गौतम एक गरीब गुजराती था।
किसी तरह हीरों के व्यापार और एक दो बंदरगाह चलाकर रूखी सूखी खुम्बी खाता। उसकी गरीबी का आलम यह था कि वह, उसकी पत्नी, उसके बच्चे, उसका ड्राइवर, माली, पायलट, गार्ड, बारमैन, पीए और उसके हजारो कर्मचारी, सारे के सारे फटेहाल गरीब थे।
एक सुबह जब उसके पास अपने जेट मे भरवाने के लिए एवियेशन फ्यूल के पैसे भी नही रहे। तो ताना देकर कहा कहा - तुम तो कहते थे, डिग्रीधर तुम्हारे मित्र हैं। जरूर तुम झूठ कहते हो।
ऐसी दयनीय हालत मे वो कोई राजा अपने मित्र को छोड़ता है क्या ... अगर तुम्हारी ये बात जुमला नही थी,
तो जाकर उनसे कुछ मांग ही लो। गौतम ऐसे तो बड़ा स्वाभिमानी था। मगर पत्नी के तानो से तंग आकर उसने तय कर लिया कि अब वह रायसीना जाकर डिग्रीधर से मिलेगा।
उसने थोड़ा बहुत एवियेशन फ्यूल जुगाड़ा और उडान भरी।
प्लेन की फटी हुई सीट पर ठुड्डी टिकाए वह बड़ा उदास था। ऐसे मे व्यक्ति फ्लैश बैक मे चला जाता है। फ्लैश बैक मे गौतम ने देखा- एक बुढिया के घर मे कुछ चोर घुस आए। बुढ़िया भिक्षाटन करके कुछ चने लाई थी। सोचा था कि प्रातः इसे फुलाकर नमक के साथ खाउंगी।
मगर रात को ही घुसे चोरों ने चने चुरा लिए। और भागकर युनिवर्सिटी मे छुप गए। वहां डिग्रीघर, जो तब डिग्रीहीन थे, मित्र गौतम के साथ एंटायर पॉलिटिकल साइंस पढते थे। मने पढते क्या थे, कभी गिलहरी बनते, कभी शेर, कभी समय मिलता तो बंगलादेश संग्राम मे भाग लेते।
इधर उधर कभी इससे नाता जोड़ते कभी उससे।
वही वीसी आफिस मे चोरो ने पोटली छुपा दी। अब गौतम जो थे, ब्रम्हज्ञानी थे। उन्हे पता था कि पेपर चुराने जब डिग्रीहीन वहां जाएगा, तो चना देखकर रूकेगा नही, सारे चट कर जाएगा। और ये चने शापित है, क्योकि बुढिया ने शाप फेंक मारा है कि
जो उसके चोरी हुए चने खाएगा, वो दरिद्र हो जाएगा।
इसलिए वे स्वयं सारे चने भकाभक खा गए। तब से वे दरिद्र हो गए। प्रभु का दरिद्र होने से बचा लिया था। इतने मे प्लेन रायसीना मे लैण्ड कर गया।
महाराज! गुजरात से एक गरीब आदमी आया है।
उसका कोट फटा हुआ है, टाई उधड़ी हुई है, पैण्ट मे पैबंद है। अपना नाम गौटी ब्रो बताता है। कहता है आपका मित्र है ...
ओह। गौटी ब्रो??? ही इज माई पर्सनल फ्रेण्ड ... आने दो।
आदेश पाकर संबित ने गौतम को भीतर भेजा। डिग्रीधर ने उसकी दीनदशा देखी तो कैमरे की ओर देखकर, फफक फफक कर रोने लगे।
जब कैमरे शॉट सही आ गया तो आंसू पोछकर भगवन बोले - तू मुझसे मांगने आया है, कमीशन मे क्या लाया है??
गौतम ने हाथ जोड़े। अपनी सारी कंपनियों के पेपर उनके सामने रख दिये। कहा आपके नाम कर देता हूं। प्रभु ने मुस्कुराये -
"ये घाटे और कर्जे वाली कंपनियां लेकर मै क्या करूंगा मित्र।
ये अपने ही नाम पर रहने दो। इसमे इन्वेस्टमेण्ट आए, मुनाफा हो तो समझ लेना ये मेरा ही माल है"
यह कहकर प्रभु ने एक मुट्ठी पेपर उठाए।
फिर दूसरी मुट्ठी पेपर उठाए।
बाकी पेपर तीसरी मुठ्टी मे उठाने वाले थे कि गौतम पैरो मे गिर गया। बोला- दया निधान कम से कम 33 परसेट तो मेरे पास छोड़ दो।
गौतम प्लेन उठाकर वापस गुजरात पहुंचा। देखा, तो साम्राज्य के सारे पोर्ट, खदान, पीएसयू उसके नाम हो चुके थे। जहां तहां का काला धन उसके खातों मे आ चुका था।
बीवी मुस्कुरा रही थी, उसके हाथ मे फोर्ब्स की लेटेस्ट कॉपी थी।
गौतम का फोटो दूसरे नंबर पर चिपका था। बीवी खुश होकर बलैंया लेने लगी। गौतम ने फोर्ब्स की किताब हाथ मे ली। डबडबाई आखों से अपनी तस्वीर देखता रहा। आंसुओ की झिलमिल के बीच किताब मे ..
उसे अपनी जगह डिग्रीधर की छवि दिखाई दे रही थी।#स्वतन्त्र
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आपको ईश्वरप्पा नामक कर्नाटक के एक मंत्री की स्मृति होगी । एक ठेकेदार ने उनके नाम का नोट लिखकर जान दे दी थी कि ईश्वरप्पा 40% कमीशन लेते हैं जो दे पाना असंभव है । तबसे बीजेपी की कर्नाटक सरकार पर 40% कमीशन की सरकार का ठप्पा लगा हुआ है ।
बाद में ईश्वरप्पा को मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा देना पड़ा था क्योंकि तब एक बीजेपी कार्यकर्ता और ठेकेदार संतोष पाटिल ने भी एक रोड के ठेके में उससे 40% माँगे जाने पर इन्हीं ईश्वरप्पा के नामका सुसाइड नोट लिखा और जान दे दी थी ।
अब इन्हीं ईश्वरप्पा से विद्रोही उम्मीदवार न बनने के लिए प्रधानमंत्री मोदीजी गिड़गिड़ा रहे हैं और ईश्वरप्पा ने इसके वीडियो/ आडियो को मीडिया को दे दिया है । नोएडा मीडिया में तो यह ग़ायब है लेकिन कर्नाटक के स्थानीय चैनलों और सोशल मीडिया पर यह वायरल हो गया है ।
जो बॉटनी के विशेषज्ञ न हो, उन्हें बताऊँ पौधे के मुरझा जाने को वैज्ञानिक भाषा मे प्लांट विल्टिंग कहते हैं। दो वजहों में एक है - बीमारी, और दूसरा पानी का अभाव..
याने सींचोगे नही, तो पौधा मुरझा जायेगा। मगर क्या सींचने के बावजूद पौधा मुरझा सकता है।
100%
पौधे में हड्डी मसल्स तो होती नही, कि तनकर खड़ा रहे। उसकी कोशिकाओं में जो पानी होता है, वही पूरे टिशू को तानकर रखता है। यदि पानी कम रहा, तो कोशिका ढीली हो जाएगी।
तनने की बजाय पत्तियां झूल जाती हैं।
इसे फिजिकल ड्राइनेस कहते हैं। पानी का अभाव हुआ, पौधा मुरझाया। सिंचाई कर दी, पौधा खिल गया। बशर्तें जो पानी डाला है, उसकी सांद्रता पौधे के भीतर मौजूद पानी से कम हो।
आज का इटली कभी रोमन राज हुआ करता था। पर जब रोम गिरा, तो वह दौर भी आया जब इस पर तमाम दूसरे आक्रांताओं ने कब्जा जमाया। यहां छोटे छोटे राज्य हो गए, और बहुत से राजे महाराजे।
1850 के बाद गैरीबाल्डी ने इटली का एकीकरण किया औऱ मौजूदा इटली अस्तित्व में आया। इसमे मेनलैंड से अलग आइलैंड भी शामिल था,
इसे सिसली कहते हैं।
सिसली में बड़े छोटे जमींदार थे, कानून व्यवस्था बनाकर रखते। मगर जब नेशन स्टेट बन गया, उनके अधिकार छिन गए।
पुलिस रखी गयी। जो नाकाफी थी। जमींदारो के अत्याचार से परेशान गरीब सिसली वाले, बागी बन जाते। गैंग बनाते, धनिकों को मारते, लूट लेते। ये करने वाले बहादुर थे, जनता के हीरो थे।
माफिया का मतलब "बहादुर" या "जांबाज" ही होता है। आगे चलकर यह बेरोजगार लड़कों का धंधा बन गया।
एक गांव में एक दाढ़ी वाले बाबा आये। उनके आने से पहले उनके चेले चपाटों ने गांव में हवा फैला दी कि बाबाजी 35 साल हिमालय में भीख मांग कर तप जप किये हैं। बहुत चमत्कारी बाबा हैं।
आते ही विलेज को विला बना देंगे।
बाबाजी आये झोला लेकर। सबने मिलकर बाबाजी को गांव की सत्ता थमा दी।
बाबाजी और उसके चेलों ने मिलकर धूमधाम नौटंकी शुरु की।
त्राहिमाम मचा दिया।
जब रोज रोज नई नौटंकियां फेल होने लगीं, तो बाबाजी ने सभी भक्तों को बुलाकर कहा, मैं आप लोगों को दिन में तारे दिखाऊंगा। और ये योग पूरे 78000 साल बाद आता है। सच्चे मन का जो होगा, छल कपट रहित और जो एक बाप की
संतान होगा सिर्फ उसे ही दिन में तारे दिखेंगे।
भक्त तो भक्त! कुछ नया देखने मिलेगा। चल पड़े बाबाजी के साथ। बाबाजी एक गहरे सूखे कुएं के पास ले गए और सबको अंदर जाने को कहा।सब भक्त कुएं में उतर गए और बाबाजी ने लाउडली सबको कहा कि ऊपर आसमान में देखो। तारे दिखेंगे।
चुहिया को हल्दी की गांठ मिल गई तो वह खुद को पंसारी समझ बैठी
जब से नरेंद्र मोदी जी भारत के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर आसीन हुए हैं, लगातार ही अपने आप को भारत का सबसे विशिष्ट, सबसे महान, सबसे विद्वान, सबसे दूरदर्शी, सबसे बड़ा राष्ट्रभक्त, सबसे बड़ा धर्मपरायण, सबसे बड़ा हिन्दू,
सम्राट और यहां तक कि परमपिता परमेश्वर के अवतार के रूप में भी प्रक्षेपित और प्रचारित-प्रसारित कर रहे हैं। आत्म-प्रचार का ऐसा रोग आजतक किसी को भी नहीं लगा था। चौबीसों घंटे, सातों दिन और बारहों महीने अपने इसी मिशन में लगे हुए हैं।
पर सबसे दुखद बात यह है कि इतना सब कुछ करने,सारे तामझाम अपनाने और बेशुमार दौलत खर्च करने के बावजूद भी भारत की जनता यह मानने को तैयार नहीं है कि वे भारतीय इतिहास के सबसे महान व्यक्तित्व और शासक हैं।लगातार जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी को अपमानित करते हुए भी वे उनके द्वारा स्थापित