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मौखिक तंत्र से चलता शासन, तानाशाही और गंदी राजनीति का एक और नमूना

क्या इसपर उपराष्ट्रपति कुछ बोलेंगे? या फिर राष्ट्रपति जी कुछ बोलेंगी?

दिल्ली यूनिवर्सिटी की प्रॉक्टर ने कहा राहुल गांधी यूनिवर्सिटी में बिना परमिशन के आए थे, हम कार्यवाही करेंगे
लंदन में राहुल ने कहा था यूनिवर्सिटी में विपक्ष के नेताओं को नहीं जाने दिया जाता न ही प्रोग्राम में बुलाया जाता है

कल कांग्रेस नेता राहुल गांधी के दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रावास के दौरे पर विश्वविद्यालय की प्रॉक्टर रजनी अब्बी कहती हैं, ImageImage
''हम विश्वविद्यालय को राजनीतिक अखाड़ा नहीं बनाना चाहते हैं. इसके लिए जो भी जिम्मेदार होगा, उसके खिलाफ कार्रवाई होगी।"

आगे कहती हैं: हमारी आपत्ति है कि राहुल गांधी ने अनधिकृत रूप से दिल्ली विश्वविद्यालय का दौरा किया। ये कोई पब्लिक प्लेस नहीं है जो आप घूमते-घूमते पहुंचे हैं।
आप लंच के समय पहुंचे, उस दौरान सिर्फ 75 लोगों के लिए खाना बनता है, कभी-कभी 5-7 लोग ज्यादा पहुंच जाते हैं लेकिन आप आते हैं और वहां आने वाली भीड़ के साथ, जो छात्र भी नहीं हैं, सारी स्थिति को हाईजैक कर लेते हैं. वे बाहरी हैं। Image
यह ठीक नहीं है कि इससे छात्रावास के छात्रों को परेशानी होती है। छात्रों ने लिखित शिकायत की है कि उन्हें खाना नहीं मिला

आगे तो मैडम को राहुल की सुरक्षा की भी चिंता हो गई और उस पर भी बोलीं कि राहुल गांधी ने डीयू कैंपस के दौरे के दौरान सुरक्षा में सेंध इसलिए लगा दी
क्योंकि उन्होंने किसी से अनुमति तक नहीं ली है. उन्हें कम से कम प्रॉक्टर के कार्यालय को सूचित करना चाहिए।आपके पास Z+ सुरक्षा है। अगर गलती से कुछ हो जाता है तो कौन जिम्मेदार होगा?: रजनी अब्बी,प्रॉक्टर डीयू

आप इन मैडम की बुद्धि पर तरस करें या फिर सरकारी नौकरी बचाने का दवाब कहें
राहुल के यूनिवर्सिटी जाने की सूचना 2 दिन से मीडिया में थी और सुबह से की सुरक्षा एजेंसी यूनिवर्सिटी कैंपस में मौजूद थी, साथ ही NSUI तीन दिन से इसकी तैयारी कर रही थी,

एक और बात कल सारा कार्यक्रम होने के बाद आज शाम को बयान जारी किया जा रहा है, वो भी सरकारी या कहें बीजेपी की PR
एजेंसी ANI के द्वारा या पूरा बयान सामने आया है.
इसमें न ही वो छात्रों की कंप्लेंड दिखाई है, न ही और कोई भी ऑफिसल दस्तावेज

मतलब देश में मौखिक आदेश और बयान पर पूरी कार्यवाही हो रही है या कहें सिस्टम काम कर रहा है

✍️ #सौरभजैन #SourabhJain #RahulGandhi #delhiuniversity

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May 7
ये है इनकी नौ साल की उपलब्धि कि एक राज्य कर्नाटक का चुनाव जीतने के लिए इन्हें

केरल स्टोरी जैसी बाहियत प्रोपेगैंडा फिल्म, जिसमें एक पूरे राज्य केरल का अपमान किया गया है, का सहारा लेना पड़ रहा है।

और बजरंग दल तथा बजरंग बली को समान बताने का अपराध करना पड़ रहा है।
यहां तक कि डियर स्मृति ईरानी को दावा करना पड़ रहा है कि उन्होंने प्रियंका गांधी को नमाज पढ़ते हुए देखा।

डियर मोहन भागवत, इस तरह की हरकतों से तात्कालिक फायदा ये हो सकता है कि ये लोग कर्नाटक चुनाव जीत जाएं।

लेकिन दीर्घकाल के लिए तो ये संघ मुक्त भारत की नींव ही रखी जा रही है।
क्या आप उस समय की कल्पना कर पा रहे हैं मोहन जी, जब जनता धुर्वीकरण के जाल में फंसने से इंकार कर देगी? शायद नहीं।

ध्यान रखिए, जनता धुर्वीकरण के जाल में निरन्तर नहीं फंसती रहेगी। आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों, परसों नहीं तो नरसों, उसकी समझ में आ जाएगा कि दूध में कितना पानी है।
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May 7
बजरंग दल
"बजरंग दल" राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तमाम छद्म संगठनों में से एक है, "विश्व हिन्दू परिषद" से भी उग्र यह संघ का सबसे हिंसक संगठन है जिसमें संघ बेहद कम उम्र के युवाओं की भर्ती करता है।
त्रिशूल और फ़रसा इसी संगठन में छोटे छोटे बच्चों से लेकर युवाओं तक बांटें जाते हैं और इसी "बजरंग दल" के लोग देश के सभी दंगों, शोभा यात्रा में मस्जिदों और मज़ारों पर आक्रमण या भगवा फहराते हैं। गोरक्षा के नाम पर, श्रीराम के नाम पर मुसलमानों की लिंचिंग करने वाले लगभग सभी
इसी संगठन के लोग होते हैं यह एक नहीं तमाम बार सामने आ चुका है।
उत्तर प्रदेश पुलिस के इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या करके लटका‌ देने वाले भी इसी संगठन के लोग थे। उड़ीसा में ग्राहम स्टेंस और उनके बच्चों को कार में जलाकर मार डालने वाले लोग यही थे त़ो शंभू रैगर भी इसी संगठन
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May 7
ग़लती मोदी जी की नहीं है ।
ठंढे दिमाग़ से सोचिए । अगर ६० लाख लोग कोरोना कुप्रंधन के चलते मर जाते हैं और आप फिर भी मोदी को वोट देते हैं, तो मोदी सरकार को स्वास्थ्य सेवा सुधारने की ज़रूरत क्या है?
यदि देश में पिछले ४५ सालों में सबसे ज़्यादा बेरोज़गारी है और आप फिर भी मोदी को वोट देते हैं, तो सरकार को रोज़गार पैदा करने की ज़रूरत क्या है?

अगर डॉलर के मुक़ाबले रुपया ऐतिहासिक स्तर पर कमज़ोर हुआ है और आप फिर भी अच्छे दिनों की आशा में मोदी को वोट देते हैं,
तो सरकार को अर्थव्यवस्था ठीक करने की ज़रूरत क्या है?

यदि देश भर में ६६ हज़ार स्कूलों के बंद होने से आपको कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है तो सरकार को शिक्षा पर खर्च करने की ज़रूरत क्या है?
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May 7
सनसनाता हुआ विष - बाण उस आदमी की छाती पर जा लगा ।
लोग उसे वैद्यजी के यहाँ ले गये ।
आदमी वैद्यजी से कहने लगा कि इलाज से पहले यह निश्चय करना होगा कि >>> वह बाण किस दिशा से आया था ?
बाण चलानेवाला कौन था ?
बाण चलानेवाला किस जाति का था ?
वह पतला था या मोटा था , काला था या गोरा था ?
उसने बाण क्यों चलाया ? कैसे चलाया ?
यदि उसने बाण न चलाया होता , तो क्या होता ?
वह आदमी अपनी अकल चलाने लगा !
वैद्यजी बोले >> भले आदमी , एक पल भी बहुत कीमती है , अपनी अकल मत चला , एक पल की भी देरी हुई तो
तू मर जायेगा ! जीवन में फिर कभी समय मिले तो इन बातों पर बहस करते रहना ,इस समय तुझे इलाज की जरूरत है । इस समय इन बातों का कोई महत्त्व नहीं है !
ऐसी ही बात आज देश की है । देश के लोगों का जीवन नाना प्रकार की समस्याओं से ग्रस्त है , प्रशासन का ढाँचा जर्जर हो चुका है ,
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May 7
क्या कभी किसी प्रधानमंत्री ने किसी फिल्म का प्रचार किया था? फ़िल्म भी वो, जो झूठे तथ्यों पर बनी हो? कोई फ़िल्म अच्छा संदेश देती हो, तो उसका प्रचार करना बुरा नहीं है, लेकिन जो फ़िल्म समाज को बांटती हो, उसका प्रचार करना किसी प्रधानमंत्री के लिए कितना सही है?
पहले कहा गया कि फ़िल्म 32 हज़ार हिन्दू लड़कियों की कहानी है। जब जवाब देने के लिए कहा गया तो ये संख्या तीन रह गई। अब सुना है कि फ़िल्म की शुरुआत में कहा गया है कि इस फ़िल्म के सभी पात्र काल्पनिक हैं। ये कितना सही है, मुझे नहीं मालूम। प्रधानमंत्री से लेकर गोदी मीडिया तक
फ़िल्म द केरला स्टोरी का प्रचार कर रहे हैं। मध्य प्रदेश सरकार ने उसे टैक्स फ्री कर दिया है। कश्मीर फाइल्स के बाद द केरला स्टोरी दूसरी ऐसी फिल्म है, जो विशुद्ध रूप से साम्प्रदायिक आधार पर बनाई गई है।जब सरकारें ही प्रोपेगेंडा फिल्मों का प्रचार करेंगी तो समझ लीजिए किस एजेंडे पर काम
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May 7
मणिपुर के पहाड़ों और जंगलों में मिनरल की भरमार है..लाइमस्टोन, निकेल, कॉपर, क्रोमाइट और बहुत सारे मिनरल है जो दुनिया में मुश्किल से मिलते हैं..

मणिपुर के पहाड़ों और जंगलों में 'ईसाई आदिवासी रहते है..ये जंगल मणिपुर का 90% हिस्सा है..
थोड़ी बहुत माइनिंग कांग्रेस के वक़्त से हो रही है पर मोदी की भूक मिटने का नाम नहीं लेती..

मणिपुर में "धारा 371" लागू है और इस वजह से ग़ैर आदिवासी पहाड़ी ज़मीन नहीं ख़रीद सकते..यहाँ "ग़ैर आदिवासी" का मतलब "मितरों उद्योगपति" समझिए..
यकायक मणिपुर के हिंदुओं को "आदिवासी" बनाया गया..तो अब वो भी ज़मीन ख़रीदने के हक़दार बन गए.."मूल आदिवासियों" को खेल समझ आ गया..

एकबार अगर "नए आदिवासी" ज़मीन ख़रीदने लगे तो "मितरों उद्योगपति" अपना ख़ज़ाना खोल देंगे और मूल आदिवासीयों का जंगल से खदेड़ा होना तए है..
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