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हिन्दू ही थे वे, पर हमसे थोड़े अलग थे। विशुद्ध वैदिक परम्पराओं को मानने वाले हिन्दू... सूर्य, इंद्र, वरुण आदि प्राकृतिक शक्तियों को पूजने वाले वैदिक हिन्दू...
और कोट, कोट कई प्रकार के होते हैं लोंगकोट,शार्टकोट, ओवरकोट,और पेटीकोट।
गरीब लडकी अपने छोटे भाई के साथ मेरे घर पर आई।
उसी के समय खड़ा हुआ।
all in his life, he did not allow that to prevail in death too. He was the most clear headed Muslim I ever across in my life;clear in vision,thought, words & actions. Cremation is considered by Islam to be “haram."Muslims are forbidden to take part in the act of cremation

अलब्दुल चुनांचे तुमने तीन तबलाक कह दिया है अब रमजिया तुम्हारी बीवी न रही, वोह तुम पर हराम हो गई है, तुम दोनों के बीच अब कोई रिश्ता न रहा.."
जब मोहन स्कूल जाता था ... वह पिताजी से जेब खर्च लेने में हमेशा हिचकता था , क्यों कि घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी . पिताजी मजदूरी करके बड़ी मुश्किल से घर चला पाते थे ... पर माँ फिर भी उसकी जेब में कुछ सिक्के डाल देती थी ... जबकि वह बार-बार मना करता था .
वापसी कराई।इस कार्यक्रम में निकटवर्ती इलाकों से बहुत लोग पहुंचे।घर वापसी करने वाले अधिकांश परिवार मूलतःउड़ीसा के रहने वाले हैं,जो दुर्ग में वर्तमान समय में निवासरत है।घर वापसी के प्रमुख प्रबल प्रताप सिंह जूदेव ने कहा,इतिहास साक्षी है कि जिन जगहों पर हिंदुओं का धर्मांतरण हुआ है
भी माफिया के आतंक का अंत यहाँ किया जाता है ताकि आम आवाम बेखौफ़ जिए...
डेढ़ दर्जन के परिवार का 3 कमरों में ठाठ से बसर होता था।

कमेटी की मंजूरी और टेक्निकल कमेटी की मंजूरी तथा केंद्र के सीपीडब्ल्यूडी के वित्त विभाग की मंजूरी की जरूरत नहीं होती इसीलिए केजरीवाल ने पांच टेंडर 9 करोड़ 99 लाख के निकाले और इस 45 करोड़ के बंगले के रिनोवेशन में 10 करोड़ रुपये केजरीवाल ने कमीशन ली है
बादल के लोग जेल भरते रहे।इन सिख सत्याग्रहियों की ओठों पर “जो बोले सो निहाल” की गूंज तो होती ही थी। पर एक अन्य नारा बड़ा सर्वग्राही भी था :“दम है कितना दमन में तेरे, देखा है और देखेंगे।” दूसरा था : “जगह है कितनी जेल में तेरे, देखा है और देखेंगे।”ज्यादा जोरों से निनादित होता था।
ढका दिया । कहीं से हवा के साथ उड़कर एक हरा कपड़ा ढेरी के ऊपर आ गया ।
बड़े होने पर, हमने अपना परिवार शुरू किया, अपना अलग जीवन व्यतीत किया और आमतौर पर परस्पर बहुत कम मिलते थे। हमारे माता-पिता ही एकमात्र कड़ी थे जो हम सभी को जोड़ते थे।
चारो तरफ अँधेरा ही अँधेरा था,अपने ही विचारो में खोयी साक्षी फर्स पर ही बैठी न जाने कब से फर्स को ही घूरे जा रहीं थी,पति की बेवफाई ने साक्षी को अंदर तक तोड़ दिया था,उसकी कही बाते दिल और दिमाग में शूल की तरह चुभ रहे थे,इस बार तो आनंद ने हद ही कर दी,अब जीने का कोई मतलब नहीं हैं,



बिस्तर पर सो रहे हों.