ये है इनकी नौ साल की उपलब्धि कि एक राज्य कर्नाटक का चुनाव जीतने के लिए इन्हें
केरल स्टोरी जैसी बाहियत प्रोपेगैंडा फिल्म, जिसमें एक पूरे राज्य केरल का अपमान किया गया है, का सहारा लेना पड़ रहा है।
और बजरंग दल तथा बजरंग बली को समान बताने का अपराध करना पड़ रहा है।
यहां तक कि डियर स्मृति ईरानी को दावा करना पड़ रहा है कि उन्होंने प्रियंका गांधी को नमाज पढ़ते हुए देखा।
डियर मोहन भागवत, इस तरह की हरकतों से तात्कालिक फायदा ये हो सकता है कि ये लोग कर्नाटक चुनाव जीत जाएं।
लेकिन दीर्घकाल के लिए तो ये संघ मुक्त भारत की नींव ही रखी जा रही है। क्या आप उस समय की कल्पना कर पा रहे हैं मोहन जी, जब जनता धुर्वीकरण के जाल में फंसने से इंकार कर देगी? शायद नहीं।
ध्यान रखिए, जनता धुर्वीकरण के जाल में निरन्तर नहीं फंसती रहेगी।
आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों, परसों नहीं तो नरसों, उसकी समझ में आ जाएगा कि दूध में कितना पानी है। उसे किन किन तरकीबों से ठगा जा रहा है।
आज मैं आपको नंदू और नंदिनी की कहानी सुनाऊँगा।
नंदू एक गुफापुत्र था,और नंदिनी एक शापित विषकन्या।
नंदू के माँ बाप पैदा होते ही उसे एक शेर की गुफा में छोड़ गए थे,क्योंकि किसी ऋषि ने उन्हें बताया था कि तुम्हारी
पैदा होने वाली संतान बेहद मनहूस है,और यह तुम्हारे घर की अर्थव्यवस्था बर्बाद कर देगी।
तो जो गुफा थी वह भी नाम मात्र की शेर की गुफा थी।
कभी किसी गाँव वाले ने उस गुफा में शेर न देखा था।
उस गुफा में बकरी की लेंडिया पड़ी रहती थी,गाँव ने नवयुवा जुआ खेलते थे
उस गुफा में,
गाँव के युवक युवती कहीँ और एकांत न मिलने पर व्यभिचार करते थे उस गुफा में,
कहने का मतलब है गाँव वालों ने सब कुछ देखा था उस गुफा में पर शेर न देखा था।
जैसे गाँव देहातों में तथाकथित भूत वाला पेड़ होता है,वैसे ही यह तथाकथित शेर की गुफा थी।
'सड़क छाप' व्यंग्य
जो ज्यादातर सड़कों पर रहते हैं, हम उन्हें अक्सर सड़क छाप कह देते हैं। हालांकि इनमें से कुछ सड़कों के राजा भी होते है। जाहिर है जो सब कहीं के राजा होंगे वे सड़कों के भी होंगे। राजा मतलब जो राज नियमों से आबद्ध ना हो।
आपको सड़कों पर सब तरह के लोग, अपने-अपने रुतबे और अपनी-अपनी दीनता के साथ चलते हुए मिलेंगे।
सड़क की बात चली है, तो उसके श्रृंगार और संगीत की भी बात कर ली जाए। सड़क का श्रृंगार चालीस लाख वाली सन्न-सन्न्न करती हुई गाड़ियां हैं तो सड़क का संगीत, हूटर की चिल्लाते हुए सियार की तरह
किसी हादसे की सूचना देती हुई चीखें व प्रेशर हॉर्न की चौंकाने वाली आवाजें है। यह सड़क का असली संगीत है।
पुराने समय में मार्ग का सौंदर्य, गायों के झुण्डों के चलने से उड़ती हुई धूलो की तरह गोधूलि जैसा होता था।
गांधीजी गोधूलि उड़ाते हुए समूह के साथ पैदल चलते थे।
पिछली पोस्ट की अगली कङी--2
यह देखते हुए कि बनी मेनाशे लोग दो देशों और सभ्यताओं, इज़राइल और भारत के बीच एक जीवित कड़ी हैं, फ्रायंड ने बताया कि जब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल 2017 की शुरुआत में जुलाई में इज़राइल का दौरा किया था, तो सैकड़ों बनी मेनाशे अप्रवासी उनका स्वागत
करने के लिए एकत्र हुए थे, साथ में देश में रहने वाले अन्य भारतीय यहूदी भी उनसे मिले।
1. Bnei Menashe Council India
2. Shavei Israel Hebrew Centre
ऊपर वर्णित ये दोनों संस्थान जो भी कुकी कबिले के लोग यहुदी धर्म अपना लेते हैं उनको पेंशन, घर खर्च और अन्य वजीफे देते हैं तथा
पक्का आवास उपलब्ध करवाते हैं।
उसके बाद इजराइल जाने को तैय्यार आवेदक को हर तरिके से तैय्यार किया जाता है इनके पासपोर्ट और विजा टिकट का इंतजाम किया जाता है।
यह एक लंबा PROCESS होता है कनवर्जन से पलायन तक।
इस हेतु Bnei Menashe Council India और Shavei Israel Hebrew Centre ने
सनातनी पिंकू भैया ने भेज दी है। इस फोटो के पीछे की कहानी ऐतिहासिक है। जिसे, वामपन्थी इतिहासकारों ने एज युजुअल छुपा दिया था।
असल मे हुआ ये की एक बार माउंटबेटन जिन्ना के साथ बाहर गए हुए थे। मौका देखकर चचा ने बढ़िया अचकन पहनी। और गांधी टोपी लगाकर गए,
एडविना को प्रपोज किया।
इस पर एडविना ने शर्त रख दी। एकदम कड़ी शर्त..
बोली- "बाबू, मेको हिन्दू राष्ट्र चिये"
छुपे हुए संघियों की बाछें खिल गयी।
दरअसल कम लोगो को पता है कि कुछ रॉयल सीक्रेट सर्विस याने आएएसएस के कुछ लोग हमेशा नेहरू के इर्द गिर्द छुपे रहते थे।
खास तौर पर उनकी खटिया के नीचे दो स्वयंसेवको की ड्यूटी नियमित लगाई जाती थी।
वो ऊपर हो रही हरेक गतिविधि की रिपोर्ट, गुरुजी को भेजते थे। यही कारण है कि नेहरू जी की सारी गुप्त क्रियाओं के रोचक वर्णन से नागपुर के आर्काइव भरा पड़ा है।
द टेलीग्राफ के इस शीर्षक में लिखे Kitsch का अर्थ—
Oxford dictionary में 'works of art or objects that are popular but that are considered to have no real artistic value or not to be in good taste' दिया गया है।
जबकि Farooq Khan साहब के अनुसार—
The term kitsch, deriving from the
German word verkitschen meaning 'to make cheap,' is usually used to describe objects or art that are considered to be in poor taste.
किट्श शब्द, जर्मन शब्द वर्किट्सचेन से लिया गया है जिसका अर्थ है 'सस्ता बनाना', आमतौर पर उन वस्तुओं या कला का वर्णन करने के लिए उपयोग किया जाता है
जिन्हें घटिया कृति या कमतर गुणवत्ता वाला माना जाता है।
जिसके अपने गृहराज्य में सिर्फ पांच साल में 41,621 महिलाएं गुम हो गई हैं वह अपने नाम का डंका बजवाने के अलावा दूसरा कोई काम नहीं करता।