अच्छी बात है कि सिंगल स्क्रीन्स मिली हैं। अभी BMS देखा, यह साफ़ है कि लोग टिकिट खरीद रहे हैं, देखने जा रहे हैं। यह फिल्म बड़े मल्टीप्लेक्स के साथ-साथ सिंगल स्क्रीन्स में चलनी अधिक महत्वपूर्ण है। 100-120 रुपए की टिकिट लेकर फिल्म देखने वाले आम लोगों तक कहानी.. #TheKerelaStory 1/9
..पहुँचनी चाहिए। निर्माता विपुल डिस्ट्रीब्यूशन के खेल को अच्छे से समझते हैं ऐसा मेरा अनुमान है। मैं काफी समय से बोलता/लिखता आ रहा हूँ कि सारा खेल डिस्ट्रीब्यूशन का ही है।
RW के पास पटकथाओं की कमी कभी नहीं होगी, जिन क्षेत्रों में पैर जमाने की आवश्यकता है वे हैं प्रोडक्शन..
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..हाउस और डिस्ट्रीब्यूशन। कश्मीर फाइल्स ने सिद्ध कर दिया कि हिन्दू अपनी पर आ जाए तो निर्माताओं को मालामाल कर सकता है।यह बहुत सकारात्मक चीज़ है।इससे निर्माताओं का साहस और विश्वास दोनों बढ़े हैं।
निर्माता भावुक नहीं हो सकता,ना ही होना चाहिए। उसका उद्देश्य पैसा कमाना है, अब यह..
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..हमपर निर्भर करता है कि हम निर्माताओं से कैसी फिल्मों पर पैसा लगवा सकते हैं।
बात अगर #TheKerelaStory की करें तो प्रतीत ऐसा हो रहा है कि यह फिल्म भी कश्मीर फाइल्स, कांतारा और कार्तिकेय 2 की भाँति वर्ड ऑफ़ माउथ पर चलने वाली है। फिल्म का बजट कुछ खास नहीं है परन्तु..
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..आवश्यक यह है कि कमाई बजट से तीन से चार गुना अधिक होनी ही चाहिए। यह कार्य केवल सिंगल स्क्रीन ही करा सकते हैं।
ईद पर आया भाईजान नाम का कचरा ईदी में मिले पैसे जेबों से समाप्त होते ही थिएटरों से उतर गया। यह चीज़ #TheKerelaStory के लिए ब्लेसिंग इन डिस्गाइज़ बन सकती है। अब इस..
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..फिल्म को थिएटर के स्तर पर Guardians of the Galaxy से लड़ना है। अच्छी बात यह है की मार्वल की इस फिल्म की भी औसत ही बताया जा रहा है। वैसे भी दोनों के दर्शक अलग हैं।
12 मई को IB71 की रिलीज़ से पहले #TheKerelaStory को वर्ड ऑफ़ माउथ से इतनी लोकप्रियता प्राप्त..
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..करनी होगी कि रिलाइंस-टी सीरीज जैसे बड़े प्रोडक्शन/डिस्ट्रीब्यूशन की IB71 को स्क्रीन्स के मामले में टक्कर दे सके। इसलिए आवश्यक है कि इस फिल्म के बारे में बात करें, लिखें। 80 रुपए की टिकिट लेकर भी देखें तो वापस आकर दोस्तों, घरवालों, आस-पास वालों मुख्यतः महिला मित्रों, बहनों..
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..से इसकी चर्चा करें। संभव हो तो अपनी बहनों, महिला मित्रों, बेटियों के साथ ही ये फिल्म देखने जाएँ।
विपुल शाह-सुदीप्तो सेन अपना काम कर चुके हैं, सौभाग्य से न्यायालय ने भी इस मुद्दे पर ठीक निर्णय दे दिया है और शेष कार्य NDTV-Quint जैसे मीडिया हाउस इस फिल्म की आलोचना करके साफ़.. 8/9
..कर दे रहे हैं कि क्यों यह फिल्म कश्मीर फाइल्स की भाँति ही महत्वपूर्ण है।
अब अंतिम उत्तरदायित्व जनता का है,वे #TheKeralaStory को भी कश्मीर फाइल्स सी ख्याति दिलाएँ,अधिकाधिक लोगों तक पहुँचाने में सहायता करें ताकि भविष्य में बॉलीवुड से सैकड़ों विपुल-सुदीप्तो-विवेक आगे आ सकें।
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कल जब ये समाचार देखा,तभी सोचा था इसपर विस्तार से लिखना पड़ेगा। सबसे महत्वपूर्ण चीज़ यहाँ आपने लिख ही दी कि ये बकैती बच्चे की नहीं बल्कि माँ-बाप की है। अब प्रश्न यह है कि ये हो क्यों रहा है? केवल सोशल मीडिया पर थोड़ी सी सस्ती लोकप्रियता के लिए?
नहीं, समस्या इससे कहीं..
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..गंभीर है।
समझ नहीं आ रहा कहाँ से प्रारम्भ करूँ? इसीलिए वहीं से करता हूँ जिस क्षेत्र में मैं अपनी मज़बूत पकड़ मानता हूँ: सिनेमा(पॉप कल्चर)। मेरे विचार में सिनेमा ने इस समस्या की उत्पत्ति एवं इसे बढ़ावा देने में सबसे बड़ा योगदान दिया है। कई लोगों का मानना है कि..
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..ये समस्या केवल सोशल मीडिया/सस्ता इंटरनेट/टिक-टोक/रील के कारण आई है। मैं टेक्नोलॉजी का इस समस्या में केवल 10-20% योगदान मानता हूँ। इस चीज़ में सोशल मीडिया या इन एप्स ने केवल एक catalyst(स्रोत) का कार्य किया है। इसने लोगों को मूर्ख बनाया नहीं, अपितु उनके अंदर की दबी..
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NO
You've surrounded yourself with peopleजिनकी औकात तुमसे नीचे थी।तुम्हारा पति इसलिए नहीं दूर हटता क्योंकि वह फेमिनिस्ट या कोई अन्य'ist'है,वो कार्पेट इसलिए छोड़ता है क्योंकि उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि है कि तुम उसकी पत्नी हो।देखा जाए तो वह अधिक insecure है।It's not about gender.. 1/6
..it's about gap in your professional level/औकात। तुम ऐसा करनेवाली एकमात्र मनुष्य नहीं हो जिसने अपने स्तर(कौशल के मामले में)से नीचे व्यक्ति को जीवनसाथी चुना। यह गलत भी नहीं है, समस्या यह है कि आप तुम इस चीज़ को भुना रही हो।
प्रेम स्तर देखकर नहीं किया जाता पर जब आप लोगों को..
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..मूर्ख समझकर यह बताने का प्रयास करते हैं कि आपका पति आपको सामान्य से अधिक महत्व आपके स्तर के कारण नहीं बल्कि इसलिए दे रहा है क्योंकि वह freedom-feminism आदि का समर्थक है तो साफ़ होता है कि आपने धूर्तता की है प्रेम नहीं।एक पटल पर बैठकर यह कहने से ऐसा प्रतीत होता है कि तुमने..
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You either die a hero or you live long enough to see yourself become the villain.
हर मैच समान पिच पर न खेला जाता है और न खेला जाना चाहिए। पठान के साथ यही भूल की गई। यहाँ भी बहुत से कुतर्क प्रस्तुत किए गए हैं, जिनपर कुछ लिखना चाहता हूँ। संभव है बहुत से लोग सहमत न हों
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आगे पढ़ने से पहले दो बातें जान लें कि मैंने भोला(अभी तक) नहीं देखी है,बहुत जल्द देखने वाला हूँ। दूसरी कि मुझे मांस का स्वाद तक नहीं पता है परन्तु मैं मांस ग्रहण करने का पूर्ण समर्थक हूँ।
1>नवरात्रि के समय मांस भक्षण न करना हिन्दुओं का अपना चुनाव होता है, मेरे ज्ञान अनुसार..
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ऐसा कहीं लिखा नहीं है।
वैसे तो हम जिस सभ्यता से आते हैं वहाँ क्या खाना ‘चाहिए’ क्या ‘नहीं’ इस पर कोई कठोर नियमावली नहीं है। ये पूर्णतः भूगोल और आपके पंथ पर निर्भर करता है। (गौमांस एकदम अलग विषय है, हो सका तो इसपर अलग से थ्रेड या वीडियो अवश्य बनाऊँगा।)
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सलमान रुश्दी की जगह सलमान खान का चित्र, संजय गाँधी की जगह राजीव गाँधी का। ऐसे उदाहरण लगभग हर दिन बड़ी-बड़ी मीडिया संस्थाओं में दिख जाते हैं। इनमें 10% ही confusion या जल्दबाज़ी में हुई गलतियाँ होती हैं, अधिकतर ये जानकारी के अभाव इत्यादि से हुई गलतियाँ हैं। कारण..⬇️
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मैं इसे जानकारी का अभाव इसलिए भी कह रहा हूँ क्योंकि ऐसे कई कथित मीडिया स्कूल, जर्नलिज्म स्कूलों की डिग्री वाले लोगों के साथ मेरा निजी अनुभव रहा है, जिन्हें अपने ही क्षेत्र की मूलभूत जानकारियाँ तक नहीं हैं और हिंदी/अंग्रेजी पत्रकारिता में डिग्रियाँ लिए बैठे हैं।
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भारत के मानचित्र पर उंगली रखकर 20 राज्य नहीं बता सकते, उत्तरपूर्व के सब राज्यों के नाम तक नहीं जानते, 10 भारतीय भाषाएँ नहीं बता सकते, PDP और TDP का अंतर नहीं पता, मल्लू और अल्लू में अंतर नहीं पता परन्तु केवल इसलिए सम्मान के अधिकारी हैं क्योंकि..
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