#सभी राजनीतिक दल 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर नफ़ा-नुकसान का गुणा-भाग करके रणनीति बना रहे है।
विपक्ष पुनःतीसरी-चौथी दफ़ा एकजुट होने की कोशिश कर रहा है। 2019 में चंद्र बाबू नायडू,फिर ममता,केसीआर और अब नीतीश कुमार दूसरी बार प्रयासों में विपक्षी दलों के मुखिया से
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मिल रहे है। मिलकर लड़ने का प्रस्ताव रख रहे है।
सरल भाषा में कहे,फिलहाल विपक्षी नेता आपस में मिलकर सामंजस्य बैठा रहे है। फिर ऐलान करेंगे, तब जमीन पर कार्यकर्ताओं के मिलन की बारी आएगी।
2018 और 2019 में अखलेश व मायावती ने गोरखपुर व फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में भाजपा को पटखनी
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दे डाली थी। इसी सफल तर्ज़ पर 2019 में बुआ-बबुआ गठबंधन बना था। तब तमाम विपक्षी राजनीतिक पंडितों ने उत्तर प्रदेश में भाजपा को 15-20 सीट दी और कहा कि ये भी ज्यादा है अगर गठबंधन जमीनी स्तर पर पूरी तरह उतर गया तो क्लीन स्वीप है। बुआ-बबुआ तो मिल बैठे और प्रेस कॉन्फ्रेंस कर डाली।
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निःसन्देह उपचुनाव में जीत भी मिली,लेकिन प्रैक्टिस मैच को असल मनाने से रियल न हो जाता है।
प्रैक्टिस मैच प्रैक्टिस होता है। नेता तो आसानी से मिल जाते है,लेकिन असल कार्य कार्यकर्ताओं को करना होता है। वे भी जमीनी स्तर पर विरोधियों से पंगे लेते है। अब उनके नेता मिल जाए,
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जरूरी तो नहीं वे भी मिले....यही हाल बुआ-बबुआ के गठबंधन का हुआ था।
दूसरी बात! विपक्ष आपस में मिलने की कोशिश में व्यस्त रहता है। पहले खुद मिलन जाए,उसके बाद वे कार्यकर्ताओं को कहेंगे,मिलकर चुनाव लड़ना है। इतने वक्त में उधर,पीएम मोदी केरल के कोच्चि शहर की सड़कों पर सीधे जनता
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जनार्दन से मिल रहे है।
केरल से इतना जबरदस्त उत्साह व स्वागत देखकर यूटुब वाले पत्रकाल बौखला गए और लिखने लगे कि सिर्फ़ गुलाब का फूल मांगने वाले पीएम फूलों को रौंदकर जा रहे है। मानो ऐसा प्रतीत हुआ,कि उनके अरमानों को रौंद दिया हो। बेचारे दर्द में तड़प रहे है।
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राजनीति में सबसे महत्वपूर्ण और दो टूक इंटरेक्शन सिर्फ़ और सिर्फ़ जनता से होता है। फिर आप चाहे बन्द कमरे में कितनी भी रणनीति बना ले,मोहरे बिछा ले। आखिरकार सभी ने जनता को ही केंद्र में लेना है।
पीएम मोदी जानते है और विपक्ष को अच्छे से पहचानते है। तभी तो वे अपना पुरुषार्थ जमीन
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पर जनता के बीच करते है। सीधा संवाद पब्लिक से है। विपक्ष अनजान है मोदी ने अपने अगले स्टेप शुरू कर दिए है। 2024 में पीक पर होंगे। जब विपक्षियों को समझ आएगा न,तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।
उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय दल निकाय चुनाव में व्यस्त है।
इधर,भाजपा निकाय और कर्नाटक दोनों
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संभाल रही है और पीएम मोदी व अमित शाह केरल और तेलंगाना में भाजपा को धार देने में जुट चुके है। मोदी सूबों के चुनाव के साथ अपना चुनाव भी देख रहे है।अपने चुनाव में कतई ढिलाई न करते है।विपक्ष जिन सीट पर फोकस में है। पीएम नई सीट तरकश में जोड़ने निकल पड़े है।दक्षिण द्वार से तमिलनाडु,
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तेलंगाना, केरल भी मजबूती से जुड़ जाए।
मोदी का चेहरा जनता के बीच क्लियर है।2014 से पीएम है और कार्यकाल भी देख रखे है। तो जनता को राय बनाने में देर न लगेगी। जबकि विपक्ष 1977 वाली थ्योरी पर चलने की पुरजोर कोशिश कर रहा है। जनता अब गठबंधन सरकारों से बहुत दूर निकल चुकी है।
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वे गठबंधन सरकारों के बंदर बांट व बहुमत वाली सरकार का नेतृत्व देख चुके है। देश व उन्हें किस सरकार से फायदा है।1977 में भी विपक्षी मिले थे, 2 साल भी ठीक से रह न सके। केंद्र के साथ राज्यों से भी उखड़ते गए और सभी ने अपना अपना हिस्सा बांट लिया और एक दूसरे के खिलाफ लड़ते रहे,अब मोदी
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के कारण इक्कठे होने की पहल कर रहे है। कितना दूर निकल पाएंगे वक्त बतलाएगा। क्योंकि वर्तमान न तो 1977 जैसा है न विपक्ष वैसा रहा है। सबकी महत्वाकांक्षा उफान पर है। सबने पीएम बनना है। हर दल से एक पीएम उम्मीदवार है।
मोदी अपना डायलॉग जनता के बीच रखेंगे और बतलाएँगे कि सब एक साथ क्यों
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आ रहे है।
भ्रष्टाचार....
तब मजा आएगा। विपक्ष अडानी के सिवाय क्या कह पाएगा।जबकि इनके नेता भ्रष्टाचार के सिलसिले में जेल में बैठे है।
अगल-बगल झाकेंगे.....
मोहिनी थियेटर्स ऑफ ड्रामा कंपनी के लिए भारी फजीहत है और अन्य नेताओं के लिए भी बहुत मुश्किल है। U.P में तो योगी बाबा है
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न,सबकुछ सेट कर दिया है। विपक्ष में जोश है,तजुर्बा भी खूब है। लेकिन फिर भी दो बार से नेता प्रतिपक्ष भी पैदा न कर सका है। हर बार जड़ी-बूटी लेकर निकलते है। परंतु क्या करें, सब निष्क्रिय हो जाती है.
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#आत्महत्या
एक कहानी दो औरतो की, दोनों के जीवन में एक ही घटना एक साथ घटी,दोनों का फैसला बिलकुल एक सा, और अंजाम ?
साक्षी अब जीना नहीं चाहती थीं, ख़तम कर देना चाहती थीं इस जीवन को, दिमाग में केवल यही बात घूम रही थी, फैसला हो चूका था, बस अंजाम कैसे देना है यही सोच रही थीं,
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चारो तरफ अँधेरा ही अँधेरा था,अपने ही विचारो में खोयी साक्षी फर्स पर ही बैठी न जाने कब से फर्स को ही घूरे जा रहीं थी,पति की बेवफाई ने साक्षी को अंदर तक तोड़ दिया था,उसकी कही बाते दिल और दिमाग में शूल की तरह चुभ रहे थे,इस बार तो आनंद ने हद ही कर दी,अब जीने का कोई मतलब नहीं हैं,
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न रहूंगी और न ये सब देखूंगी, दोनों बच्चे गहरी नींद में सो रहे थे, एक नजर उनको देखा, उन पर प्यार से हाथ फेरा,आँखों में आंसू का एक कतरा भी नहीं था, उसने मन ही मन एक दृढ निश्चय कर लिया था, रात के दो बज रहे थे, चारो तरफ गहरा सन्नाटा था,साक्षी धीरे से उठी और दुसरे कमरे में चली गयी,
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सामान्य भारतीय सहज व्यवहार पश्चिम में गे होने की निशानी माना जाता है. दो लड़के हाथ में हाथ पकड़े चल रहे हैं, गे हैं. एक बिस्तर पर लेटे हुवे हैं, सो रहे हैं गे हैं. दो लड़कों का साथ सोना,हाथ में हाथ डाल टहलना उसी निगाह से देखा जाता है जैसे भारत में एक लड़का लड़की एक कमरे में एक
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बिस्तर पर सो रहे हों.
उचित भी है, जैसा जज साहब ने कहा कि केवल जननांगो के आधार पर फ़ैसला नहीं हो सकता कौन पुरुष है कौन स्त्री. लड़का लड़का या लड़की लड़की को बिलकुल सामान्य कपल जैसे अधिकार हैं, ओयो में कमरे होंगे, बच्चे पैदा करेंगे, साड़ी सूट पहन रहेंगे-तो जैसे एक सामान्य लड़का
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लड़की का रिलेशन माना जाता है सेक्सुअली उसी दृष्टि से हर रिश्ते को देखा जाएगा.
होमो सेक्सुअलिटी कपल मैरिज, वेडिंग, स्पेशल अधिकार और समाज में मान्यता देने से समाज के सहज नियम बदलेंगे.
अब ऐसा नहीं हो सकेगा कि लड़कों ने मित्र के घर में रुकने का फ़ैसला लिया,रात को वहीं सो गये सब एक
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#कहानी काफल की:
चार धाम यात्रा शुरू हो चुकी है,अब देश विदेश से यात्री इस यात्रा के लिए उत्तराखंड आयेंगे तो आप सब से निवेदन है कि पहाड़ों में जहा भी आपको ये काफल का फल बिकता दिखे,इसे अवश्य खरीदे।
विटामिनों की प्रचूरता एवम फाइबर युक्त होने के कारण डाक्टर भी इसको खाने की सलाह
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दे रहे हैं,इसके बारे में एक कहानी बचपन में सुनी थी सायद पहाड़ों में रहने वाले सब ने सुनी होगी काफी समय पहले यात्रियों की बस चार धाम यात्रा पर निकली थी पहाड़ पर एक जगह ड्राइवर ने बस रोक कर यात्रियों से कहा कि चाय नाश्ता कर लो फिर चलते हैं वही पर एक व्यक्ति ये फल बेच रहा था पहली
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बार ये फल देख कर एक यात्री ने जिज्ञासावस पूछा ई का फल है भैया तो विक्रेता ने कहा हां जी काफल है यात्री ने फिर पूछा ई का फल है ? दुकानदार बोला काफल है बस फिर क्या लड़ाई सुरु हो गई तो अन्य लोग भी आ गए कि क्या हो गया यात्री ने अपने सह यात्रियों को बोला कि में इनसे पूछ रहा कि ई का
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एक बार मुख़्तार सिंह ने एक कबूतर का शिकार किया।
वह कबूतर जाकर एक खेत में गिरा,जब मुख़्तार सिंह उस खेत में कबूतर को उठाने पहुंचा, तभी एक किसान वहां आया और मुख़्तार सिंह से पूछने लगा कि वह उसकी प्रोपर्टी में क्या कर रहा है ?
मुख़्तार सिंह ने कबूतर को दिखाते हुए कहा–
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“मैंने इस कबूतर को मारा है और ये मरकर यहाँ गिर गया इसलिए मैं इसे लेने आया हूँ।”
किसान– “ये कबूतर मेरा है क्योंकि ये मेरे खेत में पड़ा है।”
मुख़्तार सिंह – “क्या तुम जानते हो तुम किससे बात कर रहे हो?”
किसान– “नहीं मैं नहीं जानता और मुझे इससे भी कुछ लेना-देना नहीं है कि
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तुम कौन हो।”
मुख़्तार सिंह– “मैं डॉन हूँ , अगर तुमने मुझे इस कबूतर को ले जाने से रोका तो मैं तुम्हे मार दूंगा और तुम्हारी जमीन जायदाद को हड़प लूंगा और रास्ते का भिखारी बना दूंगा।”
किसान ने कहा– “हम किसी से नहीं डरते … हमारे गाँव में तो बस एक ही डोनगिरी चलती है…
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#सुनो #छागल
इस पीढ़ी में बहुत कम लोग होंगे जो इस मोटे कपड़े की थैली से परिचित होंगे इसे #छागल कहा जाता है
ये नाम सुनकर कई लोग चौंक पड़ेंगे कि #पानी कपड़े की थैली में ???
ये उन दिनों की बात है जब न बाजार में बोतल बंद पानी मिलता था ना #पानी_का_व्यापार होता था न कोई कैम्प थे न
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#Milton की बोतलें थी
गर्मी में पानी पिलाना #धर्म और खुद का पानी घर से लेकर निकलना अच्छा #कर्म माना जाता था
गर्मी के दिनो मे उपयोग आने वाली ये #छागल एक मोटे कपड़े (कैनवास) का थैला होता था,जिसका सिरा एक और बोतल के मुंह जैसा होता था
और वह एक लकड़ी के गुट्टे से बंद होता था
आप में
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से किसने इसका उपयोग किया है ??? #छागल में पानी भरकर लोग,यात्रा पर जब जाते थे,कई लोग ट्रेन के बाहर खिड़की पर उसे टांग देते थे,बाहर की हवा उस कपड़े के थैले के छिद्र से अंदर जाकर पानी को ठंडा करती थी #वो_प्राकृतिक_ठंडक_बेमिसाल_थी
गर्मी में जीप में अंदर अफसर बैठे है उनकी छाग़ल
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श्रीदेवी अपने समय की टॉप हीरोइन रही हैं और वो भी बिना प्लास्टिक सर्जरी के।
फिर 50 पार करके उन्हें अचानक 20 साल का दिखने की धुन सवार हो गई।उसके चलते उन्होंने ढेरों सर्जरी करवाई Gym,योग,डाइटिंग कुछ भी नही छोड़ा।
ये सब उन्होंने स्वस्थ रहने के लिए नही बल्कि जवान दिखने के लिए किया।
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शरीर पर हर तरह के अत्याचार किये। तो एक दिन शरीर ने उन्हें धोखा दे दिया।
सिर्फ पतला होना ही स्वास्थ्य की निशानी नही है क्योंकि बहुत से मोटे लोग उम्र पूरी करके जाते हैं और पतले लोग समय से पहले ।
अपने को बढ़ती उम्र के साथ स्वीकारना एक तनावमुक्त जीवन देता है। हर उम्र एक अलग तरह
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की खूबसूरती लेकर आती है उसका आनंद लीजिये।
बाल रंगने है तो रंगिये, वज़न कम रखना है तो रखिये, मनचाहे कपड़े पहनने है तो पहनिए,बच्चों की तरह खिलखिलाइये, अच्छा सोचिये, अच्छा माहौल रखिये, शीशे में दिखते हुए अपने अस्तित्व को स्वीकारिये।
कोई भी क्रीम आपको गोरा नही बनाती,
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