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समाचारों में किसके कहने पर छपा जातियों का ग़लत कोड?
नीरज प्रियदर्शी,
पटना से @Dpillar_News के लिए,
बिहार से प्रकाशित एवं प्रसारित होने वाले अख़बारों, टीवी न्यूज़ चैनलों और न्यूज वेब पोर्टल्स ने जातिगत जनगणना के लिए सरकार द्वारा तय किए जातियों के कोड की ग़लत एवं भ्रामक जानकारी
दी है. क्योंकि, सरकारी दस्तावेज़ों में जातियों का जो कोड अंकित है, वह मीडिया में छपे कोड से अलग है.
बिहार सरकार ने हालाँकि अभी अधिकारिक रूप से भी इसकी घोषणा नहीं की है कि जातिगत जनगणना के लिए किस जाति का कौन सा कोड तैयार किया गया है. मगर, इससे पहले ही प्रमुख मीडिया संस्थानों ने
ग़लत एवं भ्रामक जानकारी प्रकाशित कर कुछ ऐसे सवाल खड़े कर दिए हैं, जिनका हल यदि जल्दी नहीं ढूँढा गया तो बहुत संभव है कि बिहार सरकार को जातिगत जनगणना कराने में बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है.
सबसे पहले तो जिन मीडिया संस्थानों ने बिहार में जातियों का ग़लत कोड प्रकाशित
किया है, उनके ख़िलाफ़ सरकार को कठोर क़ानूनी कार्रवाई करनी चाहिए. क्योंकि, यह एक मामूली या मानवीय भूल नहीं है.
जिस तरह सभी अख़बारों और टीवी न्यूज़ चैनलों ने जातियों का ग़लत कोड एक साथ प्रकाशित किया, प्रथमदृष्ट्या ऐसा लगता है कि यह जानबूझकर एक षड्यंत्र के तहत किया गया है.
मालूम हो कि बिहार सरकार ने राज्य में जातिगत जनगणना की प्रक्रिया शुरू कर दी है. प्रतिष्ठानों और मकानों की गिनती पूरी हो चुकी है. अब 13 अप्रैल से जनगणना की शुरुआत होने वाली है.
लेकिन, इससे पहले ही प्रमुख मीडिया संस्थानों द्वारा जातियों का ग़लत कोड प्रकाशित कर दिया जाना,
स्पष्ट करता है कि यह जनमानस के बीच जातिगत जनगणना को लेकर भ्रम और ग़लतफ़हमी पैदा करने के लिए किया गया.
ख़ासतौर पर, बिहार के सभी प्रमुख अख़बारों ने यह ग़लत जानकारी प्रकाशित कर राज्य के सुदूर इलाक़ों में रह रहे नागरिकों तक भी असत्य सूचना पहुँचा दी है, जिसे केवल तभी दुरुस्त किया
जा सकता है जब ये अख़बार माफ़ीनामा लिखते हुए दोबारा से सत्य एवं तथ्यपरक जानकारी प्रकाशित करें और लगातार करें.
लेकिन जो झूठ और असत्य प्रकाशित हो चुका है, उसके लिए प्रकाशक और प्रसारक को सजा मिलनी ही चाहिए. जैसा कि क़ानून कहता है - “किसी को जातिसूचक शब्द से संबोधित करने पर न्यूनतम
छह महीने की क़ैद और पाँच सौ रुपए का जुर्माना है.” इस हिसाब से देखें तो मीडिया संस्थानों ने समूची जातियों के सभी लोगों को उनकी जाति के बारे में ग़लत लिखा है. इसलिए सजा भी उसी अनुपात में मिलनी चाहिए.
जहां तक सवाल है कि आख़िर मीडिया संस्थानों ने किसके लिए और क्यों ऐसा किया तो
इसका जवाब बहुत पहले भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से जातिगत जनगणना पर अपनी आपत्ति दर्ज कराके दिया जा चुका है. इसलिए यह समझने में बिल्कुल भी भूल नहीं करिएगा कि अख़बारों में और टीवी चैनलों पर जातियों का ग़लत कोड किसके कहने पर प्रकाशित एवं प्रसारित किया गया.
#ReporterDiary
मनीष कश्यप प्रकरण की रिपोर्टिंग में मैंने पहला वाक्य लिखा था-
“#मनीष_कश्यप की गिरफ़्तारी #राष्ट्रीय_स्वयंसेवक_संघ की बर्बादी या यूँ कह लें कि संघ के पतन का सबसे बड़ा कारण बनेगी.”
कथित पत्रकार मनीष तो गिरफ़्तार पहले ही किया जा चुका है और अब तमिलनाडु पुलिस ने जाँच
और पूछताछ के बाद उसपर #रासुका (#NSA) की धाराएँ लगाकर मेरी रिपोर्टिंग को एक मज़बूत आधार दे दिया है.
विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक़ इस मामले में जिस प्रकार तमिलनाडु पुलिस की जाँच आगे बढ़ रही है और उसे सबूत मिल रहे हैं, उस हिसाब से अब अगली तैयारी #आरएसएस/#भाजपा एवं इसके शीर्ष पदों
पर आसीन कुछ लोगों के खिलाफ भी रासुका की धाराएँ दायर करने की सूचना है. इस जाँच की जद में #बागेश्वर_धाम वाले बाबा से लेकर #मध्यप्रदेश_सरकार एवं #भारत_सरकार के कुछ अहम मंत्री शामिल हैं.