#मेसोपोटामिया_का_शहरीकरण_मंदिर_और_राजा
5000 ई0 पू0 यानी आज से 7 हजार साल पहले मेसोपोटामिया(आज के इराक में दजला और फरात नदियों के बीच का उपजाऊ वाला भाग) के दक्षिणी हिस्सों में मानव बस्तियों के विकास होने लगा था। इन्हीं बस्तियों में से कुछ ने प्राचीन शहरों का रूप ले लिया।
मेसोपोटामिया में शहर 3 प्रकार से विकसित हुये। पहला मंदिर के चारों ओर, दूसरा व्यापारिक केंद्रों के रूप में और तीसरा राजसी शहर के रूप में।
पुरातत्वविदों का ऐसा अनुमान है कि मेसोपोटामिया में मंदिरों को बनाने का काम यहाँ पर बाहर से आकर बसने वाले लोगों ने शुरू किया था
(इनके मूल स्थान का अबतक पता नहीं चल पाया है, ठीक वही हाल है जैसे अपने यहाँ विवाद चलता है प्राचीन समय के मूल निवासी और बाहर से आये लोगों के बारे में कैसे पता किया जाय😊)
मेसोपोटामिया का सबसे पुराना मन्दिर जो पुरातात्विक खुदाई से मिला है वो एक छोटी सी संरचना है
जो कि कच्ची ईंटो का बना था। ये मन्दिर आगे चलकर बड़े होते गए क्योंकि अब इनके खुले आँगन के चारो ओर कई कमरे बनाये जाने लगे थे। कुछ शुरुआती मन्दिर तो साधारण घरों जैसे ही बने हैं लेकिन कुछ अन्य मंदिरों की अलग विशेषता यह है कि मंदिरों की बाहरी दीवारें कुछ खास अंतरालों के बाद
भीतर और बाहर की ओर मुड़ी हुई होती थीं। "उर" यहाँ के चन्द्र देवता थे तो इन्नाना यहाँ प्रेम और युद्ध की देवी थीं।
मंदिरों में लोग अनाज, दूध के बने पदार्थ और मछलियाँ लेकर आते थे चढ़ाने के लिए( पुराने मंदिरों के फर्शों पर इनका पुरातात्विक जमाव देखा जा सकता है)।
यहाँ के आराध्य देवता खेतों, तालाबों/नदियों और पशुओं के स्वामी माने जाते थे। समय के साथ मंदिर उत्पादित सामानों के अदला-बदली(वस्तु-विनिमय) के केंद्र बन गए। बस्तियों के व्यवस्थापक, व्यापारियों के नियोक्ता, अनाज, पशुधन, जौ की शराब, मछली आदि के आवंटन और वितरण के लिखित अभिलेखों का
संग्रह के लिए भी मंदिरों ने अपने कार्यक्षेत्र बढ़ा लिए थे और मुख्य शहरी संस्था के रूप में विकसित होने लगे थे। इस शहरी व्यवस्था के विकास के कुछ अन्य कारण भी मेसोपोटामिया में विद्यमान था।
अब अगले भाग में सामुदायिक मंदिरों, मुखिया और उनके अनुयायी तथा धीरे-धीरे विकसित होने वाले राजकीय व्यवस्था के बारे में लिखा जाएगा।
आगे चलकर तो मंदिरों का ऐसा विकास होता है कि एक सूची के अनुसार एक बड़े मन्दिर को बनाने के लिए 1500 आदमियों ने पाँच साल तक रोज 10 घण्टे तक काम किया था।
आपको ईश्वरप्पा नामक कर्नाटक के एक मंत्री की स्मृति होगी । एक ठेकेदार ने उनके नाम का नोट लिखकर जान दे दी थी कि ईश्वरप्पा 40% कमीशन लेते हैं जो दे पाना असंभव है । तबसे बीजेपी की कर्नाटक सरकार पर 40% कमीशन की सरकार का ठप्पा लगा हुआ है ।
बाद में ईश्वरप्पा को मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा देना पड़ा था क्योंकि तब एक बीजेपी कार्यकर्ता और ठेकेदार संतोष पाटिल ने भी एक रोड के ठेके में उससे 40% माँगे जाने पर इन्हीं ईश्वरप्पा के नामका सुसाइड नोट लिखा और जान दे दी थी ।
अब इन्हीं ईश्वरप्पा से विद्रोही उम्मीदवार न बनने के लिए प्रधानमंत्री मोदीजी गिड़गिड़ा रहे हैं और ईश्वरप्पा ने इसके वीडियो/ आडियो को मीडिया को दे दिया है । नोएडा मीडिया में तो यह ग़ायब है लेकिन कर्नाटक के स्थानीय चैनलों और सोशल मीडिया पर यह वायरल हो गया है ।
जो बॉटनी के विशेषज्ञ न हो, उन्हें बताऊँ पौधे के मुरझा जाने को वैज्ञानिक भाषा मे प्लांट विल्टिंग कहते हैं। दो वजहों में एक है - बीमारी, और दूसरा पानी का अभाव..
याने सींचोगे नही, तो पौधा मुरझा जायेगा। मगर क्या सींचने के बावजूद पौधा मुरझा सकता है।
100%
पौधे में हड्डी मसल्स तो होती नही, कि तनकर खड़ा रहे। उसकी कोशिकाओं में जो पानी होता है, वही पूरे टिशू को तानकर रखता है। यदि पानी कम रहा, तो कोशिका ढीली हो जाएगी।
तनने की बजाय पत्तियां झूल जाती हैं।
इसे फिजिकल ड्राइनेस कहते हैं। पानी का अभाव हुआ, पौधा मुरझाया। सिंचाई कर दी, पौधा खिल गया। बशर्तें जो पानी डाला है, उसकी सांद्रता पौधे के भीतर मौजूद पानी से कम हो।
आज का इटली कभी रोमन राज हुआ करता था। पर जब रोम गिरा, तो वह दौर भी आया जब इस पर तमाम दूसरे आक्रांताओं ने कब्जा जमाया। यहां छोटे छोटे राज्य हो गए, और बहुत से राजे महाराजे।
1850 के बाद गैरीबाल्डी ने इटली का एकीकरण किया औऱ मौजूदा इटली अस्तित्व में आया। इसमे मेनलैंड से अलग आइलैंड भी शामिल था,
इसे सिसली कहते हैं।
सिसली में बड़े छोटे जमींदार थे, कानून व्यवस्था बनाकर रखते। मगर जब नेशन स्टेट बन गया, उनके अधिकार छिन गए।
पुलिस रखी गयी। जो नाकाफी थी। जमींदारो के अत्याचार से परेशान गरीब सिसली वाले, बागी बन जाते। गैंग बनाते, धनिकों को मारते, लूट लेते। ये करने वाले बहादुर थे, जनता के हीरो थे।
माफिया का मतलब "बहादुर" या "जांबाज" ही होता है। आगे चलकर यह बेरोजगार लड़कों का धंधा बन गया।
एक गांव में एक दाढ़ी वाले बाबा आये। उनके आने से पहले उनके चेले चपाटों ने गांव में हवा फैला दी कि बाबाजी 35 साल हिमालय में भीख मांग कर तप जप किये हैं। बहुत चमत्कारी बाबा हैं।
आते ही विलेज को विला बना देंगे।
बाबाजी आये झोला लेकर। सबने मिलकर बाबाजी को गांव की सत्ता थमा दी।
बाबाजी और उसके चेलों ने मिलकर धूमधाम नौटंकी शुरु की।
त्राहिमाम मचा दिया।
जब रोज रोज नई नौटंकियां फेल होने लगीं, तो बाबाजी ने सभी भक्तों को बुलाकर कहा, मैं आप लोगों को दिन में तारे दिखाऊंगा। और ये योग पूरे 78000 साल बाद आता है। सच्चे मन का जो होगा, छल कपट रहित और जो एक बाप की
संतान होगा सिर्फ उसे ही दिन में तारे दिखेंगे।
भक्त तो भक्त! कुछ नया देखने मिलेगा। चल पड़े बाबाजी के साथ। बाबाजी एक गहरे सूखे कुएं के पास ले गए और सबको अंदर जाने को कहा।सब भक्त कुएं में उतर गए और बाबाजी ने लाउडली सबको कहा कि ऊपर आसमान में देखो। तारे दिखेंगे।
चुहिया को हल्दी की गांठ मिल गई तो वह खुद को पंसारी समझ बैठी
जब से नरेंद्र मोदी जी भारत के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर आसीन हुए हैं, लगातार ही अपने आप को भारत का सबसे विशिष्ट, सबसे महान, सबसे विद्वान, सबसे दूरदर्शी, सबसे बड़ा राष्ट्रभक्त, सबसे बड़ा धर्मपरायण, सबसे बड़ा हिन्दू,
सम्राट और यहां तक कि परमपिता परमेश्वर के अवतार के रूप में भी प्रक्षेपित और प्रचारित-प्रसारित कर रहे हैं। आत्म-प्रचार का ऐसा रोग आजतक किसी को भी नहीं लगा था। चौबीसों घंटे, सातों दिन और बारहों महीने अपने इसी मिशन में लगे हुए हैं।
पर सबसे दुखद बात यह है कि इतना सब कुछ करने,सारे तामझाम अपनाने और बेशुमार दौलत खर्च करने के बावजूद भी भारत की जनता यह मानने को तैयार नहीं है कि वे भारतीय इतिहास के सबसे महान व्यक्तित्व और शासक हैं।लगातार जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी को अपमानित करते हुए भी वे उनके द्वारा स्थापित