इस आधुनिक संसार में सबसे बड़े अपराधियो में अमेरिका है। वह अपने आर्थिक हित के लिये युद्ध करता है। मीडिया , बुद्धिजीवी वर्गों से राष्ट्रों और नेताओं को बदनाम करता है।
आज एक ऐसे नेता कि बात होगी जिसे विश्व के अधिकतर लोग तानाशाह मानते है।
जिसे नोबेल पुरस्कार मिलना चाहिये था। लेकिन मिली मौत। दुर्भाग्य यह है कि लोग उसे अपराधी समझते है।
लीबिया , सहारा मरुस्थल से लगा अफ्रीकी देश है। वहाँ 80 % जमीन रेगिस्तान है। केवल 10 % भूमि ऐसी है कि लोग रह सकते है। देश के अधिकतर हिस्से ऐसे है, जँहा 20 वर्ष एक बूंद
पानी नहीं गिरा।
जब दुनिया में तेल की खोज हुई तो हर देश में तेल कि खोज होने लगी। लीबिया में तेल की जगह जो मिला वह आश्चर्य में डालने वाला था।
रेगिस्तान में 500 मीटर नीचे , पानी की मोटी पर्त मिली, इसको मोटाई कही कही 700 मीटर मोटी थी।
विशेषज्ञयो की राय में यह इतना पानी है कि
2- 3 हजार वर्ष तक लीबिया को पानी दे सकता है।
जिस देश का 90 % हिस्सा रेगिस्तान हो , उसके लिये इसकी अहमियत समझी जा सकती है।
लेकिन इस पानी को निकालना , उसको अन्य भागों में भेजना भगीरथ तपस्या से कम नहीं था। 1960 में इस काम में जो धन की आवश्यकता थी वह 25 अरब डॉलर थी।
आज की दृष्टि से देखे तो 100 अरब डॉलर से उपर होगी।
इस परियोजना पर विचार छोड़ दिया गया। लेकिन जब कर्नल ग़दाफी राष्ट्रपति बने तो उन्होंने इस कार्य को शुरू किया।
पश्चिमी देश ग़दाफी के विरोधी थे। IMF , वर्ल्ड बैंक किसी ने लीबिया को इस कार्य के लिये कर्ज नहीं दिया।
ग़दाफी ने अपने ही
राष्ट्र से व्यवस्था करके इस असंभव परियोजना को आगे बढ़ाया।
दक्षिण कोरिया के इंजीनियर इसमें मदद किये।बाद में यूनिस्को ने भी इंजीनियरो को प्रशिक्षण दिया।
बड़ीबड़ी पाइपों का निर्माण हुआ।इतनी चौड़ी कि मेट्रो ट्रेन गुजर जाय।
28अगस्त 1984 को कर्नल ग़दाफी ने इस परियोजना का उद्घाटन किया।
500 मीटर गहरे , 1300 कुओं का निर्माण हुआ। जो 4000 किलोमीटर लंबी पाइप लाइन से पानी ले जाती थी। इतने बांध बने की उतने से 12 मिस्र के पिरामिड बन जाय। इसमें बने कुएं अंतरिक्ष यात्री भी देख सकते है।
33 अरब डॉलर ग़दाफी ने खर्च किये। पूरे अफ्रीका को हरा भरा होने की उम्मीद जग गई।
2008 में गिनीज़ ऑफ बुक ने इस परियोजना को सबसे बड़ी परियोजना के रूप में सम्मिलित किया।
लीबिया के बड़े शहरों त्रिपोली , बेआन्जी में पानी पहुँचने से लोग खुशी से पागल हो गये। 13 हजार हेक्टेयर जमीन में सिंचाई होने लगी।
लेकिन 2011 में अमेरिका , NATO ग़दाफी के विरुद्ध दुष्प्रचार करके
हमला कर दिया।
आश्चर्य की बात यह है उन्होंने ने सबसे अधिक बम इसी परियोजना पर गिराये। जिससे 25 % से अधिक ध्वस्त हो गई।
अफ्रीका के लिये वरदान को पश्चिमी देशों ने कैसे खंडहर में बदला देखा जा सकता है।
अब तड़फते अफ्रीका को बोतल का पानी बेचेंगें ,कोई मदर टरेसा आकर धर्मपरिवर्तन करायेंगी।
नोबेल पुरस्कार , संत की उपाधी लेंगी।
ग़दाफी बुरे थे, तो उनके देश के लोग समझते, तुम कौन लोग हो बम , मिसाइल गिराने वाले।
भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर , यही सब तो कह रहे है। तुम्हारी नियत ठीक नहीं है। वह कहते है ब्रिटेन ने 100 वर्ष में भारत से 45 ट्रिलियन डॉलर लूटा। यह ब्रिटेन के ही
विश्वविद्यालयो का शोध है। भारत 75 साल में 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था नहीं बन पाया।तो कितना लुटा होगा अनुमान लगाया जा सकता है।
विश्वभर के इंजीनियर के सहयोग बनी यह परियोजना ! ग़दाफी को महान नेता बनाती है।
एक समय तक भाभाजी घर पर हैं की नायिका रही शिल्पा शिंदे का कैरेक्टर अंगूरी भाभी के रूप में आती रहीं। उनके चरित्र की कल्पना कुछ ऐसी की गयी थी कि वो गांव से आयी एक सीधी सादी स्त्री हैं जो देशज भाषा में बात करती हैं और सहज साज श्रृंगार करती हैं। वो एक भोली भाली महिला है जिन्हें उनका
पति पगली या बौड़म तक कहता रहता है।
लेकिन इस सीरियल का सफलता का सबसे बड़ा कारण बौड़म अंगूरी भाभी का कैरेक्टर ही थी। उनका सही पकड़े है वाला डॉयलॉग एक समय में खूब फेमस भी हुआ था।
लेकिन यहां हम एक दूसरी बात पूछ रहे हैं। क्या अंगूरी भाभी का कैरेक्टर देखकर आपके मन में कभी कोई वासना
जागी?आमतौर पर फिल्मी पर्दे पर नायिकाओं का कैरेक्टर गढते समय पुरुष के वासना पर प्रहार किया जाता है।उनके कपड़े,उनके कई ऐसे सीन जो पुरुष में उत्तेजना पैदा करते हैं।
लेकिन अंगूरी भाभी का कैरेक्टर ऐसा था कि उन्हें देखकर पुरुष की वासना नहीं जागती थी।इसका कारण उनका बौड़म होना नहीं था।
भारत का लोकमानस यहाँ हर दिन मार्क्स के चेलों और नवबौद्धों के मुँह पर तमाचा मार कर कह रहा होता है कि भारत में धर्म का मतलब अफीम नही अस्तित्व और अस्मिता होती है।
वैसे भी जो बुद्ध का पंचशील सिद्धान्त है जैसे हिंसा न करना, चोरी न करना, व्यभिचार न करना, झूठ न बोलना और नशा न करना! ये
सभी अब गुजरे हुए जमाने की बातें हो गयी हैं।
आज जो आपको बौद्ध धर्म के बहाने समानता ओमानता पर जबरदस्ती का ज्ञान देते मिले उससे पुछिएगा कि भाई कभी गया गये हो क्या?अगर जबाब हाँ में मिले तो पुछिएगा कि वहाँ पर बौद्ध मंदिर के अंदर जो ब्राह्मणवाद और समानता ओमनता है उस पर कुछ ज्ञान दीजिए
चाहे छोड़िए दलाई लामा के जात की सप्रसंग व्याख्या कीजिए! वह भी छोड़िए बौद्ध में अब कितने वर्ग बन गये हैं वह बताइए चाहे कितने प्रतिशत भारतीय दलित बौद्ध की शरण में जाने के बाद भंते नही लामा बने हैं!
बुद्ध आज के तथाकथित बुद्धिजीवी और बुद्धजीवी के जैसे कपटी नही थे। वे कहते थे कि खुद
पिछले बार के उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का सत्ता में आना तय था
बीजेपी लगातार सत्ता में थी, कई मुख्यमंत्री बदले, एंटी इनकंबेंसी बहुत थी, अंदर की बात में बता रहा हूं कि खुद बीजेपी मान चुकी थी कि इस बार वह उत्तराखंड में सत्ता में नहीं आएगी
तभी अचानक कांग्रेस का
घोषणापत्र सामने आता है और कांग्रेस वायदा करती है कि यदि उत्तराखंड में कांग्रेस सत्ता में आई तब वह हरिद्वार में एक मुस्लिम यूनिवर्सिटी बनाएगी और कांग्रेस के कई नेताओं ने भी मंच से ऐलान किया कि जब कांग्रेस सत्ता में आएगी तब वह हरिद्वार में मुस्लिम यूनिवर्सिटी बनाएगी
हरिद्वार हिंदुओं का सबसे पवित्र जगह है यहीं पर विष्णु भगवान के पैरों के निशान हरि की पैड़ी है कई आश्रम है ऐतिहासिक मंदिर है... हिंदू पूरी दुनिया से अपने पुरखों के अस्थियों को यहां विसर्जित करने आते हैं
अब हिंदुओं के ऐसे पवित्र जगह पर मुस्लिम यूनिवर्सिटी बनाने की घोषणा करना
30 लाख करोड रुपए का काला धन जो भारतीयों ने स्विट्जरलैंड के बैंक में रखा हुआ था वह अब पूर्णतया से जप्त कर लिया गया है। इस बात की ऑफिशियल न्यूज़ आ गई है। जप्त तो 2008 की महामंदी के बाद ही कर लिया गया था लेकिन उस समय इस तरह के जमा धन को बाण्डस में बदल दिया गया था। और अब अदानी प्रकरण
के बाद जब अमेरिकन बैंक धड़ाधड़ डूबने लगे तो इस तरह से बाण्ड की शेप में इन्वेस्ट किया हुआ वह भारतीयों का काला धन इन बैंकों द्वारा अपने को डूबने से बचाने के लिए जप्त कर लिया गया है।
हम बचपन से ही दो बातें सुनते आए थे कि एक तो चोरी का माल मोरी में और दूसरी यह कि जो दूसरों के लिए
खड्डा खोदते हैं वह स्वयं उसमें कभी ना जरूर गिरते हैं।
चोरी का माल मोरी में
यह अमेरिका और पश्चिमी विश्व अच्छे से जानता है कि यह जो काला धन भारतीयों ने इन बैंकों में जमा कराया हुआ है उसको वापस पाने के लिए यह लोग किसी भी तरह से न्यायालयों में नहीं जाएंगे क्योंकि इनको इस तरह के
राजस्थान के अशोक गहलोत सरकार ने एक बेहद खतरनाक बिल पास कर दिया है जिसे राजस्थान सरकार राइट टू हेल्थ बिल कह रही है
इसके अनुसार कोई भी मरीज किसी भी निजी हॉस्पिटल में अगर जाएगा तो हॉस्पिटल पैसे के अभाव में उसका इलाज करने से मना नहीं कर सकती मतलब हॉस्पिटल वालों को मुफ्त में मरीज का
इलाज करना पड़ेगा और यदि हॉस्पिटल किसी गांव देहात एरिया में है और मरीज को रेफर करना है तब उस निजी हॉस्पिटल की जिम्मेदारी होगी कि वह अपने निजी खर्चे से एंबुलेंस से मरीज को बड़े हॉस्पिटल में भेजें
एक हॉस्पिटल को शुरू करने में कुल 48 परमिशन लेनी पड़ती है कई करोड़ रुपए हॉस्पिटल की
बिल्डिंग बनाने में लगता है नर्स से लेकर दुनिया भर के स्टाफ होते हैं सबको सैलरी देनी पड़ती है महंगे महंगे मेडिकल इक्विपमेंट आते हैं बिजली का बिल से लेकर दूसरे कई तरह के फिक्स खर्चे होते हैं
उसके बावजूद राजस्थान सरकार इस तरह का काला कानून बना रही है बनाकर लागू भी कर दिया