ये लिंग भी विभिन्न आकर, रंग आदि में मिलते हैं कोई ड्रैगन के आकार का होता है, तो कोई रिबन से बंधा होता है जैसे की कोई तोहफा हो. कुछ में आँखें भी होती हैं, और सभी सख्त एवं खड़े हुए होते हैं
इन बने लिंगो को उनकी आकृति को भूटानी लोग अपनी और बुद्ध मत की परम्परा की शान बताते है | 2/5
भूटानी लोगो के अनुसार शहरी करण और आधुनिक करण से उनकी ये कला विलुप्त हो रही है इन लोगो का अंधविशवास है कि इससे (घरो के बाहर लिंग बनाने से ) इनमे सेक्स क्षमता बढती है |
भूटान के लोग लिंग को अपने घरो में इसलिए टांगते हैं जिससे उनका घर, और परिवार के लोग बुरी ताकतों से बचे रहें 3/5
और मर्दों कि सेक्स क्षमता में भी इजाफा हो
मध्य भूटान में, मेहमानों को पेय पेश करने से पहले एक लकड़ी के लिंग को प्यालों में डुबोया जाता है।
इन बातो से ये भी स्पष्ट है कि सनातन धर्म छोड़ अन्य मत में जाने को कोई ये समझता है की उसने भेदभाव ,अंधविश्वास से छुट गया है तो वो गलत है 4/5
5/5 खुद को विज्ञान सम्मत कहने वाला बौद्ध धम्म असल में अंधविश्वास और पांखण्ड में डूबा हुआ हैं। इन्ही पाखंडों के कारण भारत से बौद्ध धम्म समाप्त हुआ था।
तांत्रिक बौद्ध अपने तंत्र मंत्र के नाम पर तरह तरह के कांड करते थे। जिन्हें हम आगे शेयर करेंगे
हमे फॉलो करें और अपने विचार बताए।
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आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि स्वयं बुद्ध अघोरियों की तरह रहे थे अर्थात् बुद्ध श्मशान में रहते थे। मुर्दों की हड्डियों का तकिया लगाते थे। बछडों का गोबर खाते थे और खुद का भी मल - मूत्र खा जाते थे। ये बात किसी ऐसी वैसी पुस्तक में नहीं लिखी है,
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2/3 बल्कि बौद्धों के प्रामाणिक ग्रंथ त्रिपिटक के मज्झिम निकाय में लिखी है। हम यहां मज्झिम निकाय (अनु. राहुल सांस्कृत्यायन) का स्क्रीन शाँट प्रमाण स्वरुप प्रस्तुत कर रहे हैं।
ये चित्र मज्झिम निकाय अध्याय 12 महासीहनाद (1/2/2) हिन्दी अनुवाद के पेज क्रमांक 49-50 का है।
3/3 यहां बुद्ध सारिपुत्र को बता रहे हैं कि उन्होने बछडों का गोबर खाया था और खुद का मल - मूत्र भी खाया था। वो श्मशान में मूर्दों की हड्डियों का तकिया लगा कर सोते थे। यहां तक की बुद्ध नहाते - धोते तक नही थे।
अबतक,
अशोक राजा बनने के पहले से बोद्धो के संपर्क में था और उत्तराधिकार युद्ध में यूनानी सिपाहियों की सहायता ली और 99 भाइयो को मरवा दिया। कलिंग युद्ध के 2 साल पहले बौद्ध धर्म अपना लिया था। इस युद्ध में लाखो मारे गए और बंदियों को मजदूर बना दिया गया 1/7
2/7 अब आगे,
अशोकावदान ही एक दूसरी जगह बताती है कि शांतिप्रिय होने के कई साल बाद भी सम्राट द्वारा नरसंहार के अनेक कृत्य किए गए थे जो जैन और आजीवन सम्प्रदाय के खिलाफ थे।
अशोकावदान याद करता है कि कैसे एक बार बंगाल में अशोक ने अठारह हजार आजीवकों को एक साथ मौत के घाट उतरवा दिया था।
3/7 अशोकावदान में वर्णित ये एकमात्र घटना नही है। पाटलीपुत्र के एक जैन श्रद्धालु को एक तस्वीर बनाते हुए पाया गया जिसमें बुद्ध एक जैन तीर्थंकर के आगे नमन कर रहे थे। अशोक ने आदेश दिया कि उसे और उसके परिवार को उसके घर में बंद कर दिया जाए और भवन को जला दिया जाए।
लगभग सारे विवरण इस बात पर सहमत हैं कि अशोक का प्रारंभिक शासनकाल हिंसक और अलोकप्रिय था, उसे ‘चंड अशोक’ कहा जाता था।
अशोक का 13वां शिलालेख कलिंग युद्ध का वर्णन करता है। जबकि किसी भी बौद्ध ग्रंथ में इस युद्ध की चर्चा नहीं की गई है। #ashoka
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262 ईसा पूर्व में अशोक ने कलिंग पर हमला किया था जबकि लघु शिलालेखों से हमें पता है कि अशोक लगभग 2 साल पहले ही बौद्ध धर्म अपना चुका था।
कोई भी बौद्ध ग्रंथ उसके धर्म परिवर्तन को युद्ध से नहीं जोड़ता और चार्ल्स ऐलन जैसे अशोक के प्रशंसक भी सहमत हैं कि
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उसने कलिंग युद्ध से पहले धर्म परिवर्तन कर लिया था। इसके अलावा धर्म परिवर्तन करने से एक दशक पहले से उसके बौद्धों के साथ संबंध प्रतीत होते हैं। यह साक्ष्य साबित करता है कि उसका बौद्ध धर्म अपनाना उत्तराधिकार की राजनीति ज्यादा रही होगी, युद्ध की त्रासदी से उपजा पश्चाताप कम।
बौद्ध मत को देववाद तथा अंधविश्वासों के आक्षेपों से बचाने के लिए नवबौद्ध अनेकों झूठ बोलते हैं जैसे - त्रिपिटक मिलावटी है, अशोक के शिलालेखों में आये देव शब्दों का मतलब बुद्ध तथा भिक्षुओं से है
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Lord Buddha in the Trayastrimsa Heaven
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ये लोग बौद्ध मत में चमत्कारी और काल्पनिक स्वर्ग लोक में रहने वाले देवों को स्पष्ट नकार देते हैं जबकि बौद्ध मत में देवों के अलावा यक्षों, गंधर्वों और प्रेतों जैसे चमत्कारी चीजों की भी मान्यताऐं प्राचीन काल से ही रही है।
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ये सब बौद्ध मत में इतना मान्य था कि पत्थरों पर भी ये सब देखा जा सकता है।
हर नवबौद्ध मानता है कि भर्हुत स्तूप बौद्धों की अपनी रचना है और हम इसी स्तूप पर बने चित्रों तथा उस पर लिखे अभिलेख से प्रमाण दे रहें हैं कि बौद्ध मत में देववाद की मान्यता थी।
बौद्ध मत में जातिवाद! शूद्रों को पांव से पैदा होना! 1/12
यह लेख सुत्तपिटक, दीघनिकाय, अंबष्ठसुत्त (१.३) आधारित है।
नवबौद्ध हम पर आक्षेप करते हैं कि ब्रह्मा के मुंह से ब्राह्मण व पांव से शूद्र पैदा हुये। ये भ्रांतधारणा गौतम बुद्ध के समय भी थी। यही नहीं, इसका मूक समर्थन भी करते थे।
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अंबष्ठसुत्त में अंबष्ठ नामक ब्राह्मण बुद्ध के शाक्यवंश पर नीचता का आरोप लगाता है:- 13- "अम्बष्ठ! लटुकिका(छोटी चिड़िया) भी अपने घोसले पर स्वच्छन्द आलाप करती है। कपिलवस्तु शाक्यों का अपना घर है। अम्बष्ठ! इतनी छोटी बात पर तुम्हें अप्रसन्न नहीं होना चाहिये।"
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"भो गौतम! समाज में ये चार वर्ण हैं–क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य एवं शूद्र। भो गौतम! इनमें से तीन वर्ण क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र तीनों ब्राह्मण के ही सेवक हैं। भो गौतम! क्या यह उचित नहीं कि -------आवभगत करे।" इस तरह अम्बष्ठ ने तीसरी बार शाक्यों पर नीच होने का आक्षेप किया।