विनायक दामोदर सावरकर ने बीसवीं सदी के पहले दशक में एक क़िताब लिखी थी। मराठी में लिखी गई यह क़िताब सन 1857 की क्रांति की महागाथा है।
शीर्षक है 'सत्तावनचे स्वातंत्र्य समर'।
सन 1909 में इसका पहला गुप्त संस्करण छपा। अंग्रेज सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया था। ये क़िताब इंग्लैंड में रहने के दौरान लिखी गई थी। बड़ी मुश्किलों के बाद छपी थी।
बाद में इसका हिंदी अनुवाद '1857 का स्वातंत्र्य समर' शीर्षक से प्रकाशित हुआ।
सावरकर की इस क़िताब में मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र का खूब उल्लेख है।
वैसे भी आज़ादी की पहली लड़ाई 1857 की क्रांति का इतिहास बहादुर शाह के बिना पूरा हो भी नहीं सकता। क्रांतिकारियों ने बूढ़े मुग़ल बादशाह को अपना नेता माना था और मई 1857 में दिल्ली के तख्त पर दुबारा बैठा दिया था।
सावरकर की क़िताब में उसी मुग़ल बादशाह का अलग अलग अध्याय में उल्लेख है।
क़िताब में एक अध्याय (प्रकरण 3)है जिसका शीर्षक है 'दिल्ली'।
इस अध्याय में दिल्ली के लाल किले और मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर का रेखाचित्र छपा है।( देखें - पेज 107 )
इस अध्याय में सावरकर ने क्रांति के शुरुआती दिनों में दिल्ली में क्रांतिकारियों की जीत और 11 मई 1857 को बहादुरशाह को हिंदुस्तान के बादशाह बनाए जाने का ज़िक्र किया है। इसमें बादशाह की जयजयकार के साथ उसके दुबारा तख्त पर बैठने को हिंदू मुस्लिम एकता की जीत बताया है।
इसी क़िताब में एक और अध्याय है 'दिल्ली लड़ती है' (पेज 235)। इसमें भी स्वतंत्रता समर का नेतृत्व बहादुर शाह को सौंपने की हिमायत की गई है।
'दिल्ली हारी' शीर्षक वाले अध्याय में सावरकर ने अंग्रेजों के हाथों हुए कत्ले आम का उल्लेख किया है।
बहादुर शाह के साथ गद्दारी करने वाले इलाही बख्श और मुंशी रजब अली को सावरकर ने 'दगाबाज कुत्ते' लिखा है।
इन दोनों ने ही बहादुर शाह की गिरफ्तारी के बाद कैप्टन हडसन को बताया था कि मुगल शहजादे हुमायूं के मकबरे में छुपे हैं।हडसन ने क्रूरता से इन शहजादों को मार डाला।
सावरकर ने लिखा-तैमूर के वंश वृक्ष की वे अंतिम पत्तियां हडसन ने तोड़ डालीं।
आज इतिहास से मुगल काल को हटाने वालों को चुनौती है...दम है तो सावरकर की क़िताब में से मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र का नाम मिटा कर दिखाइए.!
है हिम्मत..! बोलिए..! @DrRakeshsahai
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या जल गई। पता नही, पर कहा जाता है कि अलेग्जेंड्रिया की लाइब्रेरी, दुनिया की सबसे बड़ी लाइब्रेरी थी। इतनी बडी, कि केवल किताबो की सूची ही, 192 खंडों में हुआ करती थी।
सिकन्दर महान ने दुनिया जीती। पहले इजिप्ट जीता, और वहां अपने नाम का शहर बसाया।
उसकी तमन्ना थी, अपने गुरु एरिस्टोटल को दुनिया की सबसे बड़ी लाइब्रेरी बनाकर दे।
लेकिन वो तमन्ना रह गयी, सिकन्दर चल बसा। टॉलमी में ये बीड़ा उठाया। औऱ दुनिया की सबसे बड़ी लाइब्रेरी तामीर कर दी। समुद्र तट पर, एक गगनचुंबी लाइट हाउस बना, जो दुनिया के सात अजूबों में गिना गया।
लेकिन उसके पास ही तट पर बनी ये लाइब्रेरी, पूरी दुनिया के लिए ज्ञान का लाइट हाउस थी।
टॉलमी को जुनून था, कि दुनिया की हर बुक, हर मैन्युस्क्रिप्ट की एक कॉपी उस लाइब्रेरी में हो। जहाज जो बंदरगाह पर आते, उन्हें किताबे लाने का आदेश था।
इस नए पाठ्यक्रम में दिनेश ठाकुर को न शामिल करना मुझे अपनी व्यक्तिगत क्षति प्रतीत हो रही है।
सुरेंद्र मोहन पाठक वेद प्रकाश शर्मा केशव पंडित जैसे मनुवादियों जातियों के उपन्यासकार मुझे कभी पसंद नही आये।
इन मनुवादी उपन्यासकारों के ढाई सौ पेज के उपन्यासों में महज आधा एक पेज के यौन दृश्य होते थे।
ऐसी हरकतों को मैं पाठकों के साथ ठगी मानता था और मानता हूँ।
मेरे फेवरेट हिंदी के लुग्दी उपन्यासकार दिनेश ठाकुर हैं।
दिनेश ठाकुर को मैं महानतम लुग्दी लेखक मानता हूँ।
दिनेश ठाकुर का एक कालजयी किरदार था "रीमा भारती"।
मैंने दिनेश ठाकुर कृत रीमा भारती श्रृंखला के अधिकांश उपन्यास पढ़ रखे हैं।
रीमा भारती श्रृंखला के उपन्यास यौनिक विवरणों से समृद्ध होते थे।
रीमा भारती एक जासूस थी और घनघोर राष्ट्रवादी महिला थी।
CHINA RENAMED 11 PLACES IN ARUNACHAL PRADESH, INCLUDING ONE CLOSE TO ITANAGAR: BUT WE ARE BUSY IN #DANGANAVAMI
The Hindu अख्बार के अनुसार कल चीन ने तीसरी बार हमारे अरूनाचल प्रदेश के 11 जगह का "नाम-पता" बदल दिया है जिस मे एक जगह अरूनाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर के क़रीब है।
इस के पहले चीन 2017 और 2021 मे अरूनाचल प्रदेश का नाम बदल कर Zhagnan रख दिया है और अरूनाचल के 25 ज़िला मे 15 का नाम बदल चूका है।
चीन ने नाम-पता बदलने का हुनर हम लोगो से ही सिखा है।उत्तर प्रदेश मे कुमारी मायावती ने दर्जन भर जगह का नाम बदला,
शहज़ादा जोगी ने इलाहाबाद, मोगल सराय स्टेशन तथा गोरखपुर के गॉव व बाज़ार तक का नाम बदल कर गौरवमयिए हो रहें हैं।
दुख की बात यह है चीन द्वारा भारत की भूमि का तिब्बतन "नाम-पता" रखने पर न हमारे विश्वप्रख्यात दार्शनिक, हिन्दी विद, इतिहास वेत्ता कुछ बोल रहे हैं और न ही मायावती या जोगी
मैं पहले कहता था नरसिंहराव महानतम प्रधानमंत्री थे, हमने उनके समय को भुगता है, भयानक बेरोजगारी थी, अब से थोड़ा कम।
जनता को रोजगार की चिंता न रहे तो लॉटरी चला दी गई थी, सुबह आठ से रात के आठ तक हर आधा घण्टे में लॉटरी। न बेरोजगारी न महंगाई, आदमी चड्ढी खरीदने के बजाय लॉटरी
खरीदना पसन्द करता था, चड्ढी फ़टी हो तो भी कौन देख पायेगा, लॉटरी लगी तो बंगला गाड़ी सब आ जाना है। तो जो जूता सन बानवे में पचास का बिकता था वो छियानवे तक पचास का बिका
लॉटरी खेलने वाला ये कभी नहीं सोचता था कि ग्यारह के सौ देने में दस नम्बर बेचकर दस रुपये लॉटरी मालिक को ही बचने हैं।
बहुत घर बरबाद हुए, कई लोग पंखों से लटके।
फिर भी इसमें जो अच्छा था वो ये कि इसमें जनसम्पर्क अच्छा होता था। नए दोस्त बनते थे, बैठकें होती थीं। अपना भी समय अच्छा कटा क्योंकि अपने पास खोने को कुछ न था।
पहाड़ों से ढंका, मध्य यूरोप का एक देश, दुनिया का स्वर्ग कह लीजिए। दूर दूर तक जहां निगाह जाए बस बर्फीले या हरे पहाड़, नयनाभिराम गांव, झीलें, साफ सुथरी स्ट्रीट, बालकनी से झांकते फूलों से भरे गमले
स्विट्जरलैंड कोई एक देश नही, संघ है। चार देशों का संघ, सबका अपना झंडा अपना इलाका, अपना प्रशासन। तो देश का मोटो है- वन फ़ॉर आल, आल फ़ॉर वन।
एक करोड़ भी नही इस देश की जनसँख्या, बर्न राजधानी है, ज्यूरिख सबसे बड़ा शहर। जेनेवा, लुजर्न जाने पहचाने शहर।
इंटरलाकेन तो आपने देखा ही होगा, शाहरुख और यश चोपड़ा की फिल्मों में।
देश का हर पांचवा नागरिक, विदेशी मूल का है। लोग फ्रेंच बोलते हैं, जर्मन बोलते हैं, इटालियन बोलते हैं। दरअसल हर प्रान्त एक कैप्टन कहलाता है, और हर कैप्टन की अपनी राजभाषा है।
मोदी राज में अडानी के हवाले एकऔर बंदरगाह कर दिया गया अडानी पोर्ट ने कराईकल पोर्ट को 1485 करोड़ रुपये में खरीद लिया है इसे मिलाकर गुजरात,महाराष्ट्र,गोवा, केरल,आंध्र प्रदेश,तमिलनाडु और ओडिशा जैसे सात समुद्री राज्यों में अब कुल 14 बड़े घरेलू बंदरगाहों पर अडानी का कब्जा हो चुका है
दरअसल अडानी साम्राज्य को विस्तार देने का श्रेय भी अडानी पोर्ट्स को ही जाता है जिसकी शुरूआत मुंद्रा पोर्ट से हुई थी अडानी ग्रुप का मुंद्रा पोर्ट आज भारत का सबसे बड़ा निजी बंदरगाह है. सन 2000 में गुजरात की बीजेपी सरकार ने कौड़ियों के भाव हजारों एकड़ जमीन अडानी के हवाले कर दी
थी उसी जमीन पर यह पूरा मुंद्रा पोर्ट खड़ा हुआ है , इस पूरी जमीन को देने में पर्यावरण को ताक पर रख दिया गया था, लेकीन ये तो हम सब जानते ही हैं जो हम नही जानते उसे परंजय गुहा ठाकुरता ने बहुत विस्तार से बताया है