#धर्मसंसद
आज का प्रश्न थोड़ा दीर्घ उत्तरीय था जिसका सम्यक वर्णन भाई बाबूलाल जी प्रेरक अग्रवाल नीलम मिश्रा बहन सत्यवती अशोक द्विवेदी ने विस्तार से किया है। शायद आप लोग भूल गए होंगे दो साल पहले मैंने देवयानी की अधूरी प्रेम कहानी पर एक विस्तृत लेख लिखा था।कथा तो
पढ़ ही चुके होंगे कि शर्मिष्ठा असुर राज बृषवर्वा की पुत्री और देवयानी उनके गुरु शुक्राचार्य की पुत्री थीं। मृग वंशी ऋषियों को मृत संजीवनी विद्या का ज्ञान था पर ऋषि भृगु ने इसे देते समय अपने पुत्रों को निषेध किया था कि इस विद्या का दुरुपयोग न करके केवल मानव कल्याण में
उपयोग किया जाए। भृगु के पुत्रों च्यवन और ऋचीक और ऋचीक के पुत्र जमदग्नि ने इस मर्यादा का ख्याल रखा पर दुर्भाग्य से असुर राज हिरण्यकश्यप की पुत्री दिव्या से उत्पन्न पुत्र शुक्राचार्य ने इस विद्या का भरपूर दुरुपयोग किया। इस विद्या से वे युद्ध में मृत असुरों को जीवित
करने लगे। इस बात की काट के लिए देवताओं ने देवगुरु बृहस्पति
के किशोरवय पुत्र कच को ऋषि शुक्राचार्य से इस विद्या को सीखने के लिए भेजा। ऋषिकुमार कच विद्वान होने के साथ ही बड़े सुंदर थे। विद्या सीखते सीखते कब देवयानी उनसे एकतरफा प्यार करने लगी पता ही नहीं चला। विद्या
सीखकर कच जब जाने के तैयार होने लगे तब देवयानी ने कहा कि मैं तुमसे प्यार करती हूं। विवाह करके मुझे भी साथ ले चलो पर कच ने इसे मानने से इंकार कर दिया।कहा कि तुम मेरे गुरु की पुत्री हो इस कारण मेरी बहन हो।भाई बहन का विवाह उचित नहीं है। जानते हैं कि कच ने ऐसा क्यों कहा
इस विषय में कच को अपने परिवार का कटु अनुभव याद रहा जब कच की विमाता तारा ने पिता बृहस्पति के शिष्य चंद्रमा से प्यार किया था जिसके परिणामस्वरूप बुध का जन्म हुआ था। कच का यह प्यार कोई धोखा खाये प्रेमी का नहीं था।कच ने सामाजिक व्यवहार की मिसाल कायम किया था। हां अपने
एकतरफा के ठुकराए जाने से देवयानी का क्रोध नागिन की तरह फुफकार उठा और उसने श्राप दिया कि कच जो विद्या तुमने सीखी वह तुम्हें विस्मृत हो जाय। उद्देश्य में असफल होने से क्रोधित होकर कच ने कहा कि देवयानी मैं भी तुम्हें श्राप देता हूं कि तुम्हारा विवाह किसी ब्राह्मण
के साथ नहीं होगा। आगे की कहानी जो मैं बताने जा रहा हूं वैसी नहीं है जैसी कि पुराणों में वर्णित है।आप स्वयं तर्क करिए कि क्या हुआ होगा। कायदे से तो निराश हो कर कच को वापस लौट जाना चाहिए था पर गया क्यों नहीं। इंद्र द्वारा शर्मिष्ठा और देवयानी के वस्त्र बदलने की कहानी सुनी-सुनाई है
जिसका कोई तार्किक आधार नहीं मिलता। हुआ यों था कि श्राप प्रतिश्राप होने के बाद ही कच का उद्देश्य बदल गया।कच आश्रम में कुछ और दिन के लिए रुक गया। अब कच उस योजना पर अमल करने लगा जिसमें मृत संजीवनी विद्या सीखने की जरूरत ही नहीं थी। उसने असुरों और आर्यों के बीच
विवाह संबंध कराके अकारण युद्ध की संभावना को ही समाप्त करने की सोच लिया।योजना के अन्तर्गत उसने कुछ दासियों को मिला लिया और अपनी योजना को पूरा करने में जुट गया। सोचिए कि बिना किसी पूर्व योजना के क्या शर्मिष्ठा को वन विहार करने की सूझ सकती है? योजना के एक दिन शर्मिष्ठा
ओ देवयानी वन विहार के लिए वन की ओर निकल पड़ीं। यहां एक बात पर और ध्यान देंगे तो बात और भी स्पष्ट हो जाएगी। दोनों सखियां उसी वन में विहार करने क्यों गई जहां राजा ययाति ने शिकार करने हेतु शिविर स्थापित किया था।सब कुछ कच की योजना के अनुसार हुआ।वन में एक फूटे कुंए के
पास पहुंच कर दोनों को नहाने की इच्छा हुई।यह इच्छा भी अकस्मात नहीं हुई होगी।हो सकता है कि उन्हीं दासियों में से किसी ने राजकुमारी को बताया होगा कि इस कुएं का जल चमत्कारी है। इससे स्नान करने से शरीर की कांति बढ़ती है। खैर जो भी हुआ दोनों ने कुएं पर स्नान किया। असली
योजना अब कार्यान्वित हुई।दासी द्वारा दोनों के वस्त्रों का स्थान बदल दिया गया। चूंकि दोनों नंगी हो कर नहा रही थी तो जल्दी जल्दी में देवयानी ने शर्मिष्ठा के और शर्मिष्ठा ने देवयानी के कपड़े पहन लिए।इस पर दोनों सखियां लड़ पड़ी। शर्मिष्ठा ने कहा कि भिखमंगे ब्राह्मण
की लड़की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई जो मेरे यानी कि राजकुमारी के कपड़े पहन लिए। विवाह बढ़ गया तो शर्मिष्ठा ने देवयानी को कुएं में झोंक दिया और घर लौट आई।उधर राजा ययाति को प्यास लगी तो कुएं के पास आए। आदमी की आवाज पाकर देवयानी ने कुएं से आवाज लगाई कि मुझे बचाओ।राजा
ययाति ने डोर के सहारे बाहर निकाला पर तभी एक बात और हो गई। कुआं भुइंधरा था अर्थात सपाट था इसलिए कुएं की मुंडेर पर आने पर राजा ययाति ने देवयानी का हाथ पकड़ कर बाहर निकाल लिया। बाहर आने पर दोनों में परिचय हुआ। देवयानी ने कहा महाराज आप ने मेरा हाथ पकड़ा है तो एक प्रकार से
ग्रंथिबंधन हो गया। मैं आपकी पत्नी हो गई। केवल औपचारिकता शेष है जो पिताजी पूरी कर देंगे। दोनों आश्रम में लौटे। ऋषि शुक्राचार्य ने प्रसन्नता पूर्वक इस विवाह की स्वीकृति दे दिया। पर बाद में देवयानी ने एक शर्त रख दिया कि विवाह के बाद मैं राजा ययाति के साथ तभी जाऊंगी
जब शर्मिष्ठा मेरी दासी बनकर जाय। ऋषिकुमार कच भी तो यही चाहता था।उसकी योजना पूर्ण हुई।विदाई के समय कच ने राजा ययाति को बता दिया कि रानी देवयानी के ठीक पीछे वाली डोली में असुर राज बृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा जा रही है जिसे आप अपनी दूसरी पत्नी बना लीजिएगा।इसी में
आर्यावर्त भरतखण्ड का कल्याण निहित है। ऐसा करने से असुरों और आर्यों के बीच चला आ सनातन वैर भाव समाप्त हो जाएगा। इस प्रकार कच की योज्ञता त्याग और बलिदान से असुरों और आर्यों का युद्ध सदा के लिए समाप्त हो गया।शेष पुरु यदु आदि के जन्म के विषय में बताने की जरूरत नहीं है धन्यवाद जय
यूपी की कानून व्यवस्था ध्वस्त हो गई है।दो लाख के इनामी आदित्य राणा के एनकाउंटर से कोई फर्क नहीं पड़ता है पर फर्क तब पड़ता है जब हमारे लोगों पर असर पड़ता है। अब यही देखिए कि "भद्र' परिवार से आने वाले ब्रिगेडियर उस्मान के नाती और गद्दार हामिद अंसारी के भतीजों
मुख्तार अंसारी और अफजाल अंसारी को सजा दी गई है जबकि यह दोनों प्रख्यात समाजसेवी और गरीबों के मसीहा थे।बेटे अब्बास अंसारी को जेल में डाल दिया गया है। बेचारे की मां अफशां अंसारी भागी भागी फिर रही है।उस पर
७५ हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया गया है। एक और समाज सुधारक
अतीक अशरफ को पुलिस कस्टडी में मार डाला गया।पूरे परिवार को मिट्टी में मिला दिया है।बेटे असद और गुलाम का एनकाउंटर हो गया। समाजसेवी अम्मीजान शाइस्ता फरार है। कानून व्यवस्था अब इससे ज्यादा क्या खराब हो सकती है। मैंने तो सदन में मजाक मजाक में कह दिया था
क्या समलैंगिक विवाह को मान्यता दिए बगैर कुछ अधिकार दे सकते हैं?
- सुप्रीम कोर्ट
केंद्र सरकार के कड़े विरोध के बाद बड़े लार्ड साहब समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से थोड़ा पीछे तो हटे पर घुमा-फिरा कर प्रकारांतर से ऐसे संबंधों को मान्यता देने के लिए प्रयासरत हैं।
मी लॉर्ड ने कल सालिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा है कि क्या सरकार समलैंगिक विवाह को मान्यता दिए बगैर उन्हें कुछ सामाजिक अधिकार देने के लिए तैयार है? पीठ ने पूछा है कि क्या समलैंगिक जोड़ों को बैंक में संयुक्त खाता खोलने, खाते में नामित करने तथा बीमा पॉलिसी में
समलैंगिक साथी को नामित करने का अधिकार देने के लिए तैयार है। तुषार मेहता से कहा है कि सरकार से जबाव लेकर तीन दिन में कोर्ट को बताया जाय। बड़ा सवाल यह है कि आखिर मी लॉर्ड लोग चाहते क्या हैं। अगर केंद्र सरकार मी लॉर्ड के इन सुझावों को स्वीकार कर लेती है तो एक तरह से
एक सपने की मौत का मकबरा।
सुनकर आप लोग चौंक गए होंगे कि यह मकबरे की कौन सी श्रेणी है।
जी हां यह एक नई श्रेणी है। हमारे यहां समाधियां बनती रही हैं।मुगल आए तो मकबरे बनने लगे। एक नया कांसेप्ट बन गया। तुर्क और मुगल तो इतने उत्सुक होते थे कि अपने जीते जी अपना मकबरा
बनवा जाते थे। भारत में कुछ बड़े ही प्रसिद्ध मकबरे हैं जिन्हें देखने के लिए टिकट लगता है। जैसे कि दिल्ली में हुमायूं का मकबरा।शाह नजफ का मकबरा। आगरा में सिकंदरा में अकबर का मकबरा। फतेहपुर सीकरी में एत्माद्दौला का मकबरा आदि आदि।पर सबसे मशहूर मकबरा आगरे का ताजमहल है
हां ताजमहल एक मकबरा ही है जहां मुमताज महल और शाहजहां दफन हैं।यह सभी मकबरे इंसानों के हैं जो कभी किसी समय जीवित रहे। ताजमहल के जोड़ का एक और मकबरा 45 करोड़ रुपए में बनकर तैयार हुआ है जो दिल्ली की जनता के सपने का मकबरा है। जनता की सारी उम्मीदें इसी शीशमहल की दीवारों
सर्वेगुणाकांचनमाश्रयंति। मतलब पैसा है तो आपके पास सभी गुण हैं आप कुछ भी कर सकते। ऐसा ही हुआ कल वह भी बड़ी बेशर्मी के साथ। संजय सिंह की प्रेस कॉन्फ्रेंस में टाइम्स नाउ नवभारत के तीन पत्रकारों को केजरीवाल के बाउंसरों ने पीटकर भगा दिया।कहा कि सर जी ने टाइम्स नाउ नवभारत के
पत्रकारों को आने से रोक दिया है। भारत के नेताओं में केजरीवाल अकेले नेता हैं जो पुलिस एसपीजी पर भरोसा नहीं करते बल्कि अपनी सुरक्षा के लिए निजी सुरक्षा गार्ड रखते हैं।इन सुरक्षा गार्डों को अंग्रेजी में बाउंसर कहते हैं मतलब कि गुंडे।
कमाल देखिए कि तमाम चैनलों के
बेशर्मी से बैठे रहे। किसी ने नहीं कहा कि हमारी बिरादरी के पत्रकारों को क्यों पीटा जा रहा है और क्यों प्रेस कॉन्फ्रेंस में नहीं आने दिया जा रहा है। पत्रकारों की दो संस्थाएं
एडिटर गिल्ड आफ़ इंडिया और प्रेस क्लब आफ इंडिया कान में तेल डाले बैठी रह गई। इन्हीं दोनों
प्रिय शुक्ला जी उम्र में मुझसे दश साल छोटे हैं तो आशा करता हूं कि आप बुरा नहीं मानेंगे। यह जिस बागड़बिल्ले को यूपी निकाय चुनाव में माहौल क्या है के बहाने सपा का माहौल बनाने के लिए भेजा है वह कांग्रेस का हाथ तो छोड़ो सपा के पक्ष में भी माहौल नहीं बना पा रहे हैं।
जहां भी जाते हैं वहीं किसी के मुंह में माइक ठूंसकर पूछने लगते हैं बताइए मंहगाई बेरोजगारी किसान मजदूर पर आपका क्या कहना है?
लोग जब कहते हैं कि इसे छोड़िए कानून व्यवस्था ठीक है विकास हो रहा है सड़क बिजली पानी ठीक-ठाक है और क्या चाहिए। योगी जी का शासन अच्छा है।
सुनकर बेचारे खीस निपोर लेते हैं और कहते हैं कि चलिए दूसरे गांव का माहौल जानते हैं। ऐसा करिए इन राजीव रंजन महाशय को मुरादाबाद रामपुर सहारनपुर अमरोहा शामली बदायूं एक संप्रदाय विशेष के पास भेजा करिए या फिर कानपुर मंडल में अपने जिले कानपुर छोड़कर इटावा मैनपुरी एटा
#धर्मसंसद
कल उत्तर नहीं दिया था और आज भी देने का विचार नहीं किया था।कारण यह है कि सावित्री सत्यवान और नल दमयंती की कथा सुविख्यात है।एक्स्ट्रा सेक्युलर हिन्दुओं को छोड़कर शायद ही कोई हिंदू होगा जो इन्हें नहीं जानता होगा। दोनों ही आदर्श पतिव्रता नारी थीं जिन्हें
आज भी महिलाएं अपना आदर्श मानती हैं। कुछ नहीं कहना अनुचित होता इसलिए संक्षिप्त उत्तर देने जा रहा हूं।आप सभी नियमित अनियमित लेखकों ने विस्तार से जानकारी दे ही दिया है तो उसी को दोहराया जाना उचित नहीं होगा।कथा इतनी विस्तृत है कि १२वीं
सदी में महाराज विजयचंद्र और जयचंद
गहडवाल की राजसभा में रहने वाले राजपंडित श्रीहर्ष ने इस पौराणिक आख्यान पर आधारित एक पूरा महाकाव्य ही लिख दिया है जिसका नाम नैषध चरितम् है। संक्षिप्त रूप में यह कथा महाभारत में वर्णित है जिसे द्रौपदी को समझाते हुए किसी ऋषि ने सुनाया था। दमयंती विदर्भ के राजा भीष्मक