#कहानी काफल की:
चार धाम यात्रा शुरू हो चुकी है,अब देश विदेश से यात्री इस यात्रा के लिए उत्तराखंड आयेंगे तो आप सब से निवेदन है कि पहाड़ों में जहा भी आपको ये काफल का फल बिकता दिखे,इसे अवश्य खरीदे।
विटामिनों की प्रचूरता एवम फाइबर युक्त होने के कारण डाक्टर भी इसको खाने की सलाह
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दे रहे हैं,इसके बारे में एक कहानी बचपन में सुनी थी सायद पहाड़ों में रहने वाले सब ने सुनी होगी काफी समय पहले यात्रियों की बस चार धाम यात्रा पर निकली थी पहाड़ पर एक जगह ड्राइवर ने बस रोक कर यात्रियों से कहा कि चाय नाश्ता कर लो फिर चलते हैं वही पर एक व्यक्ति ये फल बेच रहा था पहली
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बार ये फल देख कर एक यात्री ने जिज्ञासावस पूछा ई का फल है भैया तो विक्रेता ने कहा हां जी काफल है यात्री ने फिर पूछा ई का फल है ? दुकानदार बोला काफल है बस फिर क्या लड़ाई सुरु हो गई तो अन्य लोग भी आ गए कि क्या हो गया यात्री ने अपने सह यात्रियों को बोला कि में इनसे पूछ रहा कि ई का
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फल है तो ये मेरा मजाक उड़ा रहा बोल कर कि काफल है वही दुकानदार अपनी सफाई दे रहा था कि इन्होंने पूछा कि ये काफल है तो मेने बताया कि हां काफल है इसमें मेने क्या गलत बोला काफी समय बाद यात्रियों को किसी ने समझाया कि भाई जिसको आप पूछ रहे कि ई का फल है इसका नाम ही काफल है तो ये
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कहानी है पहाड़ के इस पोष्टिक फल काफल कीयात्रा सीजन में याने अप्रैल,मई में पहाड़ों में मिलने वाले फल को यात्रा करते हुए जरूर खाएं लुफ्त उठाएं और हां इसे आपको ढूंढने नही जाना पड़ेगा जहां आपकी गाड़ी रुकेगी कोई न कोई आवाज देगा काफल बस खरीद लीजिए,
काफल उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध
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जंगली फल है। यह फल हिमालयी पहाड़ो में प्रतिवर्ष अप्रैल और मई में होता है। कई दिब्यगुणो को अपने आप मे समेटे यह फल,उत्तराखंड की एक अलग पहचान को दर्शाता है। उत्तराखंड के प्रसिद्ध गीत ” बेडु पाको बारोमासा ,काफल पाको चैत ” में भी इस फल का वर्णन है। प्रकृति के चितेरे कवि चंद्रकुंवर
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बर्तवाल ने भी काफल पाको पर एक गीत /कविता की रचना की है।
इसके साथ- साथ उत्तराखंड की एक प्रसिद्ध लोक कथा है , “काफल पाको मैं नि चाखो ” इसका हिंदी में अर्थ होता है, काफल पक गए, किन्तु मैंने नही चखे। यह लोक कथा उत्तराखंड की दोनो क्षेत्रों ( गढ़वाल और कुमाऊं ) में सुनाई जाती है।
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प्रस्तुत लेख में हम इस लोक कथा को कुमाउनी और हिंदी में संकलित कर रहा हूँ।
”दगड़ियो भौत पैलिकै बात छु ! पहाड़क एक गौ में,एक गरीब सैणी रौंछी।ऊ भौतै गरीब छी।और वैक एक नानि नानि चेलि छी। ऊ मेहनत मजदूरी करीबे आपुण और आपुण चेलिक पेट भरछी।कभै कुलि काम करछी,कभै साग,घाबेचि
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बेर और कभै मौसमी फल बेचि बेर आपुण और आपुण चेलिक पेट भरछि। एक बार चैतक महैंण में,ऊं सैणि जंगल बै काफल तोड़ ल्यै।और वैल ऊं काफल भ्यार बै धरि देई।और आपुण चेलि हैते कै गे कि कफलों ध्यान धरिए,कम नि हुण चैन।खै झन खबरदार।इतुक कै बेर ऊ सैंणी आपुण काम पा नैह गई।
अब महाराज चैतक
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महैंण भयो ,घाम लागनी भा्य तेज।नानि भौ कफलो ध्यान बड़ि ईमानदारी भै रखनछी।मगर के करछा नियति कैं के और मंजुर छि।दुपरी में जब उ चेलिक मा घर आई ,तब तक ऊ कफौ सुखी बेर आदुक छपार हैगा्य।उ चेलिक माँ लै सोचि कि यो दुष्ट चेलिल काफो खै हालि ! वैक आँख बुजि गा्य ,वैल इदुक जोरल
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मारि उ भौ के,भौ मार सहन नि कर पाई उत्ते चित्त है गई !
थोड़ देर बाद,अचानक बारिस है गई,और जो काफल धुपक कारण मुरजै गाछी ,उ दुबारा ताज है गा्य और जतुक पैली छी, उतुकै है गा्य। जब उ सैणिल देखो,तो उकैं आपुण गलतिक एहसास हौछ ! और वैल लै उतकै प्राण त्यागी दी।
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तब बै मैंस का्थ कूनी कि,यूं द्वी में,चेलि मारि बेर ,चाड़ बनि ,और चेलि कौछ “काफल पाको मैं नि चाखो” तब मा कौछ “पुर पुतई पुर पुर ” #बहुत पहले की बात है, उत्तराखंड में पहाड़ के एक गावँ में एक गरीब औरत और उसकी छोटी सी बेटी रहती थी। वह औरत मजदूरी करके, लकड़ी ,घास, मौसमी फल बेच
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कर अपना और अपनी बेटी का भरण -पोषण करती थी। एक बार चैत्र के माह में , वह गरीब औरत जंगल से एक टोकरी काफल तोड़ कर लाई और आंगन में रख दिए। और बेटी को नसीहत देते हुए बोली कि “,इनका ध्यान रखना ,खाना मत ! और अपनी खेत मे चली गई । छोटी बच्ची ने पूरी ईमानदारी से काफलों की
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रक्षा की ।लेकिन चैत की तेज धूप में,कुछ काफल सूख कर आधे हो गए।
जैसे ही उसकी माँ खेत से घर पहुँची ,तो उसने देखा काफलों की टोकरी आधी हो रखी है।उसे लगा उसकी बेटी ने काफल खा लिए। यही सोचकर , अत्यधिक क्रोध में उसकी आँखें बंद हो गई ।और उसने अपनी फूल सी बच्ची को पूरी ताकत के
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साथ थप्पड़ मार दिया। धूप में भूख से प्यासी बच्ची , माँ का प्रहार नही झेल पाई और वही उसके प्राण पखेरू उड़ गए।
थोड़ी देर बाद सायंकाल हुई, मौसम में ठंडक आ गई और टोकरी में रखे काफल फिर से ताज़े हो गए,और टोकरी भर गई। तब जाकर उस औरत को उसकी गलती का एहसास हुआ और पश्चाताप में
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उस औरत के प्राण भी उड़ गए।
तब से लोककथाओं में कहते हैं, कि वो दोनो माँ बेटियां, चिड़िया बन गई। और आज भी जब पहाड़ों में काफल पकते हैं तब बेटी रूपी चिड़िया बोलती है, “काफल पाको मैं नि चाखो ” अर्थात काफल पके मैंने नही चखे ।
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उसका जवाब माँ रूपी चिड़िया देती है,और बोलती है, ” पुर पुतई पुर पुर ” अर्थात ,मेरी प्यारी बेटी काफल पूरे हैं।
तो ये है काफल की कहानी🙏🙏
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#आत्महत्या
एक कहानी दो औरतो की, दोनों के जीवन में एक ही घटना एक साथ घटी,दोनों का फैसला बिलकुल एक सा, और अंजाम ?
साक्षी अब जीना नहीं चाहती थीं, ख़तम कर देना चाहती थीं इस जीवन को, दिमाग में केवल यही बात घूम रही थी, फैसला हो चूका था, बस अंजाम कैसे देना है यही सोच रही थीं,
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चारो तरफ अँधेरा ही अँधेरा था,अपने ही विचारो में खोयी साक्षी फर्स पर ही बैठी न जाने कब से फर्स को ही घूरे जा रहीं थी,पति की बेवफाई ने साक्षी को अंदर तक तोड़ दिया था,उसकी कही बाते दिल और दिमाग में शूल की तरह चुभ रहे थे,इस बार तो आनंद ने हद ही कर दी,अब जीने का कोई मतलब नहीं हैं,
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न रहूंगी और न ये सब देखूंगी, दोनों बच्चे गहरी नींद में सो रहे थे, एक नजर उनको देखा, उन पर प्यार से हाथ फेरा,आँखों में आंसू का एक कतरा भी नहीं था, उसने मन ही मन एक दृढ निश्चय कर लिया था, रात के दो बज रहे थे, चारो तरफ गहरा सन्नाटा था,साक्षी धीरे से उठी और दुसरे कमरे में चली गयी,
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सामान्य भारतीय सहज व्यवहार पश्चिम में गे होने की निशानी माना जाता है. दो लड़के हाथ में हाथ पकड़े चल रहे हैं, गे हैं. एक बिस्तर पर लेटे हुवे हैं, सो रहे हैं गे हैं. दो लड़कों का साथ सोना,हाथ में हाथ डाल टहलना उसी निगाह से देखा जाता है जैसे भारत में एक लड़का लड़की एक कमरे में एक
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बिस्तर पर सो रहे हों.
उचित भी है, जैसा जज साहब ने कहा कि केवल जननांगो के आधार पर फ़ैसला नहीं हो सकता कौन पुरुष है कौन स्त्री. लड़का लड़का या लड़की लड़की को बिलकुल सामान्य कपल जैसे अधिकार हैं, ओयो में कमरे होंगे, बच्चे पैदा करेंगे, साड़ी सूट पहन रहेंगे-तो जैसे एक सामान्य लड़का
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लड़की का रिलेशन माना जाता है सेक्सुअली उसी दृष्टि से हर रिश्ते को देखा जाएगा.
होमो सेक्सुअलिटी कपल मैरिज, वेडिंग, स्पेशल अधिकार और समाज में मान्यता देने से समाज के सहज नियम बदलेंगे.
अब ऐसा नहीं हो सकेगा कि लड़कों ने मित्र के घर में रुकने का फ़ैसला लिया,रात को वहीं सो गये सब एक
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एक बार मुख़्तार सिंह ने एक कबूतर का शिकार किया।
वह कबूतर जाकर एक खेत में गिरा,जब मुख़्तार सिंह उस खेत में कबूतर को उठाने पहुंचा, तभी एक किसान वहां आया और मुख़्तार सिंह से पूछने लगा कि वह उसकी प्रोपर्टी में क्या कर रहा है ?
मुख़्तार सिंह ने कबूतर को दिखाते हुए कहा–
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“मैंने इस कबूतर को मारा है और ये मरकर यहाँ गिर गया इसलिए मैं इसे लेने आया हूँ।”
किसान– “ये कबूतर मेरा है क्योंकि ये मेरे खेत में पड़ा है।”
मुख़्तार सिंह – “क्या तुम जानते हो तुम किससे बात कर रहे हो?”
किसान– “नहीं मैं नहीं जानता और मुझे इससे भी कुछ लेना-देना नहीं है कि
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तुम कौन हो।”
मुख़्तार सिंह– “मैं डॉन हूँ , अगर तुमने मुझे इस कबूतर को ले जाने से रोका तो मैं तुम्हे मार दूंगा और तुम्हारी जमीन जायदाद को हड़प लूंगा और रास्ते का भिखारी बना दूंगा।”
किसान ने कहा– “हम किसी से नहीं डरते … हमारे गाँव में तो बस एक ही डोनगिरी चलती है…
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#सुनो #छागल
इस पीढ़ी में बहुत कम लोग होंगे जो इस मोटे कपड़े की थैली से परिचित होंगे इसे #छागल कहा जाता है
ये नाम सुनकर कई लोग चौंक पड़ेंगे कि #पानी कपड़े की थैली में ???
ये उन दिनों की बात है जब न बाजार में बोतल बंद पानी मिलता था ना #पानी_का_व्यापार होता था न कोई कैम्प थे न
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#Milton की बोतलें थी
गर्मी में पानी पिलाना #धर्म और खुद का पानी घर से लेकर निकलना अच्छा #कर्म माना जाता था
गर्मी के दिनो मे उपयोग आने वाली ये #छागल एक मोटे कपड़े (कैनवास) का थैला होता था,जिसका सिरा एक और बोतल के मुंह जैसा होता था
और वह एक लकड़ी के गुट्टे से बंद होता था
आप में
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से किसने इसका उपयोग किया है ??? #छागल में पानी भरकर लोग,यात्रा पर जब जाते थे,कई लोग ट्रेन के बाहर खिड़की पर उसे टांग देते थे,बाहर की हवा उस कपड़े के थैले के छिद्र से अंदर जाकर पानी को ठंडा करती थी #वो_प्राकृतिक_ठंडक_बेमिसाल_थी
गर्मी में जीप में अंदर अफसर बैठे है उनकी छाग़ल
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#सभी राजनीतिक दल 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर नफ़ा-नुकसान का गुणा-भाग करके रणनीति बना रहे है।
विपक्ष पुनःतीसरी-चौथी दफ़ा एकजुट होने की कोशिश कर रहा है। 2019 में चंद्र बाबू नायडू,फिर ममता,केसीआर और अब नीतीश कुमार दूसरी बार प्रयासों में विपक्षी दलों के मुखिया से
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मिल रहे है। मिलकर लड़ने का प्रस्ताव रख रहे है।
सरल भाषा में कहे,फिलहाल विपक्षी नेता आपस में मिलकर सामंजस्य बैठा रहे है। फिर ऐलान करेंगे, तब जमीन पर कार्यकर्ताओं के मिलन की बारी आएगी।
2018 और 2019 में अखलेश व मायावती ने गोरखपुर व फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में भाजपा को पटखनी
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दे डाली थी। इसी सफल तर्ज़ पर 2019 में बुआ-बबुआ गठबंधन बना था। तब तमाम विपक्षी राजनीतिक पंडितों ने उत्तर प्रदेश में भाजपा को 15-20 सीट दी और कहा कि ये भी ज्यादा है अगर गठबंधन जमीनी स्तर पर पूरी तरह उतर गया तो क्लीन स्वीप है। बुआ-बबुआ तो मिल बैठे और प्रेस कॉन्फ्रेंस कर डाली।
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श्रीदेवी अपने समय की टॉप हीरोइन रही हैं और वो भी बिना प्लास्टिक सर्जरी के।
फिर 50 पार करके उन्हें अचानक 20 साल का दिखने की धुन सवार हो गई।उसके चलते उन्होंने ढेरों सर्जरी करवाई Gym,योग,डाइटिंग कुछ भी नही छोड़ा।
ये सब उन्होंने स्वस्थ रहने के लिए नही बल्कि जवान दिखने के लिए किया।
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शरीर पर हर तरह के अत्याचार किये। तो एक दिन शरीर ने उन्हें धोखा दे दिया।
सिर्फ पतला होना ही स्वास्थ्य की निशानी नही है क्योंकि बहुत से मोटे लोग उम्र पूरी करके जाते हैं और पतले लोग समय से पहले ।
अपने को बढ़ती उम्र के साथ स्वीकारना एक तनावमुक्त जीवन देता है। हर उम्र एक अलग तरह
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की खूबसूरती लेकर आती है उसका आनंद लीजिये।
बाल रंगने है तो रंगिये, वज़न कम रखना है तो रखिये, मनचाहे कपड़े पहनने है तो पहनिए,बच्चों की तरह खिलखिलाइये, अच्छा सोचिये, अच्छा माहौल रखिये, शीशे में दिखते हुए अपने अस्तित्व को स्वीकारिये।
कोई भी क्रीम आपको गोरा नही बनाती,
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