ब्राह्मण एक जाति वर्ण का नाम नही है।ब्राह्मण सनातन धर्म का जीवन-दर्शन है।सनातन धर्म का दर्शन है सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड से अन्योन्याश्रित सम्बंध को जीना।हम "यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे"की वैदिक घोषणा मे आस्था रखते हैं!हम स्व के ब्रह्मत्व मे विश्वास रखते है और पिण्ड मे परिवर्तन घटित कर Image
ब्रह्माण्ड मे परिवर्तन घटित कर सकते है।हम अन्न को भी ब्रह्म ही मानते हैं!
"ऊँ ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम!ब्रह्मैव तेन गंतव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना!"अर्थातअर्पण ब्रहमहै!द्रव्य(हविष्य)भी ब्रह्म है!कर्ताभी ब्रह्मरूप हीहै औरउसके द्वारा अग्निब्रह्म मे दीगयी आहुति Image
भी ब्रह्मरूप है।उस ब्रह्मकर्मरूप समाधि द्वारा प्राप्त किये जाने योग्य फल भी ब्रह्म ही है।"यही सनातन धर्म का जीवन दर्शन है जो अपने अस्तित्व से ब्रह्माण्ड को सम्पूर्ण करता है।वह ब्रह्माण्ड का आवश्यक अंग है।वह ब्रह्माण्ड का पूरक है।यही सनातन धर्म का दर्शनहै।जो मातृ-ऋण,पितृ-ऋण,ऋषि-ऋण Image
देव-ऋण की अवधारणा करता है और उसका जीवन इन पंच ऋणो का तर्पण है।यही ब्राह्मण है सनातन है जो अनादि है।जितने भी पंथ आज प्रचलित हैं वे इसी सनातन धर्म को न समझ पानेके कारण अज्ञानता से उपजेहैं।जितने अब्राहमिक पंथ है दर-असल वे अब्राह्मण पंथहै।सनातन की प्रतिक्रिया मे अज्ञान से उपजी उपासना Image
की पद्धत्तियां हैं इसी से वे ब्राह्मणों का विरोध करती हैं!सनातन धर्म का विरोध करती है।पर #सनातन_धर्म_सर्वश्रेष्ठ_है और सनातनधर्म ही एकमात्र धर्म है शेष देश काल स्थान सापेक्ष पूजा उपासना पद्धत्तियां है जिनकी तुलना सनातन धर्म से नही की जा सकती! Image

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Apr 26
वेदान् उद्धरते जगत् निवहते भू गोलम् उद् बिभ्रते!दैत्यम् दारयते बलिम् च्छलयते क्षत्र क्षयम् कुर्‌वते!पौलस्त्यम् जयते हलम् कलयते कारुण्यम्आतन्वते
म्लेच्छान् मूर्च्छयते दश अकृति कृते कृष्णाय तुभ्यम् नमः || १२ ||
अनुवाद - वेदोंका उद्धार करनेवाले, चराचर जगतको धारण करनेवाले, भूमण्डलका Image
उद्धार करनेवाले,हिरण्यकशिपुको विदीर्ण करनेवाले,बलिको छलनेवाले, क्षत्रियोंका क्षय करनेवाले,पौलस्त (रावण) पर विजय प्राप्त करनेवाले,हल नामकआयुधको धारण करनेवाले, करुणाका विस्तार करनेवाले,म्लेच्छोंका संहार करनेवाले,इस दशप्रकारके शरीर धारण करनेवाले हे श्रीकृष्ण!मैंआपको नमस्कार करतीहूँ Image
व्याख्या - इस गीतगोविन्द काव्यके प्रथम सर्गके प्रथम प्रबन्धके दश पद्योंमें कवि जयदेवजीने भगवान् श्रीकृष्ण के अवतारोंकी मनोरम लीलाओंका चित्रण किया है । दश अवतार स्वरूपको प्रकट करनेवाले श्रीकृष्णने मत्स्य रूपमें वेदोंका उद्धार किया, कूर्म रूपमें पृथ्वीको धारण किया, वराह रूपमें Image
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Apr 20
@Sabhapa30724463 @FromSomalia21 @SathyavathiGuj1 @SimpleDimple05 @radhika_1113 @Pratyancha007 @spavitra277 @Prerak_Agrawal1 @SahayRk483098 @MukulWatsayan @Govindmisr @babulal13072344 @BablieVG @NandiniDurgesh5 अहल्या ब्रह्मा निर्मित सौंदर्य शील सद्गुणो की वह नारी थी जो चिरयौवना और सती थी।उसको इंद्र प्रारंभ से ही कामना दृष्टि से देखते थे।कृपया यहां इंद्र का अर्थ समझना पड़ेगा।इंद्र इंद्रियो का पति है तभी देवराज है।पर इंद्र इंद्रियो के वशीभूत हो काम-तुष्टि करता हैतो वह लोकनिन्दा का पात्र Image
@Sabhapa30724463 @FromSomalia21 @SathyavathiGuj1 @SimpleDimple05 @radhika_1113 @Pratyancha007 @spavitra277 @Prerak_Agrawal1 @SahayRk483098 @MukulWatsayan @Govindmisr @babulal13072344 @BablieVG @NandiniDurgesh5 बनता है।ब्रह्मा जी ने अहिल्या के वरण के अभिलाषी सभी देवों के सामने शर्त रखी कि जो पृथ्वी की परिक्रमा कर सबसे पहले आयेगा उसीसे अहिल्या का विवाह होगा।इंद्र इसके पहले कि परिक्रमा कर के आते नारद जी ने ब्रह्मा जी को गौतम ऋषि के पृथ्वी परिक्रमा पूर्ण कर आनेकी सूचना दी।गौतमऋषि नित्यकर्म Image
@Sabhapa30724463 @FromSomalia21 @SathyavathiGuj1 @SimpleDimple05 @radhika_1113 @Pratyancha007 @spavitra277 @Prerak_Agrawal1 @SahayRk483098 @MukulWatsayan @Govindmisr @babulal13072344 @BablieVG @NandiniDurgesh5 के चलते गौमाता की परिक्रमा कर रहे थे तभी गौमाता ने बछड़े को जन्म दिया।नारद जी ने कहा कि इस अवस्था मे गौमाता की परिक्रमा पृथ्वी की परिक्रमा के बराबर होता है अतः गौतम ऋषि से ही अहिल्या का विवाह होना चाहिये।और इसप्रकार अहल्या का विवाह अत्रिपुत्र गौतम ऋषि से होगया।गौतम ऋषि और अहल्या Image
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Apr 19
शाबर मंत्र का नाम हम सबने सुना है।जिनक संयुक्त परिवार मे दादा दादी नाना नानी का सानिध्य मिला हो वे जानते है कि कयी बार तबियत खराब होने पर अक्सर कुछ अस्फुट अनमिल अक्षरो को बुदबुदाते हुये नोन राई लाल मिर्च उतार अग्नि मे डालते देखा होगा।मुझे गांव के भुइयन बाबा जो जाति से चर्मकार थे Image
को कयी बार बीमारों को झाड़-फूंक करते देखा है उनके मंत्र तो समझ मे नही आते पर अंत मे "फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा"और "दुहाई लोना चमारिन की"मेरे बाल मन मे कौतूहल जगाता था।बाद मे पता चला ये शाबर मंत्र कहलाते हैं।जब रामचरित मानस पढ़ा तो शाबर मंत्रों का महात्म्य गोस्वामीजी के शब्दोंमे पाया Image
"कलि बिलोकि जग हित हर गिरिजा!
साबर मंत्रजाल जिन्ह सिरजा।
अनमिल आखर अरथ न जापू!
प्रगट प्रभाउ महेस प्रतापू!"अर्थात कलयुग मे वेदमंत्रों की अनभिज्ञता वेदविरुद्ध रहन सहन खान पान से जीवन रोगों और आधिभौतिक आधिदैविक परेशानियों से पीड़ित हो जायेंगे!इसलिये जगत के मातापिता शिव और पार्वती ने Image
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Mar 31
@Sabhapa30724463 @ChandanSharmaG @SathyavathiGuj1 @SimpleDimple05 @Pratyancha007 @Prerak_Agrawal1 @BablieVG @babulal13072344 @Radhika_chhoti @DamaniN1963 @kalpanadubey76 @NandiniDurgesh5 @amarlal71 @Hanuman65037643 @tny1986 अप्सरा जलपरी या Mermaid!एक ऐसा प्राणी है जिसपर सभी संस्कृतिया विश्वास करती है।अप का अर्थ होता है जल और जल से उत्पन्न युवती को अप्सरा कहा गया।रंभा की उत्पत्ति सागर मंथन के समय सागर से मानी जाती है।भगवती लक्ष्मी केसाथ रंभा रूमा तारा वारुणीआदि कन्याये निकली थीं।देवी लक्ष्मी ने भगवान
@Sabhapa30724463 @ChandanSharmaG @SathyavathiGuj1 @SimpleDimple05 @Pratyancha007 @Prerak_Agrawal1 @BablieVG @babulal13072344 @Radhika_chhoti @DamaniN1963 @kalpanadubey76 @NandiniDurgesh5 @amarlal71 @Hanuman65037643 @tny1986 विष्णु का वरण किया।रंभा दक्ष नृत्यांगना थी अतः उसने संगीतज्ञ तुम्बुरु से विवाह किया।इसी तरह तारा का विवाह बालि से और रूमा का सुग्रीव से हुआ।वारुणी नामकी कन्या असुरों को मिली।ये सभी अत्यंत सुंदर और दिव्य थीं तथा ये सदा युवाऔर कन्या बने रहने का आशीर्वाद था।रंभा का नृत्य कुशलता और
@Sabhapa30724463 @ChandanSharmaG @SathyavathiGuj1 @SimpleDimple05 @Pratyancha007 @Prerak_Agrawal1 @BablieVG @babulal13072344 @Radhika_chhoti @DamaniN1963 @kalpanadubey76 @NandiniDurgesh5 @amarlal71 @Hanuman65037643 @tny1986 सौंदर्य से उसे इंद्रसभा की प्रमुख अप्सरा का स्थान मिला।रंभा आकर्षण और सौंदर्य की देनेवाली है युवतियां और किशोरियां ज्येष्ठ मास की तृतीया को रम्भातीज का व्रत और पूजन करती हैं।इसमे रम्भा को चूड़ी पायलआदि समर्पित करते हैं।रंभा के सौंदर्यऔर नृत्यकुशलता का इंद्र ने कयी बार कठोर तपस्या
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Mar 30
आज मै अपने धर्मंसंसदसे जुड़ेऔर मानसगंगा सेजुड़े सभी मानस मर्मज्ञोंसे विनम्र जिज्ञासा करती हूंकि श्रीरामचरितमानसके अयोध्याकाण्ड मेही वनवास जातेसमयअरण्य मे यमुना तटपर एक तापस्वीआताहै "तेहि अवसर तापस एक आवा!तेजपुंज लघु बयस सुहावा!!कबि अलखित गति वेषु विरागी!मन क्रम बचन राम अनुरागी!!
सजल नयन तन पुलकि निज इष्टदेव पहचान!परेउ दण्ड जिमि धरनितल दसा न जाइ बखानि!!
राम सप्रेम पुलकि उर लावा!परम रंक जनु पारस पावा!!बहुरि लखन पायन्ह सोइ लागा!लीन्ह उठाई उमगि अनुरागी!!पुनि सिय चरन धूरि धरि सीसा!जननि जानि सिसु दीन्ह असीसा!
कीन्ह निषाद दण्डवत तेही!मिलेउ मुदित लखि राम सनेही!!
अर्थात उस लघुबयस के तापस को स्वयं श्रीराम माता सीता लखन और निषाद सभी सुपरिचित हैं अत्यंत भावपूर्ण मिलन होता है पर वह कौन है?कहाँ से आया?कहाँ चला गया?कृपया हमे बतायें?मानस मे हर पात्र का योगदान है इस तापस का क्या योगदान है?@Sabhapa30724463
@Raghuveerdutt62
@Prerak_Agrawal1 👇
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Mar 2
राम शब्द का अर्थ है.....
रमंति इति रामः
जो रोम-रोम में रहता है, जो समूचे ब्रह्मांड में रमण करता है!वह "राम" आखिर क्या हैं ...?????
राम जीवन का मंत्र है!
राम मृत्यु का मंत्र नहीं है ।
राम गति का नाम है!राम थमने!ठहरने का नाम नहीं है।"सतत गतिवान राम सृष्टि की निरंतरता का नाम है "
श्री राम!महाकाल के अधिष्ठाता,संहारक,महामृत्युंजयी शिवजी के आराध्य हैं!शिवजी काशी में मरते व्यक्ति को (मृत व्यक्ति को नहीं) राम नाम सुनाकर भवसागर से तारदेते हैं!राम एक छोटासा प्यारा शब्दहै..!!
यह महामंत्र"शब्द ठहराव व बिखराव,
भ्रम और भटकाव मद मोहके समापन का नामहै!कल्याणकारी शिव के
के हृदयाकाश में सदा विराजित राम भारतीय लोक जीवन के कण-कण में रमे हैं!राम हमारी आस्थाऔरअस्मिता के सर्वोत्तम प्रतीकहैं!भगवान विष्णुके अंशावतार मर्यादापुरुषोत्तम राम हिंदुओं केआराध्य ईशहैं!राम भारतीय लोकजीवनमें सर्वत्र!सर्वदा प्रवाहमान महाऊर्जा कानामहै!वास्तवमें रामअनादि ब्रह्मही है
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