूर्योदय हो रहा था और मन में गूँज रहा था कुमार गंधर्व का दिव्य-स्वर...
फिर Kalapini Komkali जीजी ने बातों बातों में बताया कि इस नदी का नाम काळी नदी का अपभ्रंश है जो कुमार जी के पारिवारिक नाम का मूल उद्गम है। #KumarGandharva #UdJayega
शायद एक डोर थी जो कर्ली नदी के किनारे कुमार जी के स्वर से मन को आलोकित कर रही थी...हम मध्यप्रदेश में पले-बढ़े सत्तर अस्सी के दशक की पीढ़ी के लोगों को सदा कुमार जी निकट लगते रहे। शहर बदलते रहे-पर लगता रहा कि ये जो हवाएं आ रही हैं-- इनका एक अंश भानु-कुल को छूकर आ रहा होगा।
हमारे आंसूओं और मुस्कानों का साक्षी रहा कुमार जी का स्वर।
कुछ उदास शामें होती थीं, जब पता नहीं था कि जीवन का रास्ता क्या होगा, भविष्य क्या होगा... तब भी कुमार जी की आवाज़ गूंजती थी और सूरज क्षितिज के उस पार डूब जाता था।
RRR के गाने ‘नाटू नाटू’ को ‘गोल्डन ग्लोब’ मिला है। इसके संगीतकार हैं एम एम कीरवानी जिन्हें हिंदी जगत में एम एम क्रीम के नाम से ही जाना जाता है। क्रीम बेमिसाल संगीतकार हैं पर उनका काम लोगों की नज़रों से दूर रहा है। #GoldenGlobes#NatuNatu#natunatusong#MMKreem#MMKeeravani
असल में हमारे यहां गानों को उनके संगीतकार या गीतकारों से जोड़कर देखने-सुनने की परंपरा ज़्यादा नहीं है। बहरहाल... अपनी निजी राय ये है कि भले ‘नाटू नाटू’ किरवानी का सबसे अच्छा काम नहीं है। तो फिर वो कौन से गाने हैं जिन्हें एम.एम. क्रीम की प्रतिभा के लिए सुना जा सकता है।
मुझे लगता है कि ‘ज़ख़्म’ का गाना ‘गली में आज चाँद निकला’ क्रीम के सर्वश्रेष्ठ गीतों में से एक है। इसे आनंद बख़्शी ने लिखा है। इस गाने के बनने की कहानी फिर कभी। पर इस गाने में है भावनाओं की कोमलता और बेमिसाल संगीत संयोजन। #Zakhm #GaliMeinAajChand
रवींद्र जैन ने कहा था कि अगर कभी वो संसार का देख पाये, तो सबसे पहले येसुदास को देखना पसंद करेंगे, क्योंकि वो ईश्वर का स्वर हैं। किसी गायक के लिए इससे बड़ा कोई तमग़ा नहीं हो सकता। इसे रूपक कहूं, विशेषण कहूं....मुझे समझ नहीं आता। #Yesudas
किसी-किसी स्वर में कविता की रसधारा समायी हुई होती है।
जब वो इलैयाराजा की धुन पर गुलज़ार के बोलों को अपने कंठ का स्वर्ण-स्पर्श देते हैं—तो मन के कोमलतम कोनों को स्पर्श कर जाते हैं—‘हल्का-फुल्का शबनमी/ रेशम से भी रेशमी….सुरमई अंखियों में नन्हा-मुन्ना एक सपना दे जा रे.....
हममें से भला कौन होगा जो एक शिशु की नींद ना सोना चाहता हो..आज किसी अंजान व्यक्ति ने सोशल मीडिया पर बड़ी विकलता से कहा, ‘नाहक बड़े हो गए’। उसके शब्दों में अतीत को जीने की विकलता थी, उस माहौल में बने रहने की विकलता—जिसे हम पीछे छोड़ आए। और फिर इस गीत में येसुदास का ‘रा री रा रू