सूखे की वजह सेकुलरता हैं ।आप को लगेगा अजीब बकवास हैं ।
बकवास नही हैं सच्चाई हैं सेकुलरता के चक्कर में पिछले 68 सालो में हिंदुत्व के प्रतीकों को खत्म किया गया जिसमे पीपल बर और नीम के पेड़ सरकारी स्तर पर लगना बन्द हो गए ।
पीपल कार्बन डाई ऑक्साइड का 100 % अब्सोर्बर हैं
बड वृक्ष 80% और नीम 75 % अब यह चुकी हिन्दू लोग इसपर जल चढ़ाते हैं इसलिए सरकार तथाकथित कुछ सामुदाय के लोगों को खुश करने के चक्कर में इन पेड़ो से दुरी बना लिया इसके बदले #इकोलिप्ट्स जो जमीन को जल विहीन कर देता हैं । उसे लगाना राजीव गांधी ने चालू किया और आज हर जगह
इकोलिप्ट्स गुलमोहर और अन्य सजावटी पेड़ो ने ले लिया पर जब वायुमण्डल में रिफ्रेशर नही रहेगा तो गर्मी तो बढ़ेगी ही और जब गर्मी बढ़ेगी तो जल भाप बनकर उड़ेगा ही आज देश में इतना प्रदूषण हैं हमारा चैलेंज अगर राज्य और केंद्र सरकार मिलकर 500 मीटर पर एक पीपल का पेड़ लगाये साल भर
बाद प्रदूषण मुक्त देश होगा । वैसे आपको एक और जानकारी दे दू जब सोमनाथ चटर्जी लोकसभा अध्यक्ष थे तब मंत्रियो और सांसदो के आवास के अंदर से सभी नीम और पीपल के पेड़ कटवा दिए थे । कम्युनिस्ट कितने मानसिक रूप से पिछड़े हैं इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता हैं । की तब लोकसभाध्यक्ष
पीपल और नीम कटवाने का कारण बताये थे की इन पेड़ो पर भूत निवास करते हैं । मिडिया में बड़ा मुद्दा नही बना क्यों की हिन्दू धर्म के प्रतीक थे। इन पेड़ो को ज्यादा से ज्यादा लगाये इकोलिप्ट्स पर बैन लगाया जाय और जिसके पास इतनी भी जग़ह न हो वह तुलसी का पौधा लगाये और देश को प्राकृतिकआपदा
से बचाये । मीरा रोड में नया नगर सबसे बड़ा मुस्लिम इलाका हैं । और वहाँ जितने भी पढ़े लिखे मुस्लिम हैं उनके घर तुलसी का पौधा मिल जायेगा वह पूजा नही करते पर तुलसी लगाते जरूर हैं । अब आप को ऊपर की एक लाइन समझ में आया होगा की सूखे की वजह सेकुलरता हैं ।
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#हिंदू_इकोनॉमी
हमारे हॉस्पिटल के कुछ जॉब्स की वैकेंसी निकली थी. कुल 8 जॉब्स के लिए 140 एप्लीकेशन आए. हमारी एक कलीग जो उसकी शॉर्टलिस्टिंग कर रही थी उसने बताया कि उसमें सिर्फ चार के पास यूके एक्सपीरियंस था, बाकी सब बाहर से आए. पूछा, कहां कहां से आए तो उसने ब्रेक अप दिया...कराची और
लाहौर तो खाली हो गया है, सारे उठकर आ गए. नाइजीरिया और सूडान भी खाली हो गया है, नेपाल और बर्मा में भी भगदड़ मची है. इंडिया से सिर्फ दो एप्लीकेशन हैं.
जबकि आज से पंद्रह बीस साल पहले यहां के जॉब्स में इंडियंस का शेर का हिस्सा होता था. अब शायद ही कोई आता है.
यह फर्क क्यों आया है?
क्योंकि आज इंडिया में सैलरी यहां से बेहतर हो गई है. अब यूके आना इंडियंस के लिए फायदे की बात नहीं रह गई है. जो देश गरीब हैं, जिनकी हालत खराब है वहां से अभी भी लोग आ रहे हैं.
हमारे इंटेलेक्चुअल ने इतने साल ब्रेन ड्रेन के विरुद्ध भाषण दिया, कुछ नहीं हुआ. लेकिन कुछ वर्षों की आर्थिक
हेयरकट लेने गया.
हाँ यहाँ हेयरकट लेने में एक बड़ा झंझट है...आपकी गर्दन के पास रखा चाकू किसकी हाथ में है इसका ख्याल रखना कठिन काम है. लगभग दोगुने पैसे देने होते हैं... गर्दन की हिफाजत के लिए यह मामूली खर्च है. पर उसके लिए कभी कभी एक सप्ताह पहले से अपॉइंटमेंट भी लेनी पड़ती है.
खैर,
मेरे गांव में जो एक गैर हलाल बार्बर शॉप है उसकी अपॉइंटमेंट लेकर पहुँचा. नाई था किम. मेरा हाल चाल गांव पता पूछने के बाद उसने बताया कि वह साउथ कोरिया से है. फिर पता नहीं क्यों मेरी शक्ल देख कर शायद उसे मेरी जीके पर शक पैदा हो गया. उसने मुझे डिटेल में बताने का फैसला किया कि साउथ
कोरिया एक कंट्री है जो जापान के पास है. फिर बताया - यू नो, साउथ कोरिया! सैमसंग, एलजी, ह्युंडई...बिग मल्टीनेशनल जायंट्स....
मैंने एक सेकंड के लिए सोचा... अच्छा, तो तुम्हें इससे क्या? कर तो तुम रहे हो हजामत...तेरे पास कोई ह्युंडई और एलजी के शेयर तो होंगे नहीं.
फिर सोचा तो यही बात
सोचिए इतने बड़े पद पर जाने के बाद भी इनकी सोच कितनी घटिया और कितनी नीच होती है गुजरात के आनंद जिला न्यायालय के जज ने अपने अधीन आने वाले 10 कर्मचारियों से टेलीफोन या व्हाट्सएप मैसेज के द्वारा यह पूछा था कि क्या वह अपने ग्रॉस सैलरी में से स्वेच्छा से कुछ अनुदान कोरोना फाइटर्स के
लिए करेंगेअब देखिए किन कर्मचारियों ने अपनी सैलरी में से कुछ दान देने का सम्मति दर्शाया और किन कर्मचारियों ने दान देने का सम्मति नहीं दिखाया पहला नाम लिखा है श्री एमएन शेख ये मुस्लिम है और यह एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज है इन्होंने अस्मती दिखाया यानी कि यह एक रुपए भी कोरोना में दान
नहीं देना चाहते
दूसरा नाम है श्री आरपी वाघेला यह हिंदू हैं यह कोर्ट के रजिस्ट्रार हैं इन्होंने सम्मति दिखाई है कि यह दान देना चाहते हैं तीसरा नाम है श्री एम एफ़ मिर्जा ये मुस्लिम है यह कोर्ट के सुपरिटेंडेंट है इन्होंने भी दान देने में असहमति दिखाइ यानी कि ये भी कोरोना में कुछ
🚩 Narayan Singh Binjhwar, the scion of the Zamindar family of Sonakhan in Chhattisgarh, was born in 1795. 𝐃𝐮𝐫𝐢𝐧𝐠 𝐚 𝐬𝐞𝐯𝐞𝐫𝐞 𝐟𝐚𝐦𝐢𝐧𝐞, 𝐢𝐧 𝟏𝟖𝟓𝟔, 𝐡𝐞 𝐥𝐨𝐨𝐭𝐞𝐝 𝐁𝐫𝐢𝐭𝐢𝐬𝐡𝐞𝐫𝐬 𝐢𝐥𝐥𝐞𝐠𝐚𝐥𝐥𝐲 𝐡𝐨𝐚𝐫𝐝𝐞𝐝
🚩 He was falsely implicated and arrested in October, 1856. When the flames of 1857 war reached Chhatisgarh, the
masses elected the imprisoned Narayan Singh as their leader and liberated him from the jail. After organising the local people, Narayan Singh had an encounter with the British army near Sonakhan.
🚩 Moved by the atrocities of the British and the resultant devastation and